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2009 में जे. एम. कोएत्जी के उपन्यास \’समरटाइम\’ पर लिखा था. लेखक के जीवन की निस्सारता को लेकर एक अच्छा उपन्यास है- प्रभात रंजन ================ स्पेनिश भाषा के कद्दावर लेखक मारियो वर्गास ल्योसा ने अपनी पुस्तक लेटर्स टु ए यंग नॉवेलिस्ट में लिखा है कि सभी भाषाओं में दो तरह के लेखक होते हैं- एक वे जो अपने समय में प्रचलित भाषा और शैली के मानकों के अनुसार लिखते हैं, दूसरी तरह के लेखक वे होते हैं जो भाषा और शैली के प्रचलित मानकों को तोड़कर कुछ एकदम नया रच देते हैं। अंग्रेजी उपन्यासकार जेम्स मैक्सवेल कोएट्‌जी(जे. एम. कोएट्‌जी) इस…

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संगीत का कुंदन कुंदनलाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। १९३० और ४० के दशक की संगीतमयी फिल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश प्लेबैक के कारण खिंचे चले आते थे। शरद दत्त की पुस्तक कुंदन उसी गायक-अभिनेता की जीवनी है। उस के. एल. सहगल की जिनका फिल्मी सफर महज सोलह सालों का रहा। इन सोलह सालों के दौरान उन्होंने हिंदी की २७ और बांग्ला की ७ फिल्मों में काम किया। और करीब १७६ गाने गाए। जीवनीकार ने सही लिखा है कि इतनी कम फिल्मों में काम करके और इतने कम गाने गाकर जो…

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रोशन भारत, अंधेरा भारत(अरविंद अडिगा के उपन्यास द व्हाइट टाइगर का एक अंश)बंगलोर की ज्यादातर सफल कहानियों की तरह मेरी जीवन कहानी भी बंगलोर से काफी दूर शुरू हुई। अभी तो मैं रोशनी के बीच दिखाई दे रहा हूं, लेकिन मेरी परवरिश अंधेरों में हुई। मैं भारत के एक ऐसे हिस्से की बात कर रहा हूं जो इस देश का करीब एक तिहाई है, धान और गेंहूं के खेतों से भरपूर, जिनके बीच में तालाब होता है जो जलकुंभियों और कमल के फूलों से पटा होता है। उन कमल के फूलों ओर जलकुंभियों को खाती-चबाती भैंसें जिनमें नहाती रहती हैं।…

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जानकी पुल की  यह  पहली पोस्ट है. मेरी अपनी कहानी, जो \’नया ज्ञानोदय\’ में प्रकाशित हुई थी- प्रभात रंजन लाइटर   उस दिन के बाद सब उसे बबलू लाइटर के नाम से बुलाने लगे। नाम तो उसका बबलू सिंह था। जबसे वह राधाकृष्ण गोयनका महाविद्यालय में पढ़ने आया था तबसे उसके इसी नाम की शोहरत फैली थी। इंटर में दाखिला लेते ही उसने अपने नाम का डंका बेलसंड प्रखंड ही नहीं, पूरे सीतामढ़ी जिले में बजवाया था। उस साल उसके विधानसभा क्षेत्र से उसके सजातीय ठाकुर रिपुदमन सिंह ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। उसने कॉलेज के हॉस्टल…

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