शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के जीवन के कुछ प्रसंगों को आधार बनाकर युवा लेखिका विपिन चौधरी ने एक नाटक लिखा है ‘सरफरोशी की तमन्ना’. आपके लिए- जानकी पुल.
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सरफरोशी की तमन्ना
( क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल पर आधारित लघु नाटक )
पात्र परिचय
1 रामप्रसाद बिस्मिल
2 बिस्मिल की माताज़ी, मूली देवी
3 बिस्मिल के पिताज़ी, मुरलीधर
4 अशफाकउल्ला खाँ
.
( राम प्रसाद बिस्मिल के पिताजी और माताजी आपस मे बातें करते हुये)
पिताजी- आज का अखबार नहीं मिल रहा. कहीं देखा तुमने ?
मूर्ती देवी- सुबह सामने मेज़ के नीचे रखा था मैने, वहीं पर होगा.
पिताजी- हाँ, मिल गया वही पर है.
( अखबार को देख कर चौंकते हुए )
बिस्मिल के पिताजी-( पत्नी मूर्ति देवी को भावुक आवाज़ मे पुकारते हुए )
बिस्मिल की माँ, आखिरकार वह दिन आ ही गया जब हमारे बेटे की शहादत देश की काम आ सकेगी.
माँ मूर्तिदेवी – ( चप्पल की आवाज़ दूर से नज़दीक आती हुई ) क्या कह रहे हो, कहीं मेरे बेटे को ( आगे कुछ कहते कहते रुक जाती है )
पिता हां, तुम ठीक सोच रही हो बिस्मिल की माँ, तुम्हारे लाल को ब्रिटिश हुकुमरान ने फांसी की सज़ा सुनाई है.
सुनो इस अखबार मे लिखा है.
माँ- हे भगवान! ( ठंडी आह भरती हुये )
बिस्मिल के पिताजी- मैंने ढाई सौ रहीसों, ऑनरेरी मजिसट्रेट तथा जमींदारों के हस्ताक्षर से एक अलग प्रार्थना पत्र भेजा, किन्तु सर विल्लियम मेरिस की सरकार ने एक नहीं सुनी और लेजिस लेटिव असेम्बली तथा कौंसिल ऑफ स्टेट के ७८ सदस्यों ने हस्ताक्षर करके वायसराय के पास प्रार्थना पत्र भेजा था कि काकोरी षड़यंत्र के म्रत्युदंड पाये हुये युवकों की मृत्युदंड की सज़ा बदलकर दूसरी सज़ा कर दी जाये लेकिन वायसराय ने एक न सुनी.
बिस्मिल की माँ- अंग्रेजी सरकार किसी की कब सुनती है जो हमारी सुनती.
पिता – तुम हिम्मत रखो. तुम बिस्मिल की माँ हो, माँ . उस बिस्मिल की माँ जिसने अंग्रेजी हुकुमरानो के नाक मे दम कर रखा है.
माँ – उस माँ का कलेजा फटता है जिस का जवान जहाँ बेटे को फांसी की सज़ा सुनाई गयी है.
पिताजी- आओ इधर इस कुर्सी पर बैठो
( कुर्सी खींचते हुये )
पिता- ( हँसने की कोशिश करते हुये ) याद है तुम्हे, जब बिस्मिल सात साल का था तब एक दिन मैने उसकी पेटी मे से ढेरो उपन्यास पकडे थे.
माँ- हाँ हाँ और आपको याद है वह दिन भी याद है जब एक दिन रामप्रसाद को चोरी करते हुए मैने रंगे हाथो पकड़ा था.
पिताजी- जब एक दिन वह ॐ शब्द ठीक से नहीं लिख पा रहा था तब मैने उसे छड से बहुत पीटा था.
रामप्रसाद शुरू से ही शरारती बच्चा रहा. पर होनहार भी खूब संस्कारी, शिक्षित और निडर भी. देखो अंग्रेजों के सामने सीना तान कर खड़ा रहा.
माँ- हाँ, मेरा बिस्मिल का शुरू से ही पूजा पाठ मे खूब मन लगता था.
ढेरो मंत्र आज भी उसे कंठअस्त है, याद है आप उसके आर्य समाज से जुडाव से बहुत चिढते थे एक दिन इस जिद पर अड़ गए कि या तो आर्य समाज छोड़ो या इस घर से निकल जाओ. बस निकल पड़ा वो घर से. चर्च के फादर के समझाने से ही घर लौटा. जिद्दी है बिलकुल आपकी तरह.
पिताजी- धीमी हंसी हंसते हुए हाँ, हाँ और पहलवानी का भी कितना शौक था उसे. और जब क्रांतिकारी पार्टी मे शामिल हुआ तो बाद मे बन्दुक खरीदने के लिये और पार्टी के कामों के लिए तुमने उसे कई बार २००- २०० रूपये दिए थे.
माताजी – हाँ और अपनी किताबों के अनुवाद से उसने लौटा भी दिए थे. एक बार उसे ठीक से नींद नहीं आ रही थी तब मुझे लगा की जरूर कोई परेशानी है तब मैंने उससे प्यार से पुच्छा तुम किसी उधेड़बुन में दिखाई देते हो बेटा
२.
( धुन के साथ दृश्य परिवर्तन )
माताजी- बेटा रामप्रसाद.
रामप्रसाद- हाँ माँ.
माताजी- तुम किसी उधेड़बुन मे दिखाई देते हो, मै अब समझ पा रही हूँ तुम्हारे महीनो बीमार रहने का कारण यही उधेड़बुन है.
रामप्रसाद- हाँ ,माँ तुम सहो कह रही हो मै किसी से बदला लेना कहता हूँ. एक बार जब मै यमुना के तट पर बैठा था, आँखे बंद कर ध्यान ही कर रहा था की खट से आवाज़ हुई, तुरंत ही फायर हुआ गोली मेरे कान के पास से निकल गयी. मै रिवाल्वर निकालते हुए आगे बढा, पीछे मुड कर देखा, एक महाशय माउज़र हाथ मे लिये मेरे ऊपर गोली चला रहे है. पहले उस आदमी से मेरा कुछ झगड़ा हो गया था पर बाद मे समझौता भी हो गया था.तीन फायर हुए पर मै बाल- बाल बच गया. बाद मे सोचा की इन लोगों से अकेले बदला लेना ठीक नहीं.
माताजी – बेटा यह ठीक नहीं है. प्रतिज्ञा करो कि तुम अपनी कत्ल की चेष्टा करने वालो को जान से नहीं मारोगे.
रामप्रसाद- माँ मै उनसे बदला लेने की प्रतिज्ञा कर चुका हूँ
माताजी- नहीं बेटा तुम कभी किसी की हत्या नहीं करोगे मुझसे यह आज वादा करो.
राम प्रसाद- माँ तुमने मुझे मजबूर कर दिया है तो मै आज वादा करता हूँ, अपनी माँ का कहा भला मैं कैसे टाल सकता हूँ.
3.
बिस्मिल- अशफाक से ( आओ आओ दोस्त , क्या समाचार लाये हो, देखो तो मैं जेल मे तुम्हारा स्वागत भी नहीं कर सकता )
तुम्हारी प्रेरणा पा कर मैने उर्दू मे कुछ नए शेर लिखे है. सुनो
बहे बहरे फना में जल्द या रब लाश, बिस्मिल की।
कि भूखी मछलियाँ हैं जौहरे शमशीर कातिल की।।
समझकर फूँकना इसको ज़रा ऐ दागे नाकामी ।
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजडे हुए दिल से।।
लो एक और सुनो
सताये तुझको जो कोई बेवफा,बिस्मिल
तो मुँह से न करना आह कर लेना।।
हम शहीदाने वफ़ा का दीनों ईमाँ और है।
सिजदे करते हैं हमेशा पाँव पर जल्लाद के।।
राम प्रसाद बिस्मिल- काकोरी की रेल लुटने के बाद पुलिस की धर पकड़ के कारण हम सब साथी अलग- अलग पड़ गए है.
अशफाकउलाह -हाँ आज भी सही -सही याद हैं जोश से लबरेज़ वे क्रांतिकारी दिन.
४.
(रेल गाडी रुकने की आवाज़)
(उसी समय कई जोड़ी जूतों और अफरातफरी की आवाज़े… फिर लोहे का संदूक उतारकर छेनियों से काटने की आवाज़े सुनाई देने लगी)
एक युवक- छेनी से काम नहीं चलने वाला कुल्हाड़े से काटो.
बिस्मिल- ( मुसाफिरों से )आप सभी लोग गाडी मे चढ़ जाओ.
( तभी एक गोली चलने की आवाज़ आयी)
बिस्मिल-( एक आदमी पर ज़ोर से चिल्लाते हुए, जयादा होश्यारी नहीं,
चुपचाप ज़मीन पर लेट जा, नहीं तो।
( तभी रेल के डिब्बे मे गोली चलने की आवाज़ आई )
औरतों और बच्चो के रोने और चिल्लाने की आवाज़े आपस में घुल मिल गई।
( कई क्रांतिकारी एक साथ बन्दूक चलाने वाले ) क्या करते हो?
बिस्मिल- डाँटतें हुए, गोली चलाने का काम तुम्हारा नहीं है महाशय, कोई कोतुहलवश बाहर को सिर निकाल रहा हो और उसे गोली लग जाये तो, नर हत्या करके हम डकैती को भीषण रूप नहीं देना चाहते।
अश्फाक- भाग चलो. देखो कोई सामान तो नहीं रह गया।
४.
( वापिस उसी शुरूआती धुन के साथ द्रश्य परिवर्तन )
बिस्मिल- अशफाक से, तुम बहुत सावधानी से रखना, पुलिस तुम पर मुस्तैदी से नजर रखे हुये है.
अशफाक – ( हंसते हुए ) मै आपसे मिलने आपके सामने खड़ा हूँ, बिलकुल निहत्था पर मुझे कोई भी पहचान नहीं पाया सिवाए आपके.
बिस्मिल ( हंसते हुए ) आज का दिन हमपर मेहरबान होगा, पर सभी दिन इतनी मेहरबान नहीं होते. एक दिन वो ही होगा जब हमारी गर्दन पर फांसी का फंदा होगा.
५.
बिस्मिल – ( अपने आप से बात करते हुए ) आज १६ दिसम्बर १९२७ है, परसों यानी १९ दिसम्बर १२२७ सोमवार को ६.३० बजे प्रातकाल इस शरीर को फांसी पर लटका देने की तिथि निर्धारित हो चुकी है
मेरी अंतिम इच्छा यही है की पूरे संसार मे जनतंत्र की स्थापना हो. परमात्मा से यही प्रार्थना है की वह मुझे इसी देश मे जन्म दे
१९ दिसम्बर को ही को फैजाबाद जेल मे बंद अशफाक को फांसी की सज़ा सुनाई गयी है.
( ऊँची आवाज़ मे अपना ही शेर गाते हैं)
मरते बिस्मिल, रोशन, लहरी, अशफाक, अत्याचार से
होंगे पैदा सैकरो इनके रुधिर की धार से
६.
( लोहे का फाटक खुलने की आवाज़)
बिस्मिल के पिताजी- अरे बिस्मिल की माँ तो हमारे से पहले ही जेल में मौजुद है।
( जेल कर्मी) बिस्मिल की माँ से, ये लडका कौन है।
बिस्मिल की माँ – मेरी बहन का लडका है यह.
(माँ को देखते ही बिस्मिल रो पड़ते हैं )
माँ- मैं तो समझती थी कि मेरा बेटा बहादुर है, जिसके नाम से अग्रेज़ी सरकार काँपती है। मुझे नहीं पता था कि वह मौत से डरता है। तुम्हें यदि रो कर ही मरना था तो व्यर्थ में ही इस काम में आये।
बिस्मिल- मौत से नहीं डरता हुँ मैं माँ मेरा विश्वास करो।
जेल कर्मचारी- बहादुर माँ का बेटा ही बहादुर हो सकता है।
(बिस्मिल जिंदाबाद- बिस्मिल जिंदाबाद के नारे फ़िजाओं मे गुँजनें लगे)
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे
बाकि न में रहूँ न मेरी आरज़ू रहे
जहाँ तक कि तन मे जान, रगों मे लहू रहे
तेरी ही जिक्र रहे या तेरी ही आरजू रहे
७.
( लकड़ी के तख्ते पर बिस्मिल के क़दमों की आवाज़ )
( रस्सी खींचने की आवाज़)
बिस्मिल के अंतिम शब्द– I wish the downfall of British empire
( संस्कृत श्लोक ) विश्वनिदेव सवितुर्दुरितानी का उच्चारण
( खटाक की आवाज़ )
(बैक ग्राउंड से सरफरोशी की तमन्ना, गीत बजता है )
6 Comments
विपिन की कविताएँ और कहानियां पढ़ी थीं , आज नाटक पढ़ा. बिस्मिल के जीवन प्रसंगों पर आधारित नाटक बिस्मिल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है. प्रभात का आभार!
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