हाल में ही पेंगुइन-यात्रा प्रकाशन से प्रसिद्ध लेखक पॉल थरू की किताब \’द ग्रेट रेलवे बाज़ार\’ इसी नाम से हिंदी में आई है. जिसमें ट्रेन से एशिया के सफर के कुछ अनुभवों का वर्णन किया गया है. हालाँकि पुस्तक में एशिया विशेषकर भारत को लेकर पश्चिम में रुढ हो गई छवि ही दिखाई देती है, लेकिन कहीं-कहीं लेखक के ऑब्जर्वेशन्स दिलचस्प है. एक ज़बरदस्त पठनीय पुस्तक का हिंदी में आना स्वागतयोग्य कहा जा सकता है. हालांकि पुस्तक पढते हुए मेरी तरह आपके भी मन में तमाम तरह की असहमतियां उठ सकती हैं, फिर भी यह एक पैसावसूल किताब है-…
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आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर प्रस्तुत हैं आभा बोधिसत्व की कविताएँ- जानकी पुल.मैं स्त्री मेरे पास आर या पार के रास्ते नहीं बचे हैंबचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ता.जहाँ बचाया जा सके किसी भी कीमत पर,घर, समाजन कि सिर्फ अपनी बात।मैं स्त्री, मेरे पासआर या पार के रास्ते सचमुच नहीं बचेबचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ताजहाँ मिल सके मान हर स्त्री को,मिल सके ठौर हर स्त्री को, कह सके हर स्त्री यह मेरा घर और यह मेरी गृहस्थी।काठ की गुड़िया बन कर देख लियाकुछ नहीं हुआ मेरे मन कामोम की गुड़िया बन कर देख लियाक्या…
अज्ञेय की संगिनी इला डालमिया ने एक उपन्यास लिखा था’ ‘छत पर अपर्णा. कहते हैं कि उसके नायक सिद्धार्थ पर अज्ञेय जी की छाया है. आज अज्ञेय जी की जन्मशताब्दी पर उसी उपन्यास के एक अंश का वाचन करते हैं- जानकी पुल.लाइब्रेरी से सिद्धार्थ ने किताब मंगवाई थी. उन्हें उसकी तुरंत ज़रूरत थी. दिल्ली युनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में उसे किताब ढूंढते-ढूंढते कुछ ज्यादा समय लग गया और जब तक वह हिंदू कॉलेज और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बीच की सड़क पर पहुंची उसे आधा घंटा देर हो चुकी थी. निश्चित समय से आधा घंटा देर.उस दिन, पर, वह इंतज़ार करती…
आज अज्ञेय की जन्म-शताब्दी है. आज से अज्ञेय के साहित्य को लेकर तीन दिनों के कार्यक्रम का भी शुभारंभ हो रहा है. जिसमें एक वक्ता उदयप्रकाश भी हैं. इस अवसर पर अज्ञेय को लेकर उनके विचारों से अवगत होते हैं. प्रस्तुति हमारे ब्लॉगर मित्र शशिकांत की है- जानकी पुल. अभी पिछले दिनों मैं कुशीनगर गया था, जहां गौतम बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके निर्वाण स्थल से कुछ ही दूर मैंने वह स्थान देखा जहां अज्ञेय की इच्छानुसार एक संग्रहालय का निर्माण होना है। मेरे जैसे उनके असंख्य पाठकों की यह आकांक्षा होगी कि उनके जन्मशती वर्ष में यह संग्रहालय…
इस बात में कोई दो राय नहीं कि फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी साहित्य के संत लेखक थे। लेकिन जब यही बात निर्मल वर्मा जैसे लेखक की क़लम कहती है तो बात में वजन आ जाता है। निर्मल वर्मा लिखते हैं– “रेणु जी पहले कथाकार थे जिन्होंने भारतीय उपन्यास की जातीय सम्भावनाओं की तलाश की थी।” यह लेख निर्मल वर्मा ने उस वक़्त लिखा था जब रेणु के निधन पर सारा हिंदी साहित्य परिवार सोगवार था। आज \’रेणु\’ जी का जन्मदिन है। इस अवसर पर प्रस्तुत है उस लेख का एक अंश- त्रिपुरारि =========================================== मैं उनसे केवल दो-तीन बार मिला था, पर आज भी…
कुंवर नारायण के किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है. ८० पार की उम्र हो गई है लेकिन साहित्य-साधना उनके लिए आज भी पहली प्राथमिकता है. भारत में साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे जा चुके इस लेखक से शशिकांत ने बातचीत की. प्रस्तुत है आपके लिए- जानकी पुल.रचना जीवन मूल्यों से जुड़कर अभिव्यक्ति पाती है। लेखक का हदय बड़ा होना चाहिए, अन्यथा आपका लेखन बनावटी-सा लगता है। जिस दौर में मैंने पढऩा-लिखना शुरू किया, हमारे बीच ऐसे कई लेखक थे, जिनकी रचनाओं में और उनके व्यक्तित्व में सामाजिक सरोकार और जीवन-दृष्टि स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी।…
युवा पत्रकार विनीत उत्पल एक संवेदनशील कवि भी हैं. यकीं न हो तो उनकी कविताएँ पढ़ लीजिए- जानकी पुल.कुत्ते या आदमी कुछ लोग कुत्ते बना दिए जाते हैंकुछ लोग कुत्ते बन जाते हैंकुछ लोग कुत्ते पैदा होते हैंकुत्ते बनने और बनाने का जो खेल हैकाफी हमदर्दी और दया का हैक्योंकि न तो कुत्ते के पूंछसीधे होते हैं और न ही किए जा सकते हैं आदमी थोड़ी देर पैर या हाथ मोड़करसोता है लेकिन थोड़ी देर बाद सीधा कर लेता हैलेकिन कुत्ते की पूंछ हमेशा टेढ़ी ही रहती हैन तो उसे दर्द होता है और न ही सीधा करने की उसकी इच्छा होती…
खलीलुर्रहमान आज़मी मशहूर शायर शहरयार के उस्तादों में थे. इस जदीदियत के इस शायर के बारे में शहरयार ने लिखा है कि १९५० के बाद की उर्दू गज़ल के वे इमाम थे. उनके मरने के ३२ साल बाद उनकी ग़ज़लों का संग्रह हिंदी में आया है और उसका संपादन खुद शहरयार ने किया है. उसी संग्रह ‘जंज़ीर आंसुओं की’ से कुछ गज़लें- जानकी पुल.(१)कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा थायाद आता है कि इक ख्वाब कहीं देखा था.रात जब देर तलक चांद नहीं निकला थामेरी ही तरह से ये साया मेरा तनहा था.जाने क्या सोच के तुमने मेरा…
नजीर अकबराबादी की नज्मों के साथ सबको वसंतपंचमी मुबारक- जानकी पुल.१.फिर आलम में तशरीफ़ लाई बसंतहर एक गुलबदन ने मनाई बसंततवायफ ने हरजां उठाई बसंत इधर औ उधर जगमगाई बसंत हमें फिर खुदा ने दिखाई बसंत मेरा दिल है जिस नाज़नीं पे फ़िदावो काफिर भी जोड़ा बसंती बनासरापा वो सरसों का बन खेत सा वो नाज़ुक से हाथों से गडुआ उठाअजब ढंग से मुझ पास लाई बसंत.वो कुर्ती बसंती वो गेंदे का हारवो कमबख्त का ज़र्द काफिर इजार दुपट्टा फिर ज़र्द संजगाफदारजो देखी मैं उसकी बसंती बहारवो भूली मुझे याद आई बसंतवो कड़वा जो था उसके हाथों में फूल गया…