कवि और वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र राजन ने अभी-अभी एक कविता भेजी है. विनायक सेन को अदालती सजा ने हम-आप जैसे लोगों के मन में अनेक सवाल पैदा कर दिए हैं. कविता उनको वाणी देती है और उनके संघर्ष को सलाम करती है-जानकी पुल. जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थेवे गुलछर्रे उड़ा रहे थेजब तुम मरीज की नब्ज टटोल रहे थेवे तिजोरियां खोल रहे थेजब तुम गरीब आदमी को ढाढस बंधा रहे थेवे गरीबों को उजाड़ने कीनई योजनाएं बना रहे थेजब तुम जुल्म के खिलाफ आवाज उठा रहे थेवे संविधान में सेंध लगा रहे थेवे देशभक्त हैंक्योंकि वे व्यवस्था…
Author: admin
विनायक सेन पर क्या आरोप है? जिसके आधार पर विनायक सेन को उम्र कैद की सजा सुना दी गई है. सवाल खड़ा होता है कि रायपुर के जिला और सत्र न्यायलय का यह फैसला ठोस अर्थों में न्यायिक है या इस पर एक खास तरह के राजनीतिक सोच का असर है? सजा सिर्फ विनायक सेन को दी गई है या इसके ज़रिये उन तमाम लोगों और समूहों को सन्देश देने की कोशिश है, जो सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता और शांति के बारे में तथाकथित मुख्यधारा सोच से सहमत नहीं हैं? और इस रूप में क्या यह फैसला असहमति की आवाज़ को…
इस साल साहित्य के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक मारियो वर्गास ल्योसा अपने जीवन, लेखन, राजनीति सबमें किसी न किसी कारण से विवादों में रहते आये हैं. इस बार उन्होंने विकीलिक्स के खुलासों पर अपनी जुबान खोली है. इन दिनों वे स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में नोबेल पुरस्कार समारोह के लिए गए हुए हैं. वहीं एक बातचीत में इस वेबसाइट द्वारा किये गए खुलासों पर एक दो तरह की बातें कहकर एक नए विवाद की शुरुआत कर दी है. उन्होंने एक तरफ तो इन खुलासों का स्वागत किया है, लेकिन दूसरी तरफ यह भी कहा है कि बहुत अधिक पारदर्शिता अंतिम…
यह बताने की आवश्यकता नहीं लगती है कि नागार्जुन वैद्यनाथ मिश्र के नाम से मैथिली में कविताएँ लिखते थे और उनको साहित्य अकादमी का पुरस्कार मैथिली के कवि के रूप में ही मिला था. उनकी जन्मशताब्दी के अवसर पर उनकी कुछ मैथिली कविताओं का अनुवाद युवा कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा ने किया है. अंतिम कविता स्वयं बाबा नागार्जुन के अनुवाद में है- जानकी पुल.1. हाँ, अब हुई बारिशप्रतीक्षा में बीत गये कई पहरप्रतीक्षा में बदन के रोएं-रोएं से, पसीना निकला घड़ा भर-भरके प्रतीक्षा में रूक गया पेड़ का पत्ता-पत्ता, नहीं बरसी फुहार भी प्रतीक्षा में सूरज रह गया ढँका हुआ…
दो सालों से हिंदी में उपन्यासों को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही थी. चर्चा के केद्र में नए-नए कथा-कथा लेखक आ गए थे. कुछ पुरनिया इनको सर पर बिठाए फिर रहे थे, कुछ मिनरल वाटर पी-पे कर कोस रहे थे. ऐसे में एक साथ आठ उपन्यास प्रकाशित करके लगता है वाणी प्रकाशन पाठकों का ध्यान एक बार फिर उपन्यासों की तरफ मोडना चाहती है. 8 दिसंबर की सर्द संध्या लगता है इन उपन्यासों की चर्चा से गर्म रहने वाली है. उपन्यासों में असगर वजाहत का \’पहर दोपहर\’, रमेशचंद्र शाह का \’असबाबे वीरानी\’. ध्रुव शुक्ल का \’उसी शहर में उसका…
आज राकेश श्रीमाल की कविताएँ. संवेदनहीन होते जाते समय में उनकी कविताओं की सूक्ष्म संवेदनाएं हमें अपने आश्वस्त करती हैं कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. राकेश श्रीमाल मध्यप्रदेश कला परिषद की मासिक पत्रिका ‘कलावार्ता’ के संपादक, कला सम्पदा एवं वैचारिकी ‘क’ के संस्थापक मानद संपादक के अलावा ‘जनसत्ता’ मुंबई में 10 वर्ष संपादकीय सहयोग देने के बाद इन दिनों महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में हैं। जहां से उन्होंने 7 वर्ष ‘पुस्तक वार्ता’ का सम्पादन किया। वे ललित कला अकादमी की कार्यपरिषद के सदस्य रह चुके हैं। वेब पत्रिका ‘कृत्या’ (हिन्दी) के वे संपादक है। कविताओं की…
शिव कृष्ण बिस्सा मशहूर शायर शीन काफ निजाम के नाम से जाने जाते हैं. सूफियाना अंदाज़ के इस शायर की कुछ गज़लें प्रस्तुत हैं- जानकी पुल.1. पहले ज़मीन बांटी थी फिर घर भी बंट गयाइंसान अपने आप में कितना सिमट गया.अब क्या हुआ कि खुद को मैं पहचानता नहींमुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छंट गयाहम मुन्तजिर थे शाम से सूरज के दोस्तों लेकिन वो आया सर पे तो कद अपना घट गयागांव को छोड़कर तो चले आए शहर मेंजाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गयाकिससे पनाह मांगें कहाँ जाएँ, क्या करेंफिर आफताब रात का घूंघट उलट गयासैलाबे-नूर…
निदा फाजली ने कुछ शायरों के ऊपर बहुत रोचक ढंग से लिखा है. यहाँ उनका लेख शायर-गीतकार शकील बदायूंनी पर. कुछ साल पहले वाणी प्रकाशन से उनकी एक किताब आई थी \’चेहरे\’ उसमें उनका यह लेख संकलित है. ============= शेक्सपियर ने 1593 से 1600 के दरमियान एक सौ चौवन सॉनेट भी लिखे थे. उसमें से एक सॉनेट उन्होंने अपनी प्रेयसी के सौन्दर्य के बारे में कुछ मिसरे लिखे थे. उनका मुक्त अनुवाद इस तरह है: मेरे लफ़्ज़ों में ये ताकत कहाँ जो तेरी आँखों की तस्वीर बनायें तेरे हुस्न की सारी खूबियां दिखाएँ अगर ये मुमकिन भी हो, तो आने वाले…
गाब्रियल गार्सिया मार्केज़ के साथ पीटर एच. स्टोन की बातचीत का सम्पादित अंश जिसका अनुवाद मैंने किया है- प्रभात रंजन. प्रश्न- टेपरिकार्डर के उपयोग के बारे में आप क्या सोचते हैं? मार्केज़- मुश्किल यह है कि जैसे ही आपको इस बात का पता चलता है कि इंटरव्यू को टेप किया जा रहा है, आपका रवैया बदल जाता है. जहाँ तक मेरा सवाल है मैं तो तुरंत रक्षात्मक रुख अख्तियार कर लेता हूँ. एक पत्रकार के रूप में मुझे लगता है कि हमने अभी यह नहीं सीखा है कि इंटरव्यू के दौरान टेपरिकार्डर किस तरह से उपयोग किया जाना चाहिए.…
चीन में लाओत्से के के विचारों की बड़ी मान्यता थी. कहते हैं वह कन्फ्यूशियस का समकालीन था. जब उसने अपने ज्ञान को लिपिबद्ध किया तो वह कविताओं के रूप में सामने आया. ताओवाद के प्रवर्तक के विचार ‘ताओ ते छिंग’ में संकलित है. अभी उसका एक चुनिन्दा संकलन राजकमल प्रकाशन ने छापा है. अनुवाद वंदना देवेन्द्र ने किया है. कुछ चुनी हुई विचार कविताएँ- जानकी पुल.(1)जीवन लोग अभावग्रस्त व भूखे क्यों हैं? क्योंकि शासक करों के रूप में धन खा जाता हैअतः लोग भूखे मर रहे हैंलोग विद्रोही क्यों हैं?क्योंकि शासक अत्यधिक हस्तक्षेप करता हैअतः लोग विद्रोहात्मक हैंलोग मृत्यु के…