आज शैलजा पाठक की कविताएँ. इनकी कविताएँ में छोटे-छोटे कस्बों के बड़े बड़े सवाल हैं. इन कविताओं का कस्बाई मन बार-बार ध्यान खींचता है. आपके लिए ११ कविताएँ- मॉडरेटर.
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१
नदियाँ
इन सूखी नदियों का क्या करें
उम्मीदों से भरी होती है
किनारों को कुरेदती हैं
अपने तेज इच्छा शक्ति वाले नाखूनों से
निकाल लेती हैं अपने हिस्से की नमी
सोखती है दर्द उदासी हताशा
हमारी यादों में मुस्कराती है
पिछले साल कैसी भरी थी
उमड़ते बादलों में खोजती हैं अपना जीवन
बरसेगा तो भर जाउंगी
बंटी हुई भी बांटती हैं अपना अकेलापन किनारों से
पिछले साल अपने उपर बंधी पीली चुनरी को याद कर
निस्तेज होती भी है कुछ देर को
पूरी रात चाँद इन लकीरों पर संभलता गिरता रहा
इनकी दरकती छातियों में भी
फूटते हैं वात्सल्य के सोते
नदियां सूखती है तो एक शहर खोने लगता है
अपनी संस्कृति
नाव तैरना भूल जाती है
बच्चों की कश्तियों में नही सवार होते सपने
ओ माझी रे .. की पुकार नही पहुचती इस पार से उस पार
२ बिछड़ने से
बिछड़ने से
सिर्फ तुम दूर नही हो जाते
कुछ रास्ते अपने आप को
भूल जाते हैं
तालाब का गुलाबी कमल
मुझसे आँखें फेर लेता है
हवा में बह रही
तुम्हारी आवाज
टकरा टकरा जाती है
मुझसे
कम्बखत बेखुदी तो देखो
ये जानते हुए भी कि नही हो तुम
बढाती हूँ अपना हाथ तुम्हारी तरफ
आज कहाँ चोट लगा लिया ?
ये भी सुनती हूँ
मंदिर के मोड़ पर
तुम मुझे फूल लिए दिखते हो
सावन में एक हरा दुपट्टा तुमने
मुझे ओढाया था
मेरे रास्ते अब मंदिर नही पड़ता
वो रास्ता भी छिन गया है अब
समन्दर की कोई लहर नही छू पाती मुझे
पूरा चाँद भी अधूरा दिखता है मुझे
होली का अबीर फीका कर गए हो
तुम्हारे बिछड़ने से मैं दूर रहीं हूँ
इन खूबसूरत लम्हों से
मैं बिछड़ गई अपने आप से
मेरे अंगूठे को जोर से दबाने की टीस
देखो हुई अभी अभी
बिछड़ना बस एक भ्रम होता है क्या ?
३ मैं नाराज हूँ तुमसे
मैं नाराज हूँ
अब बात नही करनी तुमसे
मेरी बात ही नही मानते
पुरानी किताबें निकाल लीं
सारा दिन पढूंगी
ये तुम किताबों के पन्ने मोड़ क्यों देते हो
जगह जगह से फट रहें हैं पन्ने
कितनी लिखी बातों के नीचे खिंच दी है लाइन
मैं वही लाइन पढ़ रही हूँ
…..शाम के धुंधलके में तुम आसमानी साडी
पहन कर आ रही हो …..मैं खिड़की की ओट से
देखता हूँ तुम्हें ……
….मेरी खँडहर सी जिंदगी में ….तुम्हारे होने के
सपनें …मेरे कमरे में उजाला भर देते हैं ……
ढोलक की थाप पर ….दईया रे दईया बन्नी को नजर लागी…..
मुझे ऐसा क्यों लग रहा है …ये पढ़ते हुए तुम याद
कर रहे थे मुझे …..जैसे मैं कर रही हूँ बात ..
अभी अभी ये तय करने के बाद भी
की नही बोलूंगी तुमसे
अब तो सभी किताबों के मुड़े पन्नों में
वही पढ़ रहीं हूँ जो चाहते थे तुम …
शाम को जल्दी आ जाना आज खूब बात करेंगे
तुम बस मुस्करा देते हो …..
४ तुम और मैं
तुम यहाँ रुको
मैं रुक गई
जल्दी चलो
मैं दौड़ पड़ी
किसी से कुछ मत कहना
चुप रही
अब रोने मत लगना
मैंने आंसू पी लिए
देर से आऊंगा
मैंने दरवाजे पर रात काट दी
खाने में क्या ?
मैंने सारे स्वाद परोस दिए
तुम्हारे झल्लाने से सहम
जाते हैं मेरे बच्चे
मैं तुम्हें नाराज होने का
कोई मौका नही देती
और तुम मुझे जीने का …
५ बिना मौसम बरसते हैं
मेरे संग धूप जगती है
मेरे साये
मेरी करवट में मेरे साथ
सोते हैं
उचक कर मैं हवा में
बह रही यादें
पकडती हूँ
झटक कर टांग आती हूँ
उदासी में सने कपडे
हथेली में तुम्हारे नाम को
इतरा के लिखती हूँ
किसी को हक़ नही की छीन ने
मुझसे मेरे सपनें
समय को साथ रखती हूँ
सभी रंगों में अपने ख्वाब के
मैं रंग मिलाती हूँ
मैं अपनी रात को अपनी ही
शर्तों पर जगाती हूँ
पर आँखों में भरे बादल पे
मेरा वश नही चलता
मेरी खुशियों की चुगली में
बिना मौसम बरसते हैं ….
6
हो सकता है क्या?
घर का आँगन पाट के
सुदर्शन भैया
अपने कमरे को बड़ा करवा रहे है
दीदी की शादी हल्दी संगीत
से यही आँगन गुलजार था
अपटन हाथ में छुपाये
जीजा को लगाने पर कितनी धमाचौकड़ी
की थी हमने
आँगन के अतीत में सुतरी नेवार वाली
खटिया है
अम्मा हैं कहानियां है गदीया के निचे छुपा के रखा
उपन्यास गुनाहों का देवता है
आम के गुठली के लिए
लड़ने वाले भाई बहन हैं shailja pathak
15 Comments
shailja ati samvedansheel rachnakar hain.. unki kvitayen sirf laffazi nhi karti balki jeevan ke anubhvon aur chitron se nikal kar prakat hoti hain.. unki shaily alag hai .. sundar rachnaayen badhai unhe
Shailja ki kavitaon mein mitti ki shoundhi khushbu hai….achchi lagi kavitayen …..shailja ko badhai…….
सिवान जिले के मुन्नी बैंड की लड़कियां ऐसे ही नाचते नाचते झूल जाती हैं कुए में बाल्टी की तरह … बढ़िया कवितायेँ
सीवान ज़िला का मुन्नी बैंड बड़ा फेमस है। बहुत बढ़िया, सारी कविताएं अच्छी लगीं। सुंदर।
शैलजा को पहली बार पढ़ा। सरल शब्दों में गहरी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति। आम बातें, लेकिन खास अंदाज़ में। बहुत अच्ची लगीं, एकदम हर आम लड़की की कहानियां, बचपन हो या विवाहित जीवन।
शैलजा को निरंतर पढ़ता रहता हूँ …उनकी कवितायेँ जीवन के सांवले पक्ष को बहुत प्रभावशाली ढंग से उभारती है …आलोचना और विश्लेषण से विरत रहते हुए जीवनानुभूति को सहज तरीके से पाठक तक पहुँचा देती हैं ! जनाकीपुल पर उन्हें देख कर अच्छा लगा !
शैलजा की कविताओं में घरेलू दुनिया के राग-विराग, सुख-दुख और रिश्तों की बनती-बिगड़ती छवियों के चित्र एक अलग तरह का पाठ निर्मित करते हैं, जिसमें रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े अनुभव गहरे संवेदनात्मक स्पर्श के साथ व्यक्त होते हैं। यह दुनिया इतनी आम और इतनी आस-पास की चीजों को अपने में समेटती चलती है कि यहां "आम के गुठली के लिए/ लड़ने वाले भाई बहन हैं /टुटा हुआ दिल है/भीगती हुई तकिया है /थके हुए पिता की चौकी है /इस आँगन पर झूमर सा/ लटकता आसमान है" और इसी आसमान के नीचे तमाम तरह के अन्याय और विडंबनाएं झेलती स्त्री का संघर्षमय जीवन है, जिसे शैलजा ने अपने अंदाज में खोलकर सामने रखा है। ये कविताएं निश्चय ही इस युवा कवियित्री से और बेहतर कविताओं की उम्मीद जगाती हैं।
आप बहुत साधारण शब्दोँ मेँ भी गहरी बातेँ कह जाती हैँ । बहुत अच्छा लगा आप को पढ़ना ।
कविताओं में सच्चे भाव हैं..कवियत्री को शुभकामनाएं.
शैलजा को 'जानकी-पुल' पर देखना अच्छा लगा | अभी उनकी कविता को कई और मंजिलें तय करनी हैं | और जिस गंभीर और संवेदनशील तरीके से वे सृजन के रास्ते पर चल रही हैं , उसमें यह बिलकुल संभव दिखाई देता है | उनकी ताकत उनकी संवेदना है | ऐसी संवेदना ,जो हम-सबके भीतर होती है , और जो इस आपाधापी खोटी चली जा रही है | शैलजा उसे तलाशती हैं , और वापस ढूंढ लाती हैं | सच मानिए , उस समय अपने आदमी होने पर थोड़ी ख़ुशी तो होती ही है |
शब्दों के सहारे मन-मस्तिष्क पर चित्र खींचने की ताकत रखने वाली इस कवयित्री को ढेर सारी बधाईयाँ …
hara sugga kale pinjre me band hai.behad mithhi aur marmik kavitayen.
kalawanti,ranchi.
लगातार लिखने से ही कमजोर कविताओं के बीच कुछ बड़ी गज़ब की कवितायेँ और बिम्ब निकल आते हैं. कुछ रचनाएं तो बड़ी त्वरा भरी है
"तुम्हें पता भी है ?
मैं हर रोज़ धूप में नहातीं हूँ"
कविता की धूप हर क्षण खिलती है उनके यहाँ, हमें पता है!
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