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देश में चुनावी रैलियों और भाषणों का माहौल है। राजनीति को हम जिस प्रकार २१ वीं सदी के उत्तर आधुनिक काल में, मात्र बाहुबल और विज्ञापन के द्वितीयक उत्पाद के रूप में देख रहे हैं, उसे एक समर्पित वैज्ञानिक लगभग 90 वर्ष पूर्व भी ठीक इसी रूप में देख रहा था। यह व्यक्तिगत पत्र “आइन्स्टीन” द्वारा सन १९३१ या १९३२ की शुरुआत में “सिगमंड फ़्रायड” को लिखा गया था। जो कि “Mein Wettbild, Amsterdam: Quarido Verlag” में सन १९३४ में प्रकाशित हुआ था। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रोफ़ेसर सिगमंड फ़्रायड को लिखे गये इस पत्र में,…

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देश में चुनावी रैलियों और भाषणों का माहौल है। राजनीति को हम जिस प्रकार २१ वीं सदी के उत्तर आधुनिक काल में, मात्र बाहुबल और विज्ञापन के द्वितीयक उत्पाद के रूप में देख रहे हैं, उसे एक समर्पित वैज्ञानिक लगभग 90 वर्ष पूर्व भी ठीक इसी रूप में देख रहा था। यह व्यक्तिगत पत्र “आइन्स्टीन” द्वारा सन १९३१ या १९३२ की शुरुआत में “सिगमंड फ़्रायड” को लिखा गया था। जो कि “Mein Wettbild, Amsterdam: Quarido Verlag” में सन १९३४ में प्रकाशित हुआ था। मनोविज्ञान के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान देने वाले प्रोफ़ेसर सिगमंड फ़्रायड को लिखे गये इस पत्र में,…

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प्रसिद्ध बाल-कथा लेखक हरिकृष्ण देवसरे का निधन हो गया. वे ‘पराग’ के संपादक थे. ऐसा लगा जैसे हमारी बचपन की स्मृतियों का एक स्थायी कोना खाली हो गया हो. उनके अवदान को याद करते हुए लेखक प्रचण्ड प्रवीर ने बहुत अच्छा लेख लिखा है. इस लेख के साथ देवसरे जी को जानकी पुल की श्रद्धांजलि- जानकी पुल. ========================== आर. के. नारायण ने किसी साक्षात्कार में कहा था कि किसी अच्छे पाठक को लेखक से नहीं मिलना चाहिए। इसका कारण यह कि लेखक/ कवि का श्रेष्ठ अस्तित्व उसके कविता, कहानियों में पहले ही दिख चुका होता है. उसके बाद उनसे मिलना,…

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विजयदान देथा के निधन पर कई अखबारों में लेख, सम्पादकीय आये. आज सुबह दो अखबारों में सम्पादकीय पढ़ा- \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ और \’जनसत्ता\’ में. \’जनसत्ता\’ का यह सम्पादकीय ख़ास लगा. कितने कम शब्दों में उनके बारे में कितना कुछ कह जाती है. जिन्होंने न पढ़ा हो उनके लिए- प्रभात रंजन.=========भारतीय साहित्य की दुनिया में जब भी किसी रचनाकार और उसकी रचनाओं के बाकियों से खास होने की बात चलेगी, वे सबसे महत्त्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किए जाएंगे। बिज्जी यानी विजयदान देथा ने हिंदी में अपने लिए जो सम्मान अर्जित किया, निश्चित रूप से वह बरास्ते राजस्थानी है। लेकिन यही उनकी अहमियत…

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विजयदान देथा के निधन पर कई अखबारों में लेख, सम्पादकीय आये. आज सुबह दो अखबारों में सम्पादकीय पढ़ा- \’दैनिक हिन्दुस्तान\’ और \’जनसत्ता\’ में. \’जनसत्ता\’ का यह सम्पादकीय ख़ास लगा. कितने कम शब्दों में उनके बारे में कितना कुछ कह जाती है. जिन्होंने न पढ़ा हो उनके लिए- प्रभात रंजन.=========भारतीय साहित्य की दुनिया में जब भी किसी रचनाकार और उसकी रचनाओं के बाकियों से खास होने की बात चलेगी, वे सबसे महत्त्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किए जाएंगे। बिज्जी यानी विजयदान देथा ने हिंदी में अपने लिए जो सम्मान अर्जित किया, निश्चित रूप से वह बरास्ते राजस्थानी है। लेकिन यही उनकी अहमियत…

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महेश वर्मा की ताजा कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं. हिंदी के इस शानदार कवि की कविताओं से अपनी तो संवेदना का तार जुड़ गया. पढ़कर देखिये कहीं न कहीं आपका भी जुड़ेगा- प्रभात रंजन ==========================================================पिता बारिश में आएंगेरात में जब बारिश हो रही होगी वे आएंगेटार्च से छप्पर के टपकने की जगहों को देखेगें औरअपनी छड़ी से खपरैल को हिलाकर थोड़ी देर कोटपकना रोक देंगेओरी से गिरते पानी के नीचे बर्तन रखने को हम अपने बचपन में दौड़ पड़ेंगेपुराना घर तोड़कर लेकिन पक्की छत बनाई जा चुकी हमारे बच्चे खपरैल की बनावट भूल जायेंगेपिता को मालूम होगी एक एक शहतीर की उम्रवे चुपचाप…

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