हिंदी की मंचीय कविता को लोकप्रिय बनाने वाले कवियों में बलवीर सिंह रंग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. \’रंग का रंग ज़माने ने बहुत देखा है/ क्या कभी आपने बलवीर से बातें की हैं\’ जैसे गीत लिखने वाले इस कवि की यह जन्मशताब्दी का साल है. इस अवसर पर प्रस्तुत है निर्मला जोशी का यह लेख- जानकी पुल. ================= हिंदी गीत को मुहावरों से बचाकर मौलिक चिंतन का धरातल देने वालों के नाम अगर लिए जाएँ तो स्व बलबीर सिंह रंग का नाम सबसे पहले आता है। क्योंकि जिस गीतकार पीढ़ी ने गीत को मंच पर प्रतिष्ठित करने…
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कुछ बरस पहले ऑस्ट्रियन लेखक स्टीफेन स्वाइग की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद आया था तो उसकी खूब चर्चा रही. अनुवाद किया था हमारे प्रिय कथाकार ओम शर्मा ने. पुस्तक का एक अंश ओमा जी की भूमिका के साथ- जानकी पुल.अनुवादक का कथ्यहमारे समकालीन साहित्य में स्टीफन स्वाइग बहुत चर्चित नाम नहीं है हालांकि बीती सदी के मध्यांतर तक इस जर्मन-भाषी ऑस्ट्रियाई लेखक की लगभग पूरे विश्व साहित्य में तूती बोलती थी। हर भाषा के कुछ हलकों में स्टीफन स्वाइग का नाम अलबत्ता बेहद सम्मान के साथ लिया जाता रहा है। कथा साहित्य के स्तर पर स्वाइग ने न तो दोस्तोवस्की…
आज हिंदी के उपेक्षित लेकिन विलक्षण लेखक शैलेश मटियानी की पुण्यतिथि है. उन्होंने अपने लेखन के आरंभिक वर्षो मे ‘कविताएं’ भी लिखी थीं. आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी कुछ कविताएं यहां दी जा रही हैं, जिन्हें उपलब्ध करवाने के लिए हम दिलनवाज़ जी के आभारी हैं- जानकी पुल.नया इतिहासअभय होकर बहे गंगा, हमे विश्वास देना है –हिमालय को शहादत से धुला आकाश देना है !हमारी शांतिप्रिया का नही है अर्थ कायरताहमे फ़िर खून से लिखकर नया इतिहास देना है !लेखनी धर्मशांति से रक्षा न हो, तो युद्ध मे अनुरक्ति दे लेखनी का धर्म है, यु्ग-सत्य को अभिव्यक्ति दे !छंद –भाषा-भावना…
मूलतः इंजीनियरिंग के छात्र आस्तीक वाजपेयी की ये कविताएँ जब मैंने पढ़ी तो आपसे साझा करने से खुद को रोक नहीं पाया. इनके बारे में मैं अधिक क्या कहूँ ये कविताएँ अपने आपमें बहुत कुछ कहती हैं- इतिहास, वर्तमान, जीवन, मरण- कवि की प्रश्नाकुलता के दायरे में सब कुछ है और देखें तो कुछ भी नहीं. होने न होने का यही द्वंद्व उनकी कविताओं को एक खास भंगिमा देता है. आइये पढते हैं- जानकी पुल.जानकी पुल को उनकी कविताएँ सबसे पहले प्रकाशित करने पर गर्व हो रहा है.1.ऐसा ही होता हैऐसा ही होता है।समय मे भागता अश्वत्थामाभूल जाएगा कि वह…
आज लेखक मनोहर श्याम जोशी की पुण्यतिथि है. देखते ही देखते उनकी मृत्यु के पांच बरस बीत गए. विश्व कप का सेमीफ़ाइनल शुरु होने से पहले पढ़ लेते हैं उनका अंतिम साक्षात्कार जो प्रसिद्ध पत्रकार अजित राय ने किया था. १९-३-२००६ को यानी उनकी मृत्यु से केवल ११ दिनों पहले. बहुत साफ़गोई के साथ उन्होंने इस बातचीत में अनेक बातें पहली बार ही कही थीं. इसी बहाने उनको थोड़ा याद भी कर लेते हैं. हिंदी के उस बहुआयामी लेखक को- जानकी पुल. प्रश्न- आपको साहित्य अकादेमी पुरस्कार की फिर से बधाई. बात यहीं से शुरु करें. साहित्य के लिए आपको…
हाल में ही प्रसिद्ध आलोचक, लेखक और सबसे बढ़कर एक बेजोड़ अध्यापकविश्वनाथ त्रिपाठी ने अपने जीवन के 80 साल पूरे कर लिए. लेकिन अभी भी वे भरपूर ऊर्जा से सृजनरत हैं. अभी हाल में ही उनकी किताब आई है \’व्योमकेश दरवेश\’, जो हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन-कर्म पर है. उनसे बातचीत की युवा लेखक शशिभूषण द्विवेदी ने- जानकी पुल. ========================================================== प्रश्न- त्रिपाठी जी, कहते हैं कि जब आदमी बहत्तर साल का हो जाता है तो देवता हो जाता है, अब आप तो अस्सी के हो गए हैं। क्या लगता है देवता हो गए हैं या अभी तक मनुष्य ही हैं?…
हाल में ही पेंगुइन-यात्रा प्रकाशन से प्रसिद्ध लेखक पॉल थरू की किताब \’द ग्रेट रेलवे बाज़ार\’ इसी नाम से हिंदी में आई है. जिसमें ट्रेन से एशिया के सफर के कुछ अनुभवों का वर्णन किया गया है. हालाँकि पुस्तक में एशिया विशेषकर भारत को लेकर पश्चिम में रुढ हो गई छवि ही दिखाई देती है, लेकिन कहीं-कहीं लेखक के ऑब्जर्वेशन्स दिलचस्प है. एक ज़बरदस्त पठनीय पुस्तक का हिंदी में आना स्वागतयोग्य कहा जा सकता है. हालांकि पुस्तक पढते हुए मेरी तरह आपके भी मन में तमाम तरह की असहमतियां उठ सकती हैं, फिर भी यह एक पैसावसूल किताब है-…
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर प्रस्तुत हैं आभा बोधिसत्व की कविताएँ- जानकी पुल.मैं स्त्री मेरे पास आर या पार के रास्ते नहीं बचे हैंबचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ता.जहाँ बचाया जा सके किसी भी कीमत पर,घर, समाजन कि सिर्फ अपनी बात।मैं स्त्री, मेरे पासआर या पार के रास्ते सचमुच नहीं बचेबचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ताजहाँ मिल सके मान हर स्त्री को,मिल सके ठौर हर स्त्री को, कह सके हर स्त्री यह मेरा घर और यह मेरी गृहस्थी।काठ की गुड़िया बन कर देख लियाकुछ नहीं हुआ मेरे मन कामोम की गुड़िया बन कर देख लियाक्या…
अज्ञेय की संगिनी इला डालमिया ने एक उपन्यास लिखा था’ ‘छत पर अपर्णा. कहते हैं कि उसके नायक सिद्धार्थ पर अज्ञेय जी की छाया है. आज अज्ञेय जी की जन्मशताब्दी पर उसी उपन्यास के एक अंश का वाचन करते हैं- जानकी पुल.लाइब्रेरी से सिद्धार्थ ने किताब मंगवाई थी. उन्हें उसकी तुरंत ज़रूरत थी. दिल्ली युनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में उसे किताब ढूंढते-ढूंढते कुछ ज्यादा समय लग गया और जब तक वह हिंदू कॉलेज और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बीच की सड़क पर पहुंची उसे आधा घंटा देर हो चुकी थी. निश्चित समय से आधा घंटा देर.उस दिन, पर, वह इंतज़ार करती…