http://akhilkatyalpoetry.blogspot.co.ukपर अपने मित्र सदन झा के सौजन्य से ब्रिटिश कवयित्री जैकी के की यह कविता पढ़ी तो अच्छी लगी. सोचा आपसे भी साझा किया जाए. हिंदी में शायद यह जैकी के की पहली ही अनूदित कविता है. एक कविता और भी है जो शायद अखिल कात्यालकी है, प्यार, मनुहार, छेडछाड की. आप भी पढ़िए- जानकी पुल.
वह
कि वह तो हमेशा हमेशा
कि वह तो कभी नहीं कभी नहीं
मैंने यह सब देखा था, सब सुना था
फिर भी उसके संग चल दी थी
वह तो हमेशा हमेशा
वह तो कभी नहीं कभी नहीं
कि वह तो कभी नहीं कभी नहीं
मैंने यह सब देखा था, सब सुना था
फिर भी उसके संग चल दी थी
वह तो हमेशा हमेशा
वह तो कभी नहीं कभी नहीं
उस छोटी सी निडर रात में
उसके होंठ, तितलियों से लम्हे
मैंने उसको पकड़ने कि कोशिश की तो वह हँसी
इतने जोर से हँसी कि सुनते ही चटक गयी थी मैं
उसके बारे में मुझे बताया तो गया था
कि वह तो हमेशा हमेशा
कि वह तो कभी नहीं कभी नहीं
उसके बारे में मुझे बताया तो गया था
कि वह तो हमेशा हमेशा
कि वह तो कभी नहीं कभी नहीं
हम दोनों यूं हवा को सुनते रहे
हम दोनों यूं तेज़ दौड़ते रहे
हम दोनों, आसमान में, दूर, दूर, और दूर
और अब वह नहीं है
वैसे ही जैसे उसने कहा था
पर उसके बारे में बताया तो गया था
कि वह तो हमेशा हमेशा
अरे जाओ
अरे जाओ, यह इश्क भी क्या इश्क
जिसमे बातें बनाना तुम्हें आता ही नहीं,
पहाड़ों पर चढ़ना-चढ़ाना मालूम है लेकिन
चने के झाड़ पर चढ़ाना तुम्हें आता ही नहीं।
मुनासिब बातों का तो हर जगह बाज़ार है
ज्यादातर से तो सच का ही कारोबार है,
सिर्फ़ तुमसे थी उम्मीद कि झूठ बोलोगे ज़रा
बढ़ा-चढ़ा कर बताना तुम्हें आता ही नहीं।
ये सब्र का सबक ऐंवें ही मीठा बतातें हैं
भला खामोशी से कभी पंछी गाना गाते हैं,
दर्द होता है जब उसका गवाह ही चुप रहे
यूँ सता कर मनाना तुम्हें आता ही नहीं।
मालूम है तुम्हारे चाहने वाले हैं और कई
तुम्हारे सर के लिए सिरहाने हैं और कई,
यूँ शमा है जहाँ, वहां पतंगे फिरते हैं ही
एक भी पतंगे को बचाना तुम्हें आता ही नहीं।
जिसमे बातें बनाना तुम्हें आता ही नहीं,
पहाड़ों पर चढ़ना-चढ़ाना मालूम है लेकिन
चने के झाड़ पर चढ़ाना तुम्हें आता ही नहीं।
मुनासिब बातों का तो हर जगह बाज़ार है
ज्यादातर से तो सच का ही कारोबार है,
सिर्फ़ तुमसे थी उम्मीद कि झूठ बोलोगे ज़रा
बढ़ा-चढ़ा कर बताना तुम्हें आता ही नहीं।
ये सब्र का सबक ऐंवें ही मीठा बतातें हैं
भला खामोशी से कभी पंछी गाना गाते हैं,
दर्द होता है जब उसका गवाह ही चुप रहे
यूँ सता कर मनाना तुम्हें आता ही नहीं।
मालूम है तुम्हारे चाहने वाले हैं और कई
तुम्हारे सर के लिए सिरहाने हैं और कई,
यूँ शमा है जहाँ, वहां पतंगे फिरते हैं ही
एक भी पतंगे को बचाना तुम्हें आता ही नहीं।
5 Comments
एक नए कवि से परिचय जैसे किसी नए द्वीप की यात्रा!
अरे जाओ..
यह इश्क भी क्या इश्क…जिसमे बातें बनाना तुम्हें आता ही नहीं .
tazi kavitayen.. sundar lagi पर उसके बारे में बताया तो गया था
कि वह तो हमेशा हमेशा
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