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युवा कवि रविकांत को हेमंत स्मृति सम्मान मिला है. रविकांत की कविताएँ हिंदी कविता के बदलते स्वर से परिचय करवाती है. एक ऐसे मुहावरे से जिसमें आज के मनुष्य की आवाज़ सुनाई देती है. उनको बधाई के साथ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.
1.
बयान
इसमें संदेह नहीं कि मेरा प्रेम सच्चा है I
पर सच्चे प्रेम में भी
हमारे समय के कुछ सामान्य तत्व तो होंगे ही ना !
अब चौबिस कैरेट के सच्चे प्रेम की मांग तो
मूर्खता ही कही जाएगी I
अफ़सोस है कि मेरी प्रेमिका एकदम मूर्ख है I
वह इस घोर आधुनिक समय में भी
सच्चे प्रेम की मांग करती है
और वह भी
जाने किस ज़माने की परिभाषा के अनुसार !
फ़िलहाल मैं
अपनी प्रेमिका के
खतरनाक सच्चे प्रेम
को झेलने में
पापड़ हुआ जा रहा हूँ I
2.
तिरंगा
न तो 26 जनवरी है
और न 15 अगस्त I
पडोसी ने अपनी छत पर
ऊंचा भव्य तिरंगा फहराया है I
हालाँकि, छुप कर, सैल्यूट कर आया हूँ
कई बार निहार आया हूँ
खिड़की से, पेड़ों को डोलता देख
भागता हूँ बाहर
पर न जाने क्यों
इस सीधे-सादे भले-से पडोसी को लेकर
अनेक शंकाएं जाग उठी हैं
सरकारी मामला है कुछ !
किस दल में गया ?
किसी आयोग का मुखिया बन गया हो शायद !
जुटेगी भीड़ रोज़
हल्ला होगा
अब ठीक से पेश आएगा या नहीं
3.
दिल्ली है !
मै कार के भीतर हूँ
खिड़की का कांच चढ़ा है
बाहर भीख मांगती एक माँ है
अपने बच्चे को गोद में लिए
बच्चा फटी आँखों से मुझे देख रहा है
और माँ
पथराई हुई उम्मीद से I
दिन हुए दिल्ली में
अब मै खिलंदड़ा हो गया हूँ…
इन्हें देख छोभ में आने, लजाने
आँखे न मिला पाने से
आगे निकल गया हूँ…
अब तो इन्हें देख
मोबाईल के टू मेगा पिक्सल कैमरे से
उतारने लगता हूँ
माँ-बेटे का फोटू !
पथराई उम्मीद का फोटू
फटी आँखों का फोटू
अपनी गैरत का फोटू
अपनी आत्मा का फोटू
अपनी इन निजी तस्वीरों के सहारे
टटोलता हूँ अपने देश की तस्वीर
और ऐसा करते हुए
खुद को
देश के निर्माताओं में
शामिल न करने की
सदाशयता के चक्कर
में नहीं पड़ता I
4.
चाँद
1
चाँद तुमको सीने से लगाता हूँ
और फिर
जैसे किसी पतंग को
छीने जाने से बचाता हूँ I
2
चाँद को बाहर ही छोड़
रात में अंतिम बार
घर का दरवाज़ा बंद करना
अच्छा नहीं लगता I
3
तुम चन्द्रमा हो मेरी
मैं चाँद तुम्हारा
चांदनी है – प्रेम हमारा I
चाँद में जो धब्बे हैं
—शिकायतें हैं एक दूसरे से हमारी I
4
तुम्हें खोने का डर नहीं है I
तुम्हें और और पाना है I
तुम्हें
और न पाना ही
तुम्हें
खो देना है I
5
अमावस्या से पूर्णमासी तक
निहारता हूँ
तुम्हेंI
चाँद जब खिल जाता है पूरा
ख़ुशी से झूमता हूँ मैं
लहराता हूँ
कि जैसे
मुझ अरमानों से लबालब को
देख लोगी तुम
उदार हो जाओगी बेवजह
पुकार लोगी
लग जाओगी गले
कि जैसे प्रेम की सलाहियत आ जाएगी मुझमे
प्रेम सीख जाऊंगा मैं
निर्दोष हो जायेगा मेरा प्रेम…मेरे भीतर….
तुम्हारे प्रेम के तेज से
चुंधियाया रहता हूँ आठों पहर I
5.
चेहरा
मैं कुछ बहुत बड़ा-सा बनना नहीं चाहता I
ऊंची ख्वाहिश नहीं है मेरी
जैसे हर कोई चाहता है आईने में सुन्दर दिखना
वैसे ही मैं भी चाहता हूँ I
चाहता हूँ
सूर्य के तेज और चाँद के नूर से खिला
विनम्र
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