प्रकाशन के साल भर के भीतर जिसकी तीन करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक गई, तकरीबन चालीस देशों में जिसके प्रकाशन-अधिकार देखते-देखते बिक गए, कुछ ही समय में यह अब तक की सबसे तेजी से बिकने वाली पेपरबैक किताब बन गई, इ. एल. जेम्स लेखिका से दुनिया की मशहूर सेलिब्रिटी बन गई- ‘टाइम’ पत्रिका ने उनको 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची का हिस्सा बना लिया- आखिर ऐसा क्या है ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ शीर्षक उपन्यास-त्रयी में? यह एक ऐसा सवाल है जिसको लेकर दुनिया भर के अंग्रेजी भाषी पाठक-लेखक-आलोचक समुदाय में बहस छिड़ी हुई है. बहस चाहे जिस किनारे पहुंचे इतना तो तय है कि अंग्रेजी लोकप्रिय साहित्य को बेस्टसेलर का एक नया नुस्खा मिल गया है- ‘इरोटिक’ प्रेम-कथाओं के रूप में. जैसे ‘हैरी पॉटर’ श्रृंखला ने किशोरों के साहित्य का नया बाजार देखते-देखते दुनिया भर में खड़ा कर दिया था, वैसे ही ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ अधेड़ महिलाओं के रूप में एक नया पाठक-वर्ग खड़ा कर दिया है. अंग्रेजी भाषा को इसने एक नया मुहावरा दे दिया है- ‘मॉमी पोर्न’ यानी मम्मी जी के पढ़ने के लिए लिखी गई कामुक किताब.
पिछले दिनों प्रसिद्ध लेखक-प्रकाशक डेविड दाविदार ने एक इंटरव्यू में कहा था इ-बुक के दौर में मुद्रित पुस्तकों के व्यवसाय संकटग्रस्त होता जा रहा है. यूरोप में पुस्तकों की बड़ी-बड़ी दुकानें बंद हो रही हैं. ऐसा नहीं है कि पढ़ने के प्रति लोगों का आकर्षण कम हुआ है या नव-पूंजीवादी समय में बैठकर किताब पढ़ने के सामंती शौक पुराना पद गया है. असल में, तकनीक बहुत तेजी से हमारे पढ़ने के ढंग को प्रभावित कर रहा है. इंटरनेट और इ-बुक के माध्यम से कम से कम अंग्रेजी भाषा में किताबों का प्रसार अधिक हो रहा है. मुद्रित पुस्तकों का बाजार सिमटता जा रहा है. इसी सिमटते बाजार की बढ़त को बनाये रखने के लिए प्रकाशक-लेखक निरंतर ऐसे नुस्खों की तलाश में रहते हैं जिसके इर्द-गिर्द पाठकों को बड़े पैमाने पर आकर्षित किया जा सके. अकारण नहीं है कि दुनिया के बड़े-बड़े प्रकाशक, गंभीर साहित्य को बढ़ावा देने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक ऐसे लोकप्रिय पुस्तकों को प्रकाशित करने में अधिक दिलचस्पी दिखाने लगे हैं जिनसे प्रतिष्ठा बढ़े न बढ़े मुनाफा बढ़े. समाज के नए-नए वर्ग पुस्तकों से पाठकों के रूप में जुड़ें. प्रसंगवश, यह पहली ऐसी पुस्तक है जो केवल मुद्रित रूप में ही नहीं बल्कि इ-बुक के तौर पर भी सबसे अधिक बिकने वाला उपन्यास साबित हुआ है. यह भी कहा जा रहा है कि इ-बुक पर, लैपटॉप पर पुस्तक पढ़ने वालों की बढ़ती तादाद को देखते हुए ही इरोटिक उपन्यास की परिकल्पना की गई, क्योंकि आपके इ-बुक या लैपटॉप में कौन-सी किताबें हैं यह सिर्फ आप ही जानते हैं, इसलिए उसके अंदर किसी भी तरह की पुस्तक रखने में शर्म या झिझक नहीं होती. बहरहाल, कहा जा रहा है अंग्रेजी पुस्तक व्यवसाय की उत्तरजीविता के लिए एक नया मुहावरा मिल गया है.
एक जमाना था जब ‘इरोटिक’ किताबों को अश्लीलता के खाते में डाल दिया जाता था. उनको छुप-छुप कर पढ़ा जाता था. अनेक देशों में इसी आधार पर उनको प्रतिबंधित भी कर दिया जाता था. उदहारण के तौर पर डी.एच. लॉरेंस के उपन्यासों, हेनरी मिलर के उपन्यासों ‘ट्रोपिक ऑफ कैंसर’ या ‘ट्रोपिक ऑफ कैप्रिकॉर्न’ आदि की चर्चा की जा सकती है जिनको ‘इरोटिक’ होने के कारण अनेक देशों में प्रतिबंधित किया गया. अमेरिकी लेखिका एनीस नीन याद आती है, जो इस तरह का साहित्य लिखने के कारण ‘बोल्ड’ लेखिका मानी गई. जिनको पढ़ना तो क्या उनकी किताबों को खुलेआम लेकर घूमना भी अपने आपमें ‘बोल्डनेस’ का प्रतीक समझा जाता था. इरोटिक लिखना, इरोटिक पढ़ना अपने आप में परंपरा से विद्रोह का पर्याय था. आज हर कोई ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ की प्रतियाँ लेकर चल रहा है, उसकी चर्चा कर रहा है. ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ के बाद इरोटिक साहित्य की अपनी एक परंपरा बन गई है. यह केवल संयोग नहीं है कि किशोर जीवन की आहों-सिसकियों भरी प्रेम कथा श्रृंखला ‘मिल्स एंड बून’ भी उद्दाम प्रेम के खुले वर्णनों की नई श्रृंखला के साथ सामने आ रही है.
‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ मूलतः एक प्रेम-कहानी है. केवल बाजार और बिक्री के लिहाज से ही नहीं बल्कि कई मायनों में यह उपन्यास युगान्तकारी कहा जा सकता है. इसे लिखने वाली एक स्त्री है. पहले जब भी किसी स्त्री ने अपने साहित्य में सेक्स के उन्मुक्त वर्णन किए उसे अश्लील करार दिया गया, यहां तक कि अश्लीलता के आरोप में उनके ऊपर मुक़दमे भी चलाये गए. दूर क्यों जाएँ अपने उप-महाद्वीप की समकालीन लेखिका तस्लीमा नसरीन के लेखन पर सबसे बड़ा आरोप ही अश्लीलता का लगाया जाता रहा है और इसके कारण उनको निम्न-कोटि की लेखिका मानने वालों की भी कमी नहीं है. लेकिन इ.एल. जेम्स के उपन्यास को जिस तरह से विश्वव्यापी स्वीकृति मिली है, जिस तरह से उसकी बिक्री हुई है उससे लगता है कि महिलाओं को लेकर, खास तरह से उनके इस तरह के लेखन को लेकर समाज समाज का नजरिया बदल रहा है. प्रेम छिप-छिपकर मिलने का नाम नहीं रह गया है. उसकी खुलेआम अभिव्यक्ति को गलत नहीं माना जाता.
वास्तव में, यह उस दौर को परिभाषित करने वाला उपन्यास साबित हो रहा है, जिसमें स्त्रियों की आत्मनिर्भरता बढ़ी है, उनके अपने नजरिये को प्रमुखता मिली है. समाज में उनकी भूमिका मुखर हो रही है. यह उपन्यास एक तरह से जैसे इस दौर में प्रेम का घोषणापत्र लिखता प्रतीत होता है, जिसमें आकर्षण, समर्पण, सेक्स, अधिकार जैसे प्रेम के सभी भाव अपने चरम पर हैं, लेकिन इन सबके बीच स्त्री का अपना व्यक्तित्व भी है जिसको वह हर हाल में बनाये रखना चाहती है, जिसको वह अपने प्रेम में विलीन नहीं होने देती. सब कुछ एक स्त्री के नजरिये से है. इसीलिए इसे स्त्रियों के लिए लिखा गया ‘इरोटिक’ उपन्यास कहा जा रहा है. लेकिन अधेड़ उम्र की महिलाओं के लिए यह उपन्यास किस तरह से है यह बात मुझे समझ में नहीं आई. क्योंकि इसके नायक-नायिका युवा हैं. बहरहाल, शायद इसलिए कि लेखिका इ.एल.जेम्स अधेड़ हैं.
कई और अर्थों में ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ को एक परिघटना के तौर पर देखा जा रहा है, एक ऐसी परिघटना के तौर पर जिसमें भविष्य के लेखन के संकेत छिपे हुए हैं. इस उपन्यास के अंश पहले एक वेबसाईट पर छपे और मुख्यतः सोशल मीडिया के माध्यम से ही इस किताब की चर्चा चली. मई में जब अमेरिका में इस उपन्यास का संस्करण छपा तो हफ्ते भर के अंदर ही पुस्तक की एक करोड़ प्रतियाँ बिक गई जबकि न इसका कोई खास प्रचार-प्रसार किया गया था न ही इस उपन्यास की कोई समीक्षा छपी थी. सोशल मीडिया के माध्यम से मुंहजबानी प्रचार से भी किसी पुस्तक की बिक्री इतनी अधिक हो सकती है ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ इसको साबित कर दिया है. कभी इसे अंग्रेजी के कुछ क्लासिक्स से जोड़ कर देखा गया तो कभी ब्राजील के प्रसिद्ध लेखक पॉल कोएलो के उपन्यास ‘इलेवेन मिनट्स’ से इसको जोड़कर देखा गया. खुद पॉल कोएलो ने इस तरह के संकेत दिए कि २००३ में उन्होंने प्रेम और सेक्स के दर्शन को लेकर ‘इलेवेन मिनट्स’ नामक जो उपन्यास लिखा था असल में इरोटिक उपन्यासों की नई परंपरा की शुरुआत को वहीं से देखा जाना चाहिए.
इस सिलसिले में एक प्रकाशक ने एक नया प्रयोग शुरु करने की घोषणा की है, जिसके तहत पुराने क्लासिकी उपन्यासों में कामुकता के नजरिये से कुछ अंश जोड़ कर फिर से छापा जायेगा. जाहिर है, ऐसे ही उपन्यास चुने जायेंगे जिनके कॉपीराइट खत्म हो चुके हैं. पुराने लेखन से ऐसी छेड़छाड़ कुछ को नागवार लग सकती है, लेकिन यह साहित्य बेचने का एक नया शगूफा तो है ही.
बहरहाल, बहसें जो भी हों, इतना तो है ही कि इ.एल.जेम्स ने मनोरंजन माध्यमों के बढते वर्चस्व के इस दौर में, टैब, ई-बुक इंटरनेट के इस दौर में इस बात को मजबूती से स्थापित किया है कि तमाम आसन्न खतरों के बावजूद मुद्रित पुस्तकों का आकर्षण बरकरार है और नई तकनीकी ने उसका विस्तार ही किया है. ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे’ उपन्यास की सफलता में इस बात के सुखद संकेत भी छिपे हुए हैं. दो पंक्तियों के बीच उनको भी पढ़े जाने की आवश्यकता है. कहा जा रहा है कि आधुनिक जमाने में सचमुच सेक्स के लिए बहुत कम जगह बची है और उसकी जगह ‘वर्चुअल सेक्स’ ने ले ली है. शायद यह नया चलन हमारे बदहाल जमाने की इस सच्चाई का भी एक आईना है.
प्रभात रंजन का यह लेख आज ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित हुआ है.
5 Comments
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for sharing!
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