महज २८ साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को कुछ लोग हिंदी का कीट्स भी कहते हैं. उनकी कविताओं की एक किताब ‘चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का कविता संसार’ हाथ लगी तो अपने जन्मदिन के दिन अपने इस प्रिय कवि को पढ़ता रहा. डॉ. उमाशंकर सतीश द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में बर्त्वाल जी की कई अच्छी कविताएँ हैं. बहरहाल, उनकी कुछ छोटी-छोटी कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल
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१.
सुख-दुःख
सपनों में धन- सा मिलता है
सुख जग में जीवन को
बिजली-सी आलोकित करती
क्षण भर हँसी रुदन को.
पहिन बसन काँटों में आता
दुःख बांहें फैलाये
निर्मम आलिंगन से करता
क्षत-विक्षत यौवन को.
२.
इतने फूल खिले
फूलों की जब चाह थी
तब कांटे भी नहीं मिले
जब शशि की थी चाह मुझे
तब जुगनू भी न कहीं निकले
आशा और निराशा सब कुछ
खो मैं जग में घूम रहा
अब पग-पग पर मिलते मुझको
क्यों ये इतने फूल खिले?
३.
एक दिन
एक दिन था जब तुम्हारी चाह थी
खोजती जब तुम्हें मेरी आह थी
एक दिन आज भी है मुँह फेर कर
जबकि मैं खड़ा तुमको हेर कर
४.
मैंने सोचा था
मैंने सोचा था जब मुझ पर शोक पड़ेगा
मेरे साथ-साथ रोएगी प्यारी दुनिया
रोता हूं आज अकेला, देख रहा हूं
हँसती है मुझे दिखा उंगली सारी दुनिया.
५.
और न कोई
मैंने कहा, बहुत से मुझे प्यार करते हैं
दुःख ने उन सबको छलनी से छाना
और अंत में मैंने देखा, इस पृथ्वी में
मुझे प्यार करता था मैं ही, और न कोई.
६.
हरी धरा
पतझड़ देख अरे मत रोओ
वह वसंत के लिए मारा
शशि को गिरते देख न रोओ
वह प्रभात के लिए गिरा.
मिटा बीज मिटता जाता है
यह बादल रोता-रोता
पर देखो होती जाती है
सुख से कितन हरी धरा.
4 Comments
janmdin ki gahri mangalkamnaein, prabhat ji. ab ham sab ko apni nayi kahaani ka uphaar dijiye.
shubh sahit,
piyush
मुझे तो सबसे ज्यादा इनकी ये लाइनें याद रहती हैं
हिरोशिमा का शाप न्यूयोर्क भी नहीं रह पायेगा
जिसने मिटाया है तुझे वह भी मिटाया जाएगा.
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