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फणीश्वरनाथ रेणु ने बहुत अच्छी कविताएँ भी लिखीं. उनकी एक कविता \’मेरा मीत शनिचर\’ बहुत लोकप्रिय है. फागुन के महीने में उनकी यह कविता भी पढ़ने लायक है.———————————————————–यह फागुन की हवा यह फागुनी हवामेरे दर्द की दवाले आई…ई…ई…ईमेरे दर्द की दवा!आंगन ऽ बोले कागापिछवाड़े कूकती कोयलियामुझे दिल से दुआ देती आईकारी कोयलिया-यामेरे दर्द की दवाले के आई-ई-दर्द की दवा!वन-वनगुन-गुनबोले भौंरामेरे अंग-अंग झननबोले मृदंग मन–मीठी मुरलिया!यह फागुनी हवामेरे दर्द की दवा ले के आईकारी कोयलिया!अग-जग अंगड़ाई लेकर जागाभागा भय-भरम का भूतदूत नूतन युग का आयागाता गीत नित्य नयायह फागुनी हवा…!

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वर्ष २०११ का देवीशंकर अवस्थी सम्मान युवा कवि-आलोचक जीतेंद्र श्रीवास्तव को दिए जाने की घोषणा हुई है. उनको यह पुरस्कार २००९ में प्रकाशित आलोचना-पुस्तक \’आलोचना का मानुष-मर्म\’ के लिए दिए जाने की घोषणा हुई है. जीतेंद्र की ख्याति मूलतः कवि के रूप में है और उनको युवा कविता का सबसे प्रतिष्ठित समझा जाने वाला पुरस्कार भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिल चुका है. लेकिन प्रेमचंद की रचनाओं पर शोध करने वाले जीतेंद्र श्रीवास्तव ने आलोचना की विधा में भी उल्लेखनीय काम किया है. आलोचना की उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हैं.ध्यान रखने की बात है कि एक जमाने में देवीशंकर अवस्थी सम्मान…

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एक किताब आई है- जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है. यह अज्ञेय की प्रेम-कविताओं का संचयन है. संपादन किया है ओम निश्चल ने. पुस्तक किताबघर प्रकाशन से आई है. इस वासंती शाम उसी संकलन की कुछ कविताएँ- जानकी पुल.—————————————————————-1.जान लिया तब प्रेम रहा क्या? नीरस प्राणहीन आलिंगनअर्थहीन ममता की बातें अनमिट एक जुगुप्सा का क्षण।किंतु प्रेम के आवाहन की जब तक ओंठों में सत्ता हैमिलन हमारा नरक-द्वार पर होवे तो भी चिंता क्या है?2.हमारी कल्पना के प्रेम में, और हमारी इच्छा के प्रेम में, कितना विभेद है!दो पत्थर तीव्र गति से आ कर एक दूसरे से टकराते…

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आज प्रियदर्शन की कविताएँ कुछ बदले हुए रंग, एक नए मुहावरे में. आख्यान के ढांचे में, कुछ गद्यात्मक लहजे में, लेकिन सहज काव्यात्मकता के साथ- जानकी पुल.—————————————–सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कवितामेरे आसपास कई सफल लोग हैंअपनी शोहरत के गुमान में डूबे हुए।जब भी उन्हें कोई पहचान लेता हैवे खुश हो जाते हैंऔर अक्सर ऐसे मौकों पर अतिरिक्त विनयशील भीजैसे जताते हुए कि उन्हें तो मालूम भी नहीं था कि वे इतने सफल और प्रसिद्ध हैंऔर बताते हुए कि उन्हें तो पता भी नहीं है कैसे आती है सफलता और कैसे मिलती है प्रसिद्धि।उनके चेहरों पर…

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प्रसिद्ध पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने 2012 में छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों में रहते हुए वहां के अनुभवों को डायरी के रूप में लिखा था. सुकमा की नृशंस हत्याओं के बाद उनकी डायरी के इस अंश की याद आई जो नक्सली माने जाने वाले इलाकों की जटिलताओं को लेकर हैं. हालात अभी भी वैसे ही हैं– मॉडरेटर   ———————————— सुकमा। जनवरी। बंदूक कमबख्त बड़ी कमीनी और कामुक चीज रही। सुकमा के जंगल में काली धातु चमकती है। स्कूल के एनसीसी दिनों में पाषाणकालीन थ्री-नाट-थ्री को साधा था — बेमिसाल रोमांच। गणतंत्र दिवस परेड के दौरान रायफल के बट की धमक आज…

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आज मोहसिन नकवी की शायरी. पाकिस्तान के इस शायर को १९९६ में कट्टरपंथियों ने मार डाला था. उन्होंने नज्में और ग़ज़लें लिखीं, अनीस की तरह मर्सिये लिखे. उनकी शायरी का यह संकलन हमारे लिए शैलेन्द्र भारद्वाज जी ने किया है. मूलतः हिंदी साहित्य के विद्यार्थी रहे शैलेन्द्र जी उर्दू शायरी के हर रंग से वाकिफ हैं. मेरे जानते हिंदी के हवाले से ऐसे कम लोग हैं जो उर्दू शायरी की इतनी गहरी समझ रखते हैं. आइये शैलेन्द्र भारद्वाज की पसंद की कुछ ग़ज़लें, कुछ नज्में पढते हैं. कलाम मोहसिन नकवी का- जानकी पुल.1.रेशम ज़ुल्फों नीलम आँखों वाले अच्छे लगते हैं मैं …

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