आज प्रस्तुत है ज्योति रीता की कुछ नयी कविताएँ। इन कविताओं के केंद्र में प्रेम, स्त्री, प्रकृति और युद्ध मुख्यतः शामिल हैं जो निश्चित ही हमें संवेदनशील होने के प्रति और अधिक प्रेरित करती है – अनुरंजनी
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1. आलोक धन्वा के लिए
कवि प्रेम करना जानता है
कवि दुलारना जानता है
कवि की भाषा तरल होती है
कवि अंदर तक भावनाओं से भीगा होता है
कवि को नफरत की भाषा नहीं आती
नहीं आती उसे राजनीति की भाषा
वह तोलता है आँखों का पानी
हथेली का स्पर्श
और छूट गया संवाद
कवि चाहता है
कि उसे प्रेम किया जाए
उसके अंतिम समय तक।
2. घात लगाए बैठा कुत्ता
जीने के लिए समय कम पड़ता जा रहा था
जीने की क्षुधा लगातार बढ़ती जा रही थी
हम चक्रघिन्नी बने कई-कई सुर ताल पर नाच रहे थे लेकिन तय बिंदु से बहुत पीछे थे
घात लगाए बैठा कुत्ता रास्ते के तीसरे मोड़ पर बैठा था
वह किसी भी वक्त नोंच सकता था मांस
उसके मुंह में खून लगा था
गंगा नदी के किनारे बैठे घटवार की दक्षिणा से मैंने पूरी की अपनी भूख
बीच गंगा में उसने कहा- क्या तुम्हें तैरना आता है?
चारागाह में रात छिपने की जगह मिली थी
वहां से छूटने के ऐन वक्त पर घोड़े ने मेरे होने की सूचना दी, घोड़ा हिनहिनाया था
मृगछौना की तरह रिरिया कर कहा- जंजीर से मत बांधों देह
वह जोर-जोर से बाँसुरी बजाने लगा
कल्लोल करता हृदय बार-बार मृत्यु चाहता है
मृत्यु जल तरंग पर क्रीड़ा करती है
कामना का फूल भी अब मुक्ति चाहता है
कामना में मांग लिया गया था जीवन भर का साथ
बीत रहा समय चाहता है
उसके पास भी एक पहिया हो
काल का मुंह हलाहल भरा है
और तुम करना चाहते हो समय की व्याख्या
होठों पर रक्त के निशान हैं
ये निशान एक लंबी कहानी कहती है।
3. यहां मनुष्यता गौण है
हर एक के हाथ में धर्म का झंडा है
हर एक अपने झंडे को ऊँचा रखना चाहता है
हर एक के हाथ में पत्थर है
एक धर्म दूसरे धर्म के सिर पर पत्थर मारता है
कोई चीखता है जय श्री राम
कोई चीखता है अल्लाह हू अकबर
मनुष्यता गौण है
तथाकथित भगवान-खुदा घायल है।
4. मेरे बच्चे!
मेरे बच्चे!
जब तुम दुनिया की पाठशाला में जाना
तुम अपनी नज़रों पर नज़र रखना
कभी गुमराह भीड़ का हिस्सा मत बनना
सारे धार्मिक झंडों को कोसी में बहा देना
ललाट पर माटी से तिलक करना
पेड़-पौधे से प्रेम सीखना
चिड़ियों से चहचहाना
गिलहरी से चपलता सीखना
प्रेमिका की हथेली हाथ में रखकर उसके माथे को चूमना
प्रेम को मौन की भाषा से साधना
मेरे बच्चे!
जब देश की बात आए
किसी भी रंग के झंडे को थामने से पहले
भगत सिंह और राजगुरु याद रहे
कबीर और रहीम याद रहे
देश और वहाँ के अरबों लोग याद रहे
गंगा-जमुनी तहजीब याद रहे
मेरे बच्चे!
जब आन पर बात आए
वहां चुप्पी मत साधना
मुखर होकर कहना
हम किसी जाति-धर्म-संप्रदाय से पहले मनुष्य हैं।
5. बुरांश के फूल
०१
एक दिन
तुम पहाड़ पर जाते हुए
बुरांश के फूल देखते हो
तुम्हें मेरी ऑंखें याद आती हैं
प्रेम से भरी मेरी ऑंखें
तुम बुरांश की कुछ तस्वीरें उतारते हो
कुछ फूल सहेज लेते हो
प्रेम में सहेज लेना सबसे सुंदर क्रिया है।।
०२
तुम्हें पहाड़ पसंद था
हर बार पहाड़ के लिए सोचना तुम्हें आनंदित करता था
तुम्हारे पास पहाड़ के कई जीवंत किस्से कहानियां थे
तुम जीवन के कुछ सुकून-वर्ष पहाड़ पर बिताना चाहते थे
तुम्हें पहाड़ों के साथ घुलमिल जाना आता था
पहाड़ों की बातें तुम महसूस करते थे
माउंट एवरेस्ट सबसे ऊंचा पर्वत है
कहते हुए तुम्हारी आंखें भीग गई थीं
तुम जाना चाहते थे उसके अंतिम शिखर तक
तुम अपनी हथेलियों से छू लेना चाहते थे पहाड़ का माथा
तुम्हें सबसे ज़्यादा तृप्त मैंने पहाड़ों पर पाया
तुमने कहा- तुम्हारा असल घर पहाड़ है
जीवन से जब भी ऊब हुई
तुम पहाड़ की ओर चले गए
तुम्हारे अंदर की खुशी पहाड़ों के रास्ते होकर गुज़रती थी
तुमने पहाड़ के सीने पर खड़े होकर स्वयं को पहाड़ कहा
तुमने सबसे सुंदर तस्वीरें पहाड़ों की ही खींची
पहाड़ी रास्तों से गुज़रते हुए तुम कई फूलों की तस्वीरें सहेजते रहे
तुमने पहाड़ पर स्वयं को फूल कहा
तुम पहाड़ पर फूल की तरह खिल कर बिखर जाना चाहते थे
तुम जानते थे
हर फूल पर मैं लिखूंगी एक प्रेम कविता
तुमने कहा था- पहाड़ तुम्हारा पहला प्रेम है
उसके बाद ही किसी और से तुमने प्रेम किया
दिल टूटने की कहानी भी तुमने पहाड़ की छाती पर बो दी
तुम्हे स्थिरता का ज्ञान पहाड़ों से मिला
तुमने अपने जीवन को कहा पहाड़
और पहाड़ को सीने में रख यात्राएं कीं
तुमने बुरांश के फूल भेजते हुए कहा- यह तुम्हारे लिए पहाड़ी तोहफ़ा है
फूल को देखते हुए मेरे अंदर थोड़ा पहाड़ जगा था
अब-जब मैं लिख रही हूँ कविता
पहाड़ पर यात्राएं करते हुए तुम कई गद्य-पद्य साथ-साथ लिख रहे हो।
6. हँसती हुई स्त्रियाँ
हँसती हुई स्त्रियाँ कितनी खूबसूरत लगती हैं
परंतु स्त्री को हँसने से हमेशा रोका गया
एक दिन स्त्री हँसती हुई रसोई से बाहर आ गई
बैठकखाने के बीचो-बीच हाथ मार कर हँसते हुए बोली- तुम्हारी सत्ता हमारे हँसने से भी हिलती है क्या
वह हँसी पुरुषसत्ता पर ज़ोरदार तमाचा था
वह पुरुष अलग थे
जिन्होंने हँसती स्त्री के साथ हँसने का वक्त निकाला
उनकी हँसी देखकर निहाल हुए
बांहों में भर कर उन्होंने कहा- मेरी जान! ऐसे ही हँसती रहा करो
तुम हँसते हुए बेहद ख़ूबसूरत लगती हो।
7. स्त्री का होना जरूरी है
स्त्रियां दूब घास की तरह उग आईं थीं
तुम्हारे नक्कारखाने के बाहर
उसका वंश जाति धर्म सब अलग था
वह स्त्री थी
तुमने स्त्री को याद किया
चाय पानी स्वाद और बिस्तर के लिए
स्त्री मांस मज्जा के साथ उपस्थित रही
तुमने आदेश पर आदेश दिए
वह नाचती रही
कई-कई धुनों तालों पर वह लगातार नाचती रही
तुमने भुने चने को चटकारे लेकर चबाते हुए कहा-
स्त्री का होना जरूरी है
सांसों का उठना गिरना उन्हीं की वज़ह से है
दृश्य के सारे सुख स्त्री से है
जीवन की लालसा में स्त्री है
परंतु
तुमने स्त्री के सुखों पर वार्ता कभी नहीं की
8. यह फूलों के खिलने का वक्त है
स्त्री का जिह्वा काटकर
तुम उसे बिस्तर तक खींचते रहते
अर्ध ज़िंदा मछरियों में ढूंढते रहे स्वाद
नदी की ताजी मछरियों का
जड़ों में पानी दिए बिना
ढूंढते रहे फुनगी पर फूल और हरे पत्ते
फ़ारसी लिपि में उकेरते रहे सबसे ज़रूरी काम
प्रेम की भाषा सहज कभी नहीं थी
आरंभ से पहले अंत पर तुमने निर्णय सुनाया
सुनिश्चित किया सारे अंज़ाम
आह में निकले अश्रु की इजाज़त तुमने कभी नहीं दी,
संधि काल में भी तुमने खड़ी कर दी लंबी-चौड़ी दीवार
नग्नता के क्षणों में भी काबू में लिया आधा अधिकार
आत्मा के कागज़ पर काले कलम से लिखा दिया
क़िस्सा- ए- खोट
खोट का पता ढूंढती फिरती रही ज़ियारत-दर-ज़ियारत
नाचता हुआ खरगोश कहता है
कई-कई रंगों के फूल खिलेंगे
यह फूलों के खिलने का वक्त है
महक उठेगा वन
वनों के सारे शेर तीर्थाटन पर चले जाएंगे
तीर्थाटन से लौटने पर शेरों के दांत घिसे होंगे
दहाड़ेगा परंतु काटना भूल जाएगा।
9. रौनकें
एक गहरी श्वास भरने के बाद
मैं तुम्हारा नाम लेती हूँ
जैसे सिगरेट कश भरने के बाद
सीने में दफ़न होता है धुऑं
तुम उतर रहे हो हृदय के उदास कोने में
घर में इन दिनों रौनकें हैं।
10. प्रेम में ठगी गई स्त्री
प्रेम में ठगी गई स्त्री एकांत प्रिय हो जाती है
मौन की भाषा ज्यादा सहज लगती है
बोलने से ज्यादा चुप की भाषा में गहरे उतरती है
हथेली पर लिए चलती है कोई चित्र
अर्ध रात्रि में खिड़की के समीप लंबी गहरी श्वास भरकर शून्य में घंटों निहारती है
उसे दिखता है कोई पद-चिन्ह
ईशान कोण में जला आती है एक दीया
एकटक देखते हुए
दिख जाता है उसे वह चेहरा
जो दुनियावी माया से विलग है
भरे कंठ से लेती है नाम
गहरे कुएँ में छुपा आती है उसके सारे निशान
हर बार चुन लेती है कठोर रास्ता
सूझ से परे जो सराय है
तेज प्यास में ईश्वर की प्रशंसा हो भी तो कैसे
समाप्ति पर पहुंचने से पहले हथेली का स्पर्श हो
वह जो देश की राजधानी में गुम है कहीं
जो रात के तीसरे पहर में देता है पीठ पर चुंबन
तुम्हारे छाती के ठौर से ज्यादा माकूल कोई ज़गह नहीं
जहाँ गाँठ दिया था अपना सारा अहम्
काठ से तरलता का आवेग
जीया जाता रहा उस पल
जवा-कुसुम की गंध से भर गया था
वह छोटा कमरा
इस अस्वीकृत रिश्ते में तुम मजबूत पात्र हो
याकि प्रलय की रात में बढ़ता हुआ कोई हाथ
तुममें जो ठहराव है
वह किसी तालाब के पानी को भी हासिल नहीं
कितना कुछ बचा रह गया है
तुम्हारे चले जाने के बाद भी
चाय के कप पर तुम्हारे उंगलियों के निशान
सिगरेट का बट भी तुम्हारे होठों के स्पर्श की कहानी कहता है
जीवन सहेज सकूँ इतना काफी है
तअल्लुक़ेदार कहते हैं
तुम्हें चाय सिगरेट के अलावा कविताओं का शौक है
इन दिनों कविताओं में तुम सांस ले रहे हो।
11. दो स्त्रियों के बीच का प्रेम
दो स्त्रियाँ जब आपसी प्रेम में उतरती हैं
धरती कई रंगों के फूलों से पट जाती है
और आसमान खुशबुओं से भर जाता है
हमारा प्रेम दुःखों के तंतुओं पर मरहम का लेप है
जहां तितलियां बैठकर प्रेम गीत गाया करती हैं
गिलहरी अख़रोट खाती है
और खरगोश घास चुभलाता है
हमने प्रेम में जाना कि एक स्त्री और एक पुरुष का होना ज़रूरी है
हमें किसी ने नहीं बताया- स्त्री और स्त्री के बीच का प्रेम-रहस्य
जब दो स्त्रियों के ऑंखों के बीच का खारा पानी एकसार होता है
कई-कई यातनाएं एक साथ विलुप्त हो जाती हैं
चाय पहले से ज़्यादा काली और आबिदा पहले से ज़्यादा सुरीली हो जाती है
निज़ार कब्बानी को पढ़ने का सुख पहले से ज़्यादा आता है
जब दो स्त्रियां एक दूसरे की पीठ थपथपाती हैं
बे- मौसम बसंत उतर आता है
एक साथ कई मिमोसा फूल खिल उठते हैं
वे सभी स्त्रियाँ
जिन्होंने एक दूसरे से प्रेम करना सीखा
ज़्यादा ऊंची छलांग लगा पाईं
इन स्त्रियों का प्रेम उनकी ऑंखों से छलकता है
इन स्त्रियों के प्रेम की अपनी भाषा होती है
वे किसी भी कीच से एक-दूसरे को खींच सकती हैं
ये कलाकार स्त्रियाँ
अपने कौशल से कर सकती हैं मुकम्मल हर कला
हमें चाहिए कई महसा अमीनी जैसी स्त्रियाँ
और क्लारा ज़ेटकिन
यह मार्च का महीना स्त्रियों की तारीख़ का महीना है।
12. हम गाज़ा के बच्चे बोल रहे हैं
०१
हम गाज़ा के बच्चे बोल रहे हैं
हमें बंदूक और गोलियों की आवाज़ें लोरी सी सुनाई पड़ती है
हमें बम और बारूद मिट्टी सा खेल लगता है
हम अपनों से बिछुड़ने का एक हसीन खेल, खेल रहे हैं
हमें भूखे रहने की आदत हो चुकी है
हम भूखे रहकर रोज़ अल्लाह को याद कर रहे हैं
उनके घर को देखने की इच्छा ज़ोर पकड़ती जा रही है
अब्बू जो कह कर गए थे, रोटी लेकर लौटेंगे
दो सप्ताह बाद तक नहीं लौट पाए हैं
जिस जगह पर कहा गया- खाद्य सामग्री बांटी जाएगी, वहां पर गोली चला दी गई
मैं और मेरी बहन एक-एक गोली खाकर चुपचाप लेटे है
एक बचाव कर्मी कह रहा है- यूक्रेन पर फिर मिसाइल हमला हुआ है
75 लोग मारे गए हैं, 104 घायल हैं
यह हमला, उस समय किया गया जब बचाव अभियान चल रहा था
इजरायली सैनिक को एक 22 वर्षीय युवक ने धारदार हथियार से मार दिया है
सुरक्षाकर्मियों ने उस हमलावर को गोलियों से भून दिया है
इजराइल-हमास की युद्ध विराम वार्ता टूट चुकी है
बहन धीरे से भाई के कान में कहती है – इस ईद उल-फ़ित्र पर कौन सा कपड़ा पहनोगे
अम्मी दूध से मीठी गाढ़ी सेवईयां बनाएंगी
अब्बू लौट आएंगे तो हम मेले जाएंगे
दादी जान हम सबके हाथों में कुछ पैसे रखेंगी
बहन धीरे-धीरे चुप हो रही है
उसके नाक और मुंह से लगातार खून की नदी बह रही है
सुरक्षा कर्मी इस भीड़ में हमारे पास तक नहीं पहुंच पा रहे हैं
उनके आने तक बहन ठंडी पड़ जाएगी
मैं बहन को जगाने की भरपूर कोशिश कर रहा हूँ
अब वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है
अब्बू की बहुत याद आ रही है
वह होते तो हमें बांहों में भरकर अस्पताल ले जाते
हम दोनों में से कोई एक ज़रूर बच जाता
सुरक्षा कर्मी धीरे-धीरे पास आ रहे हैं
मेरी शक्ति धीरे-धीरे ख़त्म हो रही है
मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूँ
सुनने की क्षमता भी लगभग समाप्त हो चुकी है
अब्बू कहते थे – मरने के बाद सभी अल्लाह के घर जाते हैं
एक-एक कर हमारे सभी रिश्तेदार वहीं हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे
इस बार हम ईद की नमाज़ अल्लाह के घर पढ़ेंगे
इस बार हम मीठी सेवइयां भी अल्लाह के घर खाएंगे
आमीन!
०२
हम गाज़ा के बच्चे बोल रहे हैं
चारों तरफ ईद मनाई जा रही है
लोग बधाइयां दे रहे हैं
लोग मुबारक दिन बता रहे हैं
खुशियों का माहौल है
हम अपने घर के मलबों पर बैठकर अब्बा-अम्मी की हड्डियां चुन रहे हैं
अभी तक किसी ने ईदी भी नहीं दी
न ही सेवाइयों की गंध का पता है
घर की रसोई कहां थी
इसका निशान तक नहीं बचा है
अब्बा का जूता जो पैर समेट मिला है
उसके करीब बैठी हूँ
अम्मी के चूड़ियों का टुकड़ा आस-पास बिखरा हुआ है
मेरा भाई जो अम्मी से चिपक कर ही सोता था
वह कहीं भी नहीं दिख रहा है
यह बहुत ही डरावना दृश्य है
कुछ भी साबूत नहीं बचा है
यह भी नहीं जानती कि मैं कब तक जीवित रहूंगी
आज ईद है
पहली बार ईद पर हम किसी के गले नहीं मिले।
13. ज़िंदगी के ककहरे में उलझी लड़की
ज़िंदगी के ककहरे में हमेशा उलझी रही
जिंदगी का पहाड़ा और भी बोझिल था
अंकगणित के हिसाब ने बेतरह उलझाया
सूत्र याद नहीं रख पाई
फॉर्मूलों पर चलना नागवार गुज़रा
कक्षा सातवीं में पढ़ाया गया हृदय कैसे कार्य करता है?
स्कूल के बाद माँ समझाने लगी थी
पुरुषों के दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से होकर जाता है
खाना बनाना सीख लो
कॉपी के पिछले पेज पर हृदय की तस्वीर बनाकर नुकीले तीर से चीरते हुए उसे इरादतन कठोर बनाती रही
परंतु
साहित्य को पढ़ते हुए हृदय से नाजुक बनी रही
रसखान, मीरा, जायसी को पढ़ते हुए सूफ़ियाना हुई
विज्ञान की मैडम ने पढ़ाया था रोटी चबाने के बाद मीठा स्वाद छोड़ती है मुँह में
रोटी का मीठापन बचाते हुए ज़िंदगी का पानी खारा होता गया
इतिहास की तारीख़ का पन्ना पलट नहीं पाई
इतिहास की कक्षा में हमेशा सोई रही
कब बाबर आए, कब अकबर गए
कब पानीपत की लड़ाई हुई
मुग़लों ने कब और कहाँ साम्राज्य स्थापित किए
भूल चुकी हूँ
गांधी के बिहार आगमन पर मैं जाग गई थी
गांधी की चंपारण यात्रा बेशक याद है मुझे
राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर और भगत सिंह की
ब्लैक एंड वाइट तस्वीर किताबों में रखती हूँ
वह अंतिम गोली
अल्फ्रेड पार्क
जनसैलाब
सब याद है मुझे
जाते हुए कलम की निब का एक टुकड़ा मेरी हथेली पर छोड़ते हुए चंद्रशेखर ने कहा –
अगर तुम्हारे लहू में रोष नहीं है तो वह पानी है
उसी निब से अब मैं कविताएँ लिखती हूँ।
14. लापरवाह प्रेमी के लिए
यह उदास मौसम है
इन दिनों उदासी से भरा रहा मन
कहते हैं बसंत में पेड़ पौधों की टहनियां नई पत्तियों से भर जाती है
यहां मन का कोना अवसाद से भरा रहा
स्मृति के पटल पर तुम गोदने की तरह उकर आए हो
मैं तुम्हें सहेजती हूँ
उदास मन से सफ़ेद फूल भेजती हूँ
फूलों के पत्तों पर लिख भेजती प्रेम-पंक्तियाँ
तुम फूल देखते रहे, पत्तियों तक जाना कभी मुनासिब नहीं समझा
कितने लापरवाह थे तुम
बिल्कुल साधारण प्रेमी की तरह
तुम्हारे प्रेम का मूल्यांकन करूं भी तो कैसे
संगीत और काव्य तुम्हारे मन को कभी नहीं भाया
किताबों को छूने की कोशिश तुमने कभी नहीं की
सुंदर थीं मेरी कविताएं
कभी तुम पढ़ पाते तो जान पाते- प्रेम की भाषा!
कवि की अवहेलना उसी वक्त होती है
जब उनकी कविताओं को पढ़ा-सुना न जाए
मेरा हृदय शिशु की तरह कोमल है
तुमने तत्परता से मुझे स्त्री कहा- और मेरे होने को नकार दिया
तुमने एक पल में मेरी सौम्यता मुझसे छीन ली
यूरोप के मध्यकालीन चारण गायकों ने प्रेम की जो रूमानी विरह-परंपरा चलाई थी
वह जागृत हुई
अब फूलों से कोई मोह नहीं रहा
अब फूलों की पत्तियों पर नहीं लिखी जा रही हैं प्रेम- पंक्तियाँ
फूल उदास है
वह बसंत में भी झड़ जाना चाहता है
कदाचित यह विचार सुंदर नहीं है
परंतु कुम्हलाया प्रेम और बासी सुगंध कब किसी को तृप्त करता है।
15. अब लौट जाना चाहती हूँ
दुनिया देखने की चाह नहीं रही
तुमने हवा, पानी, जंगल—सब पर कब्ज़ा कर लिया
कौन-सी धरती मेरी है
यह बताने वाला अब कोई नही
अब फेफड़ों में ज़हर का गुबार है
आँखों को दुनिया सुंदर नहीं दिखती
हथेली पहले-सी मुलायम नहीं रही
रीढ़विहीन भीड़ के बीच रहकर
पेडू के दर्द से मामलात गंभीर हुआ जाता है
हाथ बढ़ाकर भी, हाथ नहीं आता कोई सुख
शांति की चाह में जंगल भागता हुआ आदमी
फिर लौट आता है शहर—
शहर, जो सदियों से भूखा है
वह एक झटके में निगल जाता है
माई-बाप करता हुआ आदमी चौराहे पर तोड़ देता है दम
बंजर खेत में
निराशा से
ठूंठ पेड़ पर झूलती गयासुद्दीन की लाश पर नहीं होता कोई विचार
इमरजेंसी वार्ड के नज़दीक पहुँचकर नहीं चाहती मुझे मिले कोई वरीयता
न कोई सफ़ेद चादर का बिस्तर
न कोई खूबसूरत नर्स
और न ही रंग-बिरंगी गोलियाँ
मुझे शहर के बीचों-बीच सलीब पर लटका दो
याकि छोड़ आओ जंगल के बीचों-बीच
इस उमस में,
मुल्क को ज़रूरत है
गीत गाती हुई एक चिड़िया
16. युद्ध और शांति
कितना आसान है
युद्ध छेड़ देना
कितना मुश्किल है
छिड़े युद्ध को रोककर मनुष्यता बचा लेना
हर युद्ध के बाद अंतत: मनुष्यता हारती है।
परिचय–
नाम- ज्योति रीता
जन्म- 24 जनवरी (बिहार)
शिक्षा- हिंदी साहित्य में परास्नातक, बी.एड., एम.एड.।
प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार कविताओं का प्रकाशन।
प्रकाशित पुस्तक – “मैं थिगली में लिपटी थेर हूँ” (कविता संग्रह) 2022 में प्रकाशित। अतिरिक्त दरवाज़ा (कविता संग्रह) 2025 में प्रकाशित।
सम्प्रति – शिक्षा विभाग (बिहार सरकार)।
ई-मेल : jyotimam2012@gmail.com