डीपीएस पुणे में कक्षा छह में पढ़ने वाले अमृत रंजन ने हमें अपनी कवितायें भेजी तो मैं थोड़ा विस्मित हुआ। 11 साल का लड़का सुंदर भाषा में ऐसी कवितायें लिखता है जिसमें सुंदर की संभावना दिखाई देती है। अगर लिखता रहा तो आगे कुछ बहुत अच्छा लिखेगा ऐसी संभावना दिखाई देती है। मुझे इसलिए भी अच्छा लगा कि ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाला लड़का अच्छी हिन्दी में कवितायें लिख रहा है जहां हिन्दी न आना फैशन होता है। आप भी पढ़िये और अमृत को शुभकामनायें दीजिये- प्रभात रंजन
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1.
कागज़ का टुकड़ा
एक कागज़ के टुकड़े का,
इस ज़माने में,
माँ से ज़्यादा मोल हो गया है।
एक कागज़ के टुकड़े से
दुनिया मुट्ठी में आ सकती है।
एक कागज़ के टुकड़े से
लड़कियाँ ख़ुद को बेच देती हैं।
लड़के ख़रीद लेते हैं।
एक कागज़ के टुकड़े से
छत की छाँव मिलती है।
लेकिन जिसके पास कागज़
का टुकड़ा नहीं है
उसका क्या होता है?
रात बिन पेट गुजारनी पड़ती है।
आँसुओं को पानी की तरह
पीना पड़ता है।
छत के लिए तड़पना पड़ता है।
बिन एक कागज़ के टुकड़े के,
हम दुनिया में गूँगे होते हैं।
मगर आवाज़ दिल से आती है,
और याद रखो दिल को
ख़रीदा नहीं जा सकता।
2.
रात
अंधेरे में कुछ समझ न आया
लड़खड़ाते हुए,
कदम रखा उस अँधेरी रात में।
लगना डर शुरू हो जाता है।
सितारों की हल्की सी रौशनी
हज़ारों ख़याल मन में।
लगता है
गुस्ताखी कर दी
रात की इस चंचलता में फंस कर
अलग-अलग आवाज़ें आ
हमें सावधान कर जाती
कि “बेटा, आगे ख़तरा
पल रहा है, उसे उठाना मत।”
यह हमें उधर जाने के लिए
और भी उत्साह भर देता है।
कदम से कदम मिलाते हुए
आगे बढ़ते हैं।
एक रौशनी हमारी आँखों
से अपनी रौशनी दे
हमें उठा देती हैं।
बिस्तर पर बैठे हुए
सोचते हैं।
इतना उजाला क्यों है भाई!
3.
अगर हम उसके बच्चे हैं
अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह हमें अमर क्यों नहीं बनाता ।
क्या वह अमर होने का लाभ,
केवल ख़ुद लेना चाहता ?
अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह इस दुनिया में आ,
अनाथों के लिए माँ की ममता,
क्यों नहीं जता जाता ?
अगर हम उसके बच्चे हैं,
तो वह, जिसे न किसी ने देखा
न किसी ने सुना है, वह,
अपने बच्चे को भूखा मरते
हुए कैसे देख पाता ?
अगर हम उसके बच्चे हैं,
तो वह हम भाई-बहनों को,
एक-दूसरे की छाती काट देने से
क्यों नहीं रोक जाता?
अगर हम उसके बच्चे हैं
तो वह हमारे सबसे अच्छे
भाइयों और बहनों को,
मौत से पहले क्यों मार देता ?
मै पूछता हूँ क्यों ?
ऐसे कोई अपने बच्चों को पालता है?
4. ———–
चिड़िया
उड़ना नहीं सीखा था,
मैंने अपनी माँ की कोख में
एक ही बार में नहीं उड़ पाई मैं
गिरी मैं कई बार
हुआ दर्द
लेकिन उड़ने के लिए हुई
मैं फिर तैयार
बार-बार, बार-बार
गिरकर भी मैंने नहीं मानी मैंने हार।
एक दिन मैं पेड़ की सबसे ऊँची टहनी पर थी
डरने से किया इनकार
कूदी मैं, फड़फड़ाए पंख
देखा कि जमीन मेरे नीचे है,
हवा मेरे पीछे है,
उड़ रही थी मैं, हवाओं के साथ।