आज मशहूर शायर शहरयार को अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जा रहा है. आइये उनकी कुछ ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाते हैं. वैसे यह बात समझ नहीं आई कि अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों?- जानकी पुल.
1.
कहीं ज़रा सा अँधेरा भी कल की रात न था
गवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था।
गवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था।
सब अपने तौर से जीने के मुतमईन थे यहाँ
पता किसी को मगर रम्ज़े-काएनात न था
कहाँ से कितनी उड़े और कहाँ पे कितनी जमे
बदन की रेत को अंदाज़ा-ए-हयात न था
मेरा वजूद मुनव्वर है आज भी उस से
वो तेरे कुर्ब का लम्हा जिसे सबात न था
मुझे तो फिर भी मुक़द्दर पे रश्क आता है
मेरी तबाही में हरचंद तेरा हाथ न था
2.
किया इरादा तुझे बारहा भुलाने का
मिला न उज़्र ही कोई मगर ठिकाने का
मिला न उज़्र ही कोई मगर ठिकाने का
ये कैसी अजनबी दस्तक थी कैसी आहट थी
तेरे सिवा था किसे हक़ मुझे जगाने का
तेरे सिवा था किसे हक़ मुझे जगाने का
ये आँख है कि नहीं देखा कुछ सिवा तेरे
ये दिल अजब है कि ग़म है इसे ज़माने का
ये दिल अजब है कि ग़म है इसे ज़माने का
वो देख लो वो समंदर भी ख़ुश्क होने लगा
जिसे था दावा मेरी प्यास को बुझाने का
जिसे था दावा मेरी प्यास को बुझाने का
ज़मीं पे किसलिये ज़ंजीर हो गये साये
मुझे पता है मगर मैं नहीं बताने का
मुझे पता है मगर मैं नहीं बताने का
3.
दुश्मन-दोस्त सभी कहते हैं, बदला नहीं हूँ मैं।
तुझसे बिछड़ के क्यों लगता है, तनहा नहीं हूँ मैं।
तुझसे बिछड़ के क्यों लगता है, तनहा नहीं हूँ मैं।
उम्रे-सफर में कब सोचा था, मोड़ ये आयेगा।
दरिया पार खड़ा हूँ गरचे प्यासा नहीं हूँ मैं।
दरिया पार खड़ा हूँ गरचे प्यासा नहीं हूँ मैं।
पहले बहुत नादिम था लेकिन आज बहुत खुश हूँ।
दुनिया-राय थी अब तक जैसी वैसा नहीं हूँ मैं।
दुनिया-राय थी अब तक जैसी वैसा नहीं हूँ मैं।
तेरा लासानी होना तस्लीम किया जाए।
जिसको देखो ये कहता है तुझ-सा नहीं हूँ मैं।
जिसको देखो ये कहता है तुझ-सा नहीं हूँ मैं।
ख्वाबतही कुछ लोग यहाँ पहले भी आये थे।
नींद-सराय तेरा मुसाफिर पहला नहीं हूँ मैं।
नींद-सराय तेरा मुसाफिर पहला नहीं हूँ मैं।
15 Comments
इस काम के लिए अमिताभ बच्चन को बुलाना मुझे भी अजीब लगा।
भारतीय ज्ञानपीठ ने एक नई किताब छापी है कविताएँ बच्चन की : चयन अमिताभ बच्चन का। इसका कवर देखिए ज़रा।
गुलज़ार–
शहरयार पूरे सब्र से बात करते हैं / उनका कहा,कँवल के पत्ते पर गिरी बूंद की तरह देर तक थिरकता है / वे घटा की तरह उमड़ कर नहीं आते / बेशतर शायरों की तरह / उठकर खिड़कियाँ बंद नहीं करनी पड़तीं के अन्दर के दरी,ग़लीचे भीग जायेंगे / बल्कि उठ कर खिड़की खोलो तो पता चलता है के बाहर बारिश हो रही है—
वो देख लो वो समंदर भी ख़ुश्क होने लगा
जिसे था दावा मेरी प्यास को बुझाने का
saharyaar jaisa dusra nayab shayar nahi
JAB BHEE MILTEE AJNABI LAGTI KYO HAI
JINDGI HAR ROZ NAYA RANG BADALTEE KYO HAI
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