प्रसिद्ध कवि-विचारक अशोक वाजपेयी ने कनौता कैंप में आयोजित ‘कथा कहन’ में उपन्यास की अवधारणा, भारतीय उपन्यास की अवधारणा, हिन्दी उपन्यास की परंपरा, अवधारणा को लेकर एक शानदार व्याख्यान दिया था। आज अशोक जी का व्याख्यान अविकल रूप से प्रस्तुत है- ====================== केसव! कहि न जाइ का कहिये। देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥ सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे। मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे॥ रबिकर-नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं। बदन-हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं॥ कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल…
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लक्ष्मीकांत मुकुल की कविताओं पर यह लेख लिखा है कवि शहंशाह आलम ने। आप भी पढ़ सकते है- घर से लेकर खेत और खेत से लेकरलाल चोंच वाले पंछी के पीछे लगा हुआ कवि कुमार अम्बुज कहते हैं, ‘कवि को केवल एक चीज़ चाहिए और वह यह कि हर चीज़ चाहिए। बल्कि जो कुछ दुनिया में अभी नहीं है, वह भी चाहिए। इसलिए उसे स्वप्नशीलता चाहिए। क्योंकि उसका काम एक दुनिया से नहीं चल सकता।’ ये सारी बातें कवि लक्ष्मीकांत मुकुल के लिए भी कही जा सकती हैं। मुकुल एक आंदोलनकर्ता कवि हैं। मुकुल एक घरेलू कवि हैं। मुकुल…
जीवन में प्रेम का एहसास होना सबसे सुंदरतम अनुभवों में शामिल है। आज कुछ प्रेम कविताएँ पढ़िए। कवि हैं अंचित। इससे पूर्व भी जानकीपुल पर इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन उनकी आवाज़ बिलकुल भिन्न थी। राजनीतिक स्वर लिए उन कविताओं के बाद इन प्रेम कविताओं से गुजरना भी एक सुखद एहसास है, जिनमें साथ की सहज व निःस्वार्थ चाह भी है और यदि लगे कि यह प्रेम साथी स्त्री के लिए नुक़सानदायक है तो बिना देर किए उसे अलग हो जाने के लिए सलाह भी है। यह रही कविताएँ- अनुरंजनी ======================================= कुछ कविताएँ महोदया “श” के लिए 1.…
इस साल एक महत्वपूर्ण किताब आई यतींद्र मिश्र की लिखी \’गुलज़ार साब: हज़ार राहें मुड़ के देखीं\’। गुलज़ार साहब पर ऐसी विस्तृत किताब दूसरी मेरी निगाह में नहीं है। आज विशेष माँग पर वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का एक अंश पढ़िए- ====================================== अतीत की बहुत सारी तस्वीरें गुलज़ार के यहाँ जमा हैं। बदलते मौसम के लिए पुराने कपड़े और रज़ाईयाँ सँभालकर बड़े-बड़े टं्रकों में जिस तरह रखी जाती हैं, ठीक उसी तर्ज़ पर न जाने कितनी यादों के इन्दराज़ खुद के भीतर संजोए बैठे हैं गुलज़ार। जहाँ जीवन से जुड़ा हुआ मामला है, जिसमें रिश्तेदार और घर-परिवार के…
आज पढ़िए उज़्मा कलाम की कहानी ‘आधा अधूरा’। कहानी पहले ‘हंस’ में प्रकाशित हो चुकी है लेकिन कहानी का परिवेश, विषय, भाषा सब इतनी अलग है कि लगा इसको साझा करना चाहिये- ============================ आख़िरकार फ़रख़न्दा को उठना ही पड़ा। जब तक वे सब मिलकर सिर दर्द की नसों को झकझोर ना दे, मानती ही नहीं। सिर दर्द से फट पड़ा और वह दुपट्टा सिर पर बाँधे हुए ड्योढ़ी लांघकर उसके घर में घुसी। ‘कोई तो करम ख़राब किये होंगे, जो आज यहां फिर रही हूँ। इन्होंने थोड़े बुलाया था। अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ, खुद ही आयी थी। अब इसमें…
‘वर्षावास’ अविनाश मिश्र का नवीनतम उपन्यास है । नवीनतम कहते हुए प्रकाशन वर्ष का ही ध्यान रहता है (2022 ई.) लेकिन साथ ही तुरंत उपन्यास के शिल्प पर ध्यान चला जाता है जो अपने आप में बिल्कुल ही नया है । अब तक हिंदी उपन्यासों में डायरी (नदी के द्वीप), पत्र (आईनासाज़) के इस्तेमाल संबंधी प्रयोग तो मिलते रहे हैं लेकिन वर्षावास में हुए प्रयोग अपने तरह का संभवत: पहला प्रयोग है जहाँ पूरी किताब ही विभिन्न माध्यमों के कथन से आगे बढ़ती है और पूरी होती है । शुरुआत ही है ‘लेखिका’ से जिसे पढ़ते हुए सबसे पहली अड़चन तो…
आज पढ़िए यतीश कुमार की मार्मिक संस्मरण पुस्तक ‘बोरसी भर आँच’ की यह समीक्षा जिसे लिखा है कवि-तकनीकविद सुनील कुमार शर्मा ने। यह पुस्तक राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित है- ============================ कवि-कथाकार यतीश कुमार की सद्य प्रकाशित संस्मरण की किताब ‘बोरसी भर आँच’ पढ़ते हुए बशीर बद्र साहब का यह मानीखेज शेर याद आ गया- “जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा / ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा।’ चीकू से यतीश कुमार बनने की यात्रा में कई वर्षों का…
पहला जानकी पुल शशिभूषण द्विवेदी सम्मान लेखिका दिव्या विजय को उनके कहानी संग्रह ‘सगबग मन’ के लिए दिया गया है। इस संग्रह में अलग अलग तरह के परिवेश की अनेक सघन कहानियाँ हैं। लेकिन ‘महानगर की एक रात’ कहानी बहुत अलग तरह की है। भय, शंका से भरपूर यह कहानी एक ऐसे अप्रत्याशित मोड़ की तरफ़ जाती है पढ़ते हुए पाठक जिसका अनुमान भी नहीं लगा सकते। आप भी पढ़िये- ========================== “तुमने टैक्सी में शेड्स क्यों लगाये हैं? रात में इनकी क्या ज़रुरत है?” झल्लाते हुए अनन्या ने दोनों खिड़कियों से शेड्स हटा डाले. काँच पर काली कोटिंग बैन हो…
आज पढ़िए सपना भट्ट की कविताएँ। उनकी कविताओं का अपना विशिष्ट स्वर समकालीन कविता में बहुत अलग है। आप भी पढ़िए उनकी कुछ नई कविताएँ- ============== 1 यहीं तो था! अज्ञात कूट संकेतों के अप्रचलित उच्चारणों में गूँजता तुम्हारी मौलिक हँसी का मन्द्र अनुनाद यहीं रखे थे प्रागैतिहासिक अविष्कारों से पूर्व के शीत और ताप यहीं राग, विराग और हठ थे यहीं थे त्वरा और शैथिल्य भी जब पावस ऋतु के आदिम रन्ध्रों की झीसियों से अविराम भीजती थी धरा कंपकपाते गात की सिहरन यहीं रखी थी अच्छे भले तटस्थ दिनों में जब तब चली आती थी याद सुबकती हुई।…
वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग के प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ को पढ़कर कवि यतीश कुमार ने काव्यात्मक टिप्पणी की है। आप भी पढ़िए- ============================= 1. कमाल की कविता है स्मृति जिसकी परिधि में गुलाब के बचे ओस कण और पराग भी हैं जिसने बचाए रखा तन में मन और आत्मा में स्पंदन जिसने ताप को संताप और प्रेम को अधिकार होने से बचा लिया 2. ढहती रात उदास स्मृतियाँ हैं जो इस उलझन में है कि उदास रात्रि है या यात्री सड़क है या सफ़र एक फ़व्वारा है स्मृतियों का जिसमें साल में एक बार पानी आता है और वह पूरे…