सलमान रुश्दी के संस्मरणों की पुस्तक आई है ‘जोसेफ एंटन’. उसी पुस्तक का एक अनूदित अंश जो सलमान रुश्दी के अपने पिता के साथ संबंधों को लेकर है, अनुवाद मैंने ही किया है- प्रभात रंजन.
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जब वह छोटा बच्चा था उसके अब्बा सोते समय उसे पूरब की महान चमत्कार-कथाएं सुनाया करते थे, उनको सुनाते, फिर-फिर सुनाते, उसे फिर से बनाते और फिर अपने तरीके से उसे नया रच देते- ‘वन थाउसैंड वन नाइट’ के शहरजादे की, मौत के सामने सुनाई हुई कहानियां इस बात को साबित करने के लिए कि कहानी में यह कूवत होती है कि वह सबसे हत्यारे और क्रूर को भी जीत सकती है, उनको सभ्य बना सकती है; और ‘पंचतंत्र’ के जानवरों की कहानियां; और वे आश्चर्य जो ‘कथासरित्सागर’ से झरनों की तरह बहते, एक विशाल कथा-झील कश्मीर में बनाई गई थी जहां उसके पुरखे पैदा हुए थे; और ‘हमज़ानामा’ में उनको जमा किया गया था; और हातिमताई के किस्से(इस नाम की एक फिल्म भी थी, जो पुराने किस्सों में कुछ बढ़ा-चढ़ा कर बनाई गई थी और उनको सोते समय सुनाये जाने वाले किस्सों का हिस्सा बना लिया गया था). इन किस्सों में सराबोर बड़े होने की वजह से उसने दो अविस्मरणीय सबक सीखे: पहला, कि वे किस्से सच नहीं थे(सचमुच में बोतल के अंदर कोई जिन्न नहीं होता, कोई उड़ने वाली कालीन नहीं होती या कोई जादुई डिबिया नहीं होती), बल्कि सच नहीं होने के कारण उसको उन सचाइयों को जानने और महसूस करने का मौका मिला जो सच उन्हें नहीं बता सकता था. दूसरे, वे सब उससे तआल्लुक रखते थे, वैसे ही जैसे वे उसके अब्बा, अनीस, से तआल्लुक रखते थे, और सबसे तआल्लुक रखते थे, वे सब उसके थे, जैसे वे उसके अब्बा के थे, अलग-अलग तरह के किस्से, डरावने, दूसरी दुनियाओं के, उसकी इस मायने में कि वह उनमें हेर-फेर कर सके और नया बना सके, उसका त्याग कर सके और जब उसका जी चाहे फिर से उठा सके, वह उसके ऊपर हंस सके और उसके ऊपर खुश हो सके, उन कहानियों को प्यार करते हुए जीवन दे और बदले में उनसे जीवन पाये भी.
इंसान कहानी सुनाने वाला जानवर था, इस धरती का बस एक प्राणी जो अपने आपको कहानियां सुनाता था इस बात को समझने के लिए वह किस किस्म का प्राणी था. कहानी उसका जन्मसिद्ध अधिकार थी, जिसे उससे कोई नहीं छीन सकता था. उसकी माँ नगीन के पास भी उसके लिए कहानियां थी, नगीन रुश्दी का जन्म जोहरा बट्ट के रूप में हुआ था. जब उनकी शादी अनीस से हुई तो उन्होंने केवल अपना उपनाम ही नहीं बदला बल्कि उसका दिया हुआ नाम भी रख लिया, खुद को उसके लिए जैसे फिर से बनाया, उस जोहरा को पीछे छोड़ जिसके बारे में वह नहीं सोचना चाहती थी, जो एक दौर में किसी और इंसान के प्यार में गहरे डूबी हुई थी. अब दिल से या कहिये दिलों से वह जोहरा थी या नगीन उनका बेटा कभी नहीं जान पाया, क्योंकि उन्होंने कभी उस आदमी के बारे में नहीं बताया जिसे उन्होंने पीछे छोड़ दिया था, बदले में उन्होंने बाकी सबके राज सुनाये सिवा अपने. वह अव्वल दर्जे की गपोड़ थी, उनके बिस्तर पर बैठकर उनके पैर दबाते हुए, उनका बड़ा बच्चा, उनका इकलौता बेटा, उनसे आसपास के मजेदार, और कभी-कभी अश्लील किस्से सुनता जो उनके दिमाग में रहता था, उनके विशाल परिवार रूपी पेड के खुसफुसाहट भरे किस्से, जिसके ऊपर बदनामी के वर्जित रसदार फल टंगे होते थे. और ये राज भी, उसने महसूस किया, कि उससे ही तआल्लुक रखते थे, एक दफा जब वे राज सुना दिए जाते तो वे उनके नहीं रह जाते थे, वे उसके हो जाते क्योंकि वह उनको ग्रहण कर लेता था.
अगर आप चाहते हैं कि कोई राज बाहर न आए तो उसके लिए एक नियम था: किसी को न बताएं. यह नियम भी, उसके बाद के जीवन के लिए उपयोगी साबित हुआ. बाद में चलकर, जब वह लेखक बना, तो उसकी माँ ने उससे कहा, ‘मैं तुमको यह सब बताना बंद करने वाली हूं, क्योंकि तुम उनको किताब में लिख देते हो और मैं मुश्किल में पड़ जाती हूं.’ जो सही था, और शायद उनको यह सही ही सलाह दी गई थी कि वे मुझे सुनाना बंद कर दें, लेकिन गप्प सुनाना उनकी लत थी, और वह उसको छोड़ नहीं सकती थी, अपने पति, उसके पिता से बढ़कर, जो शराब पीना नहीं छोड़ सकते थे.
विंडसर विला, वार्डेन रोड, बॉम्बे-26. यह पहाड़ी पर बना एक घर था जो समुद्र की तरफ देखता था तथा पहाड़ी और समुद्र के बीच बहते शहर को; और हाँ, उसके पिता अमीर थे, हालांकि उन्होंने अपना जीवन अपने पैसों को गंवाते हुए बिताया और वे कंगाली में मरे, वे अपना कर्ज नहीं चुका पाए, उनकी मेज की ऊपरी बायीं दराज में छिपाकर रखे रुपए थे, कुल यही वे इस दुनिया में छोड़ गए थे. अनीस अहमद रुश्दी(‘बी.ए., बार-एट-ला’ विंडसर विला के सामने के गेट पर ताम्बे के नेमप्लेट पर यह लिखा था जो गर्व के साथ बताता हुआ टंगा था) ने अपने कपड़ा-व्यापारी पिता से बड़ी संपत्ति विरसे में पाई थी, जिनके वे इकलौते बेटे थे, उन्होंने उसे खर्च कर दिया, गँवा दिया, और मर गए. यह सुखी जीवन की एक कहानी हो सकती थी, लेकिन नहीं हुई. उनके बच्चे, उनके बारे में कुछ बातें जानते थे: कि सुबह में वे तब तक बेहद खुश रहते थे जब तक कि वे दाढ़ी नहीं बना लेते थे, शेव करते ही वे चिडचिडे हो जाते और वे उनके सामने पड़ने में सावधानी बरतते; वीकेंड में वे उनको समुद्र तट पर ले जाते तो जाते वक्त वे खूब मजे करते लेकिन लौटते वक्त गुस्से में रहते; जब वे माँ के साथ विलिंगटन क्लब में क्लब में गोल्फ खेलते तो वह इसको लेकर सावधान रहती थीं कि हार जाएँ, हालांकि वह उनसे बेहतर खिलाड़ी थीं, जीतना उनके लिए फायदेमंद नहीं रहता था; खासकर तब जब वे शराब के नशे में होते थे तब वे भयानक तरीके से उनकी तरफ देखते थे, अजीब-अजीब तरह से मुँह बनाते, जिसे किसी बाहरी आदमी ने कभी नहीं देखा, इसलिए इस बात को कोई भी नहीं समझ पाता था कि इसका मतलब क्या हुआ जब वे कहते कि उनके अब्बा ‘मुँह बनाते’ थे.
लेकिन जब वे छोटे थे तो बस कहानियां थी और नींद, और अगर वे दूसरे कमरे में ऊंची आवाजें सुनते, या अगर वे अपनी माँ के रोने की आवाजें सुनते, तो वे इसके बारे में कुछ कर नहीं सकते थे. वे अपने चेहरे पर चादर तान लेते और सपने देखने लगते. अनीस अपने तेरह साल के बेटे को जनवरी 1961 में एकाध हफ्ते के लिए इंग्लैण्ड लेकर गए, उससे पहले जब उसने रग्बी स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरु की, तब वे लंदन में मार्बल आर्क के पास कुम्बरलैंड होटल के एक कमरे में रह रहे थे. दिन के वक्त वे स्कूल द्वारा बताई गए सामानों की खरीदारी करते, ट्वीड के जैकेट, मटमैले फ्लैनेल की पेंट, वैन हुसेन की शर्ट. वे चौकलेट मिल्क शेक पीते कॉवेंट्री स्ट्रीट के ल्योंस कॉर्नर हाउस में और वे ओडियन मार्बल आर्क गए सेंट त्रिनियन के जन्नत के नज़ारे लेने और वहां उसने सोचा कि काश उसके बोर्डिंग स्कूल में लड़कियां भी होतीं. शाम के वक्त उसके अब्बा एडवेयर रोड के कर्दोमा से ग्रिल्ड चिकन छिपाकर होटल में लाते. रात के वक्त अनीस शराब पीकर धुत्त हो जाते देर देर रात में उसके ऊपर इतनी भद्दी जुबान में चिल्लाते कि वह डर से काँपता यह नहीं समझ पाता कि उसके अब्बा उस तरह के शब्द भी जानते थे. फिर वे रग्बी गए और वहां उन्होंने लाल रंग की एक कुर्सी खरीदी और फिर एक-दूसरे से विदा ली. अनीस ने बोर्डिंग स्कूल के बाहर खड़े अपने बेटे की तस्वीर ली, पूरे स्कूल ड्रेस में, और अगर आप उस लड़के की आंखों की उदासी को देखकर यह सोच रहे हों कि वह घर से इतनी दूर स्कूल में जाने से दुखी था. लेकिन असल में बेटा अपने अब्बा के वहां जाने का इन्तजार कर रहा था ताकि वह वह उन रातों की गालियों को भूल सके और उनके सुर्ख आंखों के गुस्से को. वह अपनी उदासी को पीछे छोड़ अपना भविष्य शुरु करना चाहता था, और उसके बाद यह अवश्यम्भावी था कि वह अपने अब्बा से जितनी दूर हो सके रह कर अपना जीवन शुरु करे, उसने दोनों के बीच समुद्र रख दिया और उसको वहीं रहने दिया.
जब वह कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हुआ और उसने अपने अब्बा से कहा कि वह एक लेखक बनना चाहता है तो उसके अब्बा के मुँह से बेसाख्ता निकला- ;क्या’, वे चीखे, ‘क्या मैं अपने दोस्तों से यह बताऊँ?’ लेकिन उन्नीस साल बाद, अपने बेटे के चालीसवें जन्मदिन पर अनीस रुश्दी ने उसको एक खत भेजा अपने हाथ से लिखा हुआ जो सबसे मूल्यवान संवाद था जो उस लेखक को हासिल हुआ था या आगे होने वाला था. यह अनीस की मौत से पांच महीने पहले की बात है जब 75 साल की उम्र में वे बोन मैरो के कैंसर से गुजरे. उस खत से पता चला कि अनीस ने अपने बेटे की किताबों को कितनी अच्छी तरह, कितनी गहराई से समझा था, वे कितनी उत्सुकता से उसके और लेखन को पढ़ना चाहते थे, और किस कदर बाप का प्यार उन्होंने उसमें उड़ेल दिया था जिसे वे अपने आधे जीवन तक व्यक्त नहीं कर पाए थे. वे इतना तो जिए ही कि ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ और ‘शेम’ की सफलता पर खुश हो सकें, लेकिन जब तक वह किताब प्रकाशित होती जो उनके ऊपर सबसे बड़ा कर्ज था वे उसे पढ़ने के लिए नहीं थे.
शायद वह अच्छी बात थी, क्योंकि उन्होंने उस कहर को भी नहीं देखा जो उसके बाद टूटा; हालांकि उन कुछ बातों को लेकर जिनके बारे में उनका बेटा पक्के तौर पर मुतमईन था कि ‘सैटेनिक वर्सेज’ पर चली लड़ाई में उसे अपने अब्बा का पूरा समर्थन और सहयोग मिला होता. बिना उसके अब्बा के विचारों, उनके द्वारा दिए गए मिसालों के, असल में, वह उपन्यास नहीं लिखा जा सकता था.
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12 Comments
मिडनाइटस् चिल्ड्रन की याद एक बार फिर जीवंत हो गयी है …अनुवाद इतना सटीक है कि कहीं से भी अनुवाद नहीं लगा क्योंकि शैली वही है जो रश्दी की है !
aap ke anuvaad parhna hamesha hee achcha lagta hai, prabhat ji, aap kii kahaaniyon kii hee tarah. balki kayi baar to aap ke anuvaad se hee pata chalta hai ki achcha yah kitab bhi astittv mein aa gayi hai–jaise rushdi ki yah nayi pustak.
shubh,
piyush
behad achchha anuvad hai,isliye ki padhte hue iski sahajgamyta bani rahti hai jo puri kitab padhne ko prerit kar rahi hai.kalawanti.
इधर हिंदुस्तान में छपा था कल .. रोचक है. बधाई.
सहज अनुवाद ..अनूदित पुस्तक क्या फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध है?
सर, इसे पढ़ने के बाद लग रहा है कि रुश्दी के लिए कुछ लिखा जाए, उनके पिता के लिए, जोसेफ के लिए या आपके इस अनुवाद के लिए…नि: शब्द कर देती है आपकी योग्यता और क्षमता 🙏
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