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युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा की कविता. इसके बारे में अलग से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है, कविता अपने आप में सब बयान कर देती है- जानकी पुल.=========================================================गुवाहाटी के गले से चीख निकली है चीख, जिसमें दर्द है, घुटन भी है चीख, जिसमें रेंगती चुभन भी है चीख, जिसमें सर्द-सी जलन भी है चीख, जिसमें लड़की का बदन भी हैउस चीख के सन्नाटे में महसूस करता हूँ कि मोहल्ले की सभी लड़कियाँ असुरक्षित हैं बोझ से झुक रहा है मेरा माथा माथे से काले धुएँ का एक ‘सोता’ फूट पड़ा हैमैं शर्मिंदा हूँ अपने कानों पर मुझे झूठे लगते हैं उस मुँह…

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हेमंत शेष हिंदी कविता की प्रमुख आवाजों में एक हैं. उनकी तीन कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल.==============================================================(ओम निश्चल को समर्पित)१.-अकेला होना हिल गया हूँ दृश्य मेंलौट कर पीछे छूटती सड़क पर फिर अचानक- पेड़…. घिरती आ रही है शाम -तोता है वहां कोई ?हरेपन में डूबती कोई अनखुली सी गाँठ.सोचता हूँ मैं अकेला-इस समूचे खेल में यह दृश्य है क्या शह या फिर हमारी मात.००० २.-इतना पास अपनेइतना पास अपने कि बस धुंध में हूँ गिर गए सारे पराजित-पत्रवृक्ष-साधु और चीलें कुछ हतप्रभहो कहाँ अब लौट आओ- लौट आओ…..सुन रहा अपनी पुकारें ही मैं निरंतरआवाज़ एक अंधा कुआं है, जल नहीं- जिसमें बरस…

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पिछले बरसों में हिंदी के प्रकाशन-जगत में तेजी से बदलाव हुए हैं. हाल के दो उदाहरणों का ध्यान इस सन्दर्भ में आता है- एक, स्टीव जॉब्स की जीवनी, जिसके हिंदी अनुवाद को हिंद पॉकेट बुक्स ने प्रकाशित किया. दूसरे, ‘सदा समय के साथ’ रहने वाले वाणी प्रकाशन ने एनिमेशन के पर्याय बन चुके वाल्ट डिज्नी की जीवन-यात्रा को लेकर २८४ पृष्ठों की एक पुस्तक का प्रकाशन किया, जिसे विजय शर्मा ने मूल रूप से हिंदी में लिखा है. मुझे नहीं लगता कि पहले इस तरह की पुस्तकों के पाठक हिंदी में मिलते. हिंदी के पाठक-वर्ग का विस्तार हो रहा है.…

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असद जैदी का नाम हिंदी कविता में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. अपनी स्पष्ट राजनीति, गहरी संवेदना और तेवर के लिए अलग से पहचाने वाले इस कवि को पढ़ना अनुभव की एक अलग दुनिया से गुजरना होता है. आज इण्डिया हैबिटेट सेंटर में शाम सात बजे ‘कवि के साथ’ के आयोजन में उनको सुनना आह्लादकारी रहेगा. फिलहाल मैं अपनी पसंद की कुछ ‘असद कविताएँ’ आपको पढ़वाता हूं- जानकी पुल.=====================1.अनुवाद की भाषा अनुवाद की भाषा से अच्छी क्या भाषा हो सकती है वही है एक सफ़ेद परदा जिस पर मैल की तरह दिखती है हम सबकी कारगुजारी सारे अपराध मातृभाषाओं में किए जाते…

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अरुण प्रकाश एक सशक्त कथाकार ही नहीं थे बल्कि एक संवेदनशील कवि भी थे. आज उनकी दो गजलें और एक कविता प्रस्तुत है. जिन्हें उपलब्ध करवाने के लिए हम युवा कवि-संपादक सत्यानन्द निरुपम के आभारी हैं- जानकी पुल. ===========1. सिले होंठों से वही बात कही जाती है ख़ामोशी चुपचाप कोई जाल बुने जाती है वे सो गए पाबंदियां दिलों पे लगाकर कि देखें दीवारों से रूह कैसे निकल आती है गुमां है उनको कि जीत लिया हमने वतन उनकी नादानी पे मीरों को हंसी आती है वक्त लंबा भी खींचे, मायूस न हो मेरे दोस्त एक दन साँपों पे मोरों की भी बन आती है २.सारी हकीकतें आपके जब सामने…

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अरुण प्रकाश ऐसे लेखक थे जो युवा लेखकों से नियमित संवाद बनाये रखते थे. इसलिए उनके निधन के बाद युवाओं की टिप्पणियां बड़ी संख्या में आई. आज युवा लेखिका सोनाली सिंह ने उनको याद करते हुए लिखा है- जानकी पुल.========================मुझे याद है जब अरुण जी से मेरी पहली मर्तबा बात हुयी थी तब मैं लखनऊ में थीI १५ अगस्त के दिन गाने सुनते हुए मैं कॉरीडोर में टहल रही थीI \’स्वप्न घर \’ पढ़कर मैंने उन्हें ख़त लिखा थाI इसी सिलसिले में उनका फ़ोन आया थाI फ़ोन पर तक़रीबन दो घंटे हमने कहानियों के बाबत बहस कीI मैं उनके रचनात्मक…

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हाल में ही पेंगुइन बुक्स और यात्रा बुक्स ने हिंदी में प्रसिद्ध लेखक वी.एस.नायपॉल की कई पुस्तकों के अनुवाद प्रकाशित किए हैं. कल के \’जनसत्ता\’ में हिंदी के प्रसिद्ध कवि कमलेश ने नायपॉल की पुस्तक  ‘द मास्क आफ अफ्रीका’ के बहाने नायपॉल पर बहुत सारगर्भित लेख लिखा है. साझा कर रहा हूं- जानकी पुल. =======================================================   विद्याधर शिवप्रसाद नायपॉल के नाम कोई पढ़ा-लिखा भारतीय शायद ही अपरिचित हो। उन्हें न केवल साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला, बल्कि कई और बड़े पुरस्कार  मिले। ब्रिटिश सरकार ने उनको ‘नाइटहुड’ से सम्मानित किया। उन्होंने भारत के भी तीन यात्रावृतांत लिखे हैं। भारत की पृष्ठभूमि…

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अरुण प्रकाश की बेमिसाल कहानी \’भैया एक्सप्रेस\’ के बहाने हिंदी कहानी में उनके योगदान को याद कर रहे हों सन्मार्ग- जानकी पुल.====================== अरुण प्रकाश चले गए यूं लगा मानो भैया एक्सप्रैस पंजाब पहुंचने से पहले ही अकस्मात दुघर्टनाग्रस्त हो गया हो। उस पर सवार रामदेव अब कैसे अपने भैया विशुनदेव को खोज कर लाएगा। नवब्याही भौजी कब तक इंतजार करती रहेगी। माई कब तक कनसार में अनाज भूनकर, सत्तू पिसकर पंडितजी से लिए कर्ज का सूद भरती रहेगी। कम से कम मुझे तो यह आशा जरूर थी की अरुण प्रकाश अपने जीवन में ही पुरबियों जिसमें बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार,…

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नीलाभ का यह लेख कुछ गंभीर सवालों की तरफ हमारा ध्यान दिलाता है. हाल में ही भारत के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय ने लेखकों की रचनाएँ अपनी वेबसाईट पर डालनी शुरु की हैं. नीलाभ ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर बताया है कि इस क्रम में पारिश्रमिक की कहीं कोई चर्चा नहीं होती. क्या एक बड़े संस्थान के लिए इस तरह की मुफ्तखोरी जायज कही जा सकती है? क्या हिंदी लेखकों की रचनाएँ आभासी दुनिया में आ जाएँ यही उनके ऊपर सबसे बड़ा अहसान होता है? क्या ब्लॉग-वेबसाईट पर कॉपीराइट का कानून नहीं लागू होता? निश्चित रूप से यह लेख…

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