कल हरदिल अज़ीज़ शायर शहरयार का इंतकाल हो गया. उनकी स्मृति को प्रणाम. प्रस्तुत है उनसे बातचीत पर आधारित यह लेख, जो अभी तक अप्रकाशित था. त्रिपुरारि की यह बातचीत शहरयार के अंदाज़, उनकी शायरी के कुछ अनजान पहलुओं से हमें रूबरू करवाती है – मॉडरेटर ====================================================== वो सुबह बहुत हसीन थी जब केलेंडर ने चुपके से मुझे कहा, “आज 30 नवम्बर 2010 है।” वह सर्दी की पहली सुबह थी जब मैं बिस्तर की बेक़रार बाहों को छोड़ कर लगभग 6 बजे कमरे के बाहर आ गया था। वजह ये थी कि मुझे 9 बजे ‘शहरयार साहब’ से मिलना था। वो…
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चीन के विद्रोही कवि जू युफु ने एक कविता लिखी ‘it’s time’, skype पर. इस अपराध में उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई है. वही कविता यहां हिंदी अनुवाद में. लेखकीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का यह सबसे बड़ा मामला है. क्या इसकी निंदा नहीं की जानी चाहिए?कविता यही वक्त है, चीन के लोगों! यही वक्त है.चौक सब लोगों का है.यही वक्त है अपने दो पैरों से चौक की ओर बढ़ने काऔर अपना चयन करने का.यही वक्त है चीन के लोगों यही वक्त है .गीत सबका होता है. समय आ गया है अपने गले से अपने दिल का गीत…
आज प्रस्तुत हैं निज़ार क़ब्बानी की पाँच कविताएँ, जिनका बहुत अच्छा अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने- जानकी पुल.०१-टेलीफोनटेलीफोन जब भी घनघनाता है मेरे घर मेंमैं दौड़ पड़ता हूँएक बालक की तरह अत्यंत उछाह में भरकर।मैं आलिंगन में भर लेता हूँ स्पंदनहीन यंत्र कोसहलाता हूँ इसके ठंडे तारऔर इंतजार करता हूँ तुम्हारी गर्माहट कातुम्हारी स्पष्ट आवाज के बाहर आने काइससे मुझे याद आ जाती है टूटते सितारों कीगहनों के खनक की।मेरा कंठ अवरुद्ध हो जाता हैक्योंकि तुमने मुझे फोन किया हैक्योंकि तुमने मुझे याद किया हैक्योंकि तुमने मुझे बुलाया हैएक अदृश्य संसार से।०२ – रुदनजब रोती होमुझमें उमड़ आता है असीम…
हिंदी में ‘बेस्टसेलर’ की चर्चा एक बार फिर शुरु हो गई है. एक ज़माना था जब पत्रिकाओं में निराला की कविताओं के नीचे चमत्कारी अंगूठी का विज्ञापन छपता था. राही मासूम रज़ा जासूसी दुनिया के लिए जासूसी उपन्यास लिखा करते थे, पुस्तकों के एक ही सेट में गुलशन नंदा और रवीन्द्रनाथ टैगोर की किताबें मिलती थीं. तब ‘लोकप्रिय’ और ‘गंभीर’ साहित्य का विभाजन गहरा नहीं हुआ था. किताबें पाठकों से सीधा संवाद बनाती थी. उन खोए हुए पाठकों की फिर से तलाश शुरु हो गई है. पहले अंग्रेजी में हुई, अब हिंदी में भी शुरु हो गई लगती है.कुछ साल…
राकेश श्रीमाल की कविताएँ \’हिय आँखिन प्रेम की पीर तकी\’ के मुहावरे में होती हैं. कोमल शब्द, कोमल भावनाएं, जीवन-प्रसंग- सब मिलकर कविता का एक ऐसा संसार रचते हैं जहाँ \’एक अकेला ईश्वर\’ भी बेबस हो जाता है. उनकी कुछ नई कविताओं को पढते हैं- जानकी पुल.एक अकेला ईश्वर एक तुम ऐसी गुमशुदा हो जो मिलने से पहले ही गुम हो गई थी इस समय तक भूल गया था मैं तुम्हारा चेहरा और यह भी कि खारा तुम्हें बहुत पसंद है वही हुआ हमारे शब्दों से ही पहचान लिया हमने एक दूसरे को शुरु में ठिठकते हुए शब्दअब मौका ढूंढते…
आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मतिथि है. अनेक कवियों ने उनके ऊपर कविताएँ लिखी थी. उनकी स्मृतिस्वरूप प्रस्तुत है एक प्रसिद्ध कविता. कवि हैं गोपाल प्रसाद व्यास- जानकी पुल.है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।। यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है। जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।। प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था । पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य…
आज वंदना शर्मा की कविताएँ उनके वक्तव्य के साथ. वंदना शर्मा की कविताओं ने इधर कविता-प्रेमियों का ध्यान अपनी सादगी, बयान की तीव्रता और अनुभव की गहराई से आकर्षित किया है- जानकी पुल. मैं बहुत सामान्य सी स्त्री हूँ, कुछ भी सिर्फ मेरा नही.. न अनुभूति न कविता, कविता मेरे लिए दुःख है, गुस्सा है, क्षोभ है, विद्रोह है और है उनकी आवाज जिनके लब आजाद नही हैं ! विवशता से, पराजय से, नाउम्मीदी से चिढ़ है मुझे ..मेरी पूरी कोशिश है कि कहीं कुछ बदलाव हो ! कभी तो कोई आवाज उन निर्मम यथास्तिथिवादियों के कानो को भेद पाए जरा…
आज आभा बोधिसत्व की कविताएँ. यह कहना एक सामान्य सी बात होगी कि आभाजी की कविताओं में स्त्री मन की भावनाएं हैं, स्त्री होने के सामाजिक अनुभवों की तीव्रता है. सबसे बढ़कर उनकी कविताओं में आत्मीयता का सूक्ष्म स्पर्श है और लोक की बोली-बानी का ठाठ, जो उनकी कविताओं को सबसे अलग बनाता है. प्रस्तुत हैं आठ कविताएँ- जानकी पुल. सुनती हूँ यह सब कुछ डरी हुईमैं बाँझ नही हूँनहीं हूँ कुलटाकबीर की कुलबोरनी नहीं हूँ ।न केशव की कमला हूँन ब्रहमा की ब्रह्माणीन मंदिर की मूरत हूँ।नहीं हूँ कमीनी, बदचलन छिनाल और रंडीन पगली हूँ, न बावरीन घर की छिपकली…