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आज प्रियदर्शन की कविताएँ कुछ बदले हुए रंग, एक नए मुहावरे में. आख्यान के ढांचे में, कुछ गद्यात्मक लहजे में, लेकिन सहज काव्यात्मकता के साथ- जानकी पुल.—————————————–सफल लोगों के बारे में एक असफल आदमी की कवितामेरे आसपास कई सफल लोग हैंअपनी शोहरत के गुमान में डूबे हुए।जब भी उन्हें कोई पहचान लेता हैवे खुश हो जाते हैंऔर अक्सर ऐसे मौकों पर अतिरिक्त विनयशील भीजैसे जताते हुए कि उन्हें तो मालूम भी नहीं था कि वे इतने सफल और प्रसिद्ध हैंऔर बताते हुए कि उन्हें तो पता भी नहीं है कैसे आती है सफलता और कैसे मिलती है प्रसिद्धि।उनके चेहरों पर…

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प्रसिद्ध पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने 2012 में छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों में रहते हुए वहां के अनुभवों को डायरी के रूप में लिखा था. सुकमा की नृशंस हत्याओं के बाद उनकी डायरी के इस अंश की याद आई जो नक्सली माने जाने वाले इलाकों की जटिलताओं को लेकर हैं. हालात अभी भी वैसे ही हैं– मॉडरेटर   ———————————— सुकमा। जनवरी। बंदूक कमबख्त बड़ी कमीनी और कामुक चीज रही। सुकमा के जंगल में काली धातु चमकती है। स्कूल के एनसीसी दिनों में पाषाणकालीन थ्री-नाट-थ्री को साधा था — बेमिसाल रोमांच। गणतंत्र दिवस परेड के दौरान रायफल के बट की धमक आज…

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आज मोहसिन नकवी की शायरी. पाकिस्तान के इस शायर को १९९६ में कट्टरपंथियों ने मार डाला था. उन्होंने नज्में और ग़ज़लें लिखीं, अनीस की तरह मर्सिये लिखे. उनकी शायरी का यह संकलन हमारे लिए शैलेन्द्र भारद्वाज जी ने किया है. मूलतः हिंदी साहित्य के विद्यार्थी रहे शैलेन्द्र जी उर्दू शायरी के हर रंग से वाकिफ हैं. मेरे जानते हिंदी के हवाले से ऐसे कम लोग हैं जो उर्दू शायरी की इतनी गहरी समझ रखते हैं. आइये शैलेन्द्र भारद्वाज की पसंद की कुछ ग़ज़लें, कुछ नज्में पढते हैं. कलाम मोहसिन नकवी का- जानकी पुल.1.रेशम ज़ुल्फों नीलम आँखों वाले अच्छे लगते हैं मैं …

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कल हरदिल अज़ीज़ शायर शहरयार का इंतकाल हो गया. उनकी स्मृति को प्रणाम. प्रस्तुत है उनसे बातचीत पर आधारित यह लेख, जो अभी तक अप्रकाशित था. त्रिपुरारि की यह बातचीत शहरयार के अंदाज़, उनकी शायरी के कुछ अनजान पहलुओं से हमें रूबरू करवाती है – मॉडरेटर ======================================================   वो सुबह बहुत हसीन थी जब केलेंडर ने चुपके से मुझे कहा, “आज 30 नवम्बर 2010 है।” वह सर्दी की पहली सुबह थी जब मैं बिस्तर की बेक़रार बाहों को छोड़ कर लगभग 6 बजे कमरे के बाहर आ गया था। वजह ये थी कि मुझे 9 बजे ‘शहरयार साहब’ से मिलना था। वो…

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चीन के विद्रोही कवि जू युफु ने एक कविता लिखी ‘it’s time’, skype पर. इस अपराध में उन्हें सात साल की सजा सुनाई गई है. वही कविता यहां हिंदी अनुवाद में. लेखकीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का यह सबसे बड़ा मामला है. क्या इसकी निंदा नहीं की जानी चाहिए?कविता यही वक्त है, चीन के लोगों! यही वक्त है.चौक सब लोगों का है.यही वक्त है अपने दो पैरों से चौक की ओर बढ़ने काऔर अपना चयन करने का.यही वक्त है चीन के लोगों यही वक्त है .गीत सबका होता है. समय आ गया है अपने गले से अपने दिल का गीत…

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आज प्रस्तुत हैं निज़ार क़ब्बानी की पाँच कविताएँ, जिनका बहुत अच्छा अनुवाद किया है सिद्धेश्वर सिंह ने- जानकी पुल.०१-टेलीफोनटेलीफोन जब भी घनघनाता है मेरे घर मेंमैं दौड़ पड़ता हूँएक बालक की तरह अत्यंत उछाह में भरकर।मैं आलिंगन में भर लेता हूँ स्पंदनहीन यंत्र कोसहलाता हूँ इसके ठंडे तारऔर इंतजार करता हूँ तुम्हारी गर्माहट कातुम्हारी स्पष्ट आवाज के बाहर आने काइससे मुझे याद आ जाती है टूटते सितारों कीगहनों के खनक की।मेरा कंठ अवरुद्ध हो जाता हैक्योंकि तुमने मुझे फोन किया हैक्योंकि तुमने मुझे याद किया हैक्योंकि तुमने मुझे बुलाया हैएक अदृश्य संसार से।०२ – रुदनजब रोती होमुझमें उमड़ आता है असीम…

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हिंदी में ‘बेस्टसेलर’ की चर्चा एक बार फिर शुरु हो गई है. एक ज़माना था जब पत्रिकाओं में निराला की कविताओं के नीचे चमत्कारी अंगूठी का विज्ञापन छपता था. राही मासूम रज़ा जासूसी दुनिया के लिए जासूसी उपन्यास लिखा करते थे, पुस्तकों के एक ही सेट में गुलशन नंदा और रवीन्द्रनाथ टैगोर की किताबें मिलती थीं. तब ‘लोकप्रिय’ और ‘गंभीर’ साहित्य का विभाजन गहरा नहीं हुआ था. किताबें पाठकों से सीधा संवाद बनाती थी. उन खोए हुए पाठकों की फिर से तलाश शुरु हो गई है. पहले अंग्रेजी में हुई, अब हिंदी में भी शुरु हो गई लगती है.कुछ साल…

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