सुनील गंगोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास ‘प्रथम आलो’ जो बांग्ला पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि पर लिखा गया महाकाव्यात्मक उपन्यास है. इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘फर्स्ट लाइट’ के नाम से अरुणा चक्रवर्ती ने किया है. इसका हिंदी अनुवाद ‘प्रथम आलोक’ नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है, अनुवाद किया है लिपिका साहा ने- प्रभात रंजन.
============================================
ज्योतिरिन्द्रनाथ की गाड़ी छह बिडन स्ट्रीट में नेशनल थियेटर के सामने आकर खड़ी हो गई. थियेटर की इमारत पूरी तरह लकड़ी से बनी है. चारों ओर तख़्त का बाड़ा बना है और ऊपर छत टिन की. आज शो का मौका नहीं है, इसलिए अधिक भीड़-भाड़ भी नहीं है. ज्योतिरिन्द्रनाथ ने महीन कुर्ते के ऊपर रेशम की मिरजई पहनी हुई है. छोटा सा शॉल कंधे पर डाले, बाएं हाथ में ढोती की खूंट पकड़े वे गाड़ी से उतरे. गेट के पास एक दरबान स्टूल पर बैठा चिलम पी रहा था. ज्योतिरिन्द्रनाथ को देखते ही उसने जल्दी से अपनी चिलम छिपा ली. थियेटर के दरबान लंबे-तगड़े बदमाश जैसे दिखते हैं. इस थियेटर का दरबान भुजबल सिंह भी उनमें से एक है. गहरी लाल आंखों वाले. उनसे कलाकार लोग भी इज्जत से पेश आते हैं. वह खुद भी यहां के मालिक प्रताप जौहरी के अलावा किसी और की कोई खास परवाह नहीं करता है.
अब भुजबल सिंह ने अपनी चिलम पीछे करके जो इज्जत ज्योतिरिन्द्रनाथ के प्रति दिखाई तो इसलिए कि इस बाबू की बात ही कुछ और है. ज्योतिरिन्द्रनाथ के चेहरे और वेशभूषा से ही नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसी बात है कि आम आदमी का सिर उनके सामने इज्जत से अपने आप झुक जाता है. वैसे ज्योतिरिन्द्रनाथ गंभीर स्वभाव के बिलकुल नहीं हैं. उल्टे वे तो हंसमुख स्वभाव के हैं. चौकीदार के सलाम बजाने पर उन्होंने हाथ उठाकर कहा, “अच्छे हो?”
ऑडिटोरियम के सामने लंबे बरामदे पर वे आगे बढ़ने लगे. अंदर कोई रौशनी नहीं है. ग्रीन रूम के सामने एक गैस बत्ती जल रही है, बस. दायीं ओर जो खाने की दुकान है वह आज बंद है. पान की दुकान के सामने कुछ लोग हो-हल्ला कर रहे हैं. अचानक हो-हल्ला थम गया और फुसफुसाते हुए वे कहने लगे, ‘ज्योति बाबू! ज्योति बाबू!’
आज ज्योतिरिन्द्रनाथ का मन कुछ भारी है. यहां आने न आने को लेकर वे कुछ उहापोह में थे. नेशनल थियेटर के साथ उनका पुराना नाता रहा है. इसी मंच ने उनको नाटककार के रूप में स्थापित किया. अपने घर में मंच पर घर-परिवार के लोगों के सामने नाटक करना और बात है, यहां पर तो बाहर के दर्शक भी नाटक देखने आते हैं. यहां दर्शक टिकट कटाकर नाटक देखने आते हैं, अगर नाटक उनको नहीं रुचे तो सारी सीटें खाली पड़ी रह जाती हैं. इसी मंच पर उनके लिखे नाटकों ‘सरोजिनी’, ‘चित्तौड़ आक्रमण’ को बहुत लोकप्रियता मिली. ‘सरोजिनी’ तो बेहद सफल नाटक माना जाता है. अगर किसी और का नाटक दर्शकों का ठीक से मनोरंजन नहीं कर पाता तो ‘सरोजिनी’ का फिर से मंचन किया जाता है. नेशनल थियेटर में उनका सम्मान एक नाटककार के रूप में है.
पर आजकल हालात बदल गए हैं. नेशनल थियेटर में गिरीश घोष का लिखा ‘पांडवों का अज्ञातवास’ नाटक चल रहा था कि अचानक मालिक के साथ नाटक मण्डली का झगड़ा हो गया. गिरीश बाबू अपनी मंडली लेकर वहां से चले गए. इसी बिडन स्ट्रीट के पास ‘स्टार’ नामक एक नया थियेटर खुला है. गिरीश बाबू ने अपने साथ अमृतलाल, विनोदिनी, कादंबरी सबको लेकर ‘दक्षयज्ञ’ नाम से एक नाटक खेला. खूब दर्शक जुटने लगे हैं वहां. नेशनल थियेटर की हालत खस्ता है. और तो और बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंद मठ’ के ऊपर बनाया गया नाटक देखने भी दर्शक नहीं आए.
ज्योतिरिन्द्रनाथ सिर्फ नाटककार नहीं हैं. ‘भारती’ नाम की पत्रिका में वे नाटकों पर लिखते भी हैं. इसलिए जब उनका नाटक नहीं हो रहा होता है तो भी नाटक वालों से उनका मेलजोल बना रहता है. ‘आनंद मठ’ नाटक तो उनको भी पसंद नहीं आया. हालांकि उपन्यास उन्होंने पढ़ा नहीं है. रवि ने पढ़ा है लेकिन उसको पसंद नहीं आया. उसका तो कहना है कि उपदेश इतने अधिक हैं कि पात्र बेजान से हो गए हैं. वे चरित्र नहीं आंकड़े लगते हैं. और फिर शान्ति को लेकर भी कुछ ज्यादा ही बातें की गई हैं.
12 Comments
ansh rochak hai. shukriya Prabhat sajha karne ke liye.
Pingback: สมัครเว็บพนัน lsm99
Pingback: buy Arctic Wolf Heroin on-line.
Pingback: โฉนดที่ดินเข้าธนาคาร ไหนดี
Pingback: https://www.dallasnews.com/marketplace/2023/09/29/phenq-reviews-legit-diet-pills-or-fat-burner-scam/
Pingback: golden teacher mushroom identification
Pingback: ufabtb
I m often to blogging and i really appreciate your content. The article has actually peaks my interest.
Some really excellent info I look forward to the continuation.
Pingback: superkaya slot
Pingback: buy sildenafile online
Pingback: grote blote borsten