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http://akhilkatyalpoetry.blogspot.co.ukपर अपने मित्र सदन झा के सौजन्य से ब्रिटिश कवयित्री जैकी के की यह कविता पढ़ी तो अच्छी लगी. सोचा आपसे भी साझा किया जाए. हिंदी में शायद यह जैकी के की पहली ही अनूदित कविता है. एक कविता और भी है जो शायद अखिल कात्यालकी है, प्यार, मनुहार, छेडछाड की. आप भी पढ़िए- जानकी पुल.————————————————————— वहकि वह तो हमेशा हमेशाकि वह तो कभी नहीं कभी नहींमैंने यह सब देखा था, सब सुना थाफिर भी उसके संग चल दी थीवह तो हमेशा हमेशावह तो कभी नहीं कभी नहीं उस छोटी सी निडर रात मेंउसके होंठ, तितलियों से लम्हेमैंने उसको पकड़ने कि…

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हाल के दिनों में जिन कुछ कवियों की कविताओं ने मुझे प्रभावित किया है महेश वर्मा उनमें एक हैं. हिंदी heartland से दूर अंबिकापुर में रहने वाले इस कवि की कविताओं में ऐसा क्या है? वे इस बड़बोले समय में गुम्मे-सुम्मे कवि हैं, अतिकथन के दौर में मितकथन के. मार-तमाम चीज़ों के बीच अनुपस्थित चीज़ों की जगह तलाशती, छोटे-छोटे सुकून के पल तलाशती उनकी कुछ कविताएँ आज पढते हैं- जानकी पुल.——————1.अनुपस्थितसामने दीवार पर चौखुट भर जगह है एक तस्वीर कीकोई तस्वीर नहीं है एक जगह है-तस्वीर के न होने की, यह न होना भी इतनी पुरानी घटना किपिछले बार की पुताई…

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हाल के बरसों में नीलाभ की चर्चा अरुंधति रे से लेकर चिनुआ अचिबे के शानदार अनुवादक के रूप में रही है. लेकिन नीलाभ मूलतः एक गंभीर कवि और लेखक हैं. अभी हाल में ही उन्होंने महाभारत कथा को आम पाठकों के लिए तैयार किया है. \’मायामहल\’ और \’धर्मयुद्ध\’ के नाम से प्रकाशित दो खण्डों की इस महाभारत कथा में कथा के साथ-साथ उनका विश्लेषण भी चलता रहता है, जो बेहद महत्वपूर्ण है. प्रकाशक है हार्पर कॉलिंस. प्रस्तुत है पहले खंड \’मायामहल\’ की भूमिका. ———————————————————————————————इतने बरसों बाद अब यह तो याद नहीं है कि किस उमर में पहली बार महाभारत से मेरा…

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उत्तर आधुनिकता के विद्वान सुधीश पचौरी जिस विषय पर लिखते हैं उसका एक नया ही पाठ बना देते हैं- हमारे जाने समझे सबजेक्ट को हमारे लिये नया बना देते हैं- उदहारण के लिए सरिता_मार्च (प्रथम अंक) व्यंग्य विशेषांक में प्रकाशित हंसी पर यह लेख. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. ————————————————————————————————————————————————— हंसना एक जादू है. वह विकसित मानव की सांस्कृतिक क्रिया है. सांस्कृतिक भेद से हास्य भेद होता है. हर संस्कृति अपने ढंग से हंसा करती है. हिंदी में हंसना अंग्रेजी में हंसने से अलग है. हिंदी वाला हंसता है तो जोरदार ठहाका मार के हंसता है. कोई कोई तो ताली मार के…

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मूलतः पंजाबी भाषी तजेन्दर सिंह लूथरा हिंदी में कविताएँ लिखते हैं. हाल में ही उनका कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन से आया है- \’अस्सी घाट का बांसुरीवाला\’. उसी संकलन से कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.——————————————————–1.अस्सी घाट का बाँसुरी वालाइसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है,बनारस के अस्सी घाट की पार्किंग से लेकर,साइबेरिया से आये पक्षियो, अलमस्त फिरंगियो,टूटी सड़कों, बेजान रिक्शो, छोटी बड़ी नावों,कार का शीशा ठकठकाते नंग धड़ंग बच्चो,कहीं से शुरू, कहीं बीच मंझधार ले जाया जा सकता है|तभी बीच कोई बाँसुरी बजाता है,छोटी सी सुरीली तान,बजाता, फिर रुक जाता,अपने मोटे बांस पर टंगी,बाँसुरियो को ठीक करने लगता,कद मद्धम, उम्र अधेड़,लाल टीका, सादे कपड़े,आंखो में जगती बुझती चमक,आंखे…

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फणीश्वरनाथ रेणु ने बहुत अच्छी कविताएँ भी लिखीं. उनकी एक कविता \’मेरा मीत शनिचर\’ बहुत लोकप्रिय है. फागुन के महीने में उनकी यह कविता भी पढ़ने लायक है.———————————————————–यह फागुन की हवा यह फागुनी हवामेरे दर्द की दवाले आई…ई…ई…ईमेरे दर्द की दवा!आंगन ऽ बोले कागापिछवाड़े कूकती कोयलियामुझे दिल से दुआ देती आईकारी कोयलिया-यामेरे दर्द की दवाले के आई-ई-दर्द की दवा!वन-वनगुन-गुनबोले भौंरामेरे अंग-अंग झननबोले मृदंग मन–मीठी मुरलिया!यह फागुनी हवामेरे दर्द की दवा ले के आईकारी कोयलिया!अग-जग अंगड़ाई लेकर जागाभागा भय-भरम का भूतदूत नूतन युग का आयागाता गीत नित्य नयायह फागुनी हवा…!

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वर्ष २०११ का देवीशंकर अवस्थी सम्मान युवा कवि-आलोचक जीतेंद्र श्रीवास्तव को दिए जाने की घोषणा हुई है. उनको यह पुरस्कार २००९ में प्रकाशित आलोचना-पुस्तक \’आलोचना का मानुष-मर्म\’ के लिए दिए जाने की घोषणा हुई है. जीतेंद्र की ख्याति मूलतः कवि के रूप में है और उनको युवा कविता का सबसे प्रतिष्ठित समझा जाने वाला पुरस्कार भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार मिल चुका है. लेकिन प्रेमचंद की रचनाओं पर शोध करने वाले जीतेंद्र श्रीवास्तव ने आलोचना की विधा में भी उल्लेखनीय काम किया है. आलोचना की उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हैं.ध्यान रखने की बात है कि एक जमाने में देवीशंकर अवस्थी सम्मान…

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एक किताब आई है- जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है. यह अज्ञेय की प्रेम-कविताओं का संचयन है. संपादन किया है ओम निश्चल ने. पुस्तक किताबघर प्रकाशन से आई है. इस वासंती शाम उसी संकलन की कुछ कविताएँ- जानकी पुल.—————————————————————-1.जान लिया तब प्रेम रहा क्या? नीरस प्राणहीन आलिंगनअर्थहीन ममता की बातें अनमिट एक जुगुप्सा का क्षण।किंतु प्रेम के आवाहन की जब तक ओंठों में सत्ता हैमिलन हमारा नरक-द्वार पर होवे तो भी चिंता क्या है?2.हमारी कल्पना के प्रेम में, और हमारी इच्छा के प्रेम में, कितना विभेद है!दो पत्थर तीव्र गति से आ कर एक दूसरे से टकराते…

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