आज पढ़िए देवेश पथ सारिया की कुछ कविताएँ। देवेश को पिछले वर्ष ही उनके काव्य संग्रह ‘नूह की नाव’ के लिए भारत भूषण अग्रवाल सम्मान मिला है। इनकी कविताओं का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हो चुका है। काव्य के अलावा ‘ छोटी आँखों की पुतलियों में’ शीर्षक से इनकी एक ताइवान डायरी भी प्रकाशित है – अनुरंजनी
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1. गुलबहार
(1)
मात्र एक तर्जनी तुम्हारी का हिलना
दर्शाता था कि वह दृश्य स्थिर नहीं था
तीन बार की थाप के बाद फैले होंठ
बिना चहके खुली एक चिड़िया की चोंच
झुककर उठी आँखें
हुज़ूर में बजने लगते साज़
हिलती रहती तर्जनी
एक बार बल खाई ग्रीवा
वहीं थिर रही टकटकी।
(2)
नर्मदा एक सुंदर नदी है
तुम एक ‘एंग्री बर्ड’ हो
तुम दोस्तों के साथ पार्टी करने जाती हो
तो कभी हॅंसने, कभी रोने लगती हो
जबकि सिर्फ़ तुम्हीं ने नहीं पी होती
वे तुम्हारी कविताएं नहीं सुनते न?
“वे किसी के पप्पा की नहीं सुनते”
मुझे लगा था कि तुम
नशे में धुत्त दोस्तों को मुकरियाँ सुनाओगी।
(3)
मैं बनाता हूँ गंभीर चेहरा
तुम बत्तीसी दिखाकर हॅंसती हो
मैं फूलों को रहने देता हूँ पौधों पर ही
तुम कोई एक फूल बड़ी नज़ाकत से चुनती हो
मेरे कानों पर टिकता है चश्मा
तुम्हारे कानों पर फूल
और मुझे याद आता है
पुरानी सरकारी बस का कंडक्टर
और कान पर टिका उसका पेन
कितनी बेफ़िक्र हो तुम
असली या नक़ली स्वर्ण तो छोड़ो
नाक में कोई बाली नहीं
कान में एक पौधे का अंश
आज कोई फूल नहीं तुम्हारे पास
और तुम ही फूल-सी खिलती हो।
2. विवाह
एक कविता का आग़ाज़
शुरुआती पंक्तियां प्रभावी थीं
नीचे आते जाना था
पंक्तियों के साथ, क्रमवार
वह बहुत लंबी कविता थी
जिसने खो दिया
अपना तारतम्य और लाघव
शुरुआती कुछ पंक्तियों के बाद
वह एक नया कवि था
जो साध न पाया था
लंबी कविता का शिल्प
वैसे, कहाँ साध पाते हैं
कई बार दक्ष कवि भी उसे?
3. वह और उसकी योनि अलग-अलग व्यक्ति हैं
(ट्रिगर वार्निंग : यौन हिंसा एवं ग्राफिक विवरण)
वह कुछ यूँ करती है
जवाब की शुरुआत :
“बहुत लंबी कहानी है”
मुझे लगता है कि वह नहीं बताएगी
और सोचने लगता हूँ मैं
करने को कोई और बात
लेकिन वह शुरू कर ही देती है
बताना अपनी कहानी
वाक़ई लंबी
तकलीफ़ों से भरी
सत्रह की थी जब उसके पिता की मृत्यु हुई
घर के किराए के बदले कुर्बान हुआ उसका कुँवारापन
यूँ शुरू हुआ सिलसिला उसकी कुर्बानी का
यूँ महफ़ूज़ रहीं उसकी अम्मी और छोटी बहन
बीस साल की वह लड़की
पीठ पीछे आगंतुकों को अंकल कहती है
उनके सामने भले जो कहती हो
उससे बात करते हुए लगता है कि
वह और उसकी योनि अलग-अलग व्यक्ति हैं
‘अंकल’ उसकी योनि में डालकर
सिगरेट और बर्थडे कैंडल जलाते हैं
अभी कल वाला अंकल
योनि में बहुत भीतर छोड़ गया
अपनी सस्ती अंगूठी
महंगी होती तो परवाह करता
उसे आज वाले अंकल ने निकाला
बहुत गहरे हाथ डालकर
वे कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते
दो बार बच्चा गिराना पड़ा है
उसे डर है कि वह
तीसरी बार गर्भवती न हो जाए
जितनी बार गर्भ गिराना पड़ेगा
उतनी ही गिरती जाएगी कमाई की दर
कभी-कभार अब भी पढ़ लेती है वह नमाज़
मुझे नहीं मालूम कि उसे ऊपर वाले पर कितना भरोसा है
लेकिन इस बात पर पूरा भरोसा है उसे
कि उससे कोई कभी प्यार नहीं करेगा
उसकी कभी किसी से शादी नहीं होगी
जबकि उसकी मासूम सूरत और सीरत देख
कोई भी उसके प्यार में पड़ सकता है
अचानक उसके यहाँ अज़ान होती है
मैं उससे कहता हूँ
मुअज़्ज़िन की बुलंद पुकार में
घोल दे अपनी नाज़ुक फ़रियाद
माँग ले ख़ुदा के दर से मुहब्बत
तभी होती है आहट उसके दरवाज़े पर
और वह चली जाती है
हज़ार रुपए कमाने
अंकल के साथ एक घंटा बिताने।
4. मौसमी हवाएँ
(1)
मैं उससे माँगता हूँ रूमी की कोई किताब
वह मुझे रूपी कौर का संकलन थमाता है
कहाँ ले आईं हमें मौसमी हवाएँ
बुलबुला समुंदर से बड़ा नज़र आता है।
(2)
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है
कि मेरे क़स्बे का बृजलाल सैनी वाक़िफ़ है
प्रधानमंत्री की कविताई से
और उसे कोई ख़बर नहीं कि
मतदान केंद्र पर झपकी* भी आई थी!
*केदारनाथ सिंह जी के अंतिम कविता संग्रह का शीर्षक।
5. टॉफ़ी
कोई लाख डराए
दाँतों में कीड़े लग जाएँगे
बच्चे टॉफी खाना नहीं छोड़ते
फिर भी एक दिन
वे छोड़ चुके होते हैं टॉफ़ी खाना
उन्हें याद नहीं रहता किस दिन
और याद नहीं आता, क्यों।