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आज कलावंती की कविताएँ. कलावंती जी कविताएँ तो लिखती हैं लेकिन छपने-छपाने में खास यकीन नहीं करतीं. मन के उहापोहों, विचारों की घुमडन को शब्द भर देने के लिए. इसलिए उनकी कविताओं में वह पेशेवर अंदाज नहीं मिलेगा जो समकालीन कवियों में दिखाई देता है, लेकिन यही अनगढता, यही सादगी उनकी कविताओं को पढते हुए सबसे पहले आकर्षित करती है. कुछ कविताएँ आप भी पढकर देखिये- जानकी पुल.========================1 लड़कीलड़की भागती है सपनों में, डायरी मेंलड़़की घर से भागती है, घर की तलाश में ।लड़की देखती है उड़ती पतंगे और तौलती है पांव।उसके देह से निकली खुशबू फैलती हैघर आंगन तुलसी और…

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श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन को लेकर श्रद्धांजलियों का दौर थम चुका है. उनके योगदान का मूल्यांकन करते हुए उनके महत्व को रेखांकित कर रहे हैं प्रेमपाल शर्मा- जानकी पुल.=================================================अमूल के अमूल्य जनक वर्गीज कुरियन नहीं रहे । रेलवे कॉलिज बड़ौदा के दिनों में उनका कई बार अधिकारियों को संबोधित करने और अनुभवों को सुननेए साझा करने का मौका मिला । कई बिंब एक साथ कौंध रहे हैं जिनमें सबसे सुखद है खचाखच भरे सभागार में उनका पूरी विनम्रता से भेंट स्व रूप दी गयी टाई को वापस करना । ‘मैं किसानों के बीच काम करता हूँ । इसे…

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हिंदी में गंभीर विमर्श का माहौल खत्म होता जा रहा है, मर्यादाएं टूटती जा रही हैं. अभी कुछ दिन पहले वरिष्ठ कवि विष्णु खरे ने \’कान्हा सान्निध्य\’ के सन्दर्भ में उसकी एक बानगी पेश की थी. आज उनके समर्थन में आग्नेय का यह पत्र \’जनसत्ता\’ के \’चौपाल\’ स्तंभ में प्रकाशित हुआ है. हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर मैं यह समझना चाहता हूं कि आखिर इस तरह का विमर्श क्या है? क्या इसे हिंदी की वरिष्ठ पीढ़ी की हताशा के रूप में देखा जाए? पत्र पढ़िए और खुद सोचिये आखिर क्यों- जानकी पुल.========================================================================विष्णु खरे को संगठित रूप से जिस तरह युवा…

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राजेश जोशी के ये विचार प्रीति सिंह परिहार से बातचीत पर आधारित हैं. राजेश जोशी के लिए साहित्य हमेशा सबसे बड़ी प्राथमिकता रही है. हमारे दौर के इस प्रमुख कवि की यह बातचीत पढते हैं- जानकी पुल.================================================================= लेखक की तरह लिखना सत्तर के शुरूआती दशक में शुरू किया. शुरू से ही झुकाव कविता की तरफ रहा. बाद में कुछ कहानियां भी लिखीं. हालांकि मैं नाटक, कहानी और आलोचना जैसी कई विधाओं में लिखता हूं, पर मेरी मूल विधा कविता ही है. एक टेंपरामेंट होता है, जो आपकी विधा तय कर देता है. मुझे जल्द ही महसूस हो गया था कि…

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हमारे समाज, खासकर हिंदी समाज में लेखक नाम की संज्ञा अब भी कोई खास प्रभाव नहीं पैदा कर पाती, उसे फालतू आदमी समझा जाता है. मनोहर श्याम जोशी ने एक प्रसंग का उल्लेख किया है कि एक बार उनके घर में अज्ञेय बैठे हुए थे कि तभी उनके एक रिश्तेदार उनसे मिलने आए. उन्होंने अपने रिश्तेदार को अज्ञेय से मिलवाते हुए कहा कि ये अज्ञेय हैं- बहुत बड़े लेखक. रिश्तेदार ने छूटते ही पूछा, लेखक तो हैं लेकिन करते क्या हैं! वरिष्ठ लेखक, शिक्षाविद प्रेमपाल शर्मा के इस लेख को पढते हुए मुझे यह प्रसंग याद आया गया. प्रेमपाल शर्मा…

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प्रसिद्ध आलोचक नंदकिशोर नवल जब 75 साल के हुए थे तब उनसे यह बातचीत की थी योगेश प्रताप शेखर ने, जो समकालीन पीढ़ी के प्रखर आलोचक और प्राध्यापक हैं। नवल की स्मृति में यह बातचीत पढ़िए- मॉडरेटर  ==================================== १. इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं ?  कुछ उसके बारे में बताइये. इन दिनों अस्वस्थ हूँ , फिर भी दिनकर जी की कविता पर एक पुस्तक का  \’ डिक्टेशन \’  दे रहा हूँ. मैंने आधुनिक हिन्दी कविता के प्रत्येक दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि पर पुस्तकें लिखी हैं, यथा मैथिलीशरण, निराला  और मुक्तिबोध.  इस लिहाज से मुझे नव-स्वच्छंदतावादी दौर के सर्वश्रेष्ठ कवि…

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  ‘चाणक्य मंत्र’- पुस्तक हाथ में आई तो लगा ही नहीं यह उपन्यास है. शीर्षक से से लगा शायद चाणक्य की नीतियों-सूत्रों न की कोई किताब होगी. कवर पर प्राचीनकाल की मुद्राओं को देखकर शायद कुछ अधिक लगा. लेकिन जब पलटना शुरु किया तो पढ़ता चला गया. यात्रा बुक्स तथा वेस्टलैंड लिमिटेड द्वारा प्रकाशित ‘चाणक्य मंत्र’ करीब पांच सौ पेज का उपन्यास है जो बेहद रोचक शैली में लिखा गया है. साल २०१० में लेखक अश्विन सांघी का अंग्रेजी में उपन्यास प्रकाशित हुआ था ‘चाणक्याज चैन्ट’. पुस्तक काफी लोकप्रिय रही और उसने अश्विन सांघी को एक लेखक ब्रांड के रूप…

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कान्हा में प्रकृति के \’सान्निध्य\’ में कवियों के मिलन की चर्चा ने कुछ दूसरा ही रंग पकड़ लिया है. लेकिन वहां केवल दक्षिण-वाम का मिलन ही नहीं हो रहा था, कविता को लेकर कुछ गंभीर चर्चाएँ भी हुईं. कवि गिरिराज किराड़ू का यह लेख पढ़ लीजिए, जो कवियों के \’सान्निध्य\’ पर ही है- जानकी पुल. =========================== (कान्हा नेशनल पार्क के पास, जबलपुर से कोई डेढ़ सौ किलोमीटर दूर एक रिसॉर्ट में \’शिल्पायन\’ ने मुख्यतः कवितापाठ का एक अनूठा आयोजन किया जो लगा था सुखद ढंग से याद रहेगा, लेकिन अंततः उसका एक अप्रिय पहलू निकल आया. और वह इतना महत्वपूर्ण पहलू…

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