वे यश के लिय नहीं लिखती हैं, न ही आलोचकों के सर्टिफिकेट के लिए, न किसी पुरस्कार के लिए। साहित्य को स्वांतः सुखाय भी तो कहा जाता है। विमला तिवारी ‘विभोर’ के कविता संग्रह ‘जीवन जैसा मैंने देखा’ की कवितायें पढ़कर यह महसूस होता रहा साहित्य को क्यों साधना कहा जाता था। अगर उनके बच्चों ने इन कविताओं को संग्रह के रूप में प्रकाशित न करवाया होता तो भावों की ऐसी निश्छल अभिव्यक्ति हमारे सामने आ भी नहीं पाती। कुछ कवितायें आप भी पढ़िये- प्रभात रंजन
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1.
किसने द्वार मेरा
आज किसने द्वार मेरा
भूल से खटका दिया है
मौन थी मैं खींच घेरा
ओह क्यों चौंका दिया है
सुप्त सागर हृदय मेरा
नाद से लहरा दिया।
2.
व्यथा
घायल पक्षी जब गाता है
आनंद बिखरने लगता है
पीड़ा की बदली जब बरसी
मन धरा हरित हो जाती है
पीड़ा जननी वात्सल्य भरी
आनंद शिशु बन जाता है
3.
शव
चोट किधर और घाव कहाँ है
टूट गया कुछ रक्त कहाँ है
अश्रु किधर और नेत्र कहाँ है
चित्र अधूरा अर्थ कहाँ है
जीत किधर और हार कहाँ है
तेरा मेरा प्रश्न कहाँ है
घटा किधर और चमक कहाँ है
हरियाली का रंग कहाँ है
भीड़ किधर और शोर कहाँ है
शव जीवित है मरा कहाँ है?
4.
व्यर्थ
अब कोई आग्रह नहीं है
अब कृपा का अर्थ क्या है
अग्नि जब बुझने लगी है
इस नहर का अर्थ क्या है
अब अंधेरा ही नहीं है
इस दिये का अर्थ क्या है
प्रश्न अब कोई नहीं है
इस गणित का अर्थ क्या है
अब तो मंजिल पर खड़ी हूँ
अब बहकना व्यर्थ सा है
5.
तुम चले गए
मूक खड़ी मैं देख न पाई
तुम धीरे से चले गए
क्या बोले कुछ समझ न पाई
तुम धीरे से चले गए
तट की छूती चपल लहर सम
पात चूमती मदिर पवन सम
कब आए मैं समझ न पाई
तुम धीरे से चले गए