जून २००१ में हिंदी कवयित्री तेजी ग्रोवर स्वीडन गई थी तो वहाँ टोमस ट्रांसटोमर से मिलने गई थीं, उनके ऐतिहासिक नीले घर में. उसके बाद उनके ऊपर, उस् मुलाकात के ऊपर उन्होंने एक संस्मरण लिखा था, जो ‘बहुवचन’ में प्रकाशित हुआ था. स्वीडिश कविता के उस् महान हस्ताक्षर को नोबेल पुरस्कार मिलने पर प्रस्तुत है वही लेख. टोमस ट्रांसटोमर १९८९ में भोपाल के भारत भवन में आयोजित ‘विश्व कविता’ के आयोजन में भी आए थे. फिलहाल यह लेख- जानकी पुल.
लेटर बॉक्सों में से एक पर वह नाम था- टोमस ट्रांस्टोमर. नाम के नीचे लिखा था- नीला घर.
दोपहर के भोजन का समय है. वे मेरी तरफ हाथ बढाते हैं. लार्श(स्वीडिश लेखक लार्श एंडरसन) को आत्मीय मुस्कान के साथ अपने सामने बिठा लेते हैं और मुझे अपने पास. परिचय के बाद मैं उनसे कहती हूँ कि मैं उनसे दूसरी बार मिल रही हूँ. पहली बार १९८९ में भोपाल में. ‘मिक्रेबा’, वे स्वीडी में कहते हैं, जिसका मतलब होता है अच्छी बात है, और इशारे से मोनिका को बताते हैं कि उन्हें याद नहीं है. फिर वे हमारी ओर देखने लगते हैं. मोनिका हमें बताती हैं कि टोमस कह रहे हैं कि वे ज्यादा बोल नहीं पाएंगे, लेकिन अंग्रेजी समझते हैं. वे अपने सामने रखी हुई तश्तरी उठाकर मेरे सामने रख देते हैं.
उनके पीछे दादा का चित्र टंगा है, उन्होंने ही १८९६ में यह घर बनवाया था. मोनिका हमें चित्रकार का नाम बताती है- वाल्टर टर्नक्विस्ट, इसी द्वीप के निवासी चित्रकार. बायीं ओर दस बरस के टोमस का चित्र भी है जो उसी चित्रकार ने बनाया था. मोनिका जैसे-जैसे हमें बताती जाती है वे उसके साथ-साथ उन डिटेल्स को देखते चले जाते हैं. मोनिका और मैं भोपाल में आयोजित विश्व-कविता समारोह की बात करने लगते हैं. वे जो कुछ हमें बताती हैं उसके श्रोता सिर्फ हम ही नहीं हैं. मोनिका टोमस की स्मृति से एक सूक्ष्म वार्तालाप कर रही हैं. अन्य कवियों के नाम भी लेती हैं जो वहाँ थे. उस दोपहर जों लोग कैफे की मेज़ पर बैठे उनसे एक लंबी बातचीत कर रहे थे. मृत्यु की बातें. और समय की. खूब ज़ोर की हंसी थी उस मेज़ पर. टोमस उस मेज़ पर पुनः उपस्थित होने की कोशिश करते हैं. यह सरम उनके चेहरे पर झलकने लगता है. तनाव नहीं है. वे कोशिश कर रहे हैं और मोनिका प्रेम से एक-एक रेशा बुनती जाती है. उसे अब हमेशा इसी तरह बात करनी होती है. टोमास के स्मृति-जीवन को रोज़-रोज़ भीतर के एक डूब हुए द्वीप से उठकर बाहर आना होता है मोनिका और मित्रों से मिलने. इस मुलाकात में अनायास मिली हुई स्क्रिप्ट के सहारे एक स्मृति दूसरी स्मृति की टेक लेकर अचानक किसी चेहरे पर एक रौशनी-सी फ़ैल जाती है.
यानी आप किसी कवि से प्रेम करते हैं. मैं मोनिका की बात कर रही हूँ जो सत्रह की उम्र में उनसे इसी द्वीप पर मिली थी. और फिर रुन्मार के निवासी उस् जीव-वैज्ञानिक फ्रेडरिक श्यबेरी से जिसने ट्रांसटोमर द्वारा वर्णित कीड़ों पर एक मोनोग्राफ लिखा है. अचानक मोनिका वह बक्सा खोलकर हमारे सामने रख देती है. ग्यारह से पन्द्रह की उम्र में, ट्रांसटोमर द्वारा रुम्नार द्वीप से जमा किए गए बीसियों कीड़े. मोनिका शायद जानती है इस प्रदर्शनी का असर उसके पति पर क्या होगा. उनकी स्मृति का काठ-घर जिसमें हर जीव अपने आकार के फ्रेम पर समय में ठिठक गया है. अपने एक संस्मरण में वे लिखते हैं कि जैसे हर कीड़ा अपने समय की प्रतीक्षा कर रहा हो. अपने मौके की तलाश. इस बक्से के एकदम साथ रखी फ्रेडरिक श्यबेरी की पुस्तिका- Transtomars insects . इस पुस्तक में ट्रांसटोमर द्वारा वर्णित हर कीड़े पर एक निबंध है. शायद उन कीड़ों पर भी जो इस द्वीप पर होने के बावजूद उनसे चूक गए थे. फ्रेडरिक श्यबेरी इसी द्वीप पर रहते हैं और ट्रांसटोमर की कविता के प्रेम में कई लोग उनसे मिलने भी आते हैं. खासकर वह युवा कवि जो ट्रांसटोमर की कविता पर शोध कर रहा है और श्यबेरी उसे अपने बेटे की तरह देखने लगे हैं. इस प्रेम का कोई अंत नहीं है. लेखन के आसपास हर चीज़ लेखन में बदल जाती है. और इसी क्षण उस् खुले हुए बक्से को देखते ही ट्रांसटोमर के चेहरे पर वे साल बेतरह खिल उठते हैं. वे मोनिका को घर की अलग-अलग दिशाओं में इशारा करके बताते हैं कि हमें और क्या-क्या दिखाया जाना चाहिए. वे ‘मिक्रेबा’ कहकर अपने भावातिरेक की अभिव्यक्ति करते हैं. मैं कल्पना करती हूँ सत्रह पाल वाले उस् जलयान की जों उनके पलंग के ऊपर लटक रहा होगा. उनका भावातिरेक हमें नीले घर के अंदर एक और नीले घर की ओर लिए चला जा रहा है.
वे अब मोनिका से कहते हैं हमें वह घर ज़रूर दिखाया जाए जों १८वीं शताब्दी में उनका पुश्तैनी घर हुआ करता था. उनकी कोई दूर की कजिन अब भी वहाँ रहती है. अठारहवीं सदी के उस् पुश्तैनी घर की ओर चलते हुए टोमस की छड़ी बहुत टेक लेटी है, उनकी देह बहुत समय. घास के बीच जंगली फूल ज़ोरों पर हैं. और हम घनी वनस्पतियों में ससे धीमे-धीमे चलते हुए पगडंडी पर पहुँच गए हैं. वहीं पास के किसी घर की एक आकर्षक वृद्धा अपनी मुस्कान से हमें रोक लेती है. उसके घर के सामने सेब का पेड़ है, फूलों से लदा. वह मंजरियों की ओर इशारा करती हुई सिर्फ इतना कहती है कि इस बार सेब नहीं होंगे क्योंकि भँवरे नहीं हैं. हम सब रूककर उन सेबों को देखते हैं जों नहीं फलेंगे. हमारे साथ चलता हुआ वह कवि जो रुन्मार के एक-एक जीव से वाकिफ है, चुपचाप भंवरों के न होने के तथ्य को दर्ज कर रहा है.
पगडंडी के दोनों ओर उस् सफ़ेद जंगली फूल के पत्ते हैं, लिली ऑफ द वैली किंग, जों स्वीडी कवि के प्रिय फूलों में से है. लार्श मुझे बताता है कि अभी तक उन पौधों में फूल नहीं आए. यह सुनते ही ट्रांस्तोमार रुक जाते हैं और अपनी छड़ी से ‘लिली’ के नन्हे फूल हमें दिखाते हैं. क्या वे फूल उनकी छड़ी के इशारे से उठ खड़े हुए हैं?
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