रोशन भारत, अंधेरा भारत
(अरविंद अडिगा के उपन्यास द व्हाइट टाइगर का एक अंश)
बंगलोर की ज्यादातर सफल कहानियों की तरह मेरी जीवन कहानी भी बंगलोर से काफी दूर शुरू हुई। अभी तो मैं रोशनी के बीच दिखाई दे रहा हूं, लेकिन मेरी परवरिश अंधेरों में हुई। मैं भारत के एक ऐसे हिस्से की बात कर रहा हूं जो इस देश का करीब एक तिहाई है, धान और गेंहूं के खेतों से भरपूर, जिनके बीच में तालाब होता है जो जलकुंभियों और कमल के फूलों से पटा होता है। उन कमल के फूलों ओर जलकुंभियों को खाती-चबाती भैंसें जिनमें नहाती रहती हैं। ऐसे इलाके में जो लोग रहते हैं वे इसे अंधेरी दुनिया कहते हैं। यह बात समझने की है कि भारत में दो देश निवास करते हैं- रोशन भारत और अंधेरा भारत। समुद्र हमारे देश में उजाला लाता है। भारत के नक्शे में जो-जो स्थान समुद्र के नजदीक हैं वे सर्वसंपन्न हैं। लेकिन नदी भारत में अंधेरा लाती है- काली नदी।
मैं किस नदी की बात कर रहा हूं- मृत्यु की किस नदी की। जिसके किनारों पर इस कदर गाद और कीचड़ जमा होता है जो किनारों पर बोए जाने वाली फसल को अपनी जकड में लेकर मिटा डालता है। मैं गंगा नदी की बात कर रहा हूं, वेदों की पुत्री, प्रज्ञा की नदी, हमारी रक्षिका समझी जाने वाली नदी, जिसकी कृपा से जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। जी हां, मैं उसी गंगा नदी की बात कर रहा हूं। जहां-जहां से यह नदी गुजरती है, वही इलाका अंधेरे की गिरफ्त में आ जाता है।
(अरविंद अडिगा के उपन्यास द व्हाइट टाइगर का एक अंश)
बंगलोर की ज्यादातर सफल कहानियों की तरह मेरी जीवन कहानी भी बंगलोर से काफी दूर शुरू हुई। अभी तो मैं रोशनी के बीच दिखाई दे रहा हूं, लेकिन मेरी परवरिश अंधेरों में हुई। मैं भारत के एक ऐसे हिस्से की बात कर रहा हूं जो इस देश का करीब एक तिहाई है, धान और गेंहूं के खेतों से भरपूर, जिनके बीच में तालाब होता है जो जलकुंभियों और कमल के फूलों से पटा होता है। उन कमल के फूलों ओर जलकुंभियों को खाती-चबाती भैंसें जिनमें नहाती रहती हैं। ऐसे इलाके में जो लोग रहते हैं वे इसे अंधेरी दुनिया कहते हैं। यह बात समझने की है कि भारत में दो देश निवास करते हैं- रोशन भारत और अंधेरा भारत। समुद्र हमारे देश में उजाला लाता है। भारत के नक्शे में जो-जो स्थान समुद्र के नजदीक हैं वे सर्वसंपन्न हैं। लेकिन नदी भारत में अंधेरा लाती है- काली नदी।
मैं किस नदी की बात कर रहा हूं- मृत्यु की किस नदी की। जिसके किनारों पर इस कदर गाद और कीचड़ जमा होता है जो किनारों पर बोए जाने वाली फसल को अपनी जकड में लेकर मिटा डालता है। मैं गंगा नदी की बात कर रहा हूं, वेदों की पुत्री, प्रज्ञा की नदी, हमारी रक्षिका समझी जाने वाली नदी, जिसकी कृपा से जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। जी हां, मैं उसी गंगा नदी की बात कर रहा हूं। जहां-जहां से यह नदी गुजरती है, वही इलाका अंधेरे की गिरफ्त में आ जाता है।
7 Comments
maine is kitab ka english sanskaran padha hai. agar aap iska hindi anuvaad pesh karte hai to yah dilchasp hoga.
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