ओमा शर्मा हमारे दौर के प्रमुख कथाकार हैं. उनको ‘रमाकांत स्मृति कथा-सम्मान’ दिए जाने की घोषणा हुई है. प्रस्तुत है उनकी पुरस्कृत कहानी : जानकी पुल
======================================================================
वह पूरेइत्मीनानसेसोयीपड़ीहै।बगलमेंदबोचेसॉफ्टतकिएपरसिरबेढंगापड़ाहै।आसमानकीतरफकिएअधखुलेमुंहसेआगेवालेदांतोंकीकतारझलकरहीहैं।होंठ कुछ पपडा़ से गए हैं,सांस का कोई पता ठिकाना नहीं है। शरीर किसी खरगोशकेबच्चेकीतरहमासूमियतसेनिर्जीवपड़ाहै।मुड़ी–तुडी़ चादरकादोतिहाईहिस्साबिस्तरसेनीचेलटकापड़ाहै।सुबहकेसाढ़ेग्यारहबजरहेहैं।हरछुट्टीकेदिनकीतरहवहयूंसोयीपड़ीहैजैसेउठनाहीनहो।एक–दो बार मैंने दुलार से उसे ठेला भी है … समीरा, बेटा समीरा, चलो उठो … ब्रेक फास्ट इज़ रेडी …। मगर उसके कानों पर जूँ नहींरेंगीहै।उसकेमुड़ेहुएघुटनोंकेदूसरीतरफखुलीत्रिकोणीयखाड़ीमेंकिसीठगकीतरहअलसाएपड़ेकास्पर(पग) नेजरूरआंखेंखोलीहैंमगरकुछबेशर्मीउसपरभीचढ़आयीहै।बिगाड़ाभीउसीकाहै।
वैसे वहसोतीहुईहीअच्छीलगतीहै।उठकरकुछनकुछऐसा–वैसा जरूर करेगी जिससे अपना जी जलेगा। नाश्ते में परांठे बने हों तो हबक देने की मुद्रा में यूँ ‘ऑक’ करेगी … कि नाश्ते में परांठे कौन खाता है। दलिया; नो। पोहा; मुझे अच्छा नहीं लगता। सैण्डविच; रोज़ वही। उपमा; कुछ और नहीं है। मैगी; ओके।
‘‘मगर बेटा रोज वही नूडल्स“
‘‘तो ?’’
‘‘पेट खराब होता है’’
‘‘मेरा होगा ना’’
‘‘परेशानी तो हमें भी होगी’’
‘‘आपको क्यों होगी ?’’
‘‘कल आपको मायग्रेन हुआ था ना’’
‘‘तो ?’’
‘‘डॉक्टर ने मैदा, चॉकलेट, कॉफी के लिए मना किया है ना’’
‘‘मैंने कॉफी कहां पी है’’
‘‘नूडल्स तो मांग रही हो’’
‘‘मम्मा!’’ वह चीखी
‘‘इसमें मम्मा क्या करेगी’’
‘‘पापा, व्हाइ आर यू सो इर्रिटेटिंग’’
मैं इर्रिटेटिंगहूँ, यहबातअबमुझेपरेशाननहींकरतीहै।नादानबच्चाहै, उसकीबातकाक्या।अकेलाबच्चाहैतोथोड़ापैम्पर्डहैइसलिएऔरभीउसकीबातोंकाक्या।
वैसे उसकी बातें भी क्या खूब होती रही हैं। अभी तक।
हरचीजकेबारेमेंजानना, हरबातकेबारेमेंसवाल।
‘‘पापा हमारी स्किन के नीचे क्या होता है ?’’
‘‘खून’’
‘‘उसके नीचे ?’’
‘‘हड्डी’’
‘‘हड्डी माने ?’’
‘‘बोन’’
‘‘और बोन के नीचे ?’’
‘‘कुछ नहीं’’
‘‘स्किन को हटा देंगे तो क्या हो जाएगा ?’’
‘‘खून बहने लगेगा’’
‘‘खून खत्म हो जाएगा तो क्या होगा ?’’
‘‘आपको बोन दिख जाएगी’’
‘‘ उसकोतोमैंखाजाऊंगी’’
‘‘क्यों ?’’
‘‘कास्पर भी तो खाता है’’
‘‘वो तो डॉग है’’
‘‘पापा, वो डॉग नहीं है’’
‘‘अच्छा, तो क्या है’’
‘‘कास्पर’’
‘‘कास्पर तो नाम है, जानवर तो …’’
‘‘ओ गॉड पापा, यू आर सो … ’’
उसकी यही नॉनसेंसजिज्ञासाएंहररातकोसुलाएजानेसेपूर्वअनिवार्यरूपसेसुनाईजानेवालीकहानियोंकापीछाकरतीं।मुझेबसचरित्रपकड़ादिएजाते– फॉक्सऔरमंकी; लैपर्ड, लायनऔरगोट; पैरट, कैट, एलिफैंटऔरभालू।भालूकोछोड़करसारेजानवरोंकोअंग्रेजीमेंहीपुकारेजानेकीअपेक्षाऔरआदत।कहानीकोकुछमानदंडोंपरखराउतरनापड़ता।मसलन, उसकेचरित्रकल्पनाकेस्तरपरकुछभीउछल–कूद करें मगर वायवीय नहीं होने चाहिए, कथा जितना मर्जी मोड़–घुमाव खाए मगर एकसूत्रता होनी चाहिए, कहानी का गंतव्य चाहे न हो मगर मंतव्य होना चाहिए, वह रोचक होनी चाहिए और आख़िरी बात यह कि वह लम्बी तो होनी ही चाहिए।
आख़िरी शर्त पर तो मुझे हमेशा गच्चा खाने को मिलता जिसे जीत के उल्लास में उंघते हुए करवट बदल कर वह मुझे चलता कर देती।
मगरअब!
अबतोकितनीबदलगयीहै।कितनीतोघुन्नाहोगयीहै।
कोई बात कहो तो या तो सुनेगी नहीं या सुनेगी भी तो अनसुने ढंग से।
‘‘आज स्कूल में क्या हुआ बेटा ?’’मैंजबरनकुछबर्फपिघलानेकीकोशिशमेंलगाहूं।
‘‘कुछ नहीं’’ उसकारूखादोटूकजवाब।
‘‘कुछ तो हुआ होगा बच्चे !’’
‘‘अरे !, क्याहोता ?’’
‘‘मिस बर्नीस की क्लास हुई थी ?’’
‘‘हां’’
‘‘और मिस बालापुरिया की ?’’
‘‘हां, हुई थी’’
‘‘क्या पढ़ाया उन्होंने ?’’
‘‘क्या पढ़ातीं ? वहीअपनापोर्शन’’
‘‘निकिता आयी थी’’
‘‘आयी थी’’
‘‘और अनामिका’’
‘‘पापा, व्हाट डू यू वांट?’’ वह तंग आकर बोली।
‘‘जस्ट व्हाट्स हैपनिंग विद यू इन जनरल’’
‘‘नथिंग, ओके’’
‘‘आपके ग्रेड्स बहुत खराब हो रहे हैं बेटा’’
‘‘दैट्स व्हाट यू वांट टू टॉक ?’’
‘‘नो दैट इज ऑलसो समथिंग आई वांट टू टॉक’’
‘‘कितनी बार पापा ! कितनीबार !!’’
‘‘वो बात नहीं है, बात है कि तुम्हें हो क्या रहा है’’
‘‘नथिंग’’
‘‘तो फिर’’
‘‘आई डोन्ट नो’’
‘‘आई नो’’
और वह तमककर दूसरे कमरे में चली गयी–मम्मी से मेरी शिकायत करने। मम्मी समीरा से आजिज़ आ चुकी है मगर ऐसे मौंकों पर उसकी तरफदारी कर जाती है, मुख्यतः घर में शान्ति बनाए रखने की नीयत से वर्ना रिपोर्ट कार्ड या ओपन–डे के अलावा भी ऐसे नियमित मौके आते हैं जब उसे खून का घूँट पीकर रहना पड़ता है।
ट्य
12 Comments
आप सभी का बहुत बहुत आभार
तेजी से बदल रहे समाज में तकनीक और बाहरी विश्व किस तरह से एक सीमित परिवार को झकझोर रहा है, किस तरह नयी पीढी अपनी जड़ों से उखड कर एक अलग तरह की मानवता को जन्म दे रही है, किस तरह दबाव आज हर उम्र हर सम्बन्ध को दरका रहा है … एक महानगर में मध्यम वर्गीय जीवन के त्रासदी दिखाती बताती एक मारक कथा जो आपको भीतर तक हिला कर रख दे ! ओमा जी को बधाई. 'घोड़े' के बाद उसी स्तर की इस कथा के लिए.
बहुत ही अच्छी कहानी. अपने समय के सरकारी स्कूल के अनुशासन को याद करते हुए भी हमारे भीतर जो समकालीन 'मक्कारी' घुस आयी है वह 'इमोशनल अत्याचार' भी गुनाहगार है, हमारे भूगोल विहीन और नातेदारी विहीन टीन एजर बच्चों के वर्चुअल विद्रोह के.
Is daur ki zaroori kahani. Oma Congratulations for amazing story. Salute'from a mother of two teenager daughters. – Manisha Kulshreshtha
samyik kahani.. aaj ke teenagers ka hubahu chitr kheench kar rakh diya.. ek hee saans me padh gai.. umda..
sach kaha …ek jarrori dastak…jise shayad hum sabhi najarandaz ker dete hain….great creation..
ek behad jaruri dastak deti kahani.kalawanti,ranchi
CHUST – DURUST KAHANI KE LIYE OMA JI KO BADHAAEE .
CHUST – DURUST KAHANI KE LIYE OMA JI KO BADHAAEE .
nice story oma bhai!
Brillant Oma ji.
Pingback: spin238