आज हिंदी कहानियों को नया मोड़ देने वाले निर्मल वर्मा का जन्मदिन है. प्रस्तुत है उनके मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक ‘प्रिय राम’ से एक पत्र. यह पुस्तक उनके और उनके भाई प्रसिद्ध चित्रकार रामकुमार के बीच पत्राचार का संकलन है. वैसे यह पत्र रामकुमार ने निर्मल जी के मरने के बाद उनके नाम लिखा था. निर्मल जी की स्मृति को प्रणाम के साथ- जानकी पुल.
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(25.12.2005)
प्रिय निर्मल ,
इस बार इतनी लंबी यात्रा पर जाने से पहले तुम अपना पता भी नहीं दे गए.
यह सोच कर मुझे आश्चर्य होता है कि तुम्हारे पैदा होना का दिन भी मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, जब शिमला के हरबर्ट विला के एक कमरे में हम भाई-बहन बैठे थे और पीछे कमरे में से दाई ने आकार हमें सुचना दी कि लड़का हुआ है.तब मेरी उम्र पांच के करीब रही होगी.और 75 वर्ष बाद का वह अन्तिम दिन मेडिकल इन्स्टिटूट एम्बुलेंस में जाते हुए जब मेरे सामने स्ट्रेचर पर तुम आँखे बंद किये लेटे हुए थे, तब विश्वास नहीं हो रहा था कि तुम घर लौटकर वापस नहीं आओगे.एक अरसे बाद बिमारी के सब कष्टों और यातनाओं से मुक्ति पाकर तुम्हारे चेहरे पर ऐसी आलौकिक शान्ति और ठहराव कि छाया दिखाई दे रही थी मानो एक लंबी यात्रा का अन्तिम पड़ाव आ गया हो.
तुम्हे याद होगा कि जब कभी कुछ पीते हुए हम एक लंबे समय के लिए बैठते थे तो प्रायः बातचीत बहुत पुराने बीते हुए समय कि स्मृतियों में खो जाती थी.शिमला कि कोई पुरानी घटना ,या कोई व्यक्ति या परिवार का सदस्य हमारे बीच में उपस्थित हो जाता था.मैं तुमसे कहता था कि भज्जी हाउस,कैथू और शिमला को लेकर तुम्हे एक उपन्यास लिखना चाहिए.तुम मुस्कुराने लगते थे लेकिन कभी लिखने कि हामी नहीं भरी.और भी कितनी बातें अधूरी ही रह गयी.
पिछले एक वर्ष के दौरान तुमसे विभिन्न अस्पतालों में ही भेंट होती थी-विशेषकर मेडिकल इन्स्टिटूट के प्राइवेट वार्डों में.आज भी कभी कभी अचानक यह भ्रम होने लगता है कि तुम अस्पताल के किसी कमरे में लेते हो और शाम को तुमसे भेंट होगी.
कोई नहीं जानता था कि ये तुम्हारी जिंदगी के अन्तिम 20 दिन थे.वार्ड नंबर दो में कमरा नंबर 12 में तुम्हे देखने के आदी हो गए थे.तुम ऑक्सीजन का मास्क लगाये चारपाई पर लेटे दिखाई देते थे.रोज डॉक्टर तुम्हारी परीक्षा करके कहते थे कि तुम बिलकुल ठीक हो गए हो और जब चाहो तब घर जा सकते हो.इस बार तुम्हारी घर लौटने कि इच्छा नहीं थी.तुम्हारे मन में कहीं डर था.लेकिन अस्पताल में अधिक दिन तक रहना संभव नहीं था.ये अन्तिम दिन देर तक याद रहेंगे.तुम जीवित रहते तो बाद में हम इन दिनों कि चर्चा अवश्य करते.
तुम्हे शायद याद नहीं कि कुछ महीने पूर्व जब वेंटिलेटर लगा हुआ था और तुम बोल नहीं सकते थे तो अचानक एक दिन कॉपी पर तुमने लिखा – “Am I dying?” हम चौंक गए और गर्दन हिला कर इंकार दिया और आश्वाशन दिया.तुम्हे ये विश्वास था कि अभी जाने का समय नहीं आया है और इस बार भी तुम स्वस्थ होकर ही लौटोगे.
उन दिनों अचानक तुम्हे बातें करने में बहुत आनंद आने लगा.शाम को भेंट होने पर तुम ऑक्सीजन का मास्क हटाकर बड़े उत्साह से बातें करने लगते.कुछ अस्वाभाविक भी जान पड़ता था.तब पता नहीं था कि कुछ दवाएं इतनी अधिक मात्रा में दी जा रही थीं जिनकी प्रतिक्रिया इस तरह प्रकट हो रही थी.तुम्हारे इस उत्साह को देखकर हमें भी बहुत खुशी होती थी और यह उम्मीद जगने लगी थी कि तुम स्वस्थ हो रहे हो.तब जान नहीं सके कि एक बहुत कमज़ोर धागे में तुम्हारी जिंदगी बंधी हुए है और यह कभी भी टूट सकता है.
आज तुम्हारे चले जाने के बाद कभी कभी अंधकार में वह धुंधली सी रौशनी में चमकती खाली जगह दिखाई देती है जहाँ हमेशा तुम दिखाई देते थे.अब वह खाली पड़ा है, कभी भरेगा भी नहीं.
यह अन्तिम पत्र लंबा होता जा रहा है
अच्छा –
रामकुमार
10 Comments
Shabd aur Chitra ke advitiye sangam ke parichayak – Nirmal aur Ram !!! Jaha Nirmal apne shabdon se anuthe chitra garha karte the wahi Ram apne chitron mei unkahe marm ko yu shabdon mei prastut karne ko tatpar !!! Behad Aatmiye Abhivyakti !!!
itne aatmeey prasang sirf 'janki pul' mei hi dikhai dete hai.
aabhaar …
निर्मल वर्मा… मेरे सबसे प्रिय कथाकार!
बेहद आत्मीय पत्र।
PRABHAT JI , AAPNE NIRMAL VERMA KEE YAAD TAAZA KAR DEE HAI . ACHCHHA
LAGTA HAI KI JAB AAP CHHOTE – BADE HAR SAHITYAKAR KO YAAD KARTE HAIN .
sargarbhit gagar me sagar bhar diya …yadeyn
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