शायक आलोक का नाम आते ही कई विवाद याद आते हैं. शायद उसे विवादों में रहना पसंद है. लेकिन असल में वह एक संजीदा कवि का नाम है. आज उसकी कुछ कवितायेँ- जानकी पुल.
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दुनिया की तमाम भाषाओं से इतर
तुम्हारे रुदन के विस्फोट को
तारी कर आओ
मेरे पिता के छोटे पड़ गए बनियान पर
वह जो एक सुराख है उसमें
सूई में पिरोते जाते धागे की तरह उस सुराख में पइसा दो
मेरी मासूम ऊँगली की छुअन
कहो पिता को उतरने दे मुझे
उसके पेट के पैशाचिक कसाव के भीतर ..
कहो, उसे इन्कार है ?!
हत मा ! मेरे मुक्तिगान के पराभव से पूर्व
आओ मेरी नाभि पर कुछ स्त्री शब्द टांक दो !
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[ कन्या भ्रूण हत्या पर ]
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2.
बहुत दिनों तक कमरे की खिड़की से जब नहीं हटाया गया पर्दा
तो मैंने फिर पर्दे को ही खिड़की समझना शुरू कर दिया
और एक दिन जब हटाया गया पर्दा तो चीजें काफी बदल गयी
पहले तो मुझे उस पुरानी पड़कर निखर गयी जींस की ज़िप ठीक करानी पड़ी
जो कविता लिखते वक़्त मैं पहन लेता हूँ
और फिर मुझे अपनी पीठ खिड़की की ओर कर लेना पड़ा …
एक दिन जब मैं सत्ता के खिलाफ कोई कविता लिख रहा था
तो बार बार कनखियों से अपनी पीठ को भी देख रहा था
और जब मुझे लिखनी थी प्रेम पर कोई कविता/ तो तैयार रहा कि
बिना पर्दे की खिड़की के रास्ते आकर कहीं सच में
मेरे माथे पर भूत की तरह सवार न हो जाए प्रेम
अभी खुद पर एक कविता लिखने से पहले
मैंने मेरी पीठ को खिड़की पर टाँग दिया है पर्दे की तरह
मैंने मेरे कवि को बचाया है बाहर के आतंक से
बचा ली है एक कविता इस एकाकी ओट में ..
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[ खिड़की का पर्दा ]
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3.
इन दिनों
पिता झांकते हैं
मेरी कविताओं के बंद कपाट के भीतर
सकपकाए बिना किसी आहट
अन्दर चले आते हैं
खूंटी की तरह टंगे किसी अ अक्षरी शब्द पर
टांग देते हैं अपना पसीना सना कुरता
और मेरी गोरथारी में सर रख सो जाते हैं
इन दिनों
मैं चौंक कर उठता हूँ
चुपचाप पिता के जूते अपने पैरों में डाल
कविता से बाहर निकल जाता हूँ
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[ कविता में पिता ]
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4.
अभी इस एक कहानी में
ऐसा हुआ कि लड़की ने स्वप्न देखा कि उसके प्रेयस की मौत हो जायेगी
तो पूछा उसने अपनी माँ से
तो माँ ने कहा कि ‘होगा‘ के लिए ‘हो रहा‘ के प्रेम से नहीं मोड़ना मुंह
तो लड़की ने खूब प्रेम किया और एक दिन मर गयी..
प्रेयस ने देखा फिर एक स्वप्न
एक साल बाद
पर सपने में इस लड़की ने अपने प्रेयस को नहीं पहचाना
क्यों ..
क्योंकि लड़की मर चुकी थी लड़के के स्वप्न के पहले
तो इस ‘मरी हुई लड़की की स्मृति में‘ यह प्रेयस नहीं था ..
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[ स्वप्न की एक फिल्म ]
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5.
कि मुझे चाहिए कविता में प्रेम
चाहिए अनारकली का वस्तुपरक मूल्यांकन
महंगाई पर सवाल
पहाड़ों की लोक धुन – सुन्दरता
अनाधुनिक नहीं रहे पगलाए कवि की आत्मग्लानि
बाजार मूल्यों पर कवयित्रियों की साज सज्जा
इत्र-काजल-चरखा-बेलन
विमर्श अद्भुत विस्तार तक !
कि सब कुछ ..
लेकिन – ये भूखे-अलसाए थक गए मजदूरों को
और यह जो शीत में खड़ा किसान है
यह जो खांसता हुआ लेटा है मुक्तिबोध कवि
इसे कविता में रोटी कैसे मिले ?
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[ कविता ]
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6.
क से कमला
क से कविता
कमला कविता पढ़
कमला कविता याद कर
कमला लक्ष्मीबाई बन .
आ कमला
कमला कविता से निकल
कमला घर चल
मसाला पीस
बकरी चरा
टनडेली से लौटे भाई को पानी पिला
गाय को सानी लगा
कमला .
कमला शादी कर
कमला बच्चा पैदा कर
कमला बूढी हो जा
कमला मर .
ग से गौरी ग से गीत
गौरी गीत गा ….. !!
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[ स्त्री-ककहरा ]
30 Comments
बहुत अच्छी कवितायेँ … 🙂
kya baat hai…
बेजोड़ कविताएँ ….बहुत -बहुत बधाई आपको .
Vah kafi achchhi kavita hai Shayak……
Vah kafi achchhi kavita hai Shayak……
अच्छी कवितायेँ …''कविता '' और 'कविता में पिता '' बहुत अच्छी
शायद आलोक आसान कवि नहीं है।
मैं कम से कम पांच बार सारी कविताए पढ गया हूं पर तय नहीं कर पा रहा कि क्या कहूं।
क से कमला
क से कविता
कमला कविता पढ़
कमला कविता याद कर
कमला लक्ष्मीबाई बन .
आ कमला
कमला कविता से निकल
कमला घर चल
मसाला पीस
बकरी चरा
टनडेली से लौटे भाई को पानी पिला
गाय को सानी लगा
कमला
मुझे पता है कि यह उलझाव समय का है ।
कवि के दृष्टिकोण तक पहुंचने में शायद मुझे कुछ समय लगे मगर हिन्दी कविता का यह एक आस्वाद है।
लेकिन – ये भूखे-अलसाए थक गए मजदूरों को
और यह जो शीत में खड़ा किसान है
यह जो खांसता हुआ लेटा है मुक्तिबोध कवि
इसे कविता में रोटी कैसे मिले ?
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सीधी सादी सरल भाषा में बहतरीन कविताएँ
शायक की कवितायें तो बेहद उम्दा होती ही हैं…बहुत ही स्तरीय…रही विवादों की बात तो बक़ौल शायक…उनके हाथ की सन लाइन पर कोई क्रॉस है…लिखे जाओ शायक यूं ही कि तुम साहित्य जगत के उगते सूर्य हो…आलोक तो तुम हो ही …
बहुत दिनों के बाद फेसबुक के माध्यम से अच्छी कवितायेँ पढने को मिली.
कहते हैं कि हर पुरुष में एक'स्त्री' होती है और हर एक स्त्री में एक'पुरुष'.स्त्रियां तो पुरुषत्व को बड़ी सहजता से अपने भीतर जीवित रखती है,पर पुरुष अपने भीतर की 'स्त्री' को पनपने नहीं देते,कारण शायद उनका अहं या फिर समाज द्वारा परिभाषित उनका पुरुषत्व.शायक की कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने अन्दर कि स्त्री को उसकी तमाम संवेदनाओं के साथ जीवित रखा है वरना स्त्री मनोविज्ञान को इतनी बारीकी से जानना और समझना किसी पुरुष के वश की बात नहीं.
माँ सरस्वती की कृपा ऐसे हीं हमेशा बनी रहे !
bahut badhiya kavitayen… Alok aapke soch ko naman 🙂
बहुत अच्छी कवितायें. शब्द भावों को जितनी तीव्रता से पाठक तक पहुंचाते हैं उस से कवि की ताकत दिखती है. गरिमापूर्ण भाषा और शब्द्संयम के साथ तीक्ष्ण विचार भी यथोचित लय में पग कर संवहित होते हुए. "कविता" में जो द्वंद्व/व्यंग्य है वह कितनी गैरमामूली सहजता से निभाया गया है! बहुत बधाई भाई! सारी कवितायें एक से एक.
hamesha ki tarah gahari kavitayein
कहीं गहरे उतरती हैं रचनाएँ ….
तुम हमेशा चौंकाते हो …बहुत अच्छी कवितायेँ ..पहले पढ़ी थी जानकी पुल पर देख कर बहुत अच्छ लगा ..ईश्वर सृजन शीलता में उत्तरोत्तर वृद्धि करे ..:)
shayak ki kvitayen mujhe bahut pasand hain.. unhe bahut badhai..
जो खांसता हुआ लेटा है मुक्तिबोध कवि
इसे कविता में रोटी कैसे मिले ? ….महत्वपूर्ण प्रश्न …
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हत मा ! मेरे मुक्तिगान के पराभव से पूर्व
आओ मेरी नाभि पर कुछ स्त्री शब्द टांक दो !…….मर्म को गहरे स्पर्श करती रचना …
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मैंने मेरी पीठ को खिड़की पर टाँग दिया है पर्दे की तरह
मैंने मेरे कवि को बचाया है बाहर के आतंक से
बचा ली है एक कविता इस एकाकी ओट में …..जो जरूरी था शायद …!
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चुपचाप पिता के जूते अपने पैरों में डाल
कविता से बाहर निकल जाता हूँ………अह्ह्ह !!
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माँ ने कहा कि 'होगा' के लिए 'हो रहा' के प्रेम से नहीं मोड़ना मुंह
तो लड़की ने खूब प्रेम किया और एक दिन मर गयी……उफ्फ्फ्फ़ ..!!!!
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कमला शादी कर
कमला बच्चा पैदा कर
कमला बूढी हो जा
कमला मर …….बहुत अच्छा …..
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बेहतरीन …उम्दा …तप कर निखरी कवितायें …जीवंतता लिए.. एकदम ..क़…वि….ता …की चरितार्थ करती ….बधाई शायक …..राय वही जो कल थी …आज है …और हमेशा रहेगी भी ….वक्त मौसम के साथ जो नही बदलेगी अपनी जगह ….सस्नेह शुभकामनाएं ..
badhiyaa hai bhaai hameshaa ki trah…
dusaro ki to nahi pata lekin mujhe pasand hai ………..
बहुत बढ़िया कविताएं…..
शायक की सोच और कल्पना की उड़ान अनंत है…
शुभकामनाएं
अनु
अच्छी कवितायें …बधाई
हर कविता नई सी वो चाहे प्रेम कविता हो या स्त्री विमर्श या फिर सामाजिक सरोकारों से जुडी सभी शब्द शब्द उकेरने में महारत हासिल है निसंदेह सभी कविताये बहुत अच्छी है –बधाई शायक लिखे जाओ और अपना मुकाम हासिल करो —बधाई
शायक की कविता के बारे में दो राय नहीं हो सकती, हाँ उनके बारे में जो टीप है, उसके बारे में दो राय हो सकती है, हम क्यों चाहे कि सब मारे अनुशासन के मुन्ना बने रहें, बड़न जनन के चरण धोते रहें
किसी शोले को बनने का वक्त देना चाहिये, यह बनना समय समय पर कठिन हो सकता है, पर यह उसका सफर है….
आँच ना सह पाये तो खुद जरा सरंक जायें, शोला को दहक कर तारा बनने का अवकाश दें, हम उम्र में बड़ों की भी कोई ड्यूटि है,
ये कविताएँ मैं पढ़ चुकी हूँ , मारक हैं, कोई सन्देह नहीं
एक कली ,एक खुशबू ,थोड़ा सा आग्रह ,ज़रा सी समझदारी ,कुछ रिश्ते और बहुत सारा प्यार …… इन सबसे मिलकर बनी हैं शायक की कविताएँ ….कितनी भी बार पढ़ो ….नयी और ताज़ी लगती हैं ….'' शायक ,बहुत स्नेह और शुभ कामनाओं के साथ ढेर सारी बधाई तुम्हें ….आगे भी मुझे ऐसी अच्छी कविताओं की प्रतीक्षा रहेगी … 🙂
वाह ! उम्दा कवितायेँ …
यहाँ पहुचने की बधाई
एक दिन जब मैं सत्ता के खिलाफ कोई कविता लिख रहा था
तो बार बार कनखियों से अपनी पीठ को भी देख रहा था
और जब मुझे लिखनी थी प्रेम पर कोई कविता/ तो तैयार रहा कि
बिना पर्दे की खिड़की के रास्ते आकर कहीं सच में
मेरे माथे पर भूत की तरह सवार न हो जाए प्रेम
…..achhi kavitayen hain. Vivad unka vyaktigat mamla hai lekin kavitayen Shayak achhi likh rahe hain aur badhiya yah hai ki lagataar likh rahe hain
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