आज हिंदी के मूर्धन्य लेखक मनोहर श्याम जोशी जीवित होते तो ७८ साल के हुए होते. आज उनके जन्मदिन पर उनके प्रेम-उपन्यास ‘कसप’ की रचना-प्रक्रिया पर उनका यह लेख प्रस्तुत है, जो उन्होंने मेरे कहने पर लिखा था और जो जनसत्ता में सबसे पहले प्रकाशित हुआ था. उनकी अमर स्मृति के नाम- जानकी पुल. ====================================== हिंदी साहित्य से जुड़े लोग रचना-प्रक्रिया की बात अक्सर करते हैं. मैं आज तक ठीक-ठीक नहीं समझ पाया हूँ कि रचना-प्रक्रिया का मतलब क्या होता है. बिलकुल ही स्थूल स्तर पर रचना-प्रक्रिया मात्र इतनी होती है कि लेखक कलम उठाता है और कागज़…
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दिलनवाज़ आज बिमल रॉय की फिल्म \’उसने कहा था\’ के बारे में बता रहे हैं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी पर बनी इस फिल्म पर एक दिलचस्प आलेख- जानकी पुल. कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कथा ‘उसने कहा था’ पर जाने-माने फ़िल्मकार बिमल राय ने इसी नाम से एक फ़िल्म बनाई थी। निर्माता बिमल दा की फ़िल्म को मोनी भट्टाचार्य ने निर्देशित किया था । फ़िल्म मे सुनील दत्त, नंदा, इंद्रानी मुखर्जी, दुर्गा खोटे, राजेन्द्र नाथ, तरूण बोस, रशीद खान व असित सेन ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं ।कहानी के सिनेमाई रूपांतरण की कथा कुछ इस तरह है: –पंजाब के एक…
फिल्म “गाँधी टू हिटलर\’’ का कांसेप्ट प्रभावित करता है. द्यितीय विश्वयुद्ध के सबसे बड़े खलनायक हिटलर को लेकर, उसके अर्श से फर्श या कहें कि ‘बंकर’ तक का सफर फिल्म की कहानी का मुख्य हिस्सा है. इस कहानी से भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दो महानायक जुड़ जाते हैं, दो विचारधाराएँ जुड़ जाती हैं. गाँधी ने हिटलर को १९३९ में एक चिट्ठी लिखी थी इस महाविनाश को रोकने के लिए. दूसरी तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं जिनका मानना था कि आखिर जर्मन भी तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे हैं, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, इसलिए जर्मनी का साथ…
आज आशुतोष भारद्वाज की कहानी. उनकी कहानी का अलग मिजाज़ है. जीवन की तत्वमीमांसा के रचनाकार हैं वे. वे शब्दों को लिखते नहीं हैं उसे जीते हैं, उनकी कहनियों में जीवन की धड़कनों को सुना जा सकता है. कश्मीर के परिवेश को लेकर एक अलग तरह की कहानी है \’मिथ्या\’, होने न होने का भ्रम लिए. ========================================= मृत्यु से पहले मृत्यु की आंखें आती होंगी। तुम्हें घूरेंगी, तुम्हारी बाह झकझोरने लगेंगी। तुम भीगा चेहरा, नामालूम भय या पसीने से, तीन रजाई की तहों से बाहर निकालोगे — हरी लकड़ी का हिलता दरवाजा, रात भर सुलगते रहने के बाद बुझी…
वरिष्ठ कवि नंदकिशोर आचार्य का नया कविता संग्रह आया है ‘केवल एक पत्ती ने’, ‘वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर से. उसी संग्रह से कुछ कविताएँ आज प्रस्तुत हैं- जानकी पुल. अभिधा में नहीं जो कुछ कहना हो उसे –खुद से भी चाहे— व्यंजना में कहती है वह कभी लक्षणा में अभिधा में नहीं लेकिन कभी कोई अदालत है प्रेम जैसे कबूल अभिधा में जो कर लिया –सजा से बचेगी कैसे! हर कोई चाहता है साधू ने भरथरी को दिया वह फल— अमर होने का भरथरी ने रानी को दे दिया रानी ने प्रेमी को अपने प्रेमी ने गणिका को और गणिका…
आज युवा कवि अनुज लुगुन की कविताएँ. अनुज की कविताओं में सभ्यता का गहरा अँधेरा है, हाशिए के लोगों की वह उदासी जिसके कारण ग्लोब झुका हुआ दिखाई देता है. एकदम नए काव्य-मुहावरे के इस कवि में बड़ी संभावनाएं दिखाई देती हैं, बेहतर भविष्य की, बेहतर कविता की- जानकी पुल.१. ग्लोब मेरे हाथ में कलम थीऔर सामने विश्व का मानचित्रमैं उसमें महान दार्शनिकों और लेखकों की पंक्तियाँ ढूँढ़ने लगाजिसे मैं गा सकूँलेकिन मुझे दिखायी दीक्रूर शासकों द्वारा खींची गई लकीरेंउस पार के इंसानी ख़ून से इस पार की लकीर, और इस पार के इंसानी ख़ून सेउस…
अंग्रेजी के युवा लेखक-नाटककार-पत्रकार फ्रैंक हुज़ूर एक ज़माने में ‘हिटलर इन लव विद मडोना’ नाटक के कारण विवादों में आये थे, आजकल उनकी किताब ‘इमरान वर्सेस इमरान: द अनटोल्ड स्टोरी’ के कारण चर्चा में हैं. आइये उनकी इस किताब से परिचय प्राप्त करते हैं- जानकी पुल.इमरान खान का नाम जब भी ध्यान में आता है १९८०-९० के दशक का वह क्रिकेटर याद आता है जिसके हरफनमौला खेल ने केवल पाकिस्तान ही नहीं भारतीय उप-महाद्वीप के क्रिकेट का लोहा मनवाया था, जिसने लगभग अपने कंधे पर १९९२ में पाकिस्तान को विश्व कप का चैम्पियन बनवाया था. निस्संदेह भारतीय उपमहाद्वीप के दो…
आज आधुनिक कहानी के पिता माने जाने वाले लेखक मोपासां की पुण्यतिथि है. कहते हैं मोपासां ने कहानियों में जीवन की धडकन भरी, उसे मानव-स्वाभाव के करीब लेकर आये. संगीतविद, कवयित्री वंदना शुक्ल ने इस अवसर उन्नीसवीं शताब्दी के उस महान लेखक को इस लेख में याद किया है. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. ===================== किसी कहानी का कहानी होते हुए भी इस क़दर जीवंत होना कि वो पाठक को दृश्य का एक हिस्सेदार बना ले यही किसी कहानी की सफलता है और यही कुशलता कुछ चुने हुए कथाकारों की कृतियों को असंख्यों की भीड़ से अलग कर…
\’यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है / सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है\’ जैसी पंक्तियों के कवि आरसी प्रसाद सिंह की भी यह जन्म-शताब्दी का साल है. यह चुपचाप ही बीता जा रहा था. युवा-कवि त्रिपुरारि कुमार शर्मा का यह लेख उस लगभग गुमनाम हो चुके कवि के बारे में बताता है कि क्यों उनको याद करना चाहिए, हिंदी साहित्य में उनका योगदान क्या है- जानकी पुल. साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि, कथाकार और एकांकीकार आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त 1911 को हुआ और 15 नवम्बर 1996 तक…