अपर्णा मनोज की कविताओं का मुहावरा एकदम अलग से पहचान में आता है. दुःख और उद्दाम भावनाओं के साथ एक गहरी बौद्धिकता उनकी कविताओं का एक अलग ही मुकाम बनाती हैं. कई-कई सवाल उठाने वाली ये कविताएँ मन में एक गहरी टीस छोड़ जाती हैं. आज प्रस्तुत हैं उनकी पांच कविताएँ- जानकी पुल.सब ठीक ही है :कहाँ कुछ बिगड़ा है ?यूँ तो सब ठीक ही लगता है. पड़ोस से उठने वाला मर्सिया कनेर के गुलाबी फूलों के बीच से गुज़रा है ज्यादा फर्क कहाँ पड़ा है ? हवाएं कई पनडुब्बियों में समुद्र को भेद रही हैं थोड़े जहाज़ों का मलबा…
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युवा इतिहासकार सदन झाकी पकड़ शास्त्र और लोक दोनों पर ही समान रूप से और गहरी है. लोक-ज्ञान पर इस लेख को पढकर इसकी ताकीद की जा सकती है. आधुनिक औपचारिक शिक्षा से अलग ज्ञान की एक संचित परंपरा रही है, जिससे हमारा नाता टूटता जा रहा है. उन्हीं टूटे हुए तारों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं सदन- जानकी पुल.\”सींग टेकी कै पानी पीबै, उठाइ पूंछ उडि जाइ.ज्ञानी होइ सो अरथु लगावै, मुरख होइ उठि जाइ\” यह पहेली परोहे के बारे में है. यदि खेत ऊंचाई पर होता है तो सिंचाई के लिए पानी चमड़े के एक थैले…
आज मशहूर शायर शहरयार को अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जा रहा है. आइये उनकी कुछ ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाते हैं. वैसे यह बात समझ नहीं आई कि अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों?- जानकी पुल.1.कहीं ज़रा सा अँधेरा भी कल की रात न थागवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था।सब अपने तौर से जीने के मुतमईन थे यहाँपता किसी को मगर रम्ज़े-काएनात न थाकहाँ से कितनी उड़े और कहाँ पे कितनी जमेबदन की रेत को अंदाज़ा-ए-हयात न थामेरा वजूद मुनव्वर है आज भी उस सेवो तेरे कुर्ब का लम्हा जिसे सबात न थामुझे तो फिर…
मारियो वर्गास ल्योसा के उपन्यास ‘बैड गर्ल’ का एक सम्पादित अंश का अनुवाद.. २००७ में प्रकाशित यह उपन्यास नोबेल पुरस्कार से सम्मानित इस लेखक का अब तक प्रकाशित सबसे अंतिम उपन्यास है. यह अंश एक तरह से कम्युनिस्ट आंदोलन पर उनकी टिप्पणी की तरह है- जानकी पुल. ====================== पेरू से पेरिस में आकर मेरी और पॉल दोनों की जिंदगी बदल गई थी. वह अब भी मेरा सबसे अच्छा दोस्त था, लेकिन हमारा मिलना-जुलना कम हो गया था. कारण यह था कि मैंने यूनेस्को के लिए बतौर अनुवादक काम करना शुरु कर दिया था और मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं.…
यह कवि आरसी प्रसाद सिंह की जन्मशताब्दी का भी साल है. इस अवसर पर उनकी कुछ मैथिली कविताओं का हिंदी अनुवाद किया है युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने- जानकी पुल.1. ऋतुराज-दर्शन बसंत ऋतु का आगमन हो चुका है अमलतास के डाली-डाली पर पत्ती-पत्ती पर जैसे कोई लाल-हरा-पीले रंग का महकता हुआ बाल्टी उढ़ेल गया है मंद-मंद दक्खिनी हवा से फूले हुए सरसों के खेत में जैसे कोई भरा हुआ पीला ‘पोखर’ लहरा रहा हो आम के मंजर से चू रहा है रस किसी पागल की तरह भिनभिनाती है मधुमक्खियाँ हजारों-हजार बाग-बगीचे में खिले हुए हैं फूल अधरों को गोल-गोल…
संस्कृत के जाने-माने विद्वान राधावल्लभ त्रिपाठी के संपादन में वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’का नया संस्करण वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है. इसकी भूमिका में राधावल्लभ जी ने विस्तार से उस पुस्तक की विषयवस्तु और महत्व पर प्रकाश डाला है. प्रस्तुत है उसका एक अंश- जानकी पुल.यदि यह पूछा जाए कि संस्कृत की ऐसी पांच किताबों के नाम बताइए जिन्होंने दुनिया को बनाने और बचाये रखने का काम किया है तो ये किताबें हैं रामायण, महाभारत और गीता, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तलम और वात्स्यायन का कामसूत्र. कामसूत्र के बारे में यह आम धारणा है कि यह केवल सेक्स को…
युवा-कवि उमाशंकर चौधरी की कविताओं का एक अपना राजनीतिक मुहावरा है, जो उन्हें समकालीन कवियों में सबसे अलगाता है. वे विचारधारा के दवाब से बनी कविताएँ नहीं हैं, उनमें आम जन के सोच की अभिव्यक्ति है. इस कवि की कुछ कविताएँ, आज के राजनीतिक माहौल में जिनकी प्रासंगिकता समझ में आती है- जानकी पुल.१.प्रधानमंत्री पर अविश्वासआजकल मैं जितनी भी बातों को देखता और सुनता हूं उनमें सबसे अधिक मैं प्रधानमंत्री की बातों पर अविश्वास करता हूं। जानने को तो मैं यूं यह जानता ही हूं कि यह जितना आश्चर्य और कौतूहल का समय है उससे अधिक स्वीकार कर लेने का…
आज उर्दू के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी का जन्मदिन है. उनके गज़लों, नज्मों, कतओं से तो हम सब बखूबी परिचित रहे हैं लेकिन उनकी कहानियों के बारे में हमारी मालूमात ज़रा कम रही है. उनकी नौ कहानियों का एक संकलन भी उनके मरने के बाद प्रकाशित हुआ था. वे कैसी कहानियां लिखते थे इस पर कुछ कहने का अधिकारी मैं खुद को नहीं समझता, लेकिन मेरा प्रिय शायर कहानियां भी लिखता था मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ. पेश है उनकी एक कहानी ‘दही का बर्तन’- जानकी पुल. गोपाल एक लड़का था. उसकी माँ अत्यंत भली और सहृदय स्त्री थी.…
गोरख पांडे क्रांति के कवि थे. आज जनांदोलन के इस दौर में उनकी कुछ कविताएँ ध्यान आईं. आप भी पढ़िए- जानकी पुल.समय का पहिया समय का पहिया चले रे साथी समय का पहिया चले फ़ौलादी घोड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथीसमय का पहिया चलेरात और दिन पल पल छिन आगे बढ़ता जायतोड़ पुराना नये सिरे से सब कुछ गढ़ता जायपर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथीसमय का पहिया चलेउठा आदमी जब जंगल से अपना सीना तानेरफ़्तारों को मुट्ठी में कर पहिया लगा घुमानेमेहनत के हाथों से आज़ादी की सड़के ढले रे साथीसमय का पहिया चले आशा का गीत आएँगे, अच्छे दिन…