1.
रेशम ज़ुल्फों नीलम आँखों वाले अच्छे लगते हैं
मैं शायर हूँ मुझ को उजले चेहरे अच्छे लगते हैं तुम खुद सोचो आधी रात को ठंडे चाँद की छांवों में
तन्हा राहों में हम दोनों कितने अच्छे लगते हैं आखिर आखिर सच्चे कौल भी चुभते हैं दिल वालों को
पहले पहले प्यार के झूठे वादे अच्छे लगते हैं काली रात में जगमग करते तारे कौन बुझाता है
किस दुल्हन को ये मोती ये गहने अच्छे लगते हैं जब से वो परदेस गया है शहर की रौनक रूठ गई
अब तो अपने घर के बंद दरीचे अच्छे लगते हैं कल उस रूठे रूठे यार को , देखा तो महसूस हुआ
मोहसिन उजले जिस्म पे मैले कपड़े अच्छे लगते हैं
मैं शायर हूँ मुझ को उजले चेहरे अच्छे लगते हैं तुम खुद सोचो आधी रात को ठंडे चाँद की छांवों में
तन्हा राहों में हम दोनों कितने अच्छे लगते हैं आखिर आखिर सच्चे कौल भी चुभते हैं दिल वालों को
पहले पहले प्यार के झूठे वादे अच्छे लगते हैं काली रात में जगमग करते तारे कौन बुझाता है
किस दुल्हन को ये मोती ये गहने अच्छे लगते हैं जब से वो परदेस गया है शहर की रौनक रूठ गई
अब तो अपने घर के बंद दरीचे अच्छे लगते हैं कल उस रूठे रूठे यार को , देखा तो महसूस हुआ
मोहसिन उजले जिस्म पे मैले कपड़े अच्छे लगते हैं
शैलेन्द्र भारद्वाज |
2.
बहार रुत मे उजड़े रस्ते ,
तका करोगे तो रो पड़ोगे …
किसी से मिलने को जब भी मोहसिन ,
सजा करोगे तो रो पड़ोगे..
तुम्हारे वादों ने यार मुझको ,
तबाह किया है कुछ इस तरह से …
कि जिंदगी में जो फिर किसी से ,
दगा करोगे तो रो पड़ोगे…
मैं जनता हूँ मेरी मुहब्बत ,
उजाड़ देगी तुम्हें भी ऐसे …
कि चाँद रातों मे अब किसी से ,
मिला करोगे तो रो पड़ोगे…
बरसती बारिश में याद रखना ,
तुम्हें सतायेंगी मेरी आँखें …
किसी वली के मज़ार mohsin naqvi shailendra bhardwaj urdu shayri
7 Comments
मोहसिन नक़वी अपने दौर के एक मोतबर शायर थे , उनका एक शे'र '' क़त्ल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच , अब तो खुलने लगे मक्तल भरे बाज़ार के बीच ''
मोहसीन नक़वी अपने दौर के एक मोतबर शायर थे '' क़त्ल छुपते थे कभी संग की दीवार के बीच , अब तो खुलने लगे मकतल भरे बाज़ार के बीच ''
Mohsin mujhe raas aa gayee Shayad meri aawaragi ….
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