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खलीलुर्रहमान आज़मी मशहूर शायर शहरयार के उस्तादों में थे. इस जदीदियत के इस शायर के बारे में शहरयार ने लिखा है कि १९५० के बाद की उर्दू गज़ल के वे इमाम थे. उनके मरने के ३२ साल बाद उनकी ग़ज़लों का संग्रह हिंदी में आया है और उसका संपादन खुद शहरयार ने किया है. उसी संग्रह ‘जंज़ीर आंसुओं की’ से कुछ गज़लें- जानकी पुल.(१)कोई तुम जैसा था, ऐसा ही कोई चेहरा थायाद आता है कि इक ख्वाब कहीं देखा था.रात जब देर तलक चांद नहीं निकला थामेरी ही तरह से ये साया मेरा तनहा था.जाने क्या सोच के तुमने मेरा…

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नजीर अकबराबादी की नज्मों के साथ सबको वसंतपंचमी मुबारक- जानकी पुल.१.फिर आलम में तशरीफ़ लाई बसंतहर एक गुलबदन ने मनाई बसंततवायफ ने हरजां उठाई बसंत इधर औ उधर जगमगाई बसंत हमें फिर खुदा ने दिखाई बसंत मेरा दिल है जिस नाज़नीं पे फ़िदावो काफिर भी जोड़ा बसंती बनासरापा वो सरसों का बन खेत सा वो नाज़ुक से हाथों से गडुआ उठाअजब ढंग से मुझ पास लाई बसंत.वो कुर्ती बसंती वो गेंदे का हारवो कमबख्त का ज़र्द काफिर इजार दुपट्टा फिर ज़र्द संजगाफदारजो देखी मैं उसकी बसंती बहारवो भूली मुझे याद आई बसंतवो कड़वा जो था उसके हाथों में फूल गया…

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महात्मा गाँधी के ऊपर शायद हिंदी में सबसे अधिक कविताएँ लिखी गई हैं. महात्मा गाँधी के जन्मदिन के मौके पर प्रस्तुत हैं रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखी गई कुछ कविताएँ- जानकी पुल.गांधी (१)तू सहज शान्ति का दूत, मनुज के सहज प्रेम का अधिकारी,दृग में उंडेल कर सहज शील देखती तुझे दुनिया सारी.धरती की छाती से अजस्रचिरसंचित क्षीर उमड़ता है,आँखों में भर कर सुधा तुझे यह अम्बर देखा करता है.कोई न भीत, कोई न त्रस्त,सब ओर प्रकृति है प्रेम भरी.निश्चिन्त जुगाली करती है छाया में पास खड़ी बकरी.(२)क्या हार-जीत खोजे कोईउस अद्भुत पुरुष अहंता की,हो जिसकी संगर-भूमि बिछीगोदी में जगन्नियन्ता की?संगर की…

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उदयप्रकाश हिंदी के उन थोड़े से ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल्स’ में हैं समय के साथ समाज में जिनकी विश्वसनीयता बढती गई है- अपने लेखन से, बेबाक विचारों से. आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर उनके विचार जानते हैं- जानकी पुल.२१ वीं सदी के पहले दशक की ऐसी कई बातें हैं जो मुझे बेहद कचोटती हैं. पहली बार मैंने देखा कि नेता, नौकरशाह, न्यायपालिका और मीडिया के बाद सेना के हाथ भी भ्रष्टाचार में सने हैं. इन सब पर सरकार की ख़ामोशी देखकर मुझे तरस आता है. यह गणतंत्र जनता का नहीं बल्कि संसद में बैठे 408 करोड़पति सांसदों का है. गणतंत्र मनाने…

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अदम गोंडवी की ग़ज़लों ने एक ज़माने में काफी शोहरत पाई थी. उस दौर की फिर याद इसलिए आ गई क्योंकि वाणी प्रकाशन ने उनकी शायरी की नई जिल्द छापी है ‘समय से मुठभेड़’ के नाम से. हालांकि इनमें ज़्यादातर गज़लें उनके पहले संग्रह ‘धरती की सतह पर’ से ही ली गई हैं. लेकिन कुछ नई भी हैं. यहाँ उनकी कुछ नई-पुरानी गज़लें-कुछ शेर- जानकी पुल. १.जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगेकमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे.सुरा व सुन्दरी के शौक में डूबे हुए रहबर दिल्ली को रंगीलेशाह का हम्माम कर देंगे.ये वन्देमातरम का…

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कुछ महीने पहले हमने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कहानी ‘टामी पीर’ को आप तक पहुँचाई थी. बाद में प्रो. मंगलमूर्ति जी से यह पता चला कि जेपी ने एक और कहानी लिखी थी ‘दूज का चाँद’. वास्तव में, ‘हिमालय’ में प्रकाशित यह कहानी उनकी पहली कहानी थी जो उन्होंने हिंदी में ही लिखी थी. शिवपूजन सहाय हिमालय के संपादक थे. अंग्रेजी के विद्वान और सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर मंगलमूर्ति जी शिवपूजन सहाय के पुत्र भी हैं. उन्होंने न केवल उस कहानी की प्रति उपलब्ध करवाई बल्कि उसकी पृष्ठभूमि को लेकर एक नोट भी लिखा. प्रस्तुत है जेपी की वह दुर्लभ कहानी ‘दूज…

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पीयूष दईया की कविताओं को किसी परंपरा में नहीं रखा जा सकता. लेकिन उनमें परंपरा का गहरा बोध है. उनकी कविताओं में गहरी दार्शनिकता होती है, जीवन-जगत की तत्वमीमांसा, लगाव का अ-लगाव. पिता की मृत्यु पर लिखी उनकी इस कविता-श्रृंखला को हम आपके साथ साझा करने से स्वयं को रोक नहीं पाए- जानकी पुल.पीठ कोरे पिता डॉ. पूनम दईया के लिए1.मुझे थूक की तरह छोड़कर चले गये पिता, घर जाते हो? गति होगीजहां तक वहीं तक तो जा सकोगे –ऐसा सुनता रहा हूंजलाया जाते हुए अपने को क्या सुन रहे थे? आत्माशव को जला दोवह लौट कर नहीं आएगा२.शंख फूंकता…

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आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है. प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ- ================================== समाधि सूर्य भी नहीं है, ज्योति-सुन्दर शशांक नहीं, छाया सा व्योम में यह विश्व नज़र आता है. मनोआकाश अस्फुट, भासमान विश्व वहां अहंकार-स्रोत ही में तिरता डूब जाता है. धीरे-धीरे छायादल लय में समाया जब धारा निज अहंकार मंदगति बहाता है. बंद वह धारा हुई, शून्य में मिला है शून्य, ‘अवांगमनसगोचरं’ वह जाने जो ज्ञाता है. जाग्रत देवता वह, जो तुममें है और तुमसे परे भी, जो सबके हाथों में बैठकर काम करता है, जो सबके पैरों में समाया हुआ चलता है, जो तुम सबके घट में व्याप्त…

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आज मोहन राकेश का जन्मदिन है. हिंदी को कुछ बेजोड़ नाटक और अनेक यादगार कहानियां देने वाले मोहन राकेश ने यदा-कदा कुछ कविताएं भी लिखी थीं. उनको स्मरण करने के बहाने उन कविताओं का आज वाचन करते हैं- जानकी पुल.१.कुछ भी नहीं भाषा नहीं, शब्द नहीं, भाव नहीं,कुछ भी नहीं.मैं क्यों हूँ? मैं क्या हूँ? जिज्ञासाएं डसती हैं बार-बार कब तक, कब तक, कब तक इस तरह? क्यों नहीं और किसी भी तरह? आकारहीन, नामहीन,कैसे सहूँ, कब तक सहूँ,अपनी यह निरर्थकता?जीवन को छलता हुआ, जीवन से छला गया.कैसे जिऊँ, कब तक जिऊँ,अनायास उगे कुकुरमुत्ते-सा पहचान मेरी कोई भी नहीं आज तक. लुढकता…

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यह फैज़ अहमद फैज़ की जन्मशताब्दी का साल है. इस अवसर पर हिंदी के मशहूर लेखक असगर वजाहत ने यह लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने फैज़ की शायरी और उनकी उस छवि को याद किया है जिसके कारण फैज़ को इस उप-महाद्वीप का सबसे बड़ा शायर माना जाता था. \’नया पथ\’ के फैज़ अंक में प्रकाशित यह दिलचस्प लेख आपके लिए- जानकी पुल.मेरी उर्दू भाषा और साहित्य की पढ़ाई किसी तमीज और सलीके से नहीं हुई. पैदा तो आज़ादी मिलने से पहले हो गया था स्कूल जाना शुरू किया आज़ादी के बाद. यह वह ज़माना था जब उर्दू को देश…

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