हिंदी फ़िल्मी गीतों में साहित्यिकता का पुट देने वाले गीतकार योगेश के बारे में लोग कम ही जानते हैं. एक से एक सुमधुर गीत लिखने वाले इस गीतकार के बारे में बता रहे हैं दिलनवाज़– जानकी पुल.
हिन्दी फ़िल्मो के सुपरिचित गीतकार योगेश गौड उर्फ़ योगेश का जन्म लखनऊ, उत्तर प्रदेश मे एक मध्यवर्गीय परिवार मे हुआ| आरंभिक शिक्षा लखनऊ के संस्कृति संपन्न माहौल मे हुई, इस तरह योगेश का बचपन और किशोरावस्था यहीं बीते| पिता की असामयिक मृत्यु के कारण पढाई बीच मे ही रोक कर रोज़गार की तलाश मे लग गए| परिवार, मित्रों की सलाह पर मायानगरी मुंबई का रुख किया, मकसद इतना था कि जल्द-से-जल्द कोई काम मिले| मुंबई फ़िल्म उद्योग मे पहला लक्ष्य नही था, महानगर की परिस्थितियों मे योगेश को समझ मे नही आ रहा था कि किस तरह एक शुरुआत होगी | इस क्रम मे उन्होने कहानी लेखन को चुना और सफ़र पर निकल पडे ,धीरे-धीरे पटकथाएं और संवाद लिखकर सिने-जीवन का आगाज़ किया |
योगेश जी के मुंबई मे आरंभिक संघर्ष को मित्र व सहयोगी सत्यप्रकाश ने साथ दिया, दोनो मे सच्ची दोस्ती सा रिश्ता बना| भाई सत्यप्रकाश योगेश के सलाहकार,प्रेरक और संकट-मोचक रहे, मित्र के साथ ‘चाल’ मे गुज़रा यह वक्त प्रेरणा का वरदान सा बन गया | आत्म-निर्भर पहचान के लिए अपने नाम से ‘गौड’ हटान्रे का फ़ैसला उनके व्यक्तित्व विकास के लिए अवसरों के नए द्वार लेकर आया, कहानी ,पट-कथा,संवाद के बाद कविता और गीत-लेखन की ओर उन्मुख हुए |यहां पर बचपन मे कविता लिख कर याद करने का अभ्यास काम आया,लखनऊ का साहित्य-सांस्कृतिक सांचा और आत्मबल योगेश को कवि-गीतकार रुप दे गया |
योगेश को सगीत निर्देशक की ‘धुनों’ पर गीत लिखना पसंद नहीं था, गीत-लेखन की तकनीकी मांगों से अपरिचित होकर फ़िल्मकार रोबिन बैनर्जी के पास काम मांगा| उस समय सगीत धुनों पर ही गीत लिखने का चलन था| रोबिन बैनर्जी उन दिनों फ़िल्म ‘मासूम’(1963) पर काम कर रहे थे ,योगेश को रोबिन जी ने इस फ़िल्म के गीत लिखने को कहा| इस अनुभव ने उनकी आंखें खोल दी, अब वह संगीत धुनों पर लिखने को समझ चुके थे | रोबिन बैनर्जी-योगेश का सफ़र सखी रौबिन ,मारवेल मैन, फ़्लाइंग सर्कस ,रौबिनहुड समेत लगभग दर्जन भर फ़िल्मों तक रहा |
सुपरिचित गीतकार अनजान और योगेश के आरंभिक सिने कैरियर मे समानताओं ने दोनो को करीब लाया,दोनो गीतकारों की पहली फ़िल्में ‘असफ़ल’ रहीं | योगेश की ‘मासूम’ और प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित ‘गोदान’ गीतकार लालजी पांडे ‘अनजान’ की असफ़ल रहीं | इसे संयोग ही कहेंगे कि दोनों गीतकारों को फ़ीकी शुरुआत मिली, लेकिन कहा जाता है कि ‘दुर्भाग्य’ भी अपने साथ भाग्य लाता है | इस घटना ने दोनो को एक मंच पर शोध एवं रचना करने का अवसर दिया, अनजान-योगेश ने अनेक प्रोजेक्ट पर साथ काम करने का निर्णय किया |
सलिल चौधरी : जाने-माने संगीतकार सलिल चौधरी और योगेश के बीच मधुर संबंध रहे, इस रिश्ते का आगाज़ सबिता चौधरी की मित्रता से हुआ| गीतकार योगेश अक्सर अपने गीतों मे सुधार व संपादन के लिए सबिता दीदी के पास जाया करते, स्वयं के पास ‘ग्रामोफ़ोन’ न होने के कारण उनके पास अपने ‘रिकार्ड’ सुनने की सुविधा नही थी| भविष्य मे सबिता दी और सलिल चौधरी ‘परिणय’ सुत्र में जब बंधे तो योगेश की तो जैसे ‘किस्मत’ खुल गई, मित्र सबिता के माध्यम से सलिल जी जैसे प्रख्यात संगीतकार के सम्पर्क मे आने का उन्हें अवसर मिला | माना जाता है कि सलिल चौधरी को योगेश जी का नाम सबिता चौधरी ने ही सुझाया था | सलिल दा उन दिनों बहु-चर्चित फ़िल्म ‘आनंद’(1971) पर काम कर रहे थे, उन्हे इस फ़िल्म के लिए एक सुलझे हुए गीतकार की तलाश थी–मशहूर शैलेन्द्र की कमी में योगेश का चयन किया | आनंद की सफ़लता से ‘योगेश’ देशभर मे विख्यात होकर सलिल चौधरी के साथ अपने कैरियर की ‘सफ़लतम’ यात्रा पर निकल पडे | सलिल दा-योगेश ने आनंद के अलावे ‘अनोखादान’, ‘अन्नदाता’, ‘आनंद महल’, ‘रजनीगंधा’ और ‘मीनू’ जैसी फ़िल्मों में साथ काम किया | सलिल दा की जलेबीदार,कठिन संगीत धुनों के लिए गीत लिखना योगेश के लिए बहुत ही ‘चुनौतीपूर्ण’ कार्य रहा — निस दिन,रजनीगंधा फूल तुम्हारे,प्यास लिए मनवा जैसे गीतों मे गीतकार की ‘कविताई’ निखर कर सामने आई| इस तरह सलिल दा के मापदंडों पर एक गीतकार ‘कवि’ भी बन सका |
योगेश ने अपने कैरियर मे संगीतकार घरानों के ‘पिता-पुत्र’ संगीतकारों के साथ काम किया, इस परम्परा मे सलिल एवं संजय चौधरी और सचिन देव एवं राहुल देव बर्मन के लिए गीत लिखे | जाने-माने संगीतकार सचिन देव बर्मन की ‘उसपार’ तथा ‘मिली’ योगेश के यादगार ‘प्रोजेक्ट’ रहे ,इन फ़िल्मों का जीवंत गीत-संगीत इस साथ की सुनहरी याद है | मिली अभी पूरी भी न हुई थी कि सचिन देव बीच मे ‘बीमार’ पड गए, पिता की आधी फ़िल्म को राहुल देव बर्मन ने ‘बडी सूनी-सूनी है ज़िंदगी’ और ‘मैने कहा फूलों से’ रिकार्ड कर पूरा किया | संगीतकार राहुल की ‘लिस्ट’ मे योगेश का नम्बर पाँचवीं पायदान पर आता था,फ़िर भी राहुल देव-योगेश की जोडी 8 से 10 फ़िल्मो मे साथ आई |
फ़िल्मकार ह्रषिकेश मुखर्जी के निर्देशन मे बनी ‘आनंद’ (1971) के बाद योगेश को सिने जगत मे उचित सम्मान मिला, फ़िल्म के कभी ना भुलाए जा सकने वाले गीत आज भी लोकप्रिय बने हुए हैं | कहा जाता है कि ह्रषिकेश जी को ‘आनंद’ बनाने की प्रेरणा मूलत: एक जापानी फ़िल्म मिली, कहानी इस क़दर प्रोत्साहित हुए कि केन्द्र में ‘महिला’ को रखकर ‘मिली’ भी बनाई | योगेश जी ने दोनो फ़िल्मों के गीत लिखकर ह्रषिकेश दा की ‘सबसे बडा सुख’, ‘रंग-बिरंगी’ और ‘किसी से ना कहना’ के गीत समेत अनेक फ़िल्मों के गीत लिखे |
12 Comments
He is a legendary poet and lyricist!
मुकेश और योगेश की जुगलबंदी में कहीं दूर जब दिन ढल जाए और कई बार यूंही देखा है’ सुनकर
एक अलग ही अनुभूति महसूस होती है
योगेश जी का यह परिचय अच्छा लगा .. और उनक लिखे गीत आज भी हिट हैं … आनंद के गीत तो भूले नहीं भूलते .. रिमझिम घिरे सावन .. हर गानों में कविताओं ने जीवन और रिश्तों को महकाया है.. आपका हार्दिक आभार इस परिचय से जिनके लिखे गानों को हम पसंद करते और गुनगुनाते हैं किन्तु गीतकार की और ध्यान नहीं गया .. सादर
मैने कहा फूलों से, तो वह खिलखिला के हंस दिए…
नैन हमारे सांझ सकारे देखें लाखों सपनें, सच ये कभी होंगे या नहीं?
कोई जाने ना.. यहाँ!
yogesh ke geeton me jo sahityik put hota hai,usike karan shilendra samm samiti nekuhh varsh pahale unhe shailendra samman se sammanit kiya tha.saubhagya se nirnayak samitii adhyakshata main ki thi.
buddinath mishra ,dehradun
ati sundar…….aise bhule bisare…mahatwapurn logon ko yad krna….achha laga…..yunus ji achha hu apane bataya ki we goregaon me hain…..unhe mera salam……jindagi…kaisi hai paheli hai….kabhi to hansaye….or kabhi to…rulaye….
संयोग देखिये की विविध भारती में मेरा पहला योगेश जी का ही था. १९९६ की बात है.
वे इतने आत्मीय लगे. खूब विस्तार से बताया अपने गानों के बारे में.
कितनी कितनी बातें हैं. यहाँ सब कैसे लिखूं.
गोरेगांव में एक भुला दिया गया जीवन बिता रहे हैं वे.
बहुमूल्य जानकारी ,धन्यवाद !
Nice
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