जानकीपुल पर बाल साहित्य का पाठकोँ ने बहुत स्वागत किया है। इसी क्रम मेँ रवीन्द्र आरोही की कहानी पढ़ते हैँ – नए स्कूल का पहला दिन।
पाठकोँ से अनुरोध है कि बाल-साहित्य से जुड़ी कहानियाँ, कविताएँ अधिक से अधिक बच्चोँ तक पहुँचाएँ। साथ ही किसी भी तरह के सार्थक रचनात्मक योगदान का स्वागत है।
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नए स्कूल का पहला दिन
नन्हे तथागत का नए स्कूल का पहला दिन था। वह सहारनपुर से आया था। यह स्कूल उसके सहारनपुर वाले स्कूल से बड़ा और सुंदर था। पर नन्हा तथागत अपने पुराने मित्रों को याद करके उदास था।
इस नए स्कूल में तरह-तरह के झूले थे। वह झूले देखते हुए, आगे बढ़ रहा था कि उसे एक छोटा-सा तालाब दिखा, जिसमें बहुत सारी मछलियाँ थीं। नन्हा तथागत सोचने लगा कि टिफिन के समय वह इस स्वीमिंग पूल में मछलियाँ देखेगा और अपने टिफिन से ब्रेड के कुछ टुकड़े उन्हें खिलाएगा। यह सोचते हुए वह अपने पुराने दोस्तों को भूल गया।
उस दिन उसे जिस क्लास रूम में बैठाया गया, उसमें बड़ी-बड़ी तीन खिड़कियाँ थीं। उसे सबसे पीछे की खिड़की के पास बैठना पड़ा। टीचर जब पढ़ाने आईं तो उन्होंने तीनों बंद खिड़कियाँ खोल दी और परदे सरका दिए। पूरी क्लास में अचानक रौशनी भर गई। नन्हे तथागत ने खिड़की से झाँककर देखा और झूम गया। वह तालाब खिड़की के एकदम पास ही था। टीचर ने नन्हे तथागत का सबसे परिचय कराया और बताया कि वह बहुत संदर चित्र बनाता है। उसके पास बैठी गौरवी ने नन्हे तथागत से कहा कि वह बहुत अच्छा गाना गाती है।
टीचर पाठ पढ़ाने लगी। तथागत बीच-बीच में खिड़की से तालाब की ओर देख लेता था। खिड़की से बहुत अच्छी हवा आ रही थी। नन्हा तथागत टिफिन ब्रेक में तालाब की ओर चला गया। तालाब के किनारे अमरुद के छोटे-छोटे पेड़ थे। उसने तालाब में ब्रेड के कुछ टुकड़े फेंके। मछलियाँ खाने लगीं। एक मछली तो तालाब के बाहर तक मुँह निकाल ले रही थी। उस बड़ी मछली ने अपने छोटे-छोटे सुंदर अंडे अमरुद की छाया में रख दिए और ब्रेड खाने में व्यस्त हो गई। नन्हे तथागत ने उन सुंदर अंडों को उठाकर अपनी जेब में भर लिया। इसी बीच गौरवी खिड़की से चिल्लाई,
‘भाग आओ तथागत! बेल बज गई।‘ नन्हा तथागत जेब में अंडे लिए क्लास में आकर बैठ गया।
बड़ी मछली परेशान थी। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उसने खिड़की से नन्हे तथागत को देख ही लिया। वह खिड़की से चिल्लाई, ‘लौटाओ मेरे अंडे।‘ वह लौटा नहीं रहा था तो गौरवी ने कहा, ‘लौटा दो उसके अंडे। वह तालाब की सबसे गुस्सैल मछली है।‘
नन्हे तथागत ने अंडे लौटा दिए। पर दो अंडे कम थे। भाग कर क्लास में आते समय शायद रास्ते में कहीं गिर गए थे।
वह मछली चिल्लाई, बताओ कहाँ गए अंडे। बताओ, बताओ बताओ….
गौरवी ने नन्हे तथागत को जगाया और कहा कि टीचर तुमसे पूछ रही हैं, कहाँ गए अंडे, बताओ…
नन्हे तथागत ने कहा कि लगता है रास्ते में गिर गए। तब गौरवी ने कहा, ‘अरे बुद्धू तुम सपना देख रहे थे। बोर्ड पर देखो, टीचर जो कहानी पढ़ा रही हैं, उसमें के अंडे कहाँ गए?’
बोर्ड पर लिखा था- लालची सेठ और सोने के अंडे
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रवीन्द्र आरोही का जन्म 1 अक्टूबर, 1984 को बिहार के गोपालगंज में हुआ। शुरुआती शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही एक ग़लत रेलगाड़ी पर सवार होकर कलकत्ता आ गए। बाक़ी का बचपन इसी शहर ने दिया। पढ़ना-लिखना इसी शहर ने सिखाया। फिर क्या था मोहब्बत सी हो गई इस शहर से, फिर ‘और’ कहीं के नहीं हो पाए। ‘निकम्मा’ तो नहीं पर इस शहर ने लेखक बनाकर ज़रूर छोड़ दिया। पढ़ाई-लिखाई इसी शहर में हुई, नौकरी भी कलकत्ता में ही करते हैं। पहली कहानी 2007 में छपी। हिन्दी की प्रमुख पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित। कहानी संग्रह जादू एक हँसी एक हीरोइन तथा उपन्यास आसमान के ताक पर प्रकाशित।
ई-मेल : arohi.nirmal@gmail.com