संजय गौतम कम लिखते हैं लेकिन मानीखेज लिखते हैं. उदाहरण के लिए यही लेख जिसमें इब्ने इंशा की किताब \’उर्दू की आखिरी किताब\’ के बहाने उर्दू व्यंग्य की परम्परा का दिलचस्प जायजा लिया गया है- जानकी पुल.==================व्यंग्य विधा में समकालीनता एवं उपयोगिता का प्रश्न(‘उर्दू की आख़िरी किताब’ के विशेष संदर्भ में)व्यंग्यविधा पर विचार करने के लिए मैंने हिन्दी के स्थान पर उर्दू गद्य को आधार क्यूँ बनाया, इससे पहले कि आप पूछें मैं ही बता देता हूँ। एक तो विद्वजनों ने निरंतर दोनों भाषाओं को बहन ही बताया है, सो एक एक-आध दिन मौसी के घर भी चले जाना चाहिए।…
Author: admin
\’लमही सम्मान\’ के सम्बन्ध में सम्मान के संयोजक और \’लमही\’ पत्रिका के संपादक विजय राय द्वारा यह कहे जाने पर कि 2012 के सम्मान के निर्णय में निर्णायक मंडल से चूक हुई, सम्मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपना सम्मान वापस कर दिया. अब उस सम्मान के संबंध में महेश भारद्वाज, प्रबंध निदेशक, सामयिक प्रकाशन ने एक खुला पत्र लिखा है. श्री भारद्वाज इस सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे. प्रस्तुत है वह पत्र- जानकी पुल.==================== श्री विजय राय के नाम खुला पत्रआदरणीय विजय राय जी, नमस्कार. लमही सम्मान 2012 के विषय में आपके कहे कथन कि ‘निर्णायक मंडल से…
\’लमही सम्मान\’ के सम्बन्ध में सम्मान के संयोजक और \’लमही\’ पत्रिका के संपादक विजय राय द्वारा यह कहे जाने पर कि 2012 के सम्मान के निर्णय में निर्णायक मंडल से चूक हुई, सम्मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने अपना सम्मान वापस कर दिया. अब उस सम्मान के संबंध में महेश भारद्वाज, प्रबंध निदेशक, सामयिक प्रकाशन ने एक खुला पत्र लिखा है. श्री भारद्वाज इस सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे. प्रस्तुत है वह पत्र- जानकी पुल.==================== श्री विजय राय के नाम खुला पत्रआदरणीय विजय राय जी, नमस्कार. लमही सम्मान 2012 के विषय में आपके कहे कथन कि ‘निर्णायक मंडल से…
यह सिर्फ ‘लंचबॉक्स’ फिल्म की समीक्षा नहीं है. उसके बहाने समकालीन मनुष्य के एकांत को समझने का एक प्रयास भी है. युवा लेखिका सुदीप्ति ने इस फिल्म की संवेदना को समकालीन जीवन के उलझे हुए तारों से जोड़ने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है. आपके लिए- जानकी पुल. =========================================== पहली बात: इसे‘लंचबॉक्स’ की समीक्षा कतई न समझें. यह तो बस उतनी भर बात है जो फिल्म देखने के बाद मेरे मन में आई. अंतिमबात यानी कि महानगरीय आपाधापी में फंसे लोगों से निवेदन:इससे पहले कि ज़िंदगी उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दे, जहाँ खुशियों का टिकट वाया…
शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…
शैलप्रिया स्मृति सम्मानएक दिसंबर 1994 को झारखंड की सुख्यात कवयित्री और स्त्री-संगठनों से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शैलप्रिया का कैंसर की वजह से देहांत हो गया। तब वे 48 साल की थीं। उनके अपनों, और उनके साथ सक्रिय समानधर्मा मित्रों और परिचितों का एक विशाल परिवार है जो यह महसूस करता रहा कि अपने समय, समाज और महिलाओं के लिए वे जो कुछ करना चाहती थीं, वह अधूरा छूट गया है। उस दिशा में अब एक क़दम बढ़ाने की कोशिश हो रही है। उनके नाम पर बने शैलप्रिया स्मृति न्यास ने महिला लेखन के लिए 15,000 रुपये का एक सम्मान देने…