आज जनसत्ता में प्रभाकर मणि तिवारी ने हम जैसे कलाज्ञान हीन लोगों को ध्यान में रखते हुए गणेश पाइन पर इतना अच्छा लिखा है कि पढ़ने के बाद से आप लोगों से साझा करने के बारे में सोच रहा था. अब सोचा कर ही दिया जाए. आम तौर पर इस तरह के लेख हम अंग्रेजी के अखबारों के पन्नों पर ढूंढते रहते है- जानकी पुल.
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मकबूल फिदा हुसेन ने कभी उनको अपने पसंदीदा दस शीर्ष चित्रकारों में सबसे ऊपर रखा था। उन्होंने कहा था कि भारत में एक हजार वर्षों में एक गणेश पाइन ही काफी हैं। लेकिन देश के महान समकालीन चित्रकारों में से एक गणेश पाइन इसे हुसेन की महानता मानते थे।
चमक-दमक से दूर रहने वाले पाइन (देहावसान: 12 मार्च) के लिए कला उनके जीवन का मकसद थी और रोजी-रोटी का साधन भी। फिर भी वे दूसरे समकालीन चित्रकारों के मुकाबले बहुत कम चित्र बनाते थे। यही वजह है कि कुछ साल लंबे अरसे बाद कोलकाता में जब दूसरी बार उनके एकल चित्रों की प्रदर्शनी का सीमा आर्ट गैलरी में आयोजन किया गया तो उसमें पाइन की कुल 57 पेंटिंगें ही रखी गईं थी। इनमें से भी एक दर्जन से ज्यादा तो स्केच ही थे। वर्ष 1937 में कोलकाता के एक पुराने मोहल्ले में जन्मे पाइन अपनी दादी से लोककथाएं सुनकर बड़े हुए थे।
एक बार ‘जनसत्ता’ से लंबी बातचीत में उन्होंने माना था कि बचपन में दादी से सुनी कहानियों का उनके चित्रों पर काफी असर है। पाइन ने बताया था कि उनकी दादी ही उनके लिए सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं। घरवालों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने आर्ट कॉलेज में दाखिला लिया। उनके जीवन का संघर्ष उसी समय शुरू हो गया। पाइन इतने गरीब थे कि उनके पास वाटर कलर खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उन्होंने कहा था कि वे साल में दो या तीन से ज्यादा पेंटिंग नहीं बना पाते और रोजी-रोटी के लिए उनको बेचना पड़ता है। इसलिए एक साथ ज्यादा चित्र ही नहीं जुटे। कम पेंटिंग्स बनाने की एक वजह यह भी थी कि उनके काम करने का तरीका कुछ अलग था। कोई भी पेंटिंग शुरू करने के पहले वे कई स्केच बनाते थे। उनका कहना था कि बार-बार बने इन स्केचों से ही कलाकृति का खाका उभरता है।
पाइन कहते थे कि उनकी पेंटिंग पर वाल्ट डिजनी के चरित्रों के अलावा अवनींद्रनाथ और गगनेंद्रनाथ टैगोर का असर है। लंबे अरसे तक एनीमेटर के तौर पर नौकरी करने के कारण चित्रों में कार्टून चरित्रों की झलक स्वाभाविक थी। पाइन मानते थे कि एनीमेटर के तौर पर नौकरी ने उनकी कल्पनाशक्ति के विस्तार में सहायता की।
पाइन को अंधेरे या मौत का चित्रकार कहा जाता था। उनके चित्रों में मौत का अक्स उभरता है। उनके चित्रों में भी काले, नीले व पीले रंगों का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। पाइन भी यह बात बेझिझक मानते थे। वे कहते थे कि वर्ष 1946 में विभाजन से पहले हुए दंगों के दौरान उन्होंने मौत को काफी करीब से देखा था। परिवार में अपने प्रियजनों के धीरे-धीरे बिछुड़ने का भी उन पर गहरा असर पड़ा। पाइन ने कहा था कि मौत का उनके मन पर इतना गहरा असर है कि उसका प्रतिबिंब उनके चित्रों पर भीउतर आता है। वे कहते थे कि मैं मौत के अंधेरे में जीवन की तलाश करता हूं।
कला जगत में प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के बाद पाइन ने खुद को एक आवरण में समेट लिया था और बाद में जब उनकी पेंटिंग लाखों में बिकने लगीं, तब भी वे उस आवरण से बाहर नहीं निकले। पाइन का कहना था कि उनका काम करने का तरीका दूसरों से कुछ अलग है। इसलिए वे चुपचाप अपना काम करना पसंद करते हैं। पाइन को याद था कि उनकी पहली पेंटिंग एक अंग्रेज मेमसाब ने वर्ष 1968 में दौ सौ रुपए में खरीदी थी। बाद में उनके चित्र तीन से नौ लाख तक में बिकने लगे थे।
उन्होंने अपने लंबे सफर के दौरान वाटर कलर से टेंपरा समेत कई माध्यमों पर प्रयोग किया। बाद में उनके ज्यादातर चित्र टेंपरा पर ही बने। कला की दुनिया में आए बदलावों का जिक्र करते हुए वे कहते थे कि अब कांसेप्चुअल आर्ट जैसी कई विधाएं सामने आई हैं। लेकिन मैं अपनी विधा को ही तरजीह देता हूं। किसी विवाद से बचने के लिए ही वे बार-बार कुरेदने पर भी कभी किसी एक समकालीन पेंटर का नाम नहीं लेते थे जो बढ़िया काम कर रहा हो। वे कहते थे कि पहले के कलाकारों को शुरुआती दौर में फी संघर्ष करना पड़ा है। पहले पैसा भी नहीं था इसमें। आगे चलकर कला में व्यापार का एक नया पहलू शामिल हो गया है। इससे कुछ कलाकारों के समक्ष जहां रोजी-रोटी के लिए दूसरा काम करने की मजबूरी नहीं है, वहीं इससे उनको नई कलाकृतियां बनाने का उत्साह भीमिला है। पाइन को आखिरी क्षणों तक संतुष्टि की तलाश थी। वे कहते थे कि किसी कलाकार की पहचान उस काम से होती है जो उसने पूरे जीवन में किया हो। उस लिहाज से मैं अब भी उस मुकाम तक नहीं पहुंच सका हूं जहां पूरी संतुष्टि मिल जाए। यह तलाश व अंतर्मन की प्रेरणा ही मुझे आगे बढ़ने के लिए उत्साहित करती रहती है। लेकिन मौत के इस चित्रकार को संतुष्टि मिलने से पहले ही मौत ने अपने आगोश में ले लिया।
10 Comments
कला के इस भयानक बाजारवादी दौर में भी गणेश पाइन का होना ऐसे था, जैसे तमाम हिंसा के बीच एक अकेला गौतम बुद्ध खड़ा हो… मैं पाइन की कला का बहुत प्रशंसक हूं… दुर्योग से उनसे मिलना नहीं हुआ… उनकी कला साधना को और उन्हें अंतिम प्रणाम…
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अपूर्णीय क्षति…….
Rip ..A big loss to the world of Art..
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Es posible que otras personas recuperen algunos archivos de fotografías privadas que elimine en su teléfono, incluso si se eliminan permanentemente.