भारती दीक्षित प्रशिक्षित कलाकार हैं। इनका अपना यूट्यूब चैनल है जहाँ वह कहानियों के पाठ करती हैं और हजारों– लाखों लोग उन्हें सुनते भी हैं। कुछ कहानियों का व्यू तो चार लाख तक गया है।यह उनकी अजंता–एलोरा की यात्रा का संस्मरण है। छुट्टियों के मौसम में, घूमने के मौसम में एक और यात्रा संस्मरण— अमृत रंजन
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अजंता चित्रकला, वास्तुकला और शिल्पकला का बेजोड़ उदहारण लिए हमारे समक्ष बरसों बरस से मौजूद है। अजंता को देखने समझने का सपना अमूमन हर कलाकार देखता है, मेरे भी कुछ छोटे बड़े सपनो में से एक सपना – अजंता। साल दर साल बीतते रहे और आज मेरा यह सपना हक़ीक़त में बदलने को उत्सुक है। अपने परिवार के संग मैं इंदौर से इस सपने की डोर थामे निकल पड़ी अपने गंतव्य की ओर। रास्ते भर प्रकृति रचित कृतियों को निहारते हुए सोचती रही कि कितनी शिद्दत से ये कृतियां रची गई हैं। प्रत्येक कृति हर दूसरी कृति से सर्वथा अभिन्न। पर्वत, नदियां, खेत,पक्षी और पेड़ों की प्रत्येक शाखा और उनकी कोंपलें, सब कुछ एक दूसरे अलग और अद्भुत।
पहले हमने निश्चित किया था कि औरंगाबाद रुक कर अजंता जाया जाए पर रास्ते में सोचा कि क्यों न अजंता में एक रात रुकें,., सो बुरहानपुर से अजंता की ओर मुड़ गए। और यह फैसला सही मायनो में सही साबित हुआ। अजंता पहुँचने का उत्साह अपने चरम पर था इसलिए सफर की थकान भी मालूम न चली। अजंता पहुँचने पर वहां की गर्मी मानो प्रथम वर्षा की बूंदों में तब्दील हो गई। अजंता की शांति मन के अंदर तह तक भेद गई। आज भी शहरी आबो हवा से दूर सुकून पहुंचती हुई। अजंता में महाराष्ट्र का ठेठ मराठी स्वाद वाला भोजन भी अनूठा था। बाजरे की भाखरी और बैगन की भाजी जो चूल्हे की आंच पर बनी। चूल्हे की आग की महक से सराबोर वैसा अनूठा स्वाद शायद ही कभी मेरी जुबां ने चखा हो।
रात्रि में जब आसमान की तरफ नज़र गई तो बरबस ही बचपन की वो पहेली याद आ गई ‘एक थाल मोती से भरा’ “सबके सिर पर औंधा थरा”…… आसमान में इतने सारे मोती रूपी तारे देख सोचने लगी हम शहर में ये मोती कम ही देख पाते हैं, प्रदूषण की काली परछाई इन मोती की चमक को धुंधला कर गई है। रात में झींगुर की आवाज़ ऐसी लग रही थी मानो कालजयी कृतियों का संध्या गीत हो। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अजंता की ये रात पूर्वाभ्यास थी मेरे चेतन मन को स्थिर करने के लिए, संयमित करने के लिए।
सुबह सोच रही थी कि कृतियों की गुफा सामने ही दिखाई देगी और ये सोच आँखों में चमक आ गई पर भूल गई थी कि ऐसी कालजयी रचना शांति, साधना और गहन मनन के बिना संभव नहीं। सो हम चल पड़ें अजंता की पर्वत श्रंखला की ओर जो काफी ऊपर जाकर दिखाई पड़ी। टेड़े मेढे रास्ते और रास्ते के साथ ही बहती बघोरा या वगरना नदी, हालाँकि गर्मी से नदी सूख चुकी थी पर पत्थरों पर पड़े पानी के निशान अब भी उसकी नमी की कहानी बया कर रहे थे, अजंता की गुफा तक उड़ कर पहुँच जाना चाहती थी। पल पल भारी हो रहा था। जब वहां पहुंची तो सबसे पहले आसपास की प्रकृति की अनुपम रचना को निहार कर सृजनकारों को नमन किया कि जो कैनवास का चयन उन्होंने किया वह अतुलनीय था। ऊँचे ऊँचे पहाड़ों को काट कर मध्य में बनाई गई घोड़े के नाल के आकार की गुफा की संरचना। गुफा का निर्माणकाल 200 ई एवं 450-600 ई के आसपास माना गया है। मैं सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए उस काल में पहुँच जाना चाहती थी जब इसकी शुरुआत हुई होगी हम तो सधे हुए समतल सतह पर पैर रख चढ़ रहे थे पर शायद यहाँ तक चढ़ना तब बड़ा जटिल रहा होगा। कहा गया है के यहाँ प्रत्येक गुफा से सीढ़ी हुआ करती थी जो बहती हुई बागोरा नदी तक जाती थी। यह भी सन्देह है कि शायद यहाँ बौद्ध महाविद्यालयीन मठ हो जहां शिक्षक और विद्यार्थी रहा करते हों। हम जैसे ही प्रथम गुफा द्वार पर पहुंचे मुझे अपनी ही आँखों पर यक़ीन न करने का मन हुआ। हे ईश्वर अंदर दाखिल होने के पूर्व इस अद्भुत अचंभे को अपनी आँखों में सहेज कर ले जाऊ ऐसी शक्ति दे। मैंने मन ही मन बौद्ध भिक्षुओं को प्रणाम किया। आँखों की फैली पुतलियां मानो स्थिर हो गई। अवाक, मौन के साथ जब मैंने अंदर प्रवेश किया तब…….. कुछ मिनट के लिए मेरे पास न शब्द थे न चेतना। मेरे सामने थी अल्पसाधन और अथक साधना से बनी गुफा नुमी कैनवास पर बची खुची कालजयी विश्वा की अप्रतिम रचना। मैं स्तब्ध थी समझ नहीं आ रहा था के कहाँ से देखना शुरू करूँ। अन्य सभी गुफा के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा चित्रों वाली गुफाओं में से एक थी ये गुफा नो १. क्या देखूँ और क्या नहीं इसी उहापोह में थी के गाइड ने एक 3D रचना की ओर ध्यान दिलाया जो वाकई अचंभित करने वाला था। बुद्ध के जीवन पर आधारित कहानियां और जातक कथाओं का इतनी सफाई से चित्रण कि पूरी जातक कथा चित्र देख कर समझ में आ सकेगी। पूरे गुफा नुमी कैनवास पर कोई खाली स्थान न था, चाहे वो छत हो, या दीवार या दीवार का बाहरी हिस्सा। शिद्दत से रची गई लगभग 900 वर्षो की साधना। रंगों में सिंदूरी, विभिन्न भूरे, पीले, सफ़ेद, काला रंग, गहरा हरा रंग जो स्थानीय पत्थर से बनाया गया बाकि के रंग फूलो या वनस्पतियों से बने हुए, प्रमुख है। एक रंग अद्भुत नीला रंग लेपुसलाजुली जो संभवतः आयात किया गया हो इन सभी रंगो का अद्भुत संयोजन।
मन में चल रहा था कि पहली रचना कहाँ से शुरू की गई होगी लालायित थी सब कुछ जानने को और पिछले वर्षों में जाने को। प्रत्येक रेखा बड़ी सटीक, सधी हुई और संतुलित। जिसमे पहले रेखांकन कर रंग भरा गया होगा। सीमित रंगो और सधी हुई रेखाओं के द्वारा रचा गया अनूठा और अचंभित कर देने वाला चित्र विन्यास। जो कि दुबारा न हो पायेगा। बौद्ध भिक्षु बुद्ध की साधना में रत रहते हुए बुद्ध के जीवन पर वर्षों वर्ष चित्र रचते गए। पर चित्र बनने के पहले खुरदुरी गुफा को कैनवास समान कैसे लाया गया होगा, यह भी हैरत भरा है कि गुफा को पहले काटा जाना, उसमे आधार स्तम्भ बनाया जाना, गुफा को आकार देना, और बुद्ध साधना में लीन रहते हुए यह सब करना सोच सोच कर दिमाग सुन्न होने लगा। गुफा की पथरीली खुरदुरी सतह को चित्रों के लिए समतल सपाट सतह देने के लिए करीब एक इंच मोती पलस्तर रूपी तह बनाई गई। जिसे चुना, खड़िया, धान की भूसी, अलसी का पानी एवम् अन्य सामग्री मिला कर पलस्तर लगाया गया और यह तह गुफा की प्रत्येक दीवार और छत पर मौजूद थी। तब जाकर एक समतल स्थान मिला जिस पर चित्र रचे गए। रौशनी का कहीं पता नहीं था, सूर्य की रौशनी को गुफा के प्रत्येक कोनों तक कैसे लाय गया ये भी दिलचसप है। ऐसा कहा गया है कि गुफा की ज़मीन पर पानी भरा गया होगा और प्रकाश का परावर्तन के माध्यम से सूर्य के प्रकाश से रौशनी की गई होगी. यानी विज्ञान तब भी मौजूद था। हैरत होती है यह देख कर की 900 वर्षों तक कौन बौद्ध भिक्षु अल्प साधन में ध्यान और साधना, प्रार्थना के अतिरिक्त चित्रकारी और शिल्प रूप में आराधना में रत रहें। वे सभी इतने पारंगत थे के सधी हुई सटीक रेखाओं द्वारा बुद्ध का पूरा जीवन काल उनकी जातक कथाओं को बनाते चले गए। आश्चर्य का विषय है पर सत्यता का प्रमाण मेरी आँखों के सामने था।
अजन्ता की गुफाओं में कुछ गुफा चैत्य [मंदिर ] और कुछ विहार [मठ ] हैं। गुफा के कई चित्र अब भी वैसे ही हैं, जैसे बनाये गए होंगे। मै जब बोधिसत्व पद्मा पाणि और बोधिसत्व वज्रपाणि के सम्मुख खड़ी हुई तो हतप्रभ थी देख कर की बुद्ध के शरीर की रचना बड़ी सुंदरता से प्रवाहपूर्ण रेखा द्वारा की गई। उनके मुख मंडल के कोमल भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे। जैसे मोती की माला का गुंथे हुए गुच्छों में दिखाई देना अद्भुत था। बुद्ध का राजपाट त्याग कर वन गमन और ज्ञान प्राप्त कर पुनः कपिलवस्तु में अपने ही घर भिक्षा के लिए जाना, इस चित्र में पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को बताया गया है। चित्र के रंग संयोजन, चित्र में बुद्ध के शरीर का आकार अन्य से बड़ा होना, सटीक और प्रवाह पूर्ण रेखा से जीवंत हो उठे। गुफा के चित्र ऐसे हैं जहाँ पर आँखों की पुतलियाँ स्थिर हो जाती हैं और उसे वहां से दूसरी जगह ले जाना बड़ा कठिन हो जाता है। गुफा के प्रत्येक स्तम्भ अलंकरण सौंदर्य से परिपूर्ण हैं। गुफा में पशु, पक्षी फूल पत्तियां, अवं अन्य सजावटी अलंकरण बनाये गए है। बुद्ध के शिल्प गुफा के मध्य गर्भ गृह की भांति बनाये गए कक्ष में हैं, स्तूप भी बनाये हैं, अन्य शिल्प जिसमे विदूषक और संगीत वाद्य यंत्रों के साथ मानव और पशु पक्षी मिश्रित शिल्प भी हैं.. एक शिल्प में चार मृग के शरीर के साथ दो मृग के सर हैं, और प्रत्येक मृग को देखने पर वह पूर्ण दिखाई देता है। यह सब सामान्य छैनी हथौड़े से की गई आश्चर्य मिश्रित रचना है। महादेवी माया का स्वप्न और बुद्ध के जन्म के चित्र को देख कर लगा मानो पूरी फिल्म हो और उस प्रत्येक घटना को घटित होते हुए देख रही हूँ। बुद्ध की जातक कथा से बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जन्म की सभी कहानियो का चित्रण किया गया है। गुफा में लेटे हुए बुद्ध का शिल्प है। कुछ गुफा अधूरी हैं।
और कुछ को बंद कर दिया गया है। निःसंदेह कहा जा सकता है कि वे सभी बुद्ध भिक्षु सृजन के अद्वितीय अनुपम चितेरे थे। दीवारों पर बनी सीधी रेखा, उनका घुमाव, फूल, बेल बूटे उनकी एकरूपता, समानता देख विचार आता है के किस कठिनाई से इन्हें रचा गया होगा। गुफा के अंदरूनी भाग में बने ध्यान कक्ष बताते हैं कि बुद्ध भिक्षु स्वयं बुद्धमय थे। इसे देख कहा जा सकता है कि यही है सच्ची भक्ति। ध्यान में बुद्ध, मन में बुद्ध , सोच में बुद्ध,, देखना भी बुद्ध, रचना भी बुद्ध या यूं कहें के वे स्वयं बुद्ध थे।