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आज पढ़िए उज़्मा कलाम की कहानी। उज़्मा ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है और जोधपुर में एक संस्था के लिए काम करती हैं। लिखने के अलावा चित्रकारी का शौक़ रखती हैं। इनकी कहानी पढ़िए- ================================== सुबह सवेरे ऐसी धमा-चौकड़ी मची कि मेरी आँख खुल गयी। मैंने कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो साढ़े छः बज रहे थे। सुस्ती पूरे जिस्म में पानी की तरह बह रही थी। अभी पाँच -साढ़े पाँच बजे ही तो मैं सोई थी। उफ़! लोगो की तीखी आवाज़ मेरे कानो में चुभने लगी। इस तरह नींद खुलने से गुस्सा आया…

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आज पढ़िए युवा कवयित्री सपना भट्ट की कविताएँ पढ़िए। समकालीन कवयित्रियों में उसका नाम जाना-पहचाना है। उनकी कविताओं के बारे में क्या लिखूँ वे खुद बोलती हैं। पढ़िए कुछ नई प्रेम कविताएँ- ============================== 1 प्रेम की अहर्ताएं जो कभी फलित नहीं हुई उन प्रार्थनाओं के चिह्न मेरे माथे पर गहरे खुदे हुए हैं । तुम मुझसे बालिश्त भर की दूरी पर हो। जानती हूं कि दोनो ध्रुव मिल जाएं फिर भी हमारे मध्य की यह अलंघ्य दूरी नहीं पाटी जा सकती। मन के कौमार्य से देह की तृष्णाओं तक एक शोकागार इस अश्रव्य रुदन की ध्वनियों से भरा हुआ है।…

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आज बाल दिवस है। इस मौक़े पर पढ़िए वरिष्ठ लेखक प्रकाश मनु का यह लेख। प्रकाश जी ने हिंदी बाल साहित्य का इतिहास भी लिखा है- हिंदी बाल साहित्य का इतिहास लिखना मेरे लिए किसी तपस्या से कम न था प्रकाश मनु ………………………………………………………………………………………. हिंदी बाल साहित्य का इतिहास लिखना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना था। इक्कीसवीं सदी तक आते-आते बहुत अधिक विस्तीर्ण और व्यापक हो चुके हिंदी बाल साहित्य का यह पहला इतिहास है। एक बृहत् इतिहास, जिसे लिखने में मेरे जीवन के कोई बीस-बाईस वर्ष लगे। पर एक धुन थी, एक बहुत गहरी-गहरी सी धुन—कृष्ण के अलौकिक वंशीनाद…

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आज इरशाद ख़ान सिकंदर की कुछ ग़ज़लें और नज़्म भोजपुरी में पढ़िए- ================================  1 हम मान भी लीं लेकिन आसार त कम बाटे जे पीही उहे जीही कुदरत के नियम बाटे   पी जाला अन्हरिया के सूरज भी शराबी ह बा चंदवो शराबी पर उम्मीद से कम बाटे   हम ओही घड़ी खोलब आवाज़ के दरवाज़ा जब लागी खुदे हमके अब बात में दम बाटे   प्याला के लेखा लागे महबूब के दूनों होंट जे पीए सफल ओकर कुल सातो जनम बाटे   हम बानी नया नाया इरशाद मुहब्बत में का होई कि अब आगे पत्थर के सनम बाटे  …

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लेखक-कवि यतीश कुमार ने काव्यात्मक समीक्षा की अपनी शैली विकसित की और हिंदी की अनेक श्रेष्ठ कृतियों की काव्यात्मक समीक्षा अब तक कर चुके हैं। इस बार उन्होंने विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ की समीक्षा की है। आप भी पढ़ सकते हैं- ======================== 1. एक खिड़की आँखों की एक मन की ! खिड़की के बाहर की दुनिया अनन्त आसमानी मन के भीतर की सिमटी हुई पलकों में  या अधरों पर दुनिया कितनी जल्दी सिमट आती है ! एक-एक पल के पकने की आवाज़  होती है किसी को  सुनाई आती है, किसी को नहीं…

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यतीश कुमार ने काव्यात्मक समीक्षा की अपनी विशेष शैली विकसित की और इस शैली में वे अनेक पुस्तकों की समीक्षाएँ लिख चुके हैं। इसी कड़ी में आज पढ़िए अलका सरावगी के उपन्यास ‘कलि कथा वाया बाइपास’(राजकमल प्रकाशन) की समीक्षा। 1990 के दशक के आख़िरी सालों में जिस उपन्यास ने बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान खींचा था वह कलिकथा था। कई प्रमुख यूरोपीय भाषाओं में अनूदित और समादृत इस उपन्यास को आज की पीढ़ी से जोड़ने का काम करती है यह समीक्षा। आप भी पढ़ें- ===================  कलि कथा वाया बाइपास -अलका सरावगी   1)   कहानियाँ तहों में लिपटी होती हैं…

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मैत्रेयी देवी के उपन्यास ‘न हन्यते’ और मीरचा इल्याडे के उपन्यास ‘बंगाल नाइट्स’ के बारे में एक बार राजेंद्र यादव ने हंस के संपादकीय में लिखा था। किस तरह पहले बंगाल नाइट्स लिखा गया और बाद में उसके जवाब में न हन्यते। निधि अग्रवाल के इस लेख से यह पता चला कि ‘हम दिल दे चुके सनम’ फ़िल्म भी इन्हीं दो उपन्यासों पर आधारित थी। इन दोनों उपन्यासों की जो कथा है उसकी भी अपनी कथा है। उपन्यास की कथा और उसके पीछे की कथा को जानने के लिए यह दिलचस्प लेख पढ़िए। लेख लिखने वाली निधि अग्रवाल पेशे…

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मुझे याद है बीसवीं शताब्दी के आख़िरी वर्षों में सुरेन्द्र वर्मा का उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’ प्रकाशित हुआ था। नाटकों-फ़िल्मों की दुनिया के संघर्ष, संबंधों, सफलता-असफलता की कहानियों में गुँथे इस उपन्यास को लेकर तब बहुत बहस हुई थी। याद आता है सुधीश पचौरी ने इसकी समीक्षा लिखते हुए उसका शीर्षक दिया था ‘यही है राइट चॉइस’। दो दशक से अधिक हो गए। कवि यतीश कुमार ने मुझे चाँद चाहिए पढ़ा तो उसके सम्मोहन में यह कविता ऋंखला लिख दी। एक ही कृति हर दौर के लेखक-पाठक से अलग तरह से जुड़ती है, इसी में उसकी रचनात्मक सार्थकता है।…

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कमलेश्वर का उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ सन 2000 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास के अभी तक 18 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और हिंदी के आलोचकों द्वारा नज़रअन्दाज़ किए गए इस उपन्यास को पाठकों का भरपूर प्यार मिला। उपन्यास में एक अदीब है जो जैसे सभ्यता समीक्षा कर रहा है। इतिहास का मंथन कर रहा है।इसी उपन्यास पर एक काव्यात्मक टिप्पणी की है यतीश कुमार ने, जो अपनी काव्यात्मक समीक्षाओं से अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर ==========   1. समय की उल्टी दिशा में दशकों से भटक रहा है अतीत.. और मानव-सभ्यता की तहक़ीक़ात अभी…

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इरशाद खान सिकंदर मूलतः शायर हैं। लेकिन लेकिन वे उन दुर्लभ शायरों में हैं जो गद्य भी बाकमाल लिखते हैं। अब यह व्यंग्य ही पढ़िए- मॉडरेटर ============                                         बात पुरानी है मगर इतनी भी पुरानी नहीं कि बच्चन साहब से वॉयस ओवर करवाना पड़े। हुआ यूँ कि सुबह-सुबह ‘’सिलवट भोजपुरिया’’ साहब मुँह उठाये हमारे घर आ धमके। हालाँकि वो रोज़ सुबह-सुबह सिर्फ़ मुँह नहीं अपने दोनों बच्चों को भी उठाये आ धमकते थे और कोने के सोफ़े में पसरकर घंटों बैठे…

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