तुम सा मैं लहरों में बहता
मैं भी सत्ता गह लेता
गर मै भी ईमान बेचता
मैं भी महलों में रहता.
या
कुछ देर यहाँ जी लगता है
कुछ देर तबियत जमती है
आँखों का पानी गरम समझ
यह दुनिया आंसू कहती है.
या
शंकर की पुरी चीन ने सेना को उतारा
चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा.
यह अवसर न सही उनको, उनकी भूली कविताओं को याद करने का है. प्रस्तुत हैं उनकी कविताओं के कुछ रंग-
१.
दूर जाकर न कोई बिसारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे
यूँ बिछड़ कर न रतियाँ गुज़ारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
मन मिला तो जवानी रसम तोड़ दे, प्यार निभता न हो तो डगर छोड़ दे
दर्द देकर न कोई बिसार करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
खिल रही कलियाँ आप भी आइये, बोलिए या ना बोले चले जाइये
मुस्कराकर न कोई किनारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
चाँद सा हुस्न है तो गगन में बसे, फूल सा रंग है तो चमन में हँसे
चैन चोरी न कोई हमारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
हम तकें न किसी की नयन खिड़कियाँ, तीर-तेवर सहें न सुने झिड़कियां
कनखियों से न कोई निहारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
लाख मुखड़े मिले और मेला लगा, रूप जिसका जंचा वह अकेला लगा
रूप ऐसे न कोई संवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
रूप चाहे पहन नौलखा हार ले, अंग भर में सजा रेशमी तार ले
फूल से लट न कोई संवारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
पग महावर लगाकर नवेली रंगे, या कि मेंहदी रचाकर हथेली रंगे
अंग भर में न मेंहदी उभारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
आप पर्दा करें तो किए जाइए, साथ अपनी बहारें लिए जाइये
रोज़ घूंघट न कोई उतारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
एक दिन क्या मिले मन उड़ा ले गए, मुफ्त में उम्र भर की जलन दे गए
बात हमसे न कोई दुबारा करे, मन दुबारा-तिबारा पुकारा करे.
२.
दो मेघ मिले, बोले-डोले
बरसाकर दो-दो बूँद चले
१.
भौंरों को देख उड़े भौंरे
कलियों को देख हँसी कलियाँ
कुंजों को देख निकुंज हिले,
गलियों को देख बसी गलियां
गुदगुदा मधुप को, फूलों को,
किरणों ने कहा जवानी लो
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को
झरनों ने कहा, रवानी लो
दो फूल मिले, खेले-झेले,
वन की डाली पर झूल चले
२.
इस जीवन के चौराहे पर
दो ह्रदय मिले भोले-भोले
ऊंची नज़रों चुपचाप रहे
नीची नज़रों दोनों बोले
दुनिया ने मुंह बिचका-बिचका
कोसा आज़ाद जवानी को
दुनिया ने नयनों को देखा
देखा न नयन के पानी को
दो प्राण मिले, झूमे-घूमे
दुनिया की दुनिया भूल चले
३.
तरुवर की ऊंची डाली पर
दो पंछी बैठे अनजाने
दोनों का हृदय उछाल चले
जीवन के दर्द भरे गाने
मधुरस तो भौरे पिए चले
मधु-गंध लिए चल दिया पवन
पतझड़ आई ले गई उड़ा
वन-वन के सूखे पत्र-सुमन
दो पंछी मिले चमन में, पर
चोंचों में लेकर शूल चले
४.
नदियों में नदियाँ घुली-मिलीं
फिर दूर सिंधु की ओर चलीं
धारों में लेकर ज्वार चलीं
ज्वारों में लेकर भौंर चली
अचरज से देख जवानी यह
दुनिया तीरों पर खड़ी रही
चलने वाले चल दिए और
दुनिया बेचारी पड़ी रही
दो ज्वार मिले मझधारों में
हिलमिल सागर के कूल चले
५.
हम अमर जवानी लिए चले
दुनिया ने मांगा केवल तन
हम दिल की दौलत लुटा चले
दुनिया ने माँगा केवल धन
तन की रक्षा को गढे नियम
बन गई नियम दुनिया ज्ञानी
धन की रक्षा में बेचारी
बह गई स्वयं बनकर पानी
धूलों में खेले हम जवान
फिर उड़ा-उड़ा कर धूल चले.
३.
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
चरखा चलता है हाथों से, शासन चलता तलवार से.
यह राम-कृष्ण की जन्मभूमि, पावन धरती सीताओं की
फिर कमी रही कब भारत में सभ्यता, शान्ति सदभावों की
पर नए पडोसी कुछ ऐसे, गोली चलती उस पार से
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से.
तुम उड़ा कबूतर अम्बर में सन्देश शान्ति का देते हो
चिट्ठी लिखकर रह जाते हो जब कुछ गडबड सुन लेते हो
वक्तव्य लिखो कि विरोध करो, यह भी कागज वह भी कागज़
कब नाव राष्ट्र की पार लगी यों कागज़ की पतवार से
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से.
तुम चावल भिजवा देते हो, जब प्यार पुराना दर्शाकर
वह प्राप्ति सूचना देते हैं सीमा पर गोली-वर्षा कर
चुप रहने को तो हम इतना चुप रहें कि मरघट शर्माए
बंदूकों से छूती गोली कैसे चूमोगे प्यार से
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से.
मालूम हमें है तेज़ी से निर्माण हो रहा भारत का
चहुँ ओर अहिंसा के कारण गुणगान हो रहा भारत का
पर यह भी सच है आजादी है तो ही चल रही अहिंसा है
वरना अपना घर दीखेगा फिर कहाँ क़ुतुब मीनार से
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से.
स्वातंत्र्य न निर्धन की पत्नी कि पडोसी जब चाहें छेड़ें
यह वह पागलपन है जिसमें शेरों से लड़ जाती हैं भेड़ें
पर यहाँ ठीक इसके उल्टे, हैं भेड़ छेड़ने वाले ही
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
नहरें फिर भी खुद सकती है, बन सकती है योजना नई
जीवित है तो फिर कर लेंगे कल्पना नई, कामना नई
घर की है बात, यहाँ ‘बोतल’ पीछे भी पकड़ी जायेगी
पहले चलकर के सीमा पर सर झुकवा लो संसार से
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
फिर कहीं गुलामी आई तो, क्या कर लेंगे हम निर्भय भी
स्वातंत्र्य सूर्य के साथ अस्त हो जाएगा सर्वोदय भी
इसलिए मोल आजादी का नित सावधान रहने में है
लड़ने का साहस कौन करे, फिर मरने को तैयार से
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
तैयारी को भी तो थोड़ा चाहिए समय, साधन, सुविधा
इसलिए जुटाओ अस्त्र-शस्त्र, छोड़ो ढुलमुल मन की दुविधा
जब इतना बड़ा विमान तीस नखरे करता तब उड़ता है
फिर कैसे तीस करोड़ समर को चल देंगे बाजार से
ओ राही, दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
हम लड़ें नहीं प्रण तो ठानें, रण-रास रचाना तो सीखें
होना स्वतंत्र हम जान गए, स्वातंत्र्य बचाना तो सीखें
वह माने सिर्फ नमस्ते से, जो हँसे, मिले, मृदु बात करे
बन्दूक चलाने वाला माने बमबारों की मार से
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
सिद्धांत, धर्म कुछ और चीज़, आजादी है कुछ और चीज़
सब कुछ है तरु-डाली-पत्ते, आजादी है बुनियाद चीज़
इसलिए वेद, गीता, कुरआन, दुनिया ने लिखे स्याही से
लेकिन लिक्खा आजादी का इतिहास रुधिर की धार से
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से.
चर्खा चलता है हाथों से, शासन चलता तलवार से.
8 Comments
prabhat jee ,
pranam !
aap dwara hume nepali jee ka ek ansh jaana chhuga ki hume oonka aur sahity aap dwra oplabdh ho onhe padhe ka soubhagya mile.
saadar
इस शानदार कम के लिए अनेकानेक धन्यवाद. नेपाली जी पर और विस्तार से लिखा जाना चाहिए.
tujh sa laharon me bah leta to main bhee satta gah leta
imaan bechata chalata to main bhee mahalon men rah leta
har dil par jhukatee chalee magar aansoo vaalee namakeen kalam
mera dhan hai svadheen kalam…(NEPALEE
…svadheen kalam ke dhanee nepalee ko yaad karake aapane bahut jarooree kam kiyaa hai. badhai!
RAKESH BIHARI
यह बेहद ज़रूरी काम किया है आपने…बस एक परिचय और उपलब्ध करा दीजिये भाई
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