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हाल में ही पाकिस्तान के पत्रकार सईद अहमद की किताब आई है ‘दिलीप कुमार: अहदनामा-ए-मोहब्बत’. इसको पढ़ने से पता चलता है पाकिस्तान में लोग दिलीप कुमार से मोहब्बत ही नहीं करते, वे उनके दीवाने हैं. ऐसे ही दो दीवानों की दास्तान पढ़िए- जानकी पुल. ================================   स्टीफेन हेनरी के बारे में अजीब-सी ख़बरें सुनने में आ रही थीं. वह बीमार पड़ा लेकिन डॉक्टर के पास नहीं गया. दिलीप कुमार का फोटो देखकर ठीक हो गया. अचानक अपेंडिक्स के दर्द से चीख उठा. हस्पताल पहुँचाया गया, डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी. उसने जिद की कि उसे दिलीप कुमार की फिल्म…

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भुवनेश्वर ने कुछ कविताएँ अंग्रेजी में लिखी थी. बाद में जिनका हिंदी अनुवाद शमशेर बहादुर सिंह ने किया. दोनों शताब्दी कवि-लेखकों की यह जुगलबंदी प्रस्तुत है- जानकी पुल. 1.रुथ के लिए मगन मन पंख झड़ जाते यदि और देखने वाली आँखे झप जाती हैंशाहीन के अंदर पानी नहीं रहताउस अमृत जल को पी के भी जो आंसुओं की धार है दूसरे पहर की चमक में यदि अगली रात की झलक हैऔर रात की कोख भी सुनीजैसे मछुआरे का झावा ये सारा मातम है यदि इसीलिए कि मर जाएँ पर सच ही सच बताएं तो मर जाना ही बेहतर है उसे…

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१९१० में पैदा हुए भुवनेश्वर की यह जन्मशताब्दी का साल है. ‘भेडिये’ जैसी कहानी और ‘ताम्बे के कीड़े’ जैसे ‘एब्सर्ड’ नाटक के इस रचयिता को हिंदी का पहला आधुनिक लेखक भी कहा जाता है. समय से बहुत पहले इस लेखक ने ऐसे प्रयोग किये बाद में हिंदी में जिसकी परम्परा बनी. अभिशप्त होकर जीनेवाले और विक्षिप्त होकर मरने वाले इस लेखक की कुछ दुर्लभ रचनाएँ इस सप्ताह हम देंगे. आज प्रस्तुत हैं उनकी कुछ दुर्लभ कविताएँ- जानकी पुल.नदी के दोनों पाटनदी के दोनों पाट लहरते हैं आग की लपटों में दो दिवालिये सूदखोरों का सीना जैसे फुंक रहा हो.शाम हुई…

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इस बार वीकेंड कविता में प्रस्तुत हैं जुबेर रज़वी की गज़लें. नज्मों-ग़ज़लों के मशहूर शायर जुबेर रज़वी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं. यकीन न हो तो उनकी नई ग़ज़लों का रंग देख लीजिए- जानकी पुल.1.वो बूँद-बूँद दमकता था मेंह बरसते मेंज़माना देख रहा था उसी को रस्ते में.कुछ और भींग रहा था बदन पे पैराहन१ १. वस्त्रखड़ा हुआ था वो गीली हवा के रस्ते में.ये शामे-हिज्र ये तन्हाई और ये सन्नाटाखरीद लाए थे हम भी किसी को सस्ते में.जवाब के लिए बस एक सादा कागज़ थामगर सवाल कई थे हमारे बस्ते मेंन देखी जाए नमी हमसे उनकी आँखों मेंबहुत…

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शायर-गीतकार साहिर लुधियानवी की जयंती है. उनके एक दोस्त जोए अंसारी ने साहिर लुधियानवी पर यह संस्मरण लिखा था. जिसमें उनकी शायरी और जिंदगी के कई नुक्ते खुलते हैं. यह ‘शेष’ पत्रिका के नए अंक में प्रकाशित हुआ है. उसका सम्पादित रूप प्रस्तुत है- जानकी पुल. ==============================   बम्बई शहर के उबलते हुए बाज़ारों में, साहिलों पर, सस्ते होटलों में तीन लंबे-लंबे जवान बाल बढ़ाये, गिरेबान खोले आगे की फ़िक्र में फिकरे कसते, खाली जेबों में सिक्के बजाते घूमते फिरते थे. दो उत्तर से आये थे, एक दक्षिण से इस उम्मीद से कि वो दिन दूर नहीं जब खुद उनकी…

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वीकेंड कविता में इस बार प्रस्तुत है व्यंग्य-कवि संजय गौतम की गज़लें. काका हाथरसी की तर्ज़ पर उनका अनुरोध है इनको हज़ल कहा जाए. आइये उनकी हज़लों का रंग देखते हैं.एकपहले जो अपना यार था, अब कैलकुलेटर हो गया,दो जमा दो में किये, दस गिन के सैटर हो गया.जब कभी ग़फ़लत हुई, वो देख के मुस्का दिये,मामला संगीन भी, तत्काल बैटर हो गया.कल ही तो उन सबने ठाना, फिर भिड़ें राम-ओ-रहीम, मौन-सा अपने ही लोगों का करैक्टर हो गया.कौन सी गलियों में भटका है फिरे ये पूछ्ता,मजनूँ जी, लैला का तो न्यारा ही सैक्टर हो गया.कल ही तो खुद से…

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आखिर भारतीय मूल के कनाडाई लेखक रोहिंटन मिस्त्री के उपन्यास ‘सच ए लांग जर्नी’ में ऐसा क्या है कि शिव सेना के २० वर्षीय युवराज आदित्य ठाकरे ने मुंबई विश्वविद्यालय के सिलेबस से बाहर करवाकर अपने राजनीतिक कैरियर के आगाज़ का घोषणापत्र लिखा.कह सकते हैं कि शिव सेना की युवा सेना के प्रमुख बनने का जश्न उन्होंने उस घटना के माध्यम से बनाया. आश्चर्य इस बात से हुआ कि महाराष्ट्र के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने पाठ्यक्रम से पुस्तक हटाये जाने की इस घटना का समर्थन किया. आखिर ऐसा क्या है रोहिंटन मिस्त्री के उपन्यास में कि उसके विरोध को लेकर शिवसेना…

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मनोहर श्याम जोशी के जन्मदिन पर प्रस्तुत है यह साक्षात्कार जो सन २००४  में आकाशवाणी के अभिलेखगार के लिए की गई उनकी लंबी बातचीत का अंश है. उसमें उन्होंने अपने जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं को लेकर बात की थी। यहां एक अंश प्रस्तुत है जिसमें उन्होंने अपने जीवन और लेखन के कुछ निर्णायक पहलुओं को लेकर खुलकर बातें की हैं. पूरी ईमानदारी से. उनके अपने शब्दों में कहें तो ‘बायोग्राफी पॉइंट ऑफ व्यू’ से- प्रभात रंजन ====================== प्रश्न- आपके उपन्यास हों चाहे सीरियल उनमें चरित्र-चित्रण भी जबर्दस्त होता है और किस्सागोई भी सशक्त होता है। भाषा पात्रों के अनुकूल होती है। बड़ा जीवंत परिवेश…

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कवि ज्ञानेंद्र पति इसी महीने चुपचाप साठ साल के हो गए. इस अवसर पर मुझे उनकी कविता ‘ट्राम में एक याद’ का स्मरण हो आया. जब नौवें दशक में इस कविता का प्रकाशन हुआ था तो इसकी खूब चर्चा हुई थी. केदारनाथ सिंह के संपादन में हिंदी अकादेमी, दिल्ली से नौवें दशक की प्रतिनिधि कविताओं के संचयन में भी इस कविता को स्थान मिला. ज्ञानेंद्र पति की कविताओं की ओर लोगों का ध्यान गया था. सार्वजनिक बनाम निजी का जो द्वंद्व इस कविता में है वह नितांत समसामयिकता के इस दौर में इस कविता को प्रासंगिक भी बनाता है. उस…

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अगला साल हिंदी के उपेक्षित कवि गोपाल सिंह नेपाली की जन्मशताब्दी का साल है. इसको ध्यान में रखते हुए उनकी कविताएँ हम समय-समय पर देते रहे हैं. आगे भी देते रहेंगे- जानकी पुल.एक रुबाईअफ़सोस नहीं इसका हमको, जीवन में हम कुछ कर न सकेझोलियाँ किसी की भर न सके, संताप किसी का हर न सकेअपने प्रति सच्चा रहने का, जीवन भर हमने काम कियादेखा-देखी हम जी न सके, देखादेखी हम मर न सके.२.तू पढ़ती है मेरी पुस्तकतू पढ़ती है मेरी पुस्तक, मैं तेरा मुखड़ा पढ़ता हूँतू चलती है पन्ने-पन्ने, मैं लोचन-लोचन बढ़ता हूँ मैं खुली कलम का जादूगरतू बंद किताब…

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