आज दुन्या मिखाइल की कुछ कविताएँ पढ़िए। दुन्या मिखाइल इराक़ में पैदा हुई कवयित्री हैं। वह लंबे समय से अमेरिका में रह रही हैं। वह अब अमेरिकी नागरिक भी हैं। उनके कविता-संकलन चर्चित रहे हैं और उन्हें कुछ प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले हैं। हिंदी सहित संसार की कई भाषाओं में उनकी कविताओं का अनुवाद समय-समय पर होता रहा है। उनकी कविताओं का अनुवाद किया है जाने माने युवा कवि देवेश पथ सारिया ने। आप भी पढ़िए-
========================
आईसीयू में बुदबुदाहटें
— वह कॉफी शॉप में था जब बेहोश हुआ।
— नहीं, उसे पहले कभी हार्टअटैक नहीं आया था।
— एक जीवन है जिसमें उसे लौटना है।
— वह इस तरह बिना एक भी शब्द कहे नहीं जा सकता।
— उसे फोटोग्राफी और कॉफी की गंध पसंद है।
— जब यह मशीन आवाज़ करती है उसका मतलब क्या होता है?
— तुमने देखा उस आख़िरी तस्वीर को जो उसने भेजी थी?
— उसे इंजेक्शन से डर लगता है।
— वह मिशीगन जाने की सोच रहा था।
— वह मशीन के ज़रिए सांस ले रहा है।
— यदि वह आँखें खोल ले तो कोई उम्मीद है।
— लेकिन जब वह बोली तो उसने अपना हाथ हल्का सा हिलाया।
— उसका वॉइस मेल भर चुका है।
आंसू
मैं एक दुकान में काम करती हूँ
यहाँ बेचे जाते हैं आंसू
अलग-अलग आकृति और आकार की बोतलों में
बड़ी भीड़ रहती है यहाँ
रुमालों के लिए कोई फ़ुर्सत नहीं
सबसे आगे कतार में है वह औरत
जो हर रोज़ आती है
रंगहीन इन बूंदों को ख़रीदने
अपने लिए या किसी और के लिए?
अगला है एक अन्य ग्राहक
एक बार सोचा था उसने
कि वह इस मुल्क को कभी नहीं छोड़ेगा
भले पर्वत अपनी जगह से उखड़ जाएँ
तब भी नहीं
फिर आता है एक बच्चा
अपनी दादी के साथ
वे बाढ़ से बच निकले हैं—
हालांकि वाक़ई में ऐसा नहीं है
कतार में सबसे अंत में खड़ी औरत
अपनी बोतल वापस करना चाहती है
उसका कहना है कि
उसने उसे खोला ही नहीं
उसने सोचा कि
उसे ज़रूरत होगी आंसुओं की
जब उसके दोस्त उसे छोड़ गए थे
लेकिन वह चक्कर लगाती रही
पार्किंग के दो ठिकानों के
सूरज जा चुका है
दुनिया के दूसरे हिस्से में
अब घर जाने का वक़्त है
हम सबके आंसू सूख चुके हैं।
चांद पर तुम्हारे क़दमों के निशान
मैं जब भी क़दम रखती हूँ चांद पर
हर चीज़ मुझसे कहती है कि तुम भी थे वहाँ
गुरुत्वाकर्षण में कमी से
हल्का महसूस होता हुआ मेरा वज़न
तेज़ दौड़ती हुई मेरी धड़कन
रोज़-रोज़ की माथापच्ची से विमुक्त मेरा मन
किसी भी तरह की याद से रिक्त
अपनी जगह से खिसकी हुई सी पृथ्वी
और तुम्हारे क़दमों के ये निशान
सब तुम्हारा आभास दिलाया करते हैं।
एक दूसरे समय से एक गीत
मेरे साथ बचा रह गया
किसी दूसरे समय का एक गीत
अब जहाँ भी मैं जाती हूँ
वह मेरा पीछा करता है
वह मेरे पीछे दौड़कर आता है
मैं काग़ज़ के एक टुकड़े की तरह
गुड़मुड़ कर उसे फेंक देती हूँ
लेकिन जब भी मुझे याद आती है
अपने मृत दोस्तों में से किसी की
मैं खोलती हूँ उस गुड़मुड़ काग़ज़ को
उसकी सलवटों को सहलाती हूँ।
पुष्प
जब मेरे दिमाग़ में
चक्कर काट रहे होते हैं विचार
मैं शाखाओं की तरह
अपने हाथ लहराती हूँ
धरती में जमा देती हूँ अपने पांव
झुक जाती हूँ
इंतज़ार करती हूँ
डाली से तोड़ लिए जाने का
या सुगंध बिखेरती हूँ
पर पुष्प, पुष्प ही होता है
मैं पुष्प नहीं हूँ।
अनुवादक देवेश पथ सारिया का परिचय:
देवेश पथ सारिया हिंदी कवि लेखक और अनुवादक हैं। उनका पहला कविता संग्रह ‘नूह की नाव’ साहित्य अकादेमी, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। देवेश की ताइवान डायरी ‘छोटी आंखों की पुतलियों में’ भी चर्चित रही है। ई-मेल: deveshpath@gmail.com