खंडवा की संस्था \’अनवरत\’ की ओर से दिया जाने वाला शमशेर सम्मान श्री ओम थानवी की पुस्तक \’मुअनजोदडो\’ और नरेश सक्सेना के कविता संकलन \’सुनो चारुशीला\’ को दिए जाने की घोषणा की गई है. दोनों सम्मानित रचनाकारों को जानकी पुल की ओर से बधाई.============================================== वर्ष 2012 का प्रतिष्ठित ‘शमशेर सम्मान’ कविता के लिए कवि नरेश सक्सेना व सृजनात्मक गद्य के लिये लेखक सम्पादक ओम थानवी को समर्पित किया गया है। संयोजक डा0 प्रतापराव कदम ने बताया कि कवि शमशेर बहादुरसिंह की पुण्यतिथि 12 मई 2013 को लखनऊ उ.प्र. में यह सम्मान समारोह पूर्वक प्रदान किया जायेगा । सम्मान…
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विष्णु खरे जी के लेख पर अशोक वाजपेयी जी ने एक कमेन्ट किया था. आज विष्णु खरे का एक पत्र उस कमेन्ट के सन्दर्भ में प्राप्त हुआ, जिसे हम अविकल यहां प्रस्तुत कर रहे हैं- जानकी पुल.========================================================== भाई,तथ्यों की ग़लतियों को मैं भी नज़रंदाज़ नहीं करता। मैं अभी भारत में नहीं हूँ इसलिए विस्तार में जा नहीं सकता।यदि ऐसी चूक मुझसे हुई है तो मैं अशोक वाजपेयी, उनके सारे पाठकों और मेरी वह टिप्पणी प्रकाशित करने और उसे पढ़ने वालों से मुआफी चाहता हूँ। मुझे वेरिफाई करके लिखना चाहिए था।दो बातें फिर भी कहना चाहूँगा। कथित रूप से स्वशासी होते हुए भी साहित्य अकादेमी…
कथाकार ओमा शर्मा को हाल में ही रमाकांत स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उस अवसर पर उन्होंने जो वक्तव्य दिया था आज आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल.=========================================मैं रमाकांत स्मृति पुरस्कार की संयोजन समिति और इस वर्ष के निर्णायक श्री दिनेश खन्ना का अभारी हूं जिन्होंने इस वर्ष के इस कहानी पुरस्कार के लिए मेरी कहानी ‘दुश्मन मेमना’ को चुना। हिन्दी कहानी के लिए दिये जाने वाले इस इकलौते और विशिष्ठ पुरस्कार की पिछले बरसों में जो प्रतिष्ठा बनी है, उस कड़ी में स्वयं को शामिल होते देख मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। कोई भी पुरस्कार किसी रचना…
युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा की ये कविताएँ हमें कुछ सोचने के लिए विवश कर देती हैं, हमारी मनुष्यता पर सवाल उठती हैं- जानकी पुल.============================ 1. वाल ऑफ़ डेमोक्रेसी जब इंडिया गेट के माथे पर मोमबत्तियाँ जलती हैं तो उसकी सुगंध में सनक उठता है ‘जंतर-मंतर’ ‘सज़ा’ के झुलसे हुए उदास होंठों पर एक चीख़ चिपक जाती है काले जादू की तरह लोग कहते हैं ‘समय’ को सिगरेट की आदत है मैं तलाशने लगता हूँ अपनी बेआवाज़ पुकार जो गुम गई है एक लड़की की मरी हुई आँखों में लड़की, जो अब ज़िंदा है महज शब्दों के बीच…। भेड़िए…
युवा कवि रविभूषण पाठक ने नए साल की बधाई कुछ इस तरह से दी है- जानकी पुल.=========================================================नया साल भी बेमौका ही आता हैजबकि पछता फसल भी पहुंच जाती है घरखलिहान में चूहों तक के लिए दाने नहीं और देश गोबर में से भी दाना निकाल चुका थाबड़े से बड़े किसान की भी फसल निकल चुकी हैखलिहान से दलाल के गोदाम मेंचिप्स, पापड़, सूज्जी, टकाटक बननेगेहूं का दस दिन पुराना पौधा ताक रहा पानी खाद के लिएजैसे जनमौटी बच्चा घूमाता आंख गरदनऔर सरसो में भी तो फूल नहीं लगे हैंऔर इस ‘ताक’ को सूर्य-चन्द्र कभी नहीं समझेंगेवे करके अपनी गिनती आ…
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के बाद शुरु हुए आंदोलन को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र धोड़पकर ने बहुत बहसतलब लेख लिखा है- जानकी पुल.========================= राजनीति और समाज के बारे में भविष्यवाणी करना खतरनाक होता है। जब देश में टेलीविजन और संचार साधनों की आमद हुई, तो समाजशास्त्रियों व कुछ राजनीतिज्ञों ने कहा था कि अब जन-आंदोलनों के दिन लद गए। अब लोग सब कुछ टीवी से पा लेंगे और सड़कों पर नहीं निकलेंगे। कुछ अरसे तक यह भविष्यवाणी सही भी होती दिखी। अब ऐसा लगता है कि इसकी वजह आधुनिक संचार साधन नहीं थे, बल्कि मंडल व मंदिर आंदोलनों की हिंसा से…
दिल्ली की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद बलात्कार और उसके कानूनों को लेकर बहस शुरु हो गई है. कवयित्री अंजू शर्मा का यह लेख भी पढ़ा जाना चाहिए- जानकी पुल.================================== मेरी नौ वर्षीया बेटी ने कल मुझसे पूछा कि रेपिस्ट का क्या मतलब होता है। पिछले कई दिनों से वह बार-बार रेपिस्ट, रेप, बलात्कार, फांसी, दरिन्दे, नर-पिशाच जैसे शब्दों से दो-चार हो रही है। रेप की विभत्सता पर बात करते हुए, या आक्रोश जताते हुए, उसके आने पर बड़ों का चुप हो जाना या विषय बदल देना उसे समझ में आता है। वह पूछती है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जो…
आज कुछ कविताएँ रामजी तिवारी की. समय-समाज की कुछ सच्चाइयों के रूबरू उनकी कविताएँ हमें हमारा बदलता चेहरा दिखाती हैं- जानकी पुल.================================ 1…. मुखौटे मुखौटे तब मेले में बिकते, राक्षसों और जानवरों के अधिकतर होते जो भारी, उबड़ खाबड़ और बहुत कम देर टिकते|पहनते हम शर्माते हुए, तुम फलां हो न ? कोई भी पहचान लेता तब गड़ जाते लजाते हुए |मुखौटा और भारी हो जाता, हम उतार फेंकते शर्म जब तारी हो जाता |मुखौटे अब बाजार में बिकते हैं,जब चाहें खरीद लें जैसे चाहें पहन लें और बहुत देर टिकते हैं|इतने सुगढ़ , इतने वास्तविक, इतने…