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ब्रेक की घंटी बज गई। “आह!” सब बच्चों ने चैन की सांस ली। और मैं, कक्षा पाँच की दीवार ने खौफ़ भरी सांस ली। सब बच्चे चिल्लाकर दरवाज़े की तरफ़ भागे। एक बच्चा शांत और सूना-सा लग रहा था। शायद…शायद इस बच्चे को अच्छे अंक नहीं आए होंगे इसलिए वह खुशी के माहौल में सूना बैठा था। और जिन बच्चों को अच्छे अंक आए, वे तो खुशी से झूम रहे थे। दूसरों को चिढ़ाकर अपना रौब जमा रहे थे।
“एऽऽऽ, मुझे तुझसे ज़्यादा नंबर आए हैं।”
“एक पेपर से क्या होता है” दूसरे बच्चे ने कहा।
उसके कुछ ही देर बाद सब लोगों ने नंबर की बातों को भूलकर खाना शुरू कर दिया। अब बजी मेरे खतरे की घंटी…। ब्रेक के समय इस कक्षा में कोई टीचर नहीं होती हैं इसलिए बच्चे हर दिन फूड-फ़ाइट करते हैं। वे एक-दूसरे पर खाना फेंककर खुश होते हैं। एकबार एक बच्चा जिसका नाम था कुछ…अ…, उसका नाम नहीं याद आ रहा है। लेकिन यह तो बता दूँ उसकी करतूत क्या थी, उसने एक बच्चे पर सांभर की पूरी कटोरी फेंकी और पीछे कौन खड़ा था…मैं! जिन बच्चों ने ऐसा किया था, वह अपनी सजा अभी तक प्रिंसिपल के ऑफिस में काट रहे हैं।
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अगले दिन इन बच्चों ने अपनी पसंद के बारे में बातें करनी शुरू की। अपने खेल और टीचरों के पसंद के आगे अरमान ने बताया कि उसका प्यार सुमति है। उसने यह भी कहा कि वो उससे सच्चा प्यार करता है। मैं इस बात से ज्यादा हैरान नहीं था, ऐसी बातें हर साल सुनने को मिलती हैं। लेकिन इन सबने यह सुनकर हैरानी से अपने हाथों को अपने मुँह पर रखकर अपनी गुदगुदाती हँसी को रोका। उसके बाद जोश में आकर सब बच्चों ने अपनी पसंद सबको बता दी। कुछ दिनों के बाद सारे पाँचवीं क्लास के लड़के एक-दूसरे की पसंद जानने लगे। यह बातें लड़कियों तक तो पहुँचनी ही थी। लेकिन लड़कियाँ इतनी शातिर निकलीं कि उन्होंने अपने मन की बात किसी तक पहुँचने नहीं दी।
जब टीचरों ने यह ख़बर सुनी तो वे हर एक बच्चों को डाँटने लगीं, लेकिन हमारी क्लास टीचर सुनीता मैम ने हमको समझाया कि प्यार के तीन विभाग होते हैं। उसका आदर करना, यह था पहला कदम। उसको पसंद करना, इसका मतलब दोनों, आदर और पसंद करना। यह था दूसरा कदम। उसको प्यार करना मतलब उसको तीनों, प्यार, पसंद और उसका आदर करना। और तीसरे वाले की उमर अभी तुमलोगों की नहीं हुई है।
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आज कक्षा पाँचवी “ब” की एसेंबली थी। मैंने सुनीता मैम को देखा कि वह हर बच्चे को प्यार से समझा रही थीं। पिछले दस सालों में मैंने ऐसा स्वभाव किसी भी टीचर में नहीं देखा। यह एसेंबली का किस्सा चार-पाँच दिनों से चल रहा है। जिस पीरियड में एसेंबली का समय आया तो पूरी क्लास ने कमर कसी और हुए एसेंबली के लिए ऐसे तैयार जैसे भारत-पाकिस्तान के युद्ध में जा रहे हों। क्लास आधे घंटे के लिए सूनी पड़ गई। अगर कोई पेंसिल दो कदम टेबल से आगे लुढ़ककर गिर भी जाती तो वह आवाज़ मेरे कानों में इतने ज़ोर से घूमती मानों की कान ही फट जाएँगें।
मेरी आँखें बंद ही होने वाली थी लेकिन एक लड़की की आहट ने मेरी नींद तोड़ दी। वह एक गोरी-सी बच्ची थी और उसने अपनी नज़र मुझसे भी छिपाते हुए एक बच्चे के बैग के अंदर अपने काँपते हाथ डाले और बैग से एक चाँदी का पेन चुरा ले गई। बस दो मिनट बाद पूरी क्लास चीखती-चिल्लाती हुई आई। मुझे लगा कि स्कूल में एक डाकू आ गया है लेकिन जब मैंने मुँह खोले बत्तीसी दिखाते हुए मुस्कुराते चेहरे देखे तो मैं समझ गया कि इन बच्चों की एसेंबली कामयाब रही। इतना ही नहीं, मैंने दो बच्चों को बात करते हुए सुना कि उनको एक खेल का एक्सट्रा पीरियड भी मिला है, जब भी वे चाहें!
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आज के दिन बच्चों का बर्ताव बदल गया। अचानक से वे गालियों और गंदी बातों का इस्तेमाल करने लगे थे।
अक्षत, इस क्लास के सबसे ज़्यादा अंक लाने वाले बच्चे ने कहा, “अब हम बड़े हो गए हैं। गाली देना तो ज्वालामुखी में एक चिंगारी जैसा है।”
अक्षत सबको गालियों का मतलब बता रहा था और जो यह मतलब सुन रहे थे वह अपनी आँखों को चौड़ा कर अपने खुले मुँह पर हाथ रख रहे थे। कुछ देर पहले मैंने उन्हें गालियों की अंत्याक्षरी खेलते हुए भी देखा था।
“क्या ख़ाक बड़े हो गए हैं। असली दुनिया वो अब देखेंगे!”
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आज एक बच्चा सिद्धार्थ आकर मुझसे बात करने लगा। दो पल के लिए मुझे लगा कि मैं एक ज़िन्दा आदमी हूँ, लेकिन फिर याद आया कि मेरा दिल सीमेंट का है। खैर वह बच्चा मुझे बोला, क्या मैं तुम्हें एक कविता सुनाऊँ। मैंने देखा कि पीछे से कुछ बच्चे उस पर हंस रहे थे। उनकी तरफ ध्यान न देते हुए उस बच्चे ने अपनी कविता सुनाई।
“जंगलों की सैर करने गया था
आवाज़ों को पीने की कोशिश की थी
लेकिन
पेड़ों ने बोलने से इन्कार कर दिया।
चीड़ की चिकनी छाल को छुआ
लेकिन
उसने मेरे हाथों में काँटे चुभा दिए।”
मुझे इस कविता का मतलब बिल्कुल नहीं समझ आया। लेकिन यह मेरे पत्थर दिल को हल्का कर गई।
“तो आज से हम दोस्त?” सिद्धार्थ ने पूछा।
मैं कुछ बोल न पाया। सिद्धार्थ अपनी जगह पर जाकर शांति से बैठ गया।
उसकी पार्टनर शायरा ने उसको कहा, “फ़क्र करो कि तुम एक स्कॉलर के साथ बैठे हो।” शायरा की बात से मुझे पाँचवीं क्लास का पहला दिन याद आ गया। उस दिन स्कॉलर बैच मिलना था। कुछ बच्चों के चेहरे पर अजीब-सी खामोशी थी। जैसे उनकी सुहानी रात से चाँद चुरा लिया गया हो। आँखें भर रही थीं लेकिन वह आँसुओं को गाल का रास्ता पकड़ने नहीं दे रहे थे। सिद्धार्थ भी उन्हीं बच्चों में से था।
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अगले दिन की शुरुआत ज़्यादा मज़ेदार नहीं थी। सुनीता मैम को ख़बर मिली कि इस क्लास के बच्चे शैतानी कर रहे थे। और कल की बात मैं आपको बताना ही भूल गया। एक बच्चा अथर्व, ज़्यादा भी हाइट बड़ीं नहीं थी उसकी, छोटे शब्दों में वह बटला था। तो हाइट को छोड़कर टॉपिक पर आते हैं। …हाँ…तो उसको जब मैम ने डाँटते-डाँटते धक्का मारा तब बताऊँ उसने जवाब कैसे दिया? वापस धक्का मारके! बल्कि, उसने इतने जोर से धक्का मारा कि मैडम लड़खड़ा कर सीढ़ियों से गिरते-गिरते बचीं! तब मैम ने अथर्वा को इतने ज़ोर से थप्पर मारा कि वह मुँह के बल…”धड़ाम”…आप “धड़ाम” का मतलब समझ ही रहे होंगे न?
आज अथर्व प्रिंसिपल मैम के रूम से वापस लौटा। मैंने उसके आँखों में एक भी आँसू नहीं बल्कि एक चहचहाती मुस्कुराहट देखी। लेकिन, उस मुस्कुराहट में हाँ या न, थोड़ा खौफ़ भरा हुआ था। जब अंग्रेजी पीरियड आया तो सुनीता मैम ने अथर्व की तरफ इशारा करते हुए एक बात बताई।
उन्होंने कहा, “बच्चों, आज मैं तुमलोगों को एक कहानी सुनाती हूँ। एक राजा हुआ करता था। वह बहुत बुज़दिल और कठोर था। लेकिन उस राज्य के रहने वाले लोग राजा का बहुत आदर करते थे। लेकिन वह कठोर राजा उनकी हर माँग को ठुकरा देता। एक दिन एक ऋषि उस राज्य में आया। उसने राजा के इस बर्ताव को देखा और एक योजना बनाई। सारे राज्यवासियों ने उस योजना को मान लिया। अगले दिन से वे लोग राजा के साथ कठोरता और अनादर दिखाने लगे। राजा को एक कंपकपाता झटका लगा। कुछ दिन, हफ्ते, बल्कि महीने बीते। इस बर्ताव से राजा को गुस्सा आया। वह बैठा और सोचा कि इस मुश्किल का क्या किया जाए लेकिन उसके दिमाग में कुछ और ही बात चल रही थी, मैं इनके साथ इतना ही कठोर होता हूँ जितना यह अभी मुझसे हो रहे हैं? राजा ने थोड़ी देर और सोचा, फिर उसने तय किया “अगर मैं इनसे अच्छे बर्ताव रखूँगा तो शायद यह ऐसा बर्ताव बंद कर मेरा आदर करने लगें।” और मानो न मानो ऐसा ही हुआ! तबसे वह राज्य कुशल मंगल रहने लगा। तो बच्चों कैसी लगी कहानी?”
जिस दिन से सुनीता मैम ने कहानी सुनाई तबसे अथर्व का बरताव थोड़ा बदल गया। वह सबसे अच्छे तरीके से बात करने लगा। क्लास में किसी को मारता नहीं था। क्लास में ध्यान से पढ़ता था। मैंने अपने मन में सोचा, “अरे बाप रे। कोई टीचर अथर्व को अब तक नहीं बदल पाईं, सुनीता मैम ने एक ही कहानी में बदल दिया।”
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आज सुनीता मैम ने परसोनीफिकेशन पढ़ाया। इसका मतलब जब हम किसी निर्जीव चीज को जीवित रूप में देखते हैं। जब मैम समझा रही थीं तो उन्होंने एक उदाहरण दिया। “दीवार ने मुझे निहारा।” जब मैंने यह सुना तो मुझे एक प्रकार की झुनझुनी लगी। मुझे लगा कि मेरा राज़ खुल गया, लेकिन मैंने मन में दोहराया कि यह बस एक उदाहरण ही है।
हवा के साथ समय उड़ा और हिन्दी का पीरियड आया। सब बच्चे अपना काम कर रहे थे जो आभा मैम ने उन्हें दिया था। तभी उसी बीच में सिद्धार्थ ने एक बच्ची को गधी बुलाया। और बताऊँ शायरा ने उसका जवाब कैसे दिया; अपनी आँखों में आँसू भरकर!! मैंने सोचा कि यह भी कोई बात हुई रोने की!? शायरा ने मैडम को बताया और मैम ने सिद्धार्थ को पास बुलाया। सिद्धार्थ ने दोनों होठों पर अपनी पहली अँगुली को रखकर ऐसे देखा जैसे कि वह मैडम की बात ध्यान से सुन रहा था। अगर आप बच्चे हैं तो आपको पता चल ही गया होगा कि सिद्धार्थ के मन में क्या चल रहा था, लेकिन जिनकी उमर थोड़ी ज़्यादा हो चुकी है और मेरी डायरी पढ़ रहे हैं तो कृपया जान लें कि सिद्धार्थ के मन में चल रहा था कि शायरा जैसी पागल एवं गधी लड़की कोई हो ही नहीं सकती।
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आज सायंस का पेपर है। बच्चे आज थोड़े डरे हुए लग रहे हैं। अपनी टेक्स्ट बुक निकाल एक ही चीज़ को चार-पाँच बार फुसफुसा रहे हैं। मैंने इन बच्चों का हँसता और खिलखिलाता चेहरा ही देखा था। इसलिए आज मुझे थोड़ा अजीब लगा। जैसे ही सुनीता मैम आईं और कहा, “चलो, अपने बैग बाहर रखकर आ जाओ” बच्चे थोड़े और घबरा गए। कुछ-कुछ को तो मैंने यह बोलते भी सुना, “अरे बाप रे, आज तो माँ मुझे मार ही डालेगी।”
मैं यह बोलना तो नहीं चाहता लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। मैं १५ साल से यही नज़ारा देख रहा हूँ लेकिन जब मेरा पाँचवाँ साल चल रहा था इस स्कूल का, तब एक बच्चे ने मेरी आँख पकड़ ली थी। उसका नाम था राहुल। कुछ मस्ती में आया, नाचता-गाता क्लास में घुसा, परीक्षा निडर होकर दिया और चला गया। बस उसके आगे की ज़िन्दगी में क्या हुआ मुझे नहीं मालूम।
खैर, बच्चे परीक्षा देने के बाद अपने रोज के काम को निपटाने लगे। सिद्धार्थ मानव के साथ गाना गा रहा था। शायरा और उसकी चेलियाँ ‘ता-धिन-धिन धा’ (नाच) रहे थे। विभु, कुशल और जतिन को अक्षत झूठी-मूठी कहानियाँ बनाकर बता रहा था। अब लग रही थी मेरी पुरानी, खिलखिलाती हुई क्लास।
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आज एच.पी.ई. के सर आए और उन्होंने कहा कि फुटबॉल की टीम सिलेक्ट होने वाली है। उन्होंने यह भी कहा कि दूसरी कक्षाओं के साथ हमारे मैच होंगे। लड़कियों को इस ख़बर से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा, लेकिन हाँ, लड़कों ने जब यह सुना तो वह खुशी के मारे पागल हो गए। जैसे ही हिन्दी की टीचर बाहर निकलीं, सब बच्चों, यानी लड़कों ने एक झुंड बनाया और एक लंबी चौड़ी बहस में लग गए कि कौन ११ बच्चों की टीम में खेलेंगे। लेकिन यह बहस लगातार कभी नहीं चल पाई क्योंकि टीचर के आने-जाने में बस दस मिनट ही लगते हैं। और यह क्लास क्या, कोई भी दस मिनट में एक तगड़ी, शानदार फुटबॉल टीम नहीं बना सकता!
यह फ़ुटबॉल का किस्सा थोड़ा लंबा खिंचता चला जा रहा है। बच्चे पागलों की तरह टीम में आने के लिए लड़ रहे हैं। और जो टीम में है वह अपनी जगह के लिए लड़ रहे हैं। सब लोग सबसे ऊपरी स्थान, जो है फ़ॉरवार्ड, उसपर आना चाहते हैं। यह बच्चे भी न – कभी गर्लफ्रेंड तो कभी फ़ुटबॉल।
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आज कुछ बच्चों के लिए दुनिया का सबसे अच्छा दिन होगा और कुछ बच्चों के लिए सबसे बड़ा खौफ़ का सपना। आज बच्चों को उनके एक सेमेस्टर का रिज़ल्ट मिलेगा। मेरे पंद्रह साल के तजुर्बे से मुझे नहीं लगता कुछ अलग होने वाला है। वही रोना, वही चिढ़ाना। और अलग ही क्या होने वाला है। मैं तो अक्षत को अभी से बच्चों को चिढ़ाते हुए देख सकता हूँ। तो जैसे ही सुनीता मैम क्लास के अंदर आईं तो सबने हनुमान चालीसा पढ़नी शुरू दी। और तो और, मैंने कुछ बच्चों को यह कहते भी सुना कि भगवानजी मुझे A+ दिला दो मैं एक सौ एक लड्डू चढाऊँगा। तो मैम ने अचानक उनकी प्रार्थना के बीच मार्क्स बताने शुरू कर दिए। मार्क्स सुनकर कुछ बच्चे अपनी सीट पर उछलने लगे और कुछ बच्चे अपनी सीट पर अपना सर पटकने लगे। कुछ ने तो मैम पर इल्ज़ाम लगाया कि उन्होंने उनके प्रार्थना के बीच में टाँग अड़ा दी।
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मुझे लगता है शायरा इस दिन के बाद किसी को नहीं चिढ़ाएगी। आज उसने कुशल को उसके मोटे होने के बारे में चिढ़ाया। कुशल ने बोला, अब तो मैं तेरी फाड़ दूँगा। शायरा ने उल्टा जवाब दिया, तू क्या फाड़ लेगा मेरी। अब कुशल को जोर से गुस्सा आ गया, उसकी भृकुटी बीच में मिल गई। उसने शायरा को धक्का दिया तो वह मेरे मुँह पर आ टकराई और जैसे ही वो होश में आई तो कुशल ने उसको दे-दनादन मारना शुरू कर दिया।
अच्छा हुआ सही समय पर टीचर आ गईं नहीं तो शायरा अपनी आँखें आई.सी.यू में ही खोलती। कुशल पर टीचर बहुत भड़क गई। उसे तीन रेड स्टार मिले और टीचर से एक थप्पर। कुशल फूट-फूट के रोने लगा और उसके आँसुओं ने पता नहीं कैसे मेरी पलकें भी झपकानी शुरू कर दी।
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सुनीता मैम बुरे मूड में थी। वह सब बच्चों पर गुस्सा रहीं थीं। उन्होंने क्लास को शांत करने के लिए मेरे मुँह पर डस्टर मारा। वेद को आज सबसे ज़्यादा डाँट पड़ी। वेद मेरे ख़याल से पाँचवीं का सबसे ज़्यादा शैतान बच्चा था। उसके बाल काफी घने हैं। वह कभी अपने बाल नहीं कटवाता।
“वेद, तुमने अपनी नोटबुक में एक भी काम पूरा नहीं किया है। और अगर किया भी है तो मैं उसे पढ़ नहीं पा रही।” सुनीता मैम बोलीं।
यह बात सुनते ही सब लोग हंस पड़े।
“एए! तुमलोग शांत बैठोगे या फिर दूँ कान के नीचे।” वेद चिड़चिड़ाया।
“वेद! ऐसे बात करना सिखाया है तुमको इस स्कूल में।” सुनीता मैम की आँखें गुस्से से लाल हो गईं।
वेद ने दोनों दाँतों से ‘नहीं’ की दूसरी आवाज़ निकाली।
“हाय क्या करूँ मैं इस बच्चे का!” सुनीता मैम माथा पकड़ कर बोलीं।
सुनीता मैम की डाँट से आज चेष्टा भी नहीं बच पाई। चेष्टा लंबी, मोटी और पहलवान जैसी लगती है। लेकिन वह पढ़ाई में बहुत अच्छी है और दिल पंखों सा कोमल है। लेकिन! उसके साथ किसी ने लड़ाई की तो…टाटा जिसने भी लड़ाई की। सुनीता मैम ने बस इसलिए डाँटा कि वह अपने दोस्त से नोटबुक माँग रही थी।
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आज इस स्कूल में नाइट आउट हो रहा है। मैं तो खुशी के मारे पागल हुआ जा रहा हूँ। क्यों? एक रात के लिए मैं बोर नहीं हूँगा। आज बच्चे अपने घर के कपड़ों में स्कूल आ गए। कितने अलग लग रहे थे यह सब! मेरी तो पहचान में नहीं आ रहे थे।
अक्षत ने विभु और सिद्धार्थ से कहा, “काश आज लड़कियाँ होतीं, मज़ा ही आ जाता।”
विभु और सिद्धार्थ एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे उन्हें कुछ नहीं समझ आ रहा हो।
फिर सिद्धार्थ ने कहा, “मतलब?”
अक्षत ने माथा पीट कर कहा, “तुम दोनों के बस की बात नहीं है, तुम अभी बच्चे हो।”
मैंने सोचा यह पाँचवीं कक्षा में होकर ऐसी बातें करता है, मेरा मतलब यह नहीं कि मुझे यह बात समझ नहीं आई, लेकिन जिस हँसी से उसने यह बोला उससे तो यह स्पष्ट था कि वह लड़कियों को अंत्याक्षरी खेलने के लिए नहीं बुलाना चाहता है।
बच्चे पूरा दिन बाहर रहे और जब सोने के लिए क्लास में आए, किसी को नींद नहीं आ रही थी। कुछ-कुछ बच्चे अपने अँगूठे को मुँह में डाल रखे थे और कुछ उनको देखकर न हँसने की कोशिश कर रहे थे। मुझे उनकी ज़्यादा बातें समझ में नहीं आईं क्योंकि वह बच्चे खुसफुसा रहे थे लेकिन एक बच्चे ने “गर्लफ्रेंड” थोड़ा ज़ोर से बोल दिया और दूसरे बच्चे ने उसे थप्पर मार के अपनी पहली उंगली अपने होठों पर रखी। मैं इस बात से ज़्यादा अचंभित नहीं हुआ, यह हर साल की बात है। यह बच्चे समझते नहीं कि अभी उन्होंने बिल्डिंग का पहला फ्लोर ही पार किया है।
जब सुबह हुई तो अक्षत सिद्धार्थ, विभु और कुशल को एक शेर सुना रहा था। अगर मेरी हँसी में आवाज़ होती तो पूरा स्कूल मेरे ठहाके को सुन लेता। आपको यह शेर सुनना है—
“पत्थर क्या पहाड़ मार दो।
अरे, पत्थर क्या पहाड़ मार दो।
हम वहीं के वहीं मर जाएँगे
तुम बस एक आँख मार दो।”
कुछ समय बाद बच्चे अपने-अपने माँ-बाप के सीने से अलग होना चाह रहे थे (शर्म से), लेकिन माँ-बाप उन्हें छोड़ नहीं रहे थे। शायद यह सोचकर कि मेरा बच्चा मुझसे फिर अलग न हो जाए।
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इस क्लास का आज आखिरी दिन है। सब बड़े खुश हैं जिन सबको आज स्कॉलर बैज़ मिल रहा है। आज बस एक बच्चे का बर्ताव थोड़ा अलग लग रहा था। शकल नीचे झुकाए अपने आँसुओं को रोकने की कोशिश कर रहा था। मैंने मन में सबके नाम दोहराया। सिद्धार्थ… इसका नाम सिद्धार्थ था। जैसे सुनीता मैम ने नाम लिए थे, इस बच्चे को तो स्कॉलर बैज़ मिल रहा था। फिर यह इतना उदास क्यों था? पता नहीं। जब स्कॉलर बैज़ के इनामों का वक़्त आया तो पूरी क्लास नीचे चली गई। क्लास फिर से सूनी पड़ गई। फिर एक बच्चा छिप-छिपाकर क्लास के अंदर पहुँचा। शकल ध्यान से देखी तो समझा वह सिद्धार्थ था। वह शांति से क्लास के अंदर आकर मेरी ओर बढ़ने लगा।
उसने धीरे से मुझसे कहा, “मैं जानता हूँ कि यह पागलपन है, लेकिन मुझे हमेशा से लगता था कि तुम मुझे देख रहे हो।”
मैंने उसे बड़ी आँखों से देखा लेकिन मैंने कुछ कहा नहीं।
“और बस एक तुम ही हो जो यह बात जानते हो कि मैं यहाँ पर हूँ। मुझे नहीं चाहिए यह स्कॉलर बैज़, उस चीज़ को लेने में क्या खुशी जिसको तुम हासिल ही नहीं करना चाहते हो।”
दूर जहाँ इनाम मिल रहे थे, एक आवाज़ ने बुलाया, ‘सिद्धार्थ।’
सिद्धार्थ ने अपनी आँखें बंद की और आँसुओं को अपना रास्ता ढूँढ़ने के लिए छोड़ दिया, जिन्होंने उसके होठों पर अपनी मंज़िल ठान ली।
“मैं लिखना चाहता हूँ। मेरी कविता सुनोगे।”
उस आवाज़ ने फिर पुकारा, “सिद्धार्थ, अपना स्कॉलर बैज़ लेने के लिए सामने आइए।”
उसने कविता बोलनी शुरू की —
जब वह शुरू ही करने वाला होता है, सुनीता मैम उसके पीछे आकर खड़ी हो गई। मैं सिद्धार्थ को बोलना चाहता था कि भागो वहाँ से, लेकिन उस समय तक वह अपनी कविता बोलना शुरु कर चुका था…
चुपचाप कोने में छुपा रहता हूँ
परछाइयों में मिल जाता हूँ
यही करते हो तुम
मन की खुशी चुरा लेते हो,
क्यों नहीं समझते कि
जिन्दगी पर हक हमारा है,
जिन्दगी हमारी है।
और तुम जीने का सहारा
छीन लोगे।
मन की ज़मीन पर क्यों
कब्ज़ा जमाना चाहते हो।
रौशनी का सहारा क्यों छीनते हो।
लेकिन मुझे पता है कि
एक समय तुम भी मेरी जगह थे
और तुम्हारी ज़िन्दगी की ज़मीन को,
कोई अपना हक कहना चाहता था।
मैं कुछ बोलना चाहता था लेकिन उस कविता ने मेरे सारे शब्द छीन अपने अंदर रंग लिए। सुनीता मैम धीरे-धीरे दरवाज़े से बाहर निकली और मैं और सिद्धार्थ एक-दूसरे की आँखें ढ़ूँढ़ते रहे, किसे फ़र्क पड़ता था कब तक?
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