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आशुतोष कुमार का यह लेख आंखें खोल देने वाला है- जानकी पुल.===========================================सौ बार दुहराने से झूठ सच हो जाता है , गोएबल्स का यह सिद्धांत साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी सोच की जीवनधारा है. सामने दिख रहे सच को झुठलाने के लिए पहले अपने अतीत को झुठलाना जरूरी है , वे जानते हैं.झूठे प्रचार, आंदोलन और पाठ्यपुस्तकों के जरिये इतिहास को झुठलाते हुए वे कभी किसी ऐतिहासिक मस्जिद को एक काल्पनिक मंदिर के खंडहर में बदल देते हैं , कभी कल्पना के समंदर में बने हुए अंध-आस्था के पुल पर मिथकीय बंदरों की तरह उछलकूद मचाने लगते हैं और कभी ताजमहल को तेजो-महालय का…

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अपर्णा मनोज ने कम कहानियां लिखकर कथा-जगत में अपना एक अलग भूगोल रचा है. अछूते कथा-प्रसंग, भाषा की काव्यात्मकता, शिल्प के निरंतर प्रयोग उनकी कहानियों को विशिष्ट बनाते हैं. जीवन के अमूर्तन को स्वर देने की एक कोशिश करती उनकी एक नई कहानी- जानकी पुल. =============================================सारंगा तेरी याद में::अँधेरे-बंद कमरे :\”जीवन संध्या\”वृद्धाश्रम के एक ही कतार में खड़े नीले-नीले कमरे…चारों तरफ से बोगेनविलिया से घिरे हैं.लाल, बैंजनी ,सफ़ेद फूलों से लदे,लेकिन फिर भी शजर-शजर अँधेरे का बसर और उजाला विस्थापित दिखाई देता है यहाँ.बूढ़े युगल जैसे थके हुए परिंदे हैं ..सैदकुन मौत की आहट से बेचैन दिखाई देते..लेकिन जीवन है कि चल रहा है.कभी कोई…

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महान सितारवादक रविशंकर को श्रद्धांजलि देते हुए यह लेख सितारवादक शुजात हुसैन खान ने लिखा है- जानकी पुल.================कल सुबह अमेरिका से फोन आया कि रवि काका नहीं रहे। मन को बड़ा धक्का लगा कि सितार के महान कलाकार पंडित रवि शंकर हमें छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए। टेलीविजन ऑन किया, तो तमाम टीवी चैनलों पर अलग-अलग तरीके से खबरें आ रही थीं। टीवी चैनल के लिए तो यह बस एक खबर थी, लेकिन मेरे लिए यह व्यक्तिगत नुकसान था। हिन्दुस्तानी संगीत के एक प्रमुख वाद्य यंत्र सितार को दुनिया भर में पहचान दिलाने और भारतीय संगीत को पूरी…

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विनीत कुमारयुवा लेखक विनीत कुमार का यह लेख वर्चुअल स्पेस पर मौजूद हिंदी के उन लेखकों की ‘सर्जरी’ है, जो तुरत-फुरत समाधान में विश्वास रखते हैं और वह भी बिन किसी तैयारी के। ‘मांझी-गोस्वामी प्रकरण’ के बहाने विनीत ने उन मठाधीशों की भी ख़बर ली है, जो “मर्द लेखक-संपादक” होने के लिए किसी लेखिका को छिनाल-चालबाज कहना ज़रूरी समझते हैं : जानकीपुलमुझे याद है, आज से कोई चार साल पहले हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने डरते-डरते (जैसे उनके कम्प्यूटर की कीबोर्ड दबाते ही हिन्दी भवन के आगे पोखरण परमाणु परीक्षण हो जाएगा और जो आग के गोले उठेंगे,…

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क्या हरिशंकर परसाई कविता भी लिखते थे? कांतिकुमार जैन के प्रयत्न से परसाई जी की दो कविताएँ सामने आई हैं। हो सकता है, और भी कविताएँ लिखी गई हों। अधिकांश लेखक कविता से ही शुरुआत करते हैं। परसाई जी कहते हैं, ‘शुरू में मैंने दो-तीन कविताएँ लिखी थीं पर मैं समझ गया कि मुझे कविता लिखना नहीं आता। यह कोशिश बेवकूफी है। कुछ लोगों को यह बात कभी समझ में नहीं आती और वे जिंदगी भर यह बेवकूफी किए जाते हैं।’ लेकिन जिसे लेखक खुद बेवकूफी बता रहा है, उसमें उसके भावी लेखन के प्रबल संकेत हैं और इस दृष्टि…

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सलमान रुश्दी के संस्मरणों की पुस्तक आई है ‘जोसेफ एंटन’. उसी पुस्तक का एक अनूदित अंश जो सलमान रुश्दी के अपने पिता के साथ संबंधों को लेकर है, अनुवाद मैंने ही किया है- प्रभात रंजन. ======================== जब वह छोटा बच्चा था उसके अब्बा सोते समय उसे पूरब की महान चमत्कार-कथाएं सुनाया करते थे, उनको सुनाते, फिर-फिर सुनाते, उसे फिर से बनाते और फिर अपने तरीके से उसे नया रच देते- ‘वन थाउसैंड वन नाइट’ के शहरजादे की, मौत के सामने सुनाई हुई कहानियां इस बात को साबित करने के लिए कि कहानी में यह कूवत होती है कि वह सबसे…

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वरिष्ठ कवि दिनेश कुमार शुक्ल की कुछ कविताएँ. उनकी कविताओं में लोक-भाषाओं की गूँज सुनाई देती है जो सघन स्मृति-बिम्बों के बीच दूर से उम्मीद की तरह टिमटिमाती दिखाई देती हैं. उनकी समकालीनता में अतीत रचा-बसा दिखाई देने लगता है. आज उनकी कुल तीन कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.================================================================ चौथ का चंद्रमावह गली उधर से उधर हीकिसी तरफ़ मुड़ती चली जाती थीऔर जाने कहाँ जा निकलती …बहुत प्रयत्न के बाद भीउन पाँच में सेएक भी कभी जान नहीं पायागली का गंतव्यतब रातें बहुत जल्द हीशुरू हो जाती थीं,कण्ठ कुछ देर से फूटता था,हाफ़पैण्ट पहन कर एक अच्छी उमर तकलड़के स्कूल जाया…

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पहली सवाक फिल्म \’आलम आरा\’ पर एक रोचक लेख पढ़िए दिलनवाज का- जानकी पुल. ============================================================ सिनेमा के सन्दर्भ में \’सवाक \’ फिल्मों का आगमन प्रस्थान बिंदु की तरह स्मरण किया जाता है . बॉम्बे सिनेमा में इस तकनीक का भव्य स्वागत हुआ. स्पष्ट हो चुका था कि फ़िल्में पोपुलर तत्वों की और जाएंगी . स्पष्ट था कि गुजरा दौर यादों में बिसर जाने को है . एक चलन को आने में कभी- कभी वर्षो का इंतज़ार होता है . कभी हर वर्ष कुछ न कुछ नया देखने को मिल जाता है. हरेक फिल्म संदेश देकर कुछ अलग विचार को सींच सकती है. इसके मद्देनज़र फास्ट -फॉरवर्ड परिवर्तन का जो…

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पॉल लाफार्ज और विल्हेम लीबनेख्त द्वारा लिखे गए \’मार्क्स के संस्मरण\’ के हिंदी अनुवाद से वहीं परिचय हुआ. पॉल लाफार्ज मार्क्स के दामाद थे. इसलिए ये संस्मरण बड़े आत्मीय और विश्वसनीय लगते हैं. पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया है हरिश्चंद्र ने और प्रकाशक हैं जन-प्रकाशन गृह, मुंबई. यह संस्मरण \’हिंदी समय\’ पर भी मौजूद है. पढियेगा- मॉडरेटर  ====================================================================== जो मार्क्स के मानव हृदय को जानता चाहते है, उस हृदय को जो विद्वत्ता के बाहरी आचरण के भीतर भी इतना स्निग्ध था, उन्हें  मार्क्स को उस समय देखना चाहिये जब उनकी पुस्तकें और लेख अलग रख दिये जाते थे, जब वह…

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आज बाल दिवस पर कुछ बाल कविताएँ. कवि हैं भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि प्रेम रंजन अनिमेष- जानकी पुल.===============1.मोटी रोटीदादी की यह मोटी रोटीछूछी भी लगती है मीठीगेहूँ मकई चना मिला हैघर की चक्की का आटा हैउपलों पर इसको सेंका हैसत कुछ बूढ़े हाथों का हैजैसे जीवन जैसे माटीसोंधी सोंधी लगती रोटी2.अलसमैं भी रानी तू भी रानीकौन भरे गगरी में पानीगगरी खुद जाये पनघट तकभरकर आ जाये चौखट तक< div class=\"MsoNormal\" style=\"line-height: 150%;\">पर फिर गगरी कौन झुकायेकोई आये और पिलायेपानी की देखो मनमानीसूखे होंठ, आँख में पानी३.टमटमजिस गाड़ी को खींचे घोड़ाहमने उस पर चलना छोड़ारोता रहता इक्के वालामैंने वचन …

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