कहते हैं गुलशन नंदा ऐसा लेखक था जिसने जासूसों को प्रेम की भूल-भुलैया में भटका दिया. गुलशन नंदा के लेखक के रूप में आगमन से पहले हिंदी में लोकप्रिय उपन्यासों के नाम पर जासूसी उपन्यासों का बोलबाला था. बोलबाला क्या था उनका जादू सिर चढ़कर बोलता था. पाठक या तो इब्ने सफी के उर्दू उपन्यासों के हिंदी अनुवाद पढते थे या अंग्रेजी उपन्यासों के अनुवाद. वैसे में ६० के दशक में गुलशन नंदा ने अमीर-गरीब के प्यार का ऐसा फॉर्मूला तैयार किया कि रोमांटिक उपन्यासों की धारा ही चल पड़ी. जिस समय हिंदी में आधुनिकतावादी तर्क को आधार बनाकर गंभीर…
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प्रसिद्ध पत्रकार राजकिशोर का यह लेख हिंदी भाषा के संकटों की चर्चा करता है. कुछ साल पहले लेखक यु. आर. अनंतमूर्ति ने अपने एक लेख में भारतीय भाषाओं पर अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव को लेकर कहा था कि अगर यही हाल रहा तो भारतीय भाषाएं ‘किचेन लैंग्वेज’ यानी नौकरों-चाकरों से बातचीत करने की भाषा बनकर रह जायेगी. सचमुच यह प्रवृत्ति बढती जा रही है. राजकिशोर जी का लेख उसी की गंभीरता की ओर इशारा करता है और हम हिंदी वालों को अपने कर्त्तव्य की याद दिलाता है- जानकी पुल. आजकल संसद सदस्यों, मध्य प्रदेश के विधायकों और देश भर के…
सैयद ज़मीर हसन दिल्ली के जेहनो-जुबान के सच्चे शायर हैं. उनकी शायरी में केवल दिल्ली की रवायती जुबान का रंग ही नहीं है, वह अहसास भी है जिसने दिल्ली को एक कॉस्मोपोलिटन नगर बनाए रखा है. उसके बिखरते जाने का दर्द भी है और उस दर्द से उपजी फकीराना मस्ती. दिल्ली कॉलेज में ४० साल पढाने वाले ज़मीर साहेब ने बहुत सुन्दर कहानियाँ भी लिखी हैं जिनसे ज़ल्दी ही आपका परिचय करवाएंगे. फिलहाल उनकी दो गज़लें- जानकी पुल.१. इश्क जिन्होंके ध्यान पड़ा वो पहले तो इतराए बहुत,बूर के लड्डू खानेवाले पीछे फिर पछताए बहुत.बस्ती-बस्ती करिया-करिया छानी ख़ाक ज़माने भर की,आदमजाद कहीं…
२०११ में अज्ञेय की जन्म-शताब्दी है. इसी को ध्यान में रखते हुए सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन ने अज्ञेय संपादित एक पुस्तक ‘पुष्करिणी’ को फिर से प्रकाशित किया है. १९५३ में प्रकाशित इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व है. अज्ञेय का यह मानना था कि स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर ही कविता के संचयन क्यों तैयार किए जाएँ? ऐसे संचयन आम पाठकों को ध्यान में रखकर भी तैयार किए जाने चाहिए ताकि आधुनिक कविता-धारा से उसका जुड़ाव हो सके. इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होंने ‘पुष्करिणी’ का संपादन किया, जिसमें मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, सियारामशरण गुप्त, दिनकर, प्रसाद, निराला,…
आज फादर कामिल बुल्के का जन्मदिन है. उनका नाम ध्यान आते ही अंग्रेजी-हिंदी कोश का ध्यान आ जाता है. प्रकाशन के करीब ४२ साल बाद भी इस अंग्रेजी-हिन्दी कोश की विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई है. उन्होंने इसके पहले संस्करण की भूमिका में लिखा था कि उनका उद्देश्य एक ऐसा कोश तैयार करना था जो न सिर्फ विद्यार्थियों के मतलब की हो बल्कि उनके लिए भी उपयोगी हो जो हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद का काम करते हों तथा जिनकी पहली भाषा हिन्दी हो. मैं खुद इतने साल से अनुवाद कर रहा हूँ लेकिन आज भी किसी शब्द के…
अर्जेंटीना के कवि-लेखक होर्खे लुई बोर्खेस स्पेनिश भाषा के महानतम लेखकों में गिने जाते हैं. हिन्दी में उनकी कविताओं के अनेक अनुवाद आए हैं. लेकिन मुझे सबसे अच्छे धर्मवीर भारती द्वारा किए गए अनुवाद लगते हैं, जो ‘देशांतर’ में सम्मिलित हैं. ध्यान रखने की बात है कि भारती जी ने बोर्खेस के अनुवाद तब किए थे जब अंग्रेजी में भी उनके कम ही अनुवाद आए थे और स्पेनिश भाषा के बाहर उनकी कोई खास चर्चा भी नहीं थी. ‘देशांतर’ में संकलित दो कविताएं यहाँ प्रस्तुत हैं: जानकी पुल.———————————————————————————————–१.नीले मकानजहाँ सेन जुआन और चाकावुकों का संगम होता हैमैंने वहाँ नीले मकान…
कुलपति-ज्ञानोदय विवाद में अपने विरोध को और सख़्त रूप देते हुए हिंदी के वरिष्ठतम लेखकों में एक श्री कृष्ण बलदेव ने भी भारतीय ज्ञानपीठ से अपनी किताबें वापिस ले ली हैं। श्री वैद इस समय अमेरिका में हैं और वहाँ से ज्ञानपीठ के न्यासी श्री आलोक जैन को लिखे एक पत्र में उन्होंने संस्था से पूर्ण असहयोग करने और वहाँ से प्रकाशित अपनी दोनों पुस्तकें वापिस लेने की सूचना दी है। रोमन में लिखा मूल पत्र और उसका देवनागरी संस्करण यहाँ प्रस्तुत है। देवनागरी में परिवर्तित पत्रमान्यवर आलोक जैन जी,सखेद लिख रहा हूँ,विदेश से, कि जब तक भारतीय ज्ञानपीठ लेखकों…
वर्ष २०११ अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह और नागार्जुन जैसे हिंदी के मूर्धन्य कवियों का जन्मशताब्दी वर्ष ही नहीं है वह ११ अगस्त १९११ को जन्मे और लगभग बिसरा दिए गए गीतकार गोपाल सिंह नेपाली का भी जन्मशताब्दी वर्ष है. शोधग्रंथों में उनको उत्तर-छायावाद का कवि माना जाता है और उनकी कविताओं के उमंग, मस्ती, प्रेम की दार्शनिकता के कारण उसके लक्षणों को पहचाना भी जा सकता है. चीन- युद्ध के समय उनकी कविताओं ने जनता में अलख जगाने का काम किया था. उनकी कविताओं में दिनकर का ओज भी है और नरेन्द्र शर्मा का शास्त्रीय माधुर्य भी. दूसरी तरफ उनकी…
जासूसी उपन्यासों की कोई चर्चा शायद जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के बिना पूरी नहीं हो सकती. दिल्ली क्लॉथ मिल में मजदूरी करने वाले ओम प्रकाश शर्मा लाल सलाम करके मिल में मजदूरों की लड़ाई भी लड़ते थे. जनवादी विचारों को मानने वाला यह जासूसी लेखक बड़ी शिद्दत से इस बात में यकीन करता था कि ऐसे साहित्य की निरंतर रचना होनी चाहिए जिसकी कीमत कम हो तथा समाज के निचले तबके के मनोरंजन का उसमें पूरा ध्यान रखा गया हो. शायद इसी संकल्प के साथ वे जीवन भर ‘सस्ता’ साहित्य लिखते रहे लेकिन अपने नाम के आगे सदा जनप्रिय…
इस आयोजन के तो नागरजी मैं सख़्त ख़िलाफ़ हूँ लिखित में कोई बयान पर मुझसे न लीजिये मैं जो कह रहा हूँ उसी में बस मेरी सच्ची अभिव्यक्ति है वैसे भी मौखिक परंपरा का देश है यह जीभ यहाँ कलम से ज़्यादा ताकतवर रहती आयी है नारे से ज़्यादा असर डालती आयी है कान में कही बात आपने यह जो बनाया एक साधारण बयान लिखकर बढ़कर हर कोई दस्तखत कर देगाः हर व्यक्ति की इसमें बात आ गई, लेकिन आने से रह गई हर व्यक्ति की अद्वितीयता – ऐसे बयान का क्या फायदा?