भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव समकालीन कविता का एक महत्वपूर्ण नाम है. उनकी कविताओं में विस्थापन की पीड़ा है, मनुष्य के अकेले पड़ते जाने की नियति का दंश. अभी हाल में ही उनका नया कविता संग्रह आया है ‘इन दिनों हालचाल’ और साथ ही, प्रेम कविताओं का संचयन आया है ‘बिलकुल तुम्हारी तरह’. प्रस्तुत है उनकी कुछ इधर की कविताएँ- जानकी पुल.
धूप
धूप किताबों के ऊपर है
या
भीतर कहीं उसमें
कहना
मुश्किल है इस समय
इस समय मुश्किल है
कहना
कि किताबें नहा रही हैं धूप में
या धूप किताबों में
पर यह देखना और महसूसना
नहीं मुश्किल
कि मुस्कुरा रही हैं किताबें
धूप की तरह
और धूप गरमा रही है किताबों की तरह.
कायांतरण
दिल्ली के पत्रहीन जंगल में
छांह ढूंढता
भटक रहा है एक चरवाहा
विकल अवश
उसके साथ डगर रहा है
झाग छोड़ता उसका कुत्ता
कहीं पानी भी नहीं
कि धो सके वह मुँह
कि पी सके उसका साथी थोड़ा-सा जल
तमाम चमचम में
उसके हिस्से पानी भी नहीं
वैसे सुनते हैं दिल्ली में सब कुछ है
सपनों के समुच्चय का नाम है दिल्ली
बहुत से लोग कहते हैं
उन्हें पता है
कहां कैद हैं सपने
लेकिन निकाल नहीं पाते उसे वहां से
हमारे बीच से ही
चलते हैं कुछ लोग
देश और समाज को बदलने वाले सपनों को कैदमुक्त कर
उन्हें उनकी सही जगह पहुंचाने के लिए
लोग वर्षों ताकते रहते हैं उसकी राह
ताकते-ताकते कुछ नए लोग तैयार हो जाते हैं
इसी काम के लिए
फिर करते हैं लोग
इन नयों का इंतज़ार
पिछले दिनों आया है एक आदमी
जिसका चेहरा-मोहरा मिलता है
सपनों को मुक्त कराने दिल्ली गए आदमी से
वह बात-बात में वादे करता है
सबको जनता कहता है
और जिन्हें जनता कहता है
उन तक पहुंची है एक खबर
कि दिल्ली में एक और दिल्ली है- लुटियन की दिल्ली
जहाँ पहुँचते ही आत्मा अपना वस्त्र बदल लेती है.
पहाड़ को जानना
सूर्य उदित
पहाड़ मुदित
सूर्य अस्त
पहाड़ मस्त
पहाड़ मुदित
सूर्य अस्त
पहाड़ मस्त
हो सकता है कुछ लोगों के लिए
यह सच हो
दूध के रंग जितना
पर इसे पूरा-पूरा सच मान लेना पहाड़ का
बहुत कम जानना है
पहाड़ को ।
जो उतरता ही नहीं मन रसना से
घर से दूर ट्रेन में पीते हुए चाय
साथ होता है अकेलापन
वीतरागी-सा होता है मन
शक्कर चाहे जितनी अधिक हो
मिठास होती है कम
चाय चाहे जितनी अच्छी बनी हो
उसका पकापन लगता है कम
साधो! अब क्या छिपाना आपसे
यह जादू है किसी के होने का
यह मिठास है किसी की उपस्थिति की
जो उतरता ही नहीं मन-रसना से ।
साथ होता है अकेलापन
वीतरागी-सा होता है मन
शक्कर चाहे जितनी अधिक हो
मिठास होती है कम
चाय चाहे जितनी अच्छी बनी हो
उसका पकापन लगता है कम
साधो! अब क्या छिपाना आपसे
यह जादू है किसी के होने का
यह मिठास है किसी की उपस्थिति की
जो उतरता ही नहीं मन-रसना से ।
8 Comments
Pingback: ทดลองเล่นpg
Pingback: codeless automation testing tools
Pingback: wellness og strain https://exotichousedispensary.com/product/wellness-og-strain/
Pingback: Online medicatie kopen zonder recept bij het beste Benu apotheek alternatief in Amsterdam Rotterdam Utrecht Den Haag Eindhoven Groningen Tilburg Almere Breda Nijmegen Noord-Holland Zuid-Holland Noord-Brabant Limburg Zeeland Online medicatie kopen zonder r
Pingback: Bilad Alrafidain
Spot on with this write-up, I absolutely feel this website needs a lot
more attention. I’ll probably be back again to read through
more, thanks for the info!
Hi to every body, it’s my first pay a visit of this weblog; this
website includes remarkable and truly excellent stuff for readers.