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भानु भारती के निर्देशन में गिरीश कर्नाड के नाटक ‘तुगलक’ का भव्य मंचन दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहरों में हुआ. इस नाटक की प्रस्तुति को लेकर बहुत अच्छी समीक्षा लिखी है अमितेश कुमार ने- जानकी पुल.================================“निर्देशक का यह मूलभूत कर्तव्य है कि वह नाटक के अर्थ को सशक्त दृश्यबिंबों के ऐसे क्रम में जमा दे कि दर्शको को अनजाने में ही उसका ग्रहण सुलभ हो जाय।\” इब्राहिम अलकाज़ी ने यह ‘तुगलक़’ के निर्देशकीय में कहा था. तुगलक देखे के लौटा तब से यह लाईन घूम रही थी दिमाग में. घर आया नाटक निकाला और पढ़ा. अब तुगलक को देखने का…
महज २८ साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को कुछ लोग हिंदी का कीट्स भी कहते हैं. उनकी कविताओं की एक किताब \’चन्द्रकुंवर बर्त्वाल का कविता संसार\’ हाथ लगी तो अपने जन्मदिन के दिन अपने इस प्रिय कवि को पढ़ता रहा. डॉ. उमाशंकर सतीश द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में बर्त्वाल जी की कई अच्छी कविताएँ हैं. बहरहाल, उनकी कुछ छोटी-छोटी कविताएँ आपके लिए- जानकी पुल ========================================================================१.सुख-दुःख सपनों में धन- सा मिलता हैसुख जग में जीवन कोबिजली-सी आलोकित करती क्षण भर हँसी रुदन को.पहिन बसन काँटों में आता दुःख बांहें फैलाये निर्मम आलिंगन से करता…
आज \’प्रभात खबर\’ के संपादक हरिवंश ने मीडिया को लेकर एक आत्मालोचन परक लेख लिखा है. पढ़ने के काबिल लगा तो सोचा आप सबको भी पढ़वाऊं- प्रभात रंजन.====================================== मीडिया की ताकत क्या है? अगर मीडिया के पास कोई शक्ति है, तो उसका स्रोत क्या है? क्यों लगभग एक सदी पहले कहा गया कि जब तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो? सरकार को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है. न्यायपालिका अधिकारों के कारण ही विशिष्ट है. विधायिका की संवैधानिक भूमिका है, उसे संरक्षण भी है. पर संविधान में अखबारों, टीवी चैनलों या मीडिया को अलग से एक भी अधिकार है? फिर मीडिया का यह…
सुनील गंगोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास ‘प्रथम आलो’ जो बांग्ला पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि पर लिखा गया महाकाव्यात्मक उपन्यास है. इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘फर्स्ट लाइट’ के नाम से अरुणा चक्रवर्ती ने किया है. इसका हिंदी अनुवाद \’प्रथम आलोक\’ नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है, अनुवाद किया है लिपिका साहा ने- प्रभात रंजन.============================================ज्योतिरिन्द्रनाथ की गाड़ी छह बिडन स्ट्रीट में नेशनल थियेटर के सामने आकर खड़ी हो गई. थियेटर की इमारत पूरी तरह लकड़ी से बनी है. चारों ओर तख़्त का बाड़ा बना है और ऊपर छत टिन की. आज शो का मौका नहीं है, इसलिए अधिक भीड़-भाड़ भी नहीं है. ज्योतिरिन्द्रनाथ ने…
अपने कथ्य और शिल्प में विशिष्ट प्रेम रंजन अनिमेष की कवितायें हर बार कुछ नया रचने की कोशिश करती हैं । ‘मिट्टी के फल’ और ‘कोई नया समाचार’ के बाद उनका नया कविता संग्रह ‘संगत’ हाल ही में प्रकाशन संस्थान से आया है। पिता के जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान उनके साथ के जैसे गहन आत्मीय एवं मर्मस्पर्शी चित्र प्रस्तुत संग्रह में हैं वे हिंदी कविता में दुर्लभ हैं। यह आज के सयाने जमाने में एक सीधे सरल किंतु जीवन मूल्यों के साथ और जीवन मूल्यों के लिए जीने वाले सहृदय मनुष्य का वृत्तांत भी है। डायरी, संस्मरण, आत्मकथा…
प्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्प की पुस्तक आई है किताबघर से \’तब्दील निगाहें\’, जिसमें उन्होंने कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के स्त्रीवादी पाठ किए हैं. \’उसने कहा था\’ कहानी की नायिका सूबेदारनी के मन के उहापोहों को लेकर यह एक दिलचस्प पाठ है. पढ़ा तो आपसे साझा करने का मन हुआ- प्रभात रंजन===============‘मुझे पहचाना?’‘नहीं।‘‘तेरी कुड़माई हो गई?’‘धत्।‘‘कल ही हो गई।‘‘देखते नहीं यह रेशमी बूटों वाला शालू. अमृतसर में।‘यह संवाद! लहनासिंह, तुमने जीवन साथ बिताने का खूबसूरत सपना देखा था न? और मेरे पिछले वाक्य पर कितना छोटा मुंह हो गया था तुम्हारा! क्यों न होता, उस छोटी सी उम्र में उस क्षण तुम्हें…
बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध लेखक सुनील गंगोपाध्याय का निधन हो गया. अनेक विधाओं में २०० के करीब पुस्तकें लिखने वाले इस लेखक का पहला प्यार कविता थी. उनको श्रद्धांजलि स्वरुप प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कविताएँ- जानकी पुल.=============================१.ओ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य! ओ इक्कीसवीं सदी के मनुष्य!तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूचंचल सुख और समृद्धि की,तुम अपने जीवन और जीवनयापन में मज़ाकिया बने रहनातुम लाना आसमान से मुक्ति-फल –जिसका रंग सुनहरा हो,लाना — ख़ून से धुली हुई फ़सलेंपैरों-तले की ज़मीन से,तुम लोग नदियों को रखना स्रोतस्विनीकुल-प्लाविनी रखना नारियों को,तुम्हारी संगिनियां हमारी नारियों की तरहप्यार को पहचानने में भूल न करें,उपद्रवों से मुक्त,…
इस साल मैन बुकर पुरस्कार हिलेरी मैंटल को उनके उपन्यास ‘ब्रिंग अप द बॉडीज’ पर मिला है. यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है. इससे पहले उनको ऐतिहासिक उपन्यास \’वोल्फ हॉल\’ के लिए २००९ में बुकर मिल चुका है. \’ब्रिंग अप द बॉडीज’ उसी उपन्यास का सीक्वेल है. प्रस्तुत है. इस पुरस्कृत उपन्यास का एक अंश, जिसका अनुवाद मैंने किया है और जो कल नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ था- प्रभात रंजन.===================== थॉमस क्रॉमवेल इस समय करीब पचास साल के हैं. उनका शरीर मेहनतकशों जैसा है, गठीला, उपयोगी, मोटापे से दूर. उनके बाल काले हैं, जो अब कुछ-कुछ सफ़ेद होने लगे हैं, और…
विमल कुमार ने यह कविता कुछ दिनों पहले प्रकाशित प्रीति चौधरी की कविता के प्रतिवाद में लिखी है. एक कवि अपना मतान्तर कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा है. स्त्री-विमर्श से कुछ उदारता बरतने का आग्रह करती यह कविता पढ़ने के काबिल तो है, जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों ही- जानकी पुल.================================================================सिर्फ प्यार से लड़ा जा सकता है हिंसा के खिलाफमंडराते रहे सदियों सेअब तक न जाने कितने गिद्ध तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमते रहे शहर में न जाने कितने भेडिये दिन-रात तुम्हारे पासजानता हूं चाहकर भी नहीं कर पाती कई बार तुम मुझ पर यकीन समझ लिया…