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हाल में ही मुंबई में \’एटर्नल गाँधी\’ शीर्षक से प्रदर्शनी लगी थी. आज बापू के जन्मदिन पर उसी प्रदर्शनी के बहाने गांधी को याद कर रहे हैं कवि-संपादक निरंजन श्रोत्रिय- जानकी पुल.================================================= पिछले दिनों मुंबई में एक \”अद्भुत\” प्रदर्शनी देखने का अवसर मिला! फ़ोर्ट एरिया के एक प्रसिद्ध संग्रहालय में \’एटर्नल गाँधी\” शीर्षक से एक मल्टिमीडिया प्रदर्शनी आयोजित की गई थी जिसमें कंप्यूटर एवं मल्टीमीडिया के मध्यम से महात्मा गाँधी के जीवन और दर्शन की झाँकी प्रस्तुत की गई थी!वातानुकूलित प्रदर्शनी में प्रवेश करते ही विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं संगीतमय आवाज़ों से आपका स्वागत होता है! कहीं गाँधी…
मुकुल सरल हिंदी गजल की यशस्वी परम्परा में आते हैं. कल \’कवि के साथ\’ कार्यक्रम में इण्डिया हैबिटेट सेंटर में उनको सुनने का अवसर होगा. फिलहाल आज यहां उनकी गजलें पढते हैं- जानकी पुल.==========================================================ग़ज़ल (1)घर में जाले, बाहर जालक्या बतलाएं अपना हाल?दिन बदलेंगे कहते-सुनतेबीते कितने दिन और साल!तुम ये हो, हम वो हैं, छोड़ोअब तो हैं सब कच्चा मालऔर बुरा क्या होगा, सोचोएक ही मौसम पूरे सालसदियां बदलीं, हम न बदलेमुंह बाये हैं वही सवालईद मुबारक तुमको यारोअपने रोज़े पूरे सालजीवन क्या है, क्या बतलाएंरोटी कच्ची, पक गए बाल(2)बदल गया जीवन का रागसपने में भी भागम-भागरोटी बदली, चूल्हा बदलाऔर बदल…
पिछले दिनों राजेश जोशी, कुमार अम्बुज और नीलेश रघुवंशी का एक पत्र छपा था भारत भवन भोपाल के सन्दर्भ में. उसको लेकर आलोचक विजय बहादुर सिंह ने लिखा है- जानकी पुल.====================================================19 अगस्त 2012 के रविवार्ता का जो अहम अग्रलेख आपने छापा है, उसका शीर्षक है \’सांस्कृतिक विकृतीकरण फासीवाद का ही पूर्व रंग है।’ इसके लेखकों में तीनों भोपाल के हैं। एकाध बेहद करीबी भी। पहला प्रश्न अगर सांस्कृतिक विकृतीकरण का उठाया जाय तो इसके पीछे की सारी लंबी बहसें याद आती हैं। ये बहसें 1935-36 के पहले की भी हैं, बाद की भी। सबसे पहले जो शंका कवि श्री निराला…
कल \’जनसत्ता\’ में सुधीश पचौरी का यह लेख आया था. जिन्होंने नहीं पढ़ा हो उनके लिए इसे साझा कर रहा हूं- प्रभात रंजन ================यों यह एक इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी का विज्ञापन मात्र है। लेकिन यह विज्ञापन, अनेक विज्ञापनों में प्रतिबिंबित समाज की आकांक्षाओं के बीच कुछ खास कहता दिखता है। यह साइबर ग्लोबलाइजेशन के सामाजिक जलवे का विज्ञापन है, जो बहुत दिन बाद इंटरनेट सेवा की कथित ‘असामाजिकता’ को सामाजिकता में बदलता है। वह एक नए किस्म के ‘साथीपन’ की हुलास का वितरण करता है, लेकिन उसी वर्ग में जो इंटरनेट सेवा का उपयोग अक्सर करता है, जो ट्विटर पर अपना…
आज कलावंती की कविताएँ. कलावंती जी कविताएँ तो लिखती हैं लेकिन छपने-छपाने में खास यकीन नहीं करतीं. मन के उहापोहों, विचारों की घुमडन को शब्द भर देने के लिए. इसलिए उनकी कविताओं में वह पेशेवर अंदाज नहीं मिलेगा जो समकालीन कवियों में दिखाई देता है, लेकिन यही अनगढता, यही सादगी उनकी कविताओं को पढते हुए सबसे पहले आकर्षित करती है. कुछ कविताएँ आप भी पढकर देखिये- जानकी पुल.========================1 लड़कीलड़की भागती है सपनों में, डायरी मेंलड़़की घर से भागती है, घर की तलाश में ।लड़की देखती है उड़ती पतंगे और तौलती है पांव।उसके देह से निकली खुशबू फैलती हैघर आंगन तुलसी और…
श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन को लेकर श्रद्धांजलियों का दौर थम चुका है. उनके योगदान का मूल्यांकन करते हुए उनके महत्व को रेखांकित कर रहे हैं प्रेमपाल शर्मा- जानकी पुल.=================================================अमूल के अमूल्य जनक वर्गीज कुरियन नहीं रहे । रेलवे कॉलिज बड़ौदा के दिनों में उनका कई बार अधिकारियों को संबोधित करने और अनुभवों को सुननेए साझा करने का मौका मिला । कई बिंब एक साथ कौंध रहे हैं जिनमें सबसे सुखद है खचाखच भरे सभागार में उनका पूरी विनम्रता से भेंट स्व रूप दी गयी टाई को वापस करना । ‘मैं किसानों के बीच काम करता हूँ । इसे…
हिंदी में गंभीर विमर्श का माहौल खत्म होता जा रहा है, मर्यादाएं टूटती जा रही हैं. अभी कुछ दिन पहले वरिष्ठ कवि विष्णु खरे ने \’कान्हा सान्निध्य\’ के सन्दर्भ में उसकी एक बानगी पेश की थी. आज उनके समर्थन में आग्नेय का यह पत्र \’जनसत्ता\’ के \’चौपाल\’ स्तंभ में प्रकाशित हुआ है. हिंदी दिवस की पूर्वसंध्या पर मैं यह समझना चाहता हूं कि आखिर इस तरह का विमर्श क्या है? क्या इसे हिंदी की वरिष्ठ पीढ़ी की हताशा के रूप में देखा जाए? पत्र पढ़िए और खुद सोचिये आखिर क्यों- जानकी पुल.========================================================================विष्णु खरे को संगठित रूप से जिस तरह युवा…