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आज हिंदी कहानियों को नया मोड़ देने वाले निर्मल वर्मा का जन्मदिन है. प्रस्तुत है उनके मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक \’प्रिय राम\’ से एक पत्र. यह पुस्तक उनके और उनके भाई प्रसिद्ध चित्रकार रामकुमार के बीच पत्राचार का संकलन है. वैसे यह पत्र रामकुमार ने निर्मल जी के मरने के बाद उनके नाम लिखा था. निर्मल जी की स्मृति को प्रणाम के साथ- जानकी पुल. ——————————————-(25.12.2005)प्रिय निर्मल ,इस बार इतनी लंबी यात्रा पर जाने से पहले तुम अपना पता भी नहीं दे गए.यह सोच कर मुझे आश्चर्य होता है कि तुम्हारे पैदा होना का दिन भी मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है, जब…

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शास्त्रीय /उप शास्त्रीय संगीत के अंगों में जीवन रहस्य तलाशती वंदना शुक्ल की इन कविताओं की प्रकृति काफी अलग है. इनमें संगीत की आत्मा और मनुष्य के जीवन का संगीत साथ-साथ धड़कता सुनाई देता है. तुमुल कोलाहल कलह में- जानकी पुल. ———————————————————-अलंकार (गंतव्य की ओर)- सांस जीती हैं देह को जैसेस्वरों में धडकता है संगीत.एक यात्रा नैरत्य की…थकना जहां बेसुरा अपराध हैयात्रा…\’सा\’ से \’सां\’ तकया ज़न्म से मृत्यु तकआरोह से अवरोह तकस्वर-श्वांस के ऑर्बिट में…जीवन की सरगम उगती हैउन रेशेदार जड़ों के सिरों से जिनके चेहरे परपुते होते हैं अंधेरों के रंगऔर गहरी भूरी राख के कुछ संकेत.रंग…घूँघट खोलती है सांसों की दुल्हनउँगलियों…

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समकालीन लेखकों में जिस लेखक की बहुविध प्रतिभा ने मुझे बेहद प्रभावित किया है उसमें गौरव सोलंकीएक हैं. गौरव की कहानियां, कविताएँ, सिनेमा पर लिखे गए उनके लेख, सब में कुछ है जो उन्हें सबसे अलग खड़ा कर देता है. वे परंपरा का बोझ उठाकर चलने वाले लेखक नहीं हैं. उन्होंने समकालीनता का एक मुहावरा विकसित किया है. अभी हाल में ही उनका कविता-संग्रह आया है ‘सौ साल फ़िदा’. उसी संग्रह से कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.———————————————————————–देखना, न देखनादेखना, न देखने जितना ही आसान थामगर फिर भी इस गोल अभागी पृथ्वी परएक भी कोना ऐसा नहीं थाजहाँ दृश्य को…

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  शहीदी दिवस पर विपिन चौधरी की कविताएँ- जानकी पुल. ————————————————————- १.शहीद–ए-आज़म के  नाम एक कविता उस वक़्त भी होंगे तुम्हारी बेचैन करवटों के बरक्स चैन से सोने वाले आज भी बिलों में कुलबुलाते हैं तुम्हारी जुनून मिजाज़ी  को \”खून की गर्मी” कहने वाले तुमने भी तो दुनिया को बिना परखे ही जान लिया  होगा जब कई लंगोटिए यार तुम्हारी उठा-पटक से परेशान हो कहीं दूर छिटक गए होंगे तुम्हारी भीगी मसों की गर्म तासीर से शीशमहलों में रहने वालों की दही जम जाया करती होगी दिमागी नसों की कुण्डी खोले बिना ही तुम समझ गए होगे कि इन्सान- इन्सान में जमीन आसमान…

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भगत सिंह की शहादत को प्रणाम के साथ कुछ कविताएँ युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा की- जानकी पुल.——————————–भगत सिंह के लिए भगत सिंह! कुछ सिरफिरे-से लोग तुमको याद करते हैं जिनकी सोच की शिराओं में तुम लहू बनकर बहते हो जिनकी साँसों की सफ़ेद सतह पर वक़्त-बेवक़्त तुम्हारे ‘ख़याल की बिजली’ कौंध जाती है मैं उनकी बात नहीं कर रहा हूँ भगत! जो तुम्हारी जन्मतिथि पर, ‘इंक़लाब-इंक़लाब’चिल्लाते हैं और आँखों में सफ़ेद और गेरुआ रंगों की साज़िश का ज़हर रखते हैं जिसकी हर बूँद में अफ़ीम की एक पूरी दुनिया होती है जिसके नशे में गुम है आज सारा भारत…

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http://akhilkatyalpoetry.blogspot.co.ukपर अपने मित्र सदन झा के सौजन्य से ब्रिटिश कवयित्री जैकी के की यह कविता पढ़ी तो अच्छी लगी. सोचा आपसे भी साझा किया जाए. हिंदी में शायद यह जैकी के की पहली ही अनूदित कविता है. एक कविता और भी है जो शायद अखिल कात्यालकी है, प्यार, मनुहार, छेडछाड की. आप भी पढ़िए- जानकी पुल.————————————————————— वहकि वह तो हमेशा हमेशाकि वह तो कभी नहीं कभी नहींमैंने यह सब देखा था, सब सुना थाफिर भी उसके संग चल दी थीवह तो हमेशा हमेशावह तो कभी नहीं कभी नहीं उस छोटी सी निडर रात मेंउसके होंठ, तितलियों से लम्हेमैंने उसको पकड़ने कि…

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हाल के दिनों में जिन कुछ कवियों की कविताओं ने मुझे प्रभावित किया है महेश वर्मा उनमें एक हैं. हिंदी heartland से दूर अंबिकापुर में रहने वाले इस कवि की कविताओं में ऐसा क्या है? वे इस बड़बोले समय में गुम्मे-सुम्मे कवि हैं, अतिकथन के दौर में मितकथन के. मार-तमाम चीज़ों के बीच अनुपस्थित चीज़ों की जगह तलाशती, छोटे-छोटे सुकून के पल तलाशती उनकी कुछ कविताएँ आज पढते हैं- जानकी पुल.——————1.अनुपस्थितसामने दीवार पर चौखुट भर जगह है एक तस्वीर कीकोई तस्वीर नहीं है एक जगह है-तस्वीर के न होने की, यह न होना भी इतनी पुरानी घटना किपिछले बार की पुताई…

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हाल के बरसों में नीलाभ की चर्चा अरुंधति रे से लेकर चिनुआ अचिबे के शानदार अनुवादक के रूप में रही है. लेकिन नीलाभ मूलतः एक गंभीर कवि और लेखक हैं. अभी हाल में ही उन्होंने महाभारत कथा को आम पाठकों के लिए तैयार किया है. \’मायामहल\’ और \’धर्मयुद्ध\’ के नाम से प्रकाशित दो खण्डों की इस महाभारत कथा में कथा के साथ-साथ उनका विश्लेषण भी चलता रहता है, जो बेहद महत्वपूर्ण है. प्रकाशक है हार्पर कॉलिंस. प्रस्तुत है पहले खंड \’मायामहल\’ की भूमिका. ———————————————————————————————इतने बरसों बाद अब यह तो याद नहीं है कि किस उमर में पहली बार महाभारत से मेरा…

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उत्तर आधुनिकता के विद्वान सुधीश पचौरी जिस विषय पर लिखते हैं उसका एक नया ही पाठ बना देते हैं- हमारे जाने समझे सबजेक्ट को हमारे लिये नया बना देते हैं- उदहारण के लिए सरिता_मार्च (प्रथम अंक) व्यंग्य विशेषांक में प्रकाशित हंसी पर यह लेख. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. ————————————————————————————————————————————————— हंसना एक जादू है. वह विकसित मानव की सांस्कृतिक क्रिया है. सांस्कृतिक भेद से हास्य भेद होता है. हर संस्कृति अपने ढंग से हंसा करती है. हिंदी में हंसना अंग्रेजी में हंसने से अलग है. हिंदी वाला हंसता है तो जोरदार ठहाका मार के हंसता है. कोई कोई तो ताली मार के…

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मूलतः पंजाबी भाषी तजेन्दर सिंह लूथरा हिंदी में कविताएँ लिखते हैं. हाल में ही उनका कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन से आया है- \’अस्सी घाट का बांसुरीवाला\’. उसी संकलन से कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.——————————————————–1.अस्सी घाट का बाँसुरी वालाइसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है,बनारस के अस्सी घाट की पार्किंग से लेकर,साइबेरिया से आये पक्षियो, अलमस्त फिरंगियो,टूटी सड़कों, बेजान रिक्शो, छोटी बड़ी नावों,कार का शीशा ठकठकाते नंग धड़ंग बच्चो,कहीं से शुरू, कहीं बीच मंझधार ले जाया जा सकता है|तभी बीच कोई बाँसुरी बजाता है,छोटी सी सुरीली तान,बजाता, फिर रुक जाता,अपने मोटे बांस पर टंगी,बाँसुरियो को ठीक करने लगता,कद मद्धम, उम्र अधेड़,लाल टीका, सादे कपड़े,आंखो में जगती बुझती चमक,आंखे…

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