२०१३ के पचास हजार डॉलर वाले डीएससी पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट की गई तेरह पुस्तकों की सूची में एलिस अल्बिनिया की पुस्तक ‘लीलाज़ बुक’ भी है. महाभारत की कथा को आधार बनाकर लिखे गए इस उपन्यास पर यह मेरा लिखा हुआ लेख- प्रभात रंजन =========================इस समय अंग्रेजी में एक बेस्टसेलर उपन्यास ‘लीलाज़ बुक’ की खूब चर्चा है. कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह कि यह एक विदेशी लेखक(लेखिका) एलिस अल्बिनिया द्वारा लिखी गई है. उसके इस पहले उपन्यास की दूसरी खासियत यह है कि उस विदेशी महिला का यह उपन्यास भारत के बारे में है. एक और कारण है चर्चा का कि…
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मलाला युसुफजई का नाम आज पकिस्तान में विरोध का प्रतीक बन चुका है. हिंदी की कवयित्री अनीता भारती ने उनके विद्रोह, संघर्ष को सलाम करते हुए कुछ कविताएँ लिखी हैं. पढ़िए, सराहिये- जानकी पुल.1. ओ सिर पर मंडराते गिद्धोंसुनो!अब आ गई तुम्हारे हमारे फैसले की घड़ीछेड़ी है तुमने जंगतुमने ही की है इसकी शुरुआतसुनो गिद्धों!तुम्हारी खासियत हैकि तुम खुलकर कभी नही लड़तेदूर से छिप कर करते हो वारआंख गड़ाए रखते हो हर वक्तहमारे खुली आंखो सेदेखे जा रहे सपनों परसुनो गिद्ध!तुम्हें बैर हर उस चीज से जो खूबसूरत है, जो सुकून देती हैउस नन्ही चिरैया से भीजो खुशी से हवा में विचर…
प्रसिद्ध आलोचक-अनुवादक गोपाल प्रधान ने यह लोक कथा भेजते हुए याद दिलाया की आज के सन्दर्भ में इसका पाठ कितना मौजू हो सकता है. सचमुच चिड़िया और दाना की यह कथा लगता है है आज के दौर के लिए ही लिखी गई थी- जानकी पुल.====================================एक चिड़िया को दाल का एक दाना मिला । उसनेसोचा कि इसमें से आधा वह अभी खा लेगी और बाकी आधा चोंच में दबाकर दूर देस उड़कर जा सकेगी । यहीसोचकर उसने दाने को चक्की में दो हिस्सा करने के लिए डाला । चक्कीचलाते ही एक हिस्सा तो टूटकर बाहर आ गिरालेकिन शेष आधा चक्की के…
तुषार धवल की कई कविताओं में समकालीन समय का मुहावरा होता है. अपने दौर के कवियों में कविता के विषय, काव्य रूपों को लेकर जितने प्रयोग तुषार ने किए हैं शायद ही किसी कवि ने किए हैं. पढ़िए उनकी एकदम ताजा कविता- मॉडरेटर .=====================सुनती हो सनी लियॉन ? किन कंदराओं में तुम रह चुकी हो मेरे साथ मेरे किस घर्षण की लपट में पकी है तुम्हारी देह आदिम सहचरी ! सुनती हो सनी लियॉन ? तुम्हारे मन की उछाल में एक घुटी सभ्यता अपनी उड़ान पाती है जिसके पिछवाड़े के जंगलों में गदराई महुआ महकती रहती है मुझे क्यों लगता…
हाल में ही मुंबई में \’एटर्नल गाँधी\’ शीर्षक से प्रदर्शनी लगी थी. आज बापू के जन्मदिन पर उसी प्रदर्शनी के बहाने गांधी को याद कर रहे हैं कवि-संपादक निरंजन श्रोत्रिय- जानकी पुल.================================================= पिछले दिनों मुंबई में एक \”अद्भुत\” प्रदर्शनी देखने का अवसर मिला! फ़ोर्ट एरिया के एक प्रसिद्ध संग्रहालय में \’एटर्नल गाँधी\” शीर्षक से एक मल्टिमीडिया प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसमें कंप्यूटर एवं मल्टीमीडिया के मध्यम से महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन की झाँकी प्रस्तुत की गई थी!वातानुकूलित प्रदर्शनी में प्रवेश करते ही विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं संगीतमय आवाज़ों से आपका स्वागत होता है! कहीं गाँधी…
मुकुल सरल हिंदी गजल की यशस्वी परम्परा में आते हैं. कल \’कवि के साथ\’ कार्यक्रम में इण्डिया हैबिटेट सेंटर में उनको सुनने का अवसर होगा. फिलहाल आज यहां उनकी गजलें पढते हैं- जानकी पुल.==========================================================ग़ज़ल (1)घर में जाले, बाहर जालक्या बतलाएं अपना हाल?दिन बदलेंगे कहते-सुनतेबीते कितने दिन और साल!तुम ये हो, हम वो हैं, छोड़ोअब तो हैं सब कच्चा मालऔर बुरा क्या होगा, सोचोएक ही मौसम पूरे सालसदियां बदलीं, हम न बदलेमुंह बाये हैं वही सवालईद मुबारक तुमको यारोअपने रोज़े पूरे सालजीवन क्या है, क्या बतलाएंरोटी कच्ची, पक गए बाल(2)बदल गया जीवन का रागसपने में भी भागम-भागरोटी बदली, चूल्हा बदलाऔर बदल…
पिछले दिनों राजेश जोशी, कुमार अम्बुज और नीलेश रघुवंशी का एक पत्र छपा था भारत भवन भोपाल के सन्दर्भ में. उसको लेकर आलोचक विजय बहादुर सिंह ने लिखा है- जानकी पुल.====================================================19 अगस्त 2012 के रविवार्ता का जो अहम अग्रलेख आपने छापा है, उसका शीर्षक है \’सांस्कृतिक विकृतीकरण फासीवाद का ही पूर्व रंग है।’ इसके लेखकों में तीनों भोपाल के हैं। एकाध बेहद करीबी भी। पहला प्रश्न अगर सांस्कृतिक विकृतीकरण का उठाया जाय तो इसके पीछे की सारी लंबी बहसें याद आती हैं। ये बहसें 1935-36 के पहले की भी हैं, बाद की भी। सबसे पहले जो शंका कवि श्री निराला…