‘लमही सम्मान’ के सम्बन्ध में सम्मान के संयोजक और ‘लमही’ पत्रिका के संपादक विजय राय द्वारा यह कहे जाने पर कि 2012 के सम्मान के निर्णय में निर्णायक मंडल से चूक हुई, सम्मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपना सम्मान वापस कर दिया. अब उस सम्मान के संबंध में महेश भारद्वाज, प्रबंध निदेशक, सामयिक प्रकाशन ने एक खुला पत्र लिखा है. श्री भारद्वाज इस सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे. प्रस्तुत है वह पत्र- जानकी पुल.
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श्री विजय राय के नाम खुला पत्र
आदरणीय विजय राय जी,
नमस्कार. लमही सम्मान 2012 के विषय में आपके कहे कथन कि ‘निर्णायक मंडल से हुई चूक’ के संबंध में इस पत्र के द्वारा मैं अपनी कुछ जिज्ञासाएं और उत्तर आपसे जानना चाहता हूँ.
1.जहाँ तक मुझे याद है वर्ष 2011 का लमही सम्मान जो श्री शिवमूर्ति को प्रदान किया गया था, आपके अनुरोध पर मैं उस सम्मलेन में शामिल होने के लिए 8 अक्टूबर 2012 को लखनऊ पहुंचा था. उस दिन कार्यक्रम समापन के बाद आपने मुझसे कहा था कि ‘महेश जी, अगले वर्ष के लमही सम्मान के संबंध में आपसे कुछ चर्चा करना चाहता हूँ.’ तब आप स्वयं और सुशील सिद्धार्थ होटल चरण, लखनऊ में रात्रि भोज पर मुझसे मिले थे. उसी दौरान आपने अगले वर्ष के लमही सम्मान के निर्णायक मंडल पर चर्चा करते हुए मुझे और श्री आलोक मेहता जी को उसमें शामिल होने का अनुरोध किया था.
2.निर्णायक मंडल के गठन का फैसला पूर्ण रूप से आपका था क्योंकि आप जानते ही हैं कि मेरी और आपकी पहली मुलाकात 8 अक्टूबर 2012 को लमही सम्मान समारोह लखनऊ में हुई थी.
3.निर्णायक मंडल के गठन के बाद लमही सम्मान 2012 की चयन प्रक्रिया आरम्भ हुई. इसकी सूचनाएँ प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाएं यथा हंस और कथादेश में प्रकाशित हुई जिसमें देश भर से चयन हेतु अनुशंसा, पत्र, ईमेल आपके पते, फोन और आपके ही ईमेल पर मंगवाई गई थी. अंतिम तिथि 25 दिसंबर 2012 के बाद चयन प्रक्रिया आरम्भ हुई.
4.सम्मान हेतु अनुशंसा, पत्र, ईमेल जो कि आपके पास ही आये थे, में से मनीषा कुलश्रेष्ठ का चयन पूरे निर्णायक मंडल द्वारा सर्वसम्मति से किया गया. निर्णायक मंडल में आप स्वयं भी शामिल थे.
5.इस बीच कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ पर केन्द्रित लमही पत्रिका का जनवरी-मार्च 2013 का अंक आपके संपादन में ही प्रकाशित हुआ.
राय साहब, पत्रिका का अंक किस कथाकार पर प्रकाशित किया जाए इसका फैसला पूरी तरह से आपका ही था क्योंकि पत्रिका के प्रकाशन से लमही सम्मान के निर्णायक मंडल का कोई वास्ता नहीं था. मनीषा कुलश्रेष्ठ पर केन्द्रित अंक से यह और भी स्पष्ट होता है कि लमही पत्रिका के संपादक मनीषा कुलश्रेष्ठ के लेखन से स्वयं भी गहरे प्रभावित थे.
6.इस बीच लमही सम्मान 2012 के सम्बन्ध में आपने स्वयं मनीषा कुलश्रेष्ठ को बधाई दी और उनसे स्वयं सहमति ली.
7.30 जनवरी 2013 को इस सम्मान की विशिवत घोषणा और प्रेस रिलीज आपके द्वारा ही जारी की गई जो देश के सभी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई. इसी दौरान नई दिल्ली प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में मनीषा कुलश्रेष्ठ पर केन्द्रित लमही पत्रिका के विशेषांक के लोकार्पण हेतु आप स्वयं लखनऊ से दिल्ली आये थे.
8.आपकी इच्छा अनुसार सम्मान समारोह का आयोजन लखनऊ के बजाय दिल्ली में किया गया. इस कार्यक्रम हेतु भी आप स्वयं लखनऊ से दिल्ली आये थे.
राय साहब उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि इस सम्मान हेतु पूरी प्रक्रिया में लगभग 1 वर्ष का समय लगा. इसके बाद अचानक ही आपको अंतर्ज्ञान हुआ कि लमही सम्मान 2012 निर्णायक मंडल की चूक है, जिसकी पूरी चयन प्रक्रिया में आप पूरी तरह शामिल थे.
मैं उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि दबाव आप पर तब नहीं, अब आया है. नहीं तो एक वर्ष तक जारी इस चयन प्रक्रिया और सम्मान समारोह संपन्न होने के 2 माह बाद आपको यह अंतर्ज्ञान कहाँ से हुआ, मेरी समझ से परे है.
इस विषय में यह फिर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मनीषा कुलश्रेष्ठ का चयन निर्णायक मंडल ने सर्वसम्मति से किया जिसमें आप स्वयं शामिल थे.
सादर
महेश भारद्वाज
सदस्य, लमही सम्मान चयन समिति 2012
13 Comments
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Faisla karne ki zaroorat nahin hai,tamashai bane rahiye aur dekhte jaiye shatranji chalein
Faisla karne ki zaroorat nahin hai,tamashai bane rahiye aur dekhte jaiye shatranji chalein
इस तमाशा गाहे आलम में जमाल
फैसला कीजे तमाशा कौन है ….
क्या माजरा है -ये लेखिकाओं के सम्मानदि पर ही ज्यादातर विवाद क्यों हो जाते हैं ! कोई साहित्येतर ग्रंथियां तो नहीं उभर आतीं ?
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