कहानियां तो हैं लेकिन कौशल की कमी है!

    विजयश्री तनवीर के कथा-संग्रह ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’ की सम्यक समीक्षा युवा लेखक पीयूष द्विवेदी द्वारा- मॉडरेटर

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    विजयश्री तनवीर के पहले कहानी-संग्रह ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’ में कुल नौ कहानियां हैं, जिनमें से सभी के केंद्र में विवाहेतर संबंधों का विषय है। संग्रह की पहली कहानी ‘पहले प्रेम की दूसरी पारी’ में लेखिका ने विवाह और प्रेम के अंतर को बड़ी बारीकी से खोलने का प्रयास किया है। ‘अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार’ नामक शीर्षक कहानी कमाने गए पति से दूर जीवन की जद्दोजहद में अकेले जुटी स्त्री के मन में प्रेम की तीव्र आकांक्षा को उद्घाटित करती है। हालांकि कथानक में कसावट की कमी के कारण ये बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ पाती। ‘समंदर से लौटती नदी’ एक शादीशुदा और वयस्क व्यक्ति के एक जवान लड़की के आकर्षण में पड़ जाने और फिर सामाजिक लांछनों के भय से उससे दूरी बनाने की कहानी है। इसका कथ्य प्रभावी है, लेकिन उस कथ्य को कथानक में ढालने और चरित्र-गठन के बिन्दुओं पर यह कहानी कमजोर पड़ जाती है। ऐसे ही ‘भेड़िया’, ‘खिड़की’, ‘खजुराहो’, एक उदास शाम के अंत में आदि कहानियाँ भी अलग-अलग ढंग से विवाहेतर संबंधों का विषय उठाती हैं। लेकिन देखा जाए तो इन सब कहानियों का मूल स्वर विवाहेतर संबंधों की विसंगतियों और दुष्प्रभावों को उजागर करना ही है।

    ‘विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ’ इस संग्रह की आखिरी और विशेष रूप से उल्लेखनीय कहानी है। प्रेम और शादी के अंतर को उद्घाटित करता इसका कथानक तो कोई बहुत नया नहीं है, लेकिन उसकी प्रस्तुति का ढंग प्रभावित करता है। ये कहानी एक लघुकथा की तरह कई छोटे-छोटे हिस्सों में बंटी हुई है जिन्हें अलग-अलग भी पढ़ा जा सकता है औत एक कहानी के रूप में भी। दोनों ही रूपों में वे हिस्से अर्थवान और प्रभावी हैं। इसके पात्र एक लड़का और लड़की हैं जो एकदूसरे से प्रेम करते हैं। हम देखते हैं कि प्रेम में लड़की की छोटी-छोटी खुशियों का ध्यान रखने वाला लड़का शादी के बाद पति बनते ही कैसे उसकी इच्छाओं को पूरा करने से पहले बजट देखने लगता है। समय बीतता है और उनका प्रेम छीजता जाता है। झगड़े होने लगते हैं। एक दिन दोनों में कुछ अधिक ही झगड़ा होता है और पति चला जाता है, वो भी नाराज होती है, लेकिन रात को जब बहुत देर तक वो नहीं लौटता तो उसे चिंता और आत्मग्लानि होने लगती है। आखिर देर रात गए वो आता है। तब वो कहती है, ‘हम जानें इतना क्यों झगड़ते हैं’ इसके जवाब में पति का ये कहना – ‘ताकि दूसरों से न झगड़ें’ – इस कहानी को एक प्रभावशाली अंत देता है। यह अंत तमाम विसंगतियों के बावजूद विवाह नाम संस्था के प्रति समर्थन व्यक्त करता है जो प्रकारान्तर से विवाहेतर संबंधों के विरुद्ध भी जाता है। निस्संदेह इस कहानी का एक दूसरा पहलू वैवाहिक संबंधों में स्त्री की निम्नतर स्थिति को रेखांकित करना भी है। लेकिन कुल मिलाकर ये इस संग्रह की हासिल कहानी है। भाषा सधी हुई हिंदी है, जिसमें किसी प्रकार का कोई अतिरिक्त प्रयोग करने की कोशिश नहीं की गयी है। एक और बात कि विजयश्री के पास कहानियाँ तो हैं, लेकिन उनको कहने का कौशल अभी जरा कच्चा है, जिसपर ध्यान देने की आवश्यकता है। समग्रतः ये कहानी-संग्रह में लेखिका में निहित अनेक रचनात्मक संभावनाओं का बोध कराता है।

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    पुस्तक – अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार (कहानी-संग्रह)

    रचनाकार – विजयश्री तनवीर

    प्रकाशक – हिन्द युग्म, दिल्ली

    मूल्य – 110

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