इधर महाभूत चन्दन राय की कवितायेँ पढ़ी. पेशे से इंजीनियर चन्दन की कविताओं में समकालीनता का दबाव तो बहुत दिखता है लेकिन उनकी कविताओं में एक नया, अपना मुहावरा गढ़ने की जद्दोजहद भी दिखाई देती है. उम्मीद करता हूँ भविष्य में इनकी और बेहतर कवितायेँ पढने को मिलेंगी. फिलहाल इनकी कुछ कवितायेँ पढ़िए और राय दीजिए- प्रभात रंजन
====================================================
1.
अच्छे दिनों की परिकल्पना
यह चोर उचक्कों हत्यारों लुटेरों ठगों और डकैतों के बीच
एक सामूहिक चोर समझौता था
बुरे दिनों की असफलताओं से हताश एक आपात आयोजन
जो विकसित करना चाहते थे एक नई अचिह्नित चोर-पद्धति
जिससे दुनिया के उत्साह जिन्दापन और समृद्धता को फिर से लूटा जा सके !
यह पहला नाजियों का समूह चीखा – दोस्तों !
हमने नाजियों के भेष में जर्मनी में हिटलर को स्थापित किया था
हमने एक राष्ट्रिए समाजवादी कामगार सेना की आड़ में
जर्मनी में साम्राज्यवादी सोच को किया था स्थापित
और बेकसूर यहूदियों का गैस चैंबरों में किया था नृशंस नरसंहार
हमने राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को बरगला युद्ध में झोंक दिया
हम एक सफल तानाशाह थे किन्तु हम अब पहचाने जा चुके है !
यह कहते हुए यह पहला हिटलर के अनुनायियों का समूह निराश होकर बैठ गया !
इसके बाद ही यह दूसरा फासिस्टों का समूह जो मुसोलिनी भक्त था चीखा
मित्रों हम इटली में महान फासीवादी नेता मुसोलिनी के साथ थे
हमने इटली की गरीब बेरोजगार भुखमरी से त्रस्त जनता के बीच
पैदा किया एक खतरनाक मर्दाना राष्ट्रवाद का जहर
उम्मीदों से भरे एक नए इटली के स्वप्नलोक के निर्माण
के लिए “युद्ध ही अंतिम विकल्प है” का सुनियोजित भ्रम
हम अपने अवसरवाद को फासीवाद के चरम तक ले गए थे
किन्तु बदलती दुनिया के बदलते विचारों का कत्ल नहीं कर पाये
अंतत हम भी मारे गए.. हमे भी पहचान लिया जाएगा !
यह तीसरा दल क्रूरता और धर्मयुद्धों का प्रतिपक्षी बनकर बोला
हमने ईराक में प्रतिक्रियावादी दुराग्रहों को पुनर्जीवित किया
हमने अनिश्चय और अराजक परिस्थितियां पैदा कर
ईराक पर कायम करवाया था क्रूरता का सद्दाम- राज
हाँ हमने ही रोम में स्थापित की थी सम्राट-पूजा की वृति
हम लीबिया में मुअम्मर अल गद्दाफी के साथ थे !
हम ही इजराइल में है, फलिस्तीन में,सीरिया में भी
यूक्रेन में, नाइजीरिया में और सोमालिया में भी हम ही हैं
हमने दुनिया में धार्मिक अस्थिरता पैदा कर
विश्व-शांति की परिकल्पना को झोंक दिया धर्मयुद्धों की आग में
हमने पुनर्स्थापित किया है धार्मिक शीतयुद्धों का वातावरण
पर अफ़सोस यह आग भी धीरे-धीरे बुझ रही है
माओ और नक्सली भी लड़ रहे केवल छापामार युद्ध
हम कमजोर हो रहे हैं प्रतिपल प्रतिदिन..
तभी वह ठगों का एक छोटा समूह आत्मविश्वास भरे स्वर में चिल्लाया –
यह दुनिया प्रतिदिन अपने अस्तित्व के सरक्षण के संघर्ष से गुजर रही है
उसके पास भूख रोटी रोजगार परिवार के संघर्ष और जीवन की प्रतिस्पर्धाएं है
उसके पास लगातार जटिल होते जीवन की कठिनाइयाँ और ऊब है
हम इस स्वप्नरहित हो चुकी नीरस दुनिया को उम्मीदों भरे रंगीले स्वप्न बेचेंगे
क्योंकि बे-उम्मीद हो चुके लोगों के बीच अच्छे दिनों की परिकल्पना बेचना
भूखे को अन्न के एक दाने के लिए बदहवास कर पाने जितना मारक है
हम दुनिया का विशवास जीतेंगे
क्योंकि विश्वास की लूट दुनिया की सबसे घातक और आसान लूट है !
हम नयी सामाजिक व्यवस्था के प्रारूपों तहत
लोगों के बीच अपने-अपने वर्ग के संघर्ष का स्वार्थ पैदा करेंगे
किसी भी समाज को ख़त्म करने का सबसे कारगर तरीका है
उसे संवेदनाहीन बना देना
हम इस हद तक अच्छे दिनों की परिकल्पना बांटेंगे !
इधर मेरे कानों में जैसे ही गूंजता है दूरदर्शन पर
बजते एक लोकप्रिय गीत का कर्णप्रिय संगीत
“अच्छे दिन आने वाले है”….
मेरा दुःस्वप्न टूटता है !
2.
मेरी लिखित कवितायेँ दरअसल मेरी नहीं हैं
मेरी लिखित कवितायेँ दरअसल मेरी नहीं हैं
मै आपके क्लांत काव्यभिषेक का किंचित भी श्रेयधिकारी नहीं
अपने राजमुकुटों को इस कलंक से बचा कर रखिए
मैने अब तक जो भी नाशुक्राना “कहा-सुना-लिखा”
निस्संदेह सिर्फ कविताओं ने कहा था
कविताओं के शब्द थे,कविताओं ने लिखा था !
मेरी कवितायेँ कविताओं की स्वत: गढ़ी अमूर्त पांडुलिपियाँ हैं
मै केवल इन अनजानी आत्माओं की हूक का सूत्रधार हूँ
संसार की हर कविता एक अमर कवि होती है
कवितायें दरअसल कालजयी कवियत्रियों की काया है
मै केवल और केवल उनकी रतजगों का रूपांतरण हूँ
मै एक बिचौलिया भाषा हूँ
उनकी निरावयव लिपियों के सावयव लेखन का लिपिक-दूत
कविता की कलम से पोषित एक अबोध पौधा हूँ
मेरे भीतर बैठी अनगिनत कवितायेँ लिखती है
मै कहाँ कुछ भी लिखता हूँ !
मेरे भीतर आठवीं शताब्दी से समाधि लिए सिद्धो-नाथों
मेरी आत्मा में वीरता के अभिलेख लिखते हैं
अन्याय के खिलाफ मेरा शब्द-विद्रोह उन्ही की प्रदिक्षणा हैं
एक कुरुक्षेत्र की रणभूमि
मैने तैयार की है अपनी कविताओं में
एक महायुद्ध का शंखनाद बजाती मेरी कविताओं में
बीसलदेव रासों पृथ्वीराज रासों तीर-कमान लिए खड़े हैं
हम्मीर रासो,परमाल रासो मेरे भीतर गढ़ते हैं
एक मध्यकालीन युग का संती उपसंहार
मेरे भीतर एक भक्तिकाल घुमड़ रहा है बरसने को
और विद्यापति मुझमे कर रहे स्थापित भक्ति और श्रृंगार रस
पदावली, के सुवासित कल्पवृक्ष से झरते
सम्मोहन ने एक पनघट निर्मित किया है मेरे भीतर
के आप घट-घट भर-भर खूब पिए कवितायें
कीर्तिलता,कीर्तिपताका मेरे भीतर के दो राग हैं
मेरे भीतर खालिकबारी ,पहेलियों से रची एक वृहत्तर दुनिया है
मेरे कविताओं में बैठे आदिकवि अमीर खुसरों लिखते है
” ये अंत नहीं आरम्भ है ” !
मेरे भीतर खुसरों की कव्वालियाँ रचती हैं
मेरी बेसुरी कठोरता में अपनी सुर-ताल-लयकारियाँ
मेरा गूंगापन उनकी खड़ी बोलियों का शागिर्द है
मुकरियोँ की तहजीभी में
मेरी कविताओं ने जो भी लिखा…
वो खुसरों के महा-शिल्प का तरन्नुम दो सुखन है !
मै मीर की अनकही नज्म हूँ..
मेरा कवित्व ग़ालिब का पुनर्लेखन है !
मेरे भीतर कुलबुलाती है
बेनाम कलमों की गुमनामियाँ
मेरा अंतस अमूक रचनाकारों का बेचैन दोहाकोश है
मै कबीर की निर्गुण सधुक्कड़ी हूँ
मेरे भीतर कहीं बैठे कबीर
रात-दिन लिखते हैं अपनी चौपाइयाँ !
मेरे भीतर मिर्जा खां रहीम की भटकती रूह है
मै सूरदास के भ्रमरगीत की चरण धूलि हूँ
गोस्वामी तुलसीदास ने जना है
मेरी कविताओं में रामचरित का संस्कार !
मेरे भीतर कृष्ण-प्रेम में बावरी मीराबाई
विरह की सारंगी लिए प्रेम के अनंत धुनें गढ़ती है
मेरा अंत
View 151 Comments