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भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित कवि जितेन्द्र श्रीवास्तव समकालीन कविता का एक महत्वपूर्ण नाम है. उनकी कविताओं में विस्थापन की पीड़ा है, मनुष्य के अकेले पड़ते जाने की नियति का दंश. अभी हाल में ही उनका नया कविता संग्रह आया है \’इन दिनों हालचाल\’ और साथ ही, प्रेम कविताओं का संचयन आया है \’बिलकुल तुम्हारी तरह\’. प्रस्तुत है उनकी कुछ इधर की कविताएँ- जानकी पुल. धूपधूप किताबों के ऊपर है या भीतर कहीं उसमें कहना मुश्किल है इस समयइस समय मुश्किल है कहना कि किताबें नहा रही हैं धूप में या धूप किताबों में पर यह देखना और महसूसना नहीं मुश्किलकि…

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आज मोहन राकेश का जन्मदिन है. नाटक, कहानी के साथ-साथ मोहन राकेश की डायरी का भी अपना महत्व है. जिन दो लेखकों की डायरी मैंने बार-बार पढ़ी है उनमें मोहन राकेश के अलावा दिनकर की डायरी. लेकिन आज पेश हैं मोहन राकेश की डायरी के कुछ अंश- बम्बई…?दिन-भर परिभाषाएँ घड़ते रहे। साहित्य की, जीवन की, मनुष्य की। बे-सिर-पैर। सभी पढ़ी-सुनी परिभाषाओं की तरह अधूरी और स्मार्ट। दूसरों ने जितनी स्मार्टिंग की कोशिश की, उससे ज़्यादा खुद की। जैसे परिभाषा नहीं दे रहे थे, कुश्ती लड़ रहे थे। महत्त्व सिर्फ़ इस बात का था कि दूसरे को कैसे पटखनी दी जाती है। या फिर पटखनी खाकर भी…

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7-8 जनवरी को जयपुर में \’कविता समय\’ का दूसरा आयोजन है, जो संयोग से कवियों और कविता का सबसे बड़ा आयोजन बनता जा रहा है. इस मौके पर हम कुछ कवियों की चुनी हुई कविताएँ प्रस्तुत करेंगे. शुरुआत अपने प्रिय कवि गिरिराज किराडू की कविताओं से कर रहे हैं. गिरिराज की कविताओं का स्वर समकालीन हिंदी कविता में सबसे मौलिक है. थोड़ा-सा व्यंग्य, थोड़ी उदासी, गद्यकारों सा खिलंदड़ापन- सबके भीतर अन्तर्निहित गहरा विडंबनाबोध. पढते हैं उनकी कुछ नई कविताएँ- प्रभात रंजन.मग़रिब जाओ१एक सवाल यह कि तुम इसी समय यहाँ क्यूँ नहीं होएक सवाल यह कि तुमसे कभी चूक क्यूँ नहीं…

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२०११ के साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता काशीनाथ सिंह से आज कवयित्री आभा बोधिसत्व की बातचीत- जानकी पुल.आप को साहित्य आकादमी पुरस्कार मिला है आपके उपन्यास ‘रेहन पर रग्घू’को, लेकिन क्या यह आप की प्रिय रचना भी है?नही मेरी प्रिय रचना तो ‘काशी का अस्सी’ है,ऐसे ‘रेहन पर रग्घू’को भी मैं कमतर नहीं मानता। काशी का अस्सी इसलिएभी मुझे प्रिय है क्योंकि उसमें मेरा पूरा व्यक्तित्व, जिंदादिल मस्ती, आवारगी यह सारी चीजें उभरकर आती हैं।वह पूरा उपन्यास अपने शिल्प मे भी अलग है।आपके पात्र बहुत ‘गल्प प्रिय’ हैं, बतियाना जानते हैं, इनका चयन कैसे करते हैं?एक तो यह कि चूंकि मैं…

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युवा कवि रविकांत को हेमंत स्मृति सम्मान मिला है. रविकांत की कविताएँ हिंदी कविता के बदलते स्वर से परिचय करवाती है. एक ऐसे मुहावरे से जिसमें आज के मनुष्य की आवाज़ सुनाई देती है. उनको बधाई के साथ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल. 1.बयान इसमें संदेह नहीं कि मेरा प्रेम सच्चा है Iपर सच्चे प्रेम में भी हमारे समय के कुछ सामान्य तत्व तो होंगे ही ना !अब चौबिस कैरेट के सच्चे प्रेम की मांग तो मूर्खता ही कही जाएगी Iअफ़सोस है कि मेरी प्रेमिका एकदम मूर्ख है Iवह इस घोर आधुनिक समय में भीसच्चे प्रेम की मांग करती…

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कल काशीनाथ सिंहको ‘रेहन पर रग्घू’ उपन्यास पर साहित्य अकादेमीपुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई. उनको जानकी पुल की ओर से बहुत बधाई. इस मौके पर पेश है उनसे एक बातचीत. हम युवा आलोचक पल्लव के आभारी हैं कि उन्होंने तत्परता से यह बातचीत हमें उपलब्ध करवाई.रामकली सर्राफ : आपकी कहानियों में तो है ही लेकिन आप जो कथा रिपोर्ताज लिख रहे हैं संतो घर में झगरा भारी, पांड़े कौन कुमति तोहे लागी… आदि में भी गँवईमन झाँक रहा है, उस पर आप क्या कहना चाहेंगे?काशीनाथ सिंह : बुनियादी निर्माण तो हमारे गँवई मन का ही है, इसलिए वह भाषा…

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कल मेरे प्रिय कवि बोधिसत्व का जन्मदिन है. बोधिसत्व की कविताओं में वह दिखाई देता है, सुनाई देता है जो अक्सर दृश्य से ओझल लगता है. गहरी राजनीतिक समझ वाले इस कवि की कविताओं वह कविताई भी भरपूर है जिसे रघुवीर सहाय सांसों की लय कहते थे. उनकी नई कविताएँ तो मिली नहीं फिलहाल आपके साथ उनकी कुछ पुरानी कविताओं का ही वाचन कर लेता हूँ, उनको शुभकामनाएं सहित- जानकी पुल.तमाशातमाशा हो रहा हैऔर हम ताली बजा रहे हैंमदारीपैसे से पैसा बना रहा हैहम ताली बजा रहे हैंमदारी साँप कोदूध पिला रहा हैंहम ताली बजा रहे हैंमदारी हमारा लिंग बदल…

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आज अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि आगा शाहिद अली की दसवीं पुण्यतिथि है. महज ५२ साल की उम्र में दुनिया छोड़ जाने वाले इस कश्मीरी-अमेरिकी कवि के बारे में कहा जाता है कि इसने अंग्रेजी कविता का मुहावरा बदल कर रख दिया. नई संवेदना, नए रूप दिए. अंग्रेजी में गज़लें लिखीं. आज उनकी याद में कुछ कविताएँ हिंदी अनुवाद में.1.मैं नई दिल्ली से आधी रात में कश्मीर देखता हूँ ‘ अब्बा से नहीं कहना मैं मर रहा हूँ’, वह कहता है और मैं सड़क पर फैले खून के सहारे उसके पीछे चल पड़ता हूँ और सैकड़ों जोड़ी जूते जो शोक मनाने…

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हाल में ही वाणी प्रकाशन से एक पुस्तक आई है \’भैरवी: अक्क महादेवी की कविताएँ\’. वीरशैव संप्रदाय की अक्क महादेवी की कुछ कविताओं का बहुत सुन्दर अनुवाद युवा कवि-संगीतविद यतीन्द्र मिश्र ने किया है. मैंने पढ़ा तो सोचा कि आपसे साझा किया जाए- जानकी पुल.वीरशैव सम्प्रदाय, जिसे प्रचलित अर्थों में ‘लिंगायत-सम्प्रदाय’ भी कहते हैं, ढेरों ऐसे सन्तों का हार्दिक प्रदेश रहा है, जो शैव आराधना में समर्पित साधकों का पन्थ है। ये वीरशैव मुख्यतः कर्नाटक प्रान्त से सम्बन्धित थे एवं इनका समय मुख्यतः बारहवीं शताब्दी का माना जाता है। इस सम्प्रदाय में प्रमुख रूप से आने वाले सन्तों-कवियों-कवयित्रियों में बसवेश्वर…

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